'साखीणी कथावां' साथै संपादकीय व्यथावां / डॉ. नीरज दइया / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: जुलाई-सितम्बर 2012 |
राजस्थानी कहाणी री जड़ां मांय कठैई लोककथा परंपरा है का कोनी, इण सवाल सूं जुदा सवाल ओ है कै कांई राजस्थानी कहाणी खातर 'राजस्थानी-कथा’ पद काम में लियो जाय सकै है या कोनी? आधुनिक कहाणी रूप मांय कांई ओ वाजिब होवैला कै 'कथा’ पद मांय जिको जूनो अरथ बरत-कथावां री ढाळ माथै लियो जावै वो अंगेजां। कहाणी अर उपन्यास दोनूं विधावां री जे बात करां तो 'कथा-साहित्य’ पद रो प्रयोग राजस्थानी-हिंदी दोनूं भासावां मांय देखण नै मिलै। किणी रचनाकार रै नांव आगै कथाकार लिखण रो अरथ ओ पण होया करै कै रचनाकार कहाणी अर उपन्यास दोनूं विधावां मांय लेखन करै। चावा-ठावा कथाकार मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा दोनूं ई साहित्य अकादेमी सूं पुरस्क्रत रचनाकार है। मालचंद तिवाड़ी नै कविता खातर अर भरत ओळा नै कहाणी खातर साहित्य अकादेमी इनाम मिल्यो। घणै हरख री बात कै साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली आं रचनाकारां नै कहाणी-संकलन रै संपादन री जिम्मेदारी सूंपी।
लगै-टगै तीन सौ पानां रै कहाणी-संकलन 'साखीणी कथावां’ नै देख’र हरख हुवै, पण साथै सवाल उपजै कै इण संकलन रो नांव 'साखीणी कहाणियां’ क्यूं नीं राखीज्यौ? जद कै इण संग्रै मांय घणखरी तो आधुनिक कहाणियां ई संकलित करीजी है? पोथी रो नांव राखण रो काम संपादकां रै जिम्मै होवै, वै जिको राख दियो वो ठीक। अठै सबद-प्रयोग 'कथावां’, संपादकां री मनसा नै दरसावै कै वै स्यात कहाणी नै 'लोककथावां’ सूं जोड़ण रा जतन करता दीसै। कहाणी अर लोककथा रै रिस्तै बाबत इण संग्रै री भूमिका मांय कठैई खुलासो कोनी मिलै। ओ जरूर है कै संपादक रचना री दीठ सूं लोककथा अर कहाणी नै जुदा-जुदा मानै। इण संग्रै रा संपादकां साखीणी कथावां रै मिस राजस्थानी री प्रतिनिधि कहाणियां नै संकलित करण रो जसजोग काम कर्यो है।
'साखीणी कथावां’ रा संपादक रो मानणो है- 'कुल मिलायनै राजस्थांनी कथा री जातरा अेक ठावकै मुकाम माथै पूगी थकी धकली मजलां री सोय में है। लारलै दोय-तीन दसकां री इण उल्लेख जोग सिरजणा नैं अंवेरता थकां अेक प्रतिनिधि कथा-संग्रै री जरूरत मजसूस करी जाय रैयी है। पाठकां री जरूरत रै अलावाराजस्थांन रा जिका विश्वविद्यालय में स्नातक अर स्नातकोत्तर स्तरां माथै राजस्थांनी साहित्य पढाईजै, वांरा पढेसर्यां सारू ई अेड़ै संग्रै री मांग बगत-बगत पर करीजती रैयी है।’ (पेज-13)
भूमिका रूप संपादकां री लिखी आं तीन ओळ्यां बाबत चरचा करां-
1. जद संपादकां रो मानणो है कै कथा री जातरा अेक ठावकै मुकाम माथै पूगी थकी धकली मजलां री सोय में है तद इण संग्रै री भूमिका मांय संपादकां रो घणो हेत फगत अर फगत विजयदान देथा अर सांवर दइया बाबत ई क्यूं दीसै?
2. ओ संग्रै बरस 2011 मांय प्रकाशित हुयो है, अर इण दीठ सूं लारलै दोय-तीन दसकां रो अरथाव- इण संचै मांय बरस 1981-1990, 1991-2000 अर 2001-2010 री सिरजणा री अंवेर संपादकां करी हुवैला, तद केई कहाणियां बरस 1981 सूं घणी पैली री संग्रै मांय क्यूं सामिल करीजी है?
3. विश्वविद्यालय में स्नातक अर स्नातकोत्तर स्तरां माथै राजस्थांनी साहित्य पेटै आगूंच जिका संग्रै पाठ्यक्रम मांय है, वां नै हटा परा इण पोथी नै सामिल करण खातर संपादकां री आ अणचाइजती मांग कांई अरथ मांय ली जावणी चाइजै।
अबै विगतवार बात करां, संपादकां रो ओ मानणो है- 'जिण वेळा विजयदांन देथा आपरी 'बातां री फुलवाड़ी’ रै सिरजण में लाग्योड़ा हा, उणी वेळा राजस्थांनी रा कीं लेखक कथा री हटौटी वस में करण में खपै हा। अठै आप परंपरा रै मनोवैग्यानिक दबाव री सोय विजयदान देथा कांनी सूं आपरी 'फुलवाड़ी’ नैं दिरीज्यै थकै सिरैनांवै में देखौ- बातां री फुलवाड़ी। बिज्जी इणनैं कथावां री फुलवाड़ी नीं कैयौ है, पण इणीं दिनां नृसिंह राजपुरोहित, अन्नाराम सुदामा, मूलचंद 'प्राणेस’, करणीदांन बारहठ, बैजनाथ पंवार, यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र’, श्रीलाल नथमल जोशी आद बाकायदा कथावां लिखै हा।’ (पेज-9)
कांई कारण रैया होवैला कै संपादकां रै मुजब बाकायदा कथावां लिखण वाळा लेखकां मांय मूलचंद 'प्राणेस’ अर श्रीलाल नथमल जोशी री कहाणियां संकलित कोनी करीज सकी? संपादकां आप री सफाई मांय लिख्यौ है- 'साखीणी कथावां’ में संकलित कथावां रौ क्रम कथाकारां री वरिष्ठता रै आधार माथै नीं राखनै उणां रै नामानुक्रम (एल्फाबेट) मुजब राखीज्यौ है।’ (पेज-13) पण उल्लेखजोग है कै संचै मांय संकलित कथावां रो क्रम नीं, कथाकारां रो क्रम वर्णानुक्रम सूं राख्यो है। स्यात संपादकां री इण ओळी रो ओ मायनो ई होवैला। सवाल ओ है कै कांई राजस्थानी रा आं दोय कथाकारां मांय ओ हौसलो कोनी हो कै वै राजस्थानी रै कथाकारां रो क्रम, आपरी दीठ सूं वरिष्ठता रै आधार माथै राख सकता! वरिष्ठता रै आधार माथै जे राखता तो श्रीलाल नथमल जोशी अर मूलचंद 'प्राणेस’ आद नै लारै राखता का आगै। अठै लिखण री जरूरत है कै कथा साहित्य मांय उपन्यास विधा रो श्रीगणेश 'आभै पटकी’ सूं श्रीलाल नथमल जोशी कर्यो अर कहाणी विधा री पोथी 'मेंहदी, कनीर अर गुलाब’ माथै सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार ई आपनै मिल्यो। संपादकां री इण भूमिका मांय इनाम अर इनामां री विगत री भरमार देखी जाय सकै। किणी रचनाकारा री परख फगत इण दीठ सूं कोनी हो सकै। सवाल अठै ओ पण है कै कांई संपादकां रै मुजब परंपरा रै मनोवैग्यानिक दबाव मांय बिज्जी बातां सबद बरत’र कोई गळती करी? कांई संपादकां मुजब बातां री फुलवाड़ी मांय कथावां रो सिरजण बिज्जी करयो है का लोककथावां रो संकलन कर्यो है?
