'स्काय इज़ पिंक, मनी इज़ ब्लैक' / जयप्रकाश चौकसे

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'स्काय इज़ पिंक, मनी इज़ ब्लैक'
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2018


फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी की कम्पनी बना रही है 'स्काय इज़ पिंक' जिसमें फरहान के साथ प्रियंका चोपड़ा एवं जायरा वसीम काम कर रहे हैं। फरहान अख्तर और प्रियंका चोपड़ा इसके पहले 'दिल धड़कने दो' में काम कर चुके हैं। गौरतलब है कि हाल ही में प्रियंका चोपड़ा ने सलमान खान की 'भारत' छोड़ दी क्योंकि उन्हें अमेरिका में एक फिल्म में अभिनय करना था। डॉलर रुपए से ज्यादा दमदार करेन्सी है। प्रियंका चोपड़ा ने फरहान अख्तर की फिल्म स्वीकार की क्योंकि फरहान प्रियंका द्वारा अपलब्ध कराए गए समय के अनुरूप ही अपनी शूटिंग के दिन तय करने के लिए तैयार हैं। 'भारत' में यह सुविधा नहीं थी। दूसरी बात यह कि 'भारत' की पटकथा में नायक की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है जबकि 'स्काय इज पिंक' में उसे नायक के बराबर की भूमिका मिली है।

अब इस प्रसंग को इस तरह गहराया जा सकता है कि सलमान खान के पिता सलीम साहब एक दौर में जावेद अख्तर के साथ मिलकर फिल्में लिखते थे और उनके अलगाव के बाद दो खेमे बन गए। जावेद अख्तर के सुपुत्र भी अभिनय क्षेत्र में उतर आए और 'भाग मिल्खा भाग' में उसके अभिनय को सराहा गया। फरहान उस तरह के स्टार नहीं, जिस तरह के स्टार सलमान खान हैं। आज महज सलमान खान के फिल्म में होने के कारण वितरक उसे हाथों हाथ ले लेते हैं, जबकि फरहान अभिनीत फिल्म में सितारों के जमावड़े के साथ टेक्नीशियन, संगीत इत्यादि पर भी विचार किया जाता है।

ज्ञातव्य है कि 'पिंक' नामक फिल्म में अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू ने अभिनय किया था। अदालत केन्द्रित इस साहसी फिल्म की नायिका अदालत में अपने माता-पिता की मौजूदगी में कहती है कि वह अपने मनपसंद साथी के साथ अपनी रजामंदी से सोई और अदालत के अधीन मामले में उसने स्पष्ट 'ना' कहा था। अमिताभ बच्चन इस 'ना' को मुकदमे का आधार बना कर केस जीत जाते हैं।

प्रकृति ने हमें रंगों की सौगात दी है। इंद्रधनुष रंग के बारे में हमारा पथ प्रदर्शक है। ईश्वरीय रसायनशाला में प्रयोग होते हैं। मनुष्य ने रसायनशाला में नकली रंग बना लिए और खान-पान सामग्री में नकली रंगों का प्रयोग होता है जो सेहत के लिए हानिकारक है। गुलाल भी कई रंग के होते हैं। मिठाई बाजार में काला गुलाब जामुन, गंदुमी बालूशाही, लाल जलेबी इत्यादि बेची जा रही है। धन भी ब्लैक और व्हाइट होता है। हमने रंगों को धर्म के साथ भी जोड़ दिया है जिसका प्रयोग राजनीति में भी किया जा रहा है।

एक मुल्क के ध्वज में सातों रंग का इस्तेमाल हुआ है परन्तु अश्वेत से नफरत अभी भी जारी है। भारत के विवाह क्षेत्र में गोरा रंग आज भी महत्वपूर्ण और रंग गोरा करने की क्रीम का व्यवसाय खूब फल फूल रहा है। शैलेन्द्र के बीमार होने के कारण गुलज़ार को 'बंदिनी' में गीत लिखने का अवसर मिला 'मेरा गोरा अंग लईले, मोहे श्याम रंग दईदे, छुप जाऊंगी रात ही में, मोहे पी का संग दईदे'। इसी फिल्म के क्लाइमैक्स में प्रयुक्त गीत में शैलेन्द्र ने लिखा 'मुझको तेरी बिदा का मर के भी रहता इंतज़ार, मेरे साजन हैं उस पार' की इल्तिजा केवल शैलेन्द्र ही कर सकते थे।

दो अलग- अलग धर्मों के पड़ोसियों के बीच वार्तालाप कुछ इस तरह हुआ। सूर्योदय के समय एक ने कहा, देखो आसमान कैसा सिंदूरी हो गया है तो दूसरे ने उसे धरती देखने को कहा जो घास के कारण हरी दिख रही थी। राजनीति ने मानव अवचेतन में जाने क्या कुछ ठूंस दिया है कि हम प्रकृति का भी विभाजन कर रहे हैं, रंग भी बांटे जा रहे हैं, फूल भी बांटे जा चुके हैं। हमारे पुराने आख्यानों में नर्क के भी विविध प्रकारों का विवरण है। एक रौरव नर्क भी है। स्वर्ग का विवरण भी कुछ ऐसा किया है कि उसकी कई सतहें हैं। के. आसिफ अपनी फिल्म 'लव एन्ड गॉड' में सात सतहों वाला स्वर्ग दिखाना चाहते थे जहां लैला मजनूं मरने के बाद मिलते। उनकी अधूरी फिल्म को के. सी. बोकाड़िया ने किसी तरह पूरी करके प्रदर्शित किया। उसे अधूरी ही छोड़ देते तो के. आसिफ 'मुगले आजम' के आधार पर महान निर्देशक माने जाते।

फरहान अख्तर की फिल्म 'स्काय इज पिंक' की कथा की कोई जानकारी नहीं है परन्तु अब तक उनके द्वारा बनाई गई फिल्में आशा देती हैं। फैशन की दुनिया में पिंक महिलाओं के साथ जोड़ा जाता है। वस्त्रों के रंगों को भी मर्दाना व जनाना विभागों में हमने बांट दिया है। फिल्मकार फराह खान ने एक बार बयान दिया था कि वे मर्दाना फिल्में बनाती हैं गोयाकि अन्य फिल्मकार जनाना फिल्में बना रहे हैं। मनुष्य की उदारता की सीमा है परन्तु संकीर्णता की कोई सीमा नहीं है। इस समय संकीर्णता का स्वर्ण युग चल रहा है।