'सीप' सूं कीं गद्य कवितावां / ओम पुरोहित 'कागद' / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अप्रैल-जून 2012  

कुंवर चन्द्रसिंघ बिरकाळी राजस्थानी भाषा रा लूंठा कवि। प्रकृति रा चितेरा। आपरै प्रकृति काव्य रा जस ऊजळा। रवीन्द्र नाथ टैगोर, महादेवी वर्मा अर सुनीति कुमार चटर्जी इण री साख भरता नीं थकै। आप रो नांव आधुनिक राजस्थानी काव्य रा प्रणेता सरूप थिर। राजस्थानी काव्य नै 'लू' अर 'बादळी' जेड़ी अमर रचनावां दीवी! प्रकृति काव्य री बेजोड़ रचनावां। इण रै अलावा प्रकृति काव्य री और कृतियां हैं- 'बसन्त' अर अणछपी है- 'सांझ', 'डांफर, 'धोरा', 'बाड़', 'रागळी' अर 'बातड़ल्यां'। गद्य काव्य री 'सीप' अर बाल अर नीति साहित्य री 'बाळसाद'। आपरी अनूदित कृत्यां है- 'काळजै री कोर', 'दिलीप', 'मेघदूत', 'चित्रांगदा', 'जफरनामो' अर 'रघुवंश'। आप छेकड़ला दिनां में रामायण रो राजस्थानी में अनुवाद करै हा अर महाभारत माथै टीका लिखण री आपरी मनस्या ही। आप जलमजात कवि हा। अर हर घड़ी नूंवो करण री तेवड़ता। आप इणीज हूंस रै पाण नूंवा-नूंवा प्रयोग करता रैवता! आपरी हरेक रचना नूंवै प्रयोग रा दरसण करावती रैयी। आं रै 'सीप' संग्रै सूं पेस है कीं गद्य कवितावां।

1.

दोनूं बाळपणै रा साथी
जवानी में अेक दांत रोटी टूटी
बिरधपण साथै बितायो
मर्यां पछै अेक गंगा में, दूजो कबर में
अंत में अळगा करण रो ओ सांग किसो?

2.

अंधारै सूं उजाळै में आवतो ई बाळक रोयो
इण सूं जीवण रो अरथ लगाय नै लोग हाँसिया
धीरै-धीरै देखा-देखी सागी बाळक
उजाळै रो बणियो
अेेक दिन अचाणचक अंधारो आवतो देख
सागी बाळक उजाळै वास्तै रोवण लाग्यो।

3.

बालाजी रै मिंदर में तीन दिनां री भूखी-तिसी
अेक अबला आंख्यां सूं आंसू न्हाखती अेक गबरू नै
आंगळी सूं बताय'र कैयो- इयै चंडाळ म्हनै दीन दुनियां सूं
गमाई अर म्हारो माल-मत्तो गटक करग्यो। न्याव रो
दंड इयै पापी नै मिलणो चाईजै। म्हैं गरीबड़ी नै नहीं।
पंच- थारो हीयो क्यूं फूटग्यो, जको थूं इयै री फांकी में
आय'र घर सूं न्हाठी? मिनख तो बाड़ में
मूतता ई आया है। आज सूं थारी दखणा बंद
अर थूं न्यात सूं बारै।

4.

बिदा लेवतां रात उसा नै कैयो-
'काल अठै ई भलो!'
उडती-सी उसा सूं सूरज सुणै-
'काल अठै ई भलो!'
आंख्यां सूं अदीठ होतां सूरज सूं सांझ अंतवचन लेवै-
'काल अठै ई भलो!'

5.

डाळ्यां सूं लाग्या हर्या पान
आमीं-सामीं झांक चंचळ हुवै
आपस में मिलण नै ललचावै
पण आप आपरी ठोड़ नीं छोडै
सूका पान दूर-दूर सूं आय'र
आपस में गळै मिलै
साथी, आव झड़ां!

6.

तपै ताकळै-सी तेज सूरज री किरणां री लौ
आपरै गळै सूं उतार
काळजै में फाल्ला उपाड़
दिन भर धूणीं रमा
रात नै इमरत बरसावै
उण चांद नै जगत चोर कैवै!