संपादकां री पैली अर छेहली पसंद बिज्जी है। छौ होवै, अठै संपादकां री पसंद-नापसंद माथै सवाल कोनी। सवाल ओ है कै आखै देस मांय जाणीजता मानीता कथाकार यादवेंद्र शर्मा बाबत संपादकां रो ओ सोच विचारणजोग लखावै- 'यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र’ हिंदी में ई राजस्थांन सूं उभरिया थका अेक चावा-ठावा कथाकार गिणीजता अर वांरौ घणौ कांम ई हिंदी में साम्हीं आयौ। अेक तरै सूं आपां कैय सकां के आंरा प्रतिमान हिंदी रा रैया अर राजस्थांनी में वै आपरी मदरी जबान रै रिण सूं उऋ ण होवणै रै भाव सूं ई लिख्यौ। आ गौर करण री बात है कै चंद्रजी नैं राजस्थांनी कथा-संग्रै 'जमारो’ माथै साहित्य अकादेमी रौ इनांम मिळयौ जियां के हिंदी रा लेखक मणि मधुकर नैं आपरै अेक मात्र राजस्थांनी कविता-संग्रै 'पगफेरौ’ माथै साहित्य अकादेमी इनांम हासिल होयौ।’ (पेज-10)
कांई संपादकां रै मन रो काळो अठै उजागर कोनी हुवै? यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र’ हिंदी में ई राजस्थांन सूं उभरिया राजस्थानी कथाकार मानीजै जिका हिंदी जगत मांय राजस्थान रै रूप री ओळखाण कराई। ठाह नीं संपादकां क्यूं यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र’ अर मणि मधुकर री अकारथ तुलना अठै पोळावै। किणी नै किणी सूं सवायो साबित करण खातर दोय तरीका होया करै, अर आं दोनूं तरीका रो प्रयोग बतौर संपादक कर्यो ई’ज है पण तीजो तरीको ई अठै ईजाद करीज्यो है।
विजयदान देथा रै काम मांय 'कथावां री फुलवाड़ी’ सामिल कोनी, वां री फुलवाड़ी रो नांव 'बातां री फुलवाड़ी’ हैै। संपादकां तो ई वां रो जस गावण मांय आपरो गळो बैठा लियो, अर इण सूं ई वां नै संतोस कोनी हुयो तो बिज्जी रै चोळै रै गूंजै नै खासो बड़ो कर’र उण मांय सूं निकळणो कबूल कर लियो। अठै आं संपादकां आप-आपरी मा, भासा का भौम बाबत दर ई सोच्यो कोनी। संपादकां री अै ओळ्यां किणी नै सवायो साबित करणै रो तीजो तरीको कैयो जाय सकै- लारलै दिनाजोधपुर में किणी कथा-पोथी रै लोकार्पण रै टांणै अेक नांमी राजस्थांनी कथाकार साच ई कैयौ के जिण तरै दोस्तोयव्स्की आ कबूल करी के म्हारै समेत म्हारी पीढी रा सगळा लेखक गोगोल रै 'ओवर कोट’ रै गूंजै मांय सूं निकळ्योड़ा हां, बियां ई म्हे आ कबूल करणी चावां के कम सूं कम म्हे तो विजयदांन देथा उर्फ बिज्जी रै चोळै रै गूंजै मांय सूं निकळयोड़ा हां।’’(पेज-6) संपादक जोधपुर मांय होयै लोकार्पण रै टांणै उण नांमी राजस्थांनी लेखक रै साच बाबत तो बतावै पण उण नांमी राजस्थानी लेखक रो नांव लुको’र राखणो चावै। कांई वो नांमी लेखक कहाणियां कोनी लिखै? वो महान लेखक फेर कदैई किणी टांणै कोई दूजी बात कैवैला अर आपां रा संपादक फेर कोई साच कबूल करैला। आ तो चोखी बात होई कै मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा फगत खुदो खुद नै ई गूंजै सूं जलमिया बताया नींतर दोस्तोयव्स्की री होड़ा-होड़ वै आपरै समेत पूरी पीढी बाबत ई आ बात कैय सकता हा।
