अंजू की सीख / दीनदयाल शर्मा
मौहल्ले में जब भी दो चार औरतें इकट्ठी होती तो वे बातों-बातों में अंजू की बात जरूर करती।
बात ही ऐसी थी कि किसी भी बात का जवाब अंजू इस ढंग से देती कि सामने वाले को एक बार तो अटपटा सा लगता लेकिन अंतत: वह संतुष्टï हो जाता।
बारह वर्षीया अंजू छठी कक्षा में पढ़ती थी। पढ़ाई और व्यवहार, दोनों में होशियार। स्कूल का होमवर्क हो या घर का कोई काम, अंजू हमेशा मन लगाकर पूरा करती।
एक दिन अंजू घर के बाहर खेल रही थी कि उसके स्कूल वाले सर आ गये। अंजू ने जैसे ही अपने सर को देखा तो खेलना छोड़कर वह उनके पास पहुंची और हाथ जोड़कर बोली, 'नमस्ते सर।'
'नमस्ते... तुम्हारे पापा कहां हैं बेटा?' सर ने अंजू से पूछा।
'वे तो बाजार गये हैं सर, पीसओ पर फोन करने।'
'कब तक लौटेंगे ?'
'पापा कह तो रहे थे कि दस मिनट में ही आ रहा हूं लेकिन वे काफी जल्दी में थे, इस कारण मेरे हिसाब से डेढ़ घंटा तो लग ही जायेगा जी।'
'क्यों, पैदल गये हैं क्या ?'
'नहीं, पैदल नहीं गये हैं इसलिए तो देरी से आएंगे सर।' मुस्कराती हुई अंजू बोली।
'क्यों ?'
'स्कूल ले कर गये हैं ना इसलिए।' हाथ नचाते हुए अंजू ने कहा।
'स्कूटर लेकर गये हैं, फिर इतना समय कैसे लग जाएगा ?' सर ने विस्मय से पूछा।
'सर, पापा ने कल स्कूटