'सेक्शन 375' एक विचारोत्तेजक फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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'सेक्शन 375' एक विचारोत्तेजक फिल्म
प्रकाशन तिथि : 14 सितम्बर 2019


अजय बहल की फिल्म 'सेक्शन 375' जितने सवालों का जवाब देती है, उससे अधिक सवाल पैदा भी करती है। न्यायाधीश सबूत के आधार पर फैसला देता है, क्योंकि कानून व्यवस्था का यह आधार स्तंभ है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाएं समानता के आदर्श को परे रखते हुए सुविधा संपन्न व्यक्ति के पक्ष में खड़ी है गोयाकि जिसकी लाठी उसी का भैंस पर अधिकार हो जाता है। सबूत जुटाए जाते हैं, उनको तोड़ा-मोड़ा जाता है। अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू अभिनीत फिल्म 'पिंक' में बचाव पक्ष का वकील कहता है कि उसकी मुवक्किल ने 'नो' कहा था, उसने शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया था और 'नो' मात्र एक शब्द नहीं, एक वाक्य है- एक पूरा वाक्य है।

अजय बहल की फिल्म में एक कन्या अपने साथ हुए दुष्कर्म के खिलाफ मुकदमा दायर करती है। वह यह भी जानती है कि उसके चेहरे और हाथ पर लगे जख्म अदालत में यह कहकर अस्वीकार किए जा सकते हैं कि जब दुष्कर्म होने के बाद वह अपने घर आई तब क्रोध में उसका भाई भी उसे पीट सकता है कि वह अकेली क्यों गई? अत: कन्या लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करके, सीढ़ियों से जाती है और रेलिंग पर अपना शरीर बार-बार टकराती है ताकि चोट के निशान ऐसे उभरें जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।

कन्या को जीवन-यापन के साधन जुटाने हैं। उसके बूढ़े माता-पिता काम नहीं कर सकते और भाई भी बेरोजगार है। अत: वह एक फिल्म यूनिट के पोशाक विभाग में सहायक के पद पर काम करती है। फिल्म का निर्देशक आदतन लम्पट है और कन्या को यह भी नहीं मालूम कि वह विवाहित है। उसकी पत्नी उसे पहले ही छोड़ चुकी है। गौरतलब है कि मुकदमे के समय वह पति का साथ देती है। दुष्कर्म के तमाम मामलों में पत्नियां अपने पति के पक्ष में खड़ी होती हैं। इसका एक कारण आर्थिक है। इस फिल्म में आरोपी की पत्नी जानती है कि उसका पति लम्पट है। ज्ञातव्य है कि महेश भट्‌ट की फिल्म 'गैंगस्टर' के नायक पर अपनी नौकरानी के साथ दुष्कर्म का आरोप अदालत में सही पाया गया था। इस फिल्म ने निर्भया के साथ दुष्कर्म के बाद नियम में संशोधन का भी इस्तेमाल किया है।

यह फिल्म एक और महत्वपूर्ण बात पर प्रकाश डालती है कि अदालत के बाहर खड़ी उन्मादी भीड़ अपना फैसला कर चुकी होती है और हुड़दंग द्वारा वे फैसलों को प्रभावित करना चाहते हैं। यह सच है कि इस दौर में हुड़दंग एक स्वतंत्र व्यवस्था की तरह अपनी मनमानी कर रहा है। यह हुड़दंग प्रायोजित होता है। व्यवस्था का एक महकमा यह काम करता है। फिल्म में यह भी बताया गया है कि सोशल मीडिया पर बनाई गई राय इस दौर में सभी फैसलों को प्रभावित कर रही है। अभी हाल ही में आमिर खान ने उस फिल्मकार के साथ काम करना स्वीकार किया है, जिस पर 'मी टू' आंदोलन में आरोप लगाया गया था। सोशल मीडिया पर आमिर खान का विरोध किया जा रहा है कि वे सुभाष कपूर के साथ क्यों काम कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि सुभाष कपूर ने 'बुरे फंसे ओबामा' और 'जॉली एलएलबी भाग दो' का निर्देशन किया था। आमिर खान सुभाष कपूर के कौशल से प्रभावित हैं और वे यह भी जानते हैं कि मीटू आंदोलन में व्यक्तिगत बदला लेने के लिए कुछ आरोप लगाए गए हैं। इस फिल्म में युवती के मन में बदले की भावना है कि उस डायरेक्टर ने अपने विवाहित होने की बात क्यों छिपाकर रखी। अन्याय व असमानता आधारित व्यवस्थाएं बेरोजगारी का निदान करने में अक्षम है और ऐसे हालात बन रहे हैं कि जीवन यापन के लिए मनुष्य कुछ भी करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। कई वर्ष पूर्व अनीज बज्मी की फिल्म 'दीवाना' में भी गुनाहगार छूट जाता है। इसी तरह सनी देओल और इरफान खान अभिनीत फिल्म 'राइट या रॉन्ग' में भी अपराधी पतली गली से बच निकलता है। बहरहाल फिल्मकार अजय बहल ने सात वर्ष पूर्व 'बीए पास' नामक फिल्म बनाई थी। इस फिल्म के द्वारा वे एमए पास कर चुके हैं और आशा की जा सकती है कि अपनी डॉक्टरेट के लिए अधिक समय नहीं लेंगे। 'सेक्शन 375' एक विचारोत्तेजक फिल्म है, जो सौ मिनिट तक दर्शक को बांधे रखती है। समाज के तंदूर में लम्पटता के कोयले हमेशा दहकते रहते हैं और पुरातन आख्यानों के गलत अनुवाद ने इस आग को हवा दी है।