नामी कथाकार मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रा साहित्य मांय पग हाल इत्ता काचा है कै वै आपरी पसंद रा लेखकां रा परचम हेठा राखै ई कोनी। आं री पसंद रा लेखकां बाबत भूमिका मांय मंगळ-आरत्यां रा बेजोड़ तीन दाखला देखण जोग है- 'ओ वो दौर है जिणमें मुरलीधर व्यास 'राजस्थांनी’ 'बरसगांठ’ अर नानूराम संस्कर्ता 'ग्योही’ री कथावां लिख रैया हा। म्हारी दीठ में अै दोनूं राजस्थांनी कथा रा वै कारीगर है जिकां री लगायोड़ी नींव माथै आज विजयदान देथा आपरौ बेजोड़ भारतीय कथाकार रौ वाजिंदौ जस लियां ऊभा है।’ (पेज-6) 'चंद्रप्रकास देवल राजस्थांनी रा सिरैनांव कवि है, पण बिचाळै-बिचाळै कीं कथावां ई मांडता रैया है। वांरी 'बस में रोझ’ कथा नै 'कथा’ संस्था रौ इनांम मिळ्यौ अर वा राजस्थांनी री घणी सराईजी थकी कथावां में सामिल है।’ (पेज-11) 'ओ संजोग मात्र नीं है के डिंगळ रै छंद-रूप नैं बरतनै आजादी रै परभातै जन-क्रांति रौ गीत रचण वाळा रेंवतदांन चारण रा जाया-जलम्या अर्जुनदेव चारण आधुनिक राजस्थांनी रंगमंच रै पर्याय-रूप देस-भर में ओळखीजै अर वां रा नाटकां रौ मुख्य स्वर है लुगाई रै अस्तित्वगत सवालां सूं उपज्योड़ी पीड़।’ (पेज-9)
मुरलीधर व्यास 'राजस्थांनी’ अर नानूराम संस्कर्ता नै राजस्थांनी कथा री नींव रा कारीगर तो संपादक स्वीकारै, पण बात फगत कंगूरा री करै अर वां री 'बातां’ नै कथा मानै! राजस्थांनी रा सिरैनांव कवि चंद्रप्रकास देवल 'कथा’ संस्था सूं पुरस्क्रत आद री विगत पोथी रै छेकड़ला पानां कहाणीकारां रा परिचै खातर अंवेर राखणा हा, पण पोथी मांय संकलित कहाणीकारां बाबत परिचै, पोथ्यां, पुरस्कारां अर संपर्क बाबत जाणकारी छेकड़ रा पानां माथै कोनी। साहित्य अकादेमी नै चाइजतो कै आपरै पैलड़ै राजस्थानी रै संपादित कहाणी संग्रै दांई इण संचै मांय कहाणीकारां रा परिचै आद दिया जावणा री आगूंच भोळावण संपादन सूं पैली संपादकां नै पूगती होवती। पोथी 'साखीणी कथावां’ अन्नाराम सुदामा री कहाणी 'बेटी रौ बाप’ सूं चालू होवै अर हरमन चौहान री कहाणी 'लांबा फाबा वाळौ आदमी’ माथै पूरी होवै। तीजै दाखलै पेटै कैवणो है कै कहाणी ना तो रेंवतदांन चारण लिखी ना वां रा जाया-जलम्या अर्जुनदेव चारण। हां, अर्जुन री कहाणी आलोचना पोथी जरूरी छप्योड़ी है, अर उण मांय सूं कीं दाखला संपादकां नै इण पोथी मांय लेवणा हा जिका वां लिया कोनी।
