'हवा हवाई' श्रीदेवी का मुखर होना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2014
अमोल गुप्ते की फिल्म 'हवा हवाई' के ट्रेलर के प्रथम प्रदर्शन के अवसर पर श्रीदेवी प्रमुख अतिथि थीं क्योंकि अमोल की फिल्म का नाम श्रीदेवी अभिनीत 'मिस्टर इंडिया' के गीत की पंक्ति है जिसे जावेद अख्तर से लिखा था। इस अवसर पर श्रीदेवी अभूतपूर्व आत्मविश्वास से भरी थीं और उन्होंने अच्छा भाषण भी दिया। श्रीदेवी को नजदीक से जानने वालों के लिए उनका यह नया रूप अविश्वसनीय सा था क्योंकि इतने लंबे कॅरिअर में उन्होंने सरेआम कोई बात कभी नहीं की। फिल्म के संवाद वे कुशलता से बोलती रही हैं परंतु किसी उत्सव पर सार्वजनिक वक्तव्य उन्होंने कभी नहीं दिया। उनका स्वभाव मूलत: एक संकोची एवं मितभाषी व्यक्ति का रहा है गोयाकि अपने में सिमटी सी रहती रही हैं, केवल अपने परिवार के सदस्यों के बीच मुखर होती रहीं।
ज्ञातव्य है कि निर्देशक गौरी शिन्दे की 'इंग्लिश विंग्लिश' की नायिका भी एक अपने में सिमटी मध्यम वर्ग की घरेलू स्त्री है और अमेरिका प्रवास में वह अपना आत्मविश्वास अर्जित करती है। एक तरह से इसे कमिंग ऑफ एज कथा कहना चाहिए जैसी कि रणवीर कपूर की 'वेकअप सिड' थी। यह श्रीदेवी की पंद्रह वर्ष पश्चात परदे पर वापसी की फिल्म थी और अब पुन: गौरी शिन्दे की एक मध्यमवर्गीय गृहिणी की हास्य फिल्म करने जा रही हैं। दशकों पूर्व सचिन ने मराठी भाषा में 'आत्मविश्वास' नामक अद्भुत फिल्म बनाई थी जिसकी सदैव से डरी हुई गृहणी अपनी सहेली का ताबीज पहनकर आत्मविश्वास के साथ अपने बिखरते हुए परिवार की रक्षा करती है और अंत में उसकी सहेली कहती है कि वह ताबीज कोई अभिमंत्रित वस्तु नहीं थी और ना ही कोई जादुई शक्ति रखती है, वह तो उसने फुटपाथ पर चार आने में खरीदा था और उसका खोया विश्वास जगाने के लिए उसके अभिमंत्रित होने की झूठी कहानी सुनाई थी।
बहरहाल विचारणीय यह है कि क्या एक भूमिका उसे अभिनीत करने वाले कलाकार के स्वभाव और सोच में इस कदर आमूल परिवर्तन कर सकती है? 'इंग्लिश विंग्लिश' ने किया है- ऐसा नजर तो आ रहा है। यह सर्वविदित है कि चौथे पांचवे दशक में लगातार त्रासदी फिल्में करने के कारण दिलीप कुमार के अवचेतन में नैराश्य छा गया था और उनके शरीर पर भी इसका असर नजर आ रहा था। उन्होंने लंदन के मनोचिकित्सक से इलाज कराया और उसकी सलाह पर 'अंदाज', 'कोहिनूर' तथा 'राम और श्याम' जैसी हास्य फिल्में कीं। यह भी कहा जाता है कि 'साहब बीवी और गुलाम' का पात्र मीनाकुमारी के अवचेतन में पैंठ गया था और इस फिल्म के बाद उन्होंने जमकर शराबनोशी भी की जिस कारण मात्र उनचालीस की वय में उनका निधन हो गया।
इस पक्ष की दूसरी साइड यह है कि अनेक धार्मिक फिल्मों में काम करने वले कलाकारों के जीवन पर उदात्त चरित्रों का कोई प्रभाव नहीं हुआ जबकि उन्होंने विश्वसनीय अभिनय किया था। 'राम राज्य' में सीता अभिनीत करने वाली शोभना समर्थ अपने व्यक्तिगत जीवन में आधुनिका थीं और शराबनोशी से भी उन्हें कभी एतराज नहीं रहा। स्पष्ट है कि भूमिकाओं का प्रभाव कुछ कलाकारों पर पड़ता है और अनेक कलाकार इससे लगभग अछूते रहते हैं। हमारे सिनेमा के लगभग सारे प्रसिद्ध खलनायक व्यक्तिगत जीवन में सहृदय लोग रहे हैं और कुछ लोकप्रिय नायकों का चरित्र संदिग्ध रहा है। यह संभव है कि अभिनय करते समय कलाकार के जीवन की परिस्थितियां उसके अवचेतन को कच्ची मिट्टी का बना देती हैं और वह अनचाहे ही पात्र को आमंत्रित करता है कि वह उसके अवचेतन में प्रवेश करे।
मीनाकुमारी हमेशा ही शराब सीमित मात्रा में पीती थीं और प्रेम में उनके साथ बड़ा धोखा हुआ जब वे 'साहब बीबी और गुलाम' कर रही थीं, अत: वे भी असफल प्रेमी के त्रासदी स्वरूप की मेहमाननवाजी के लिए तैयार थे। हमारे नेता अविरल महीनों माइक पर बोलते रहते हैं और मन ही मन जानते हैं कि झूठ बोल रहे हैं परंतु हजारों बार झूठ बोलने के कारण वे स्वयं भी अपनी बकवास पर यकीन करते लगते हैं। इसी तरह श्रीदेवी ने चार वर्ष की उम्र से अब तक चार सौ फिल्में की हैं, अत: उनमें विश्वास था परंतु मुखर होना उन्हें पसंद नहीं था। 'हवा हवाई' तो अभिनय था, वे भीतर से गहन सघन महिला रही हैं।