पूरी भूमिका मांय फगत अर फगत सांवर दइया बाबत ई संपादकां रो आकलन कै वांरी पसम मगसी पड़ती गई सामीं आवै, बाकी रचनाकारां री परख खातर संपादकां चसमो क्यूं उतार दियो? 'साखीणी कथावां’ रा संपादक रो मानणो है- 'सांवर दइया री कथा 'गळी जिसी गळी’ छपतां ई राजस्थांनी कथा रै आभै में अेक नुंवौ इजाफौ होंवतौ लखावै। सांवरजी रै 'अेक दुनिया म्हारी’ कथा-संग्रै माथै साहित्य अकादेमी इनांम घोसित होयौ। निस्चौ ई राजस्थांनी कथा रौ ओ अेक अपूर्व अर निरवाळौ दीठाव हौ। आ और बात है के सांवरजी आपरी केई कथा-रूढियां रा सिकार होंवता गया अर बेहिसाब दुसराव रै कारण वांरी पसम मगसी पड़ती गई। सांवरजी रौ असमय काल-कवलित होवणौ राजस्थांनी कथा रै सीगै अेक लूंठौ नुकसांण हो। वै अेक ऊरमावांन लेखक हा अर जीवता रैवता रो अवस आपरी रूढ परिपाटी नै तोडऩै कीं नुंवौ रचण में खपता।’ (पेज-10) अर इण पछै संपादकां री आ ओळी- 'सांवर दइया रै सागै अेक पूरी ऊरमावांन कथा-पीढी लिखणौ सरू कर चुकी ही।’ (पेज-10) अर इण ओळी री साख मांय पंद्रा कथाकारां रा नांव देख’र लखावै कै संपादकां नै कोई टीखळ सूझी है। सांवर दइया रै साथै लिखण वाळा रा नांवां मांय साव नुंवा कथाकारां रा नांव है। जद सांवर दइया अेक कथाकार रूप चावो-ठावो मुकाम हासल कर चुक्या हा, उण बगत तांई आं मांय सूं केई कथाकार जियां कै माधव नागदा, मदन सैनी, बुलाकी शर्मा, ओमप्रकाश भाटिया, दिनेश पांचल, माधोसिंह इंदा, रामेश्वर गोदारा, सत्यनारायण सोनी, रामसरूप किसान आद कथा-दीठाव में कठैई कोनी हा। अठै तांई कै इण संचै रा संपादकां मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा री कथा-जातरा सांवर दइया सूं खासी पछै चालू होवै।
भूमिका मांय संपादकां रो घणो हेत फगत अर फगत विजयदान देथा अर सांवर दइया बाबत ई दीसै, अेक री वै अणथाग जय-जयकार करै अर दूजै री भरी-पूरी कथा-जातरा नै नकारण री कोसिस। संपादकां नै सूचना देवणो धरम है कै संचहिमायत करतां थकां अठै पुरजोर सबदां मांय लिखणौ पड़ैला कै संपादक री आ निहायत ना-समझी है कै इण ढाळै री चरचा कथा-पोथी री भूमिका मांय करै। संपादक री ओळ्यां मामूली बदळाव साथै लिखणी चावूं- मालचंद तिवाड़ी हिंदी में राजस्थांन सूं उभरिया थका अेक चावा-ठावा कथाकार गिणीजै अर वांरौ घणौ कांम हिंदी में साम्हीं आयौ। अेक तरै सूं आपां कैय सकां के आंरा प्रतिमान हिंदी रा रैया अर राजस्थांनी में वै आपरी मदरी जबान रै रिण सूं उऋ ण होवणै रै भाव सूं ई लिख्यौ।
छेकड़ मांय अेक गैर वाजिब सवाल पाठकां रै हित मांय साहित्य अकादेमी सूं करणो चावूंला- जे पोथी मांय फोंट टाइप छोटो कर कीं पानां कम कर दिया जावता तो स्यात कीमत ई दो सौ पचास रिपिया कम हो सकती ही। इण संचै मांय 38 कहाणियां है अर बोधि प्रकाशन सू छपी राजस्थानी री आधुनिक 35 कहाणियां री कीमत फगत पचास रिपिया। कांई पोथी मांय पानां बेसी होयां संपादक नै साहित्य अकादेमी सूं मानदेय बेसी मिल्या करै है का बिक्री बेसी होया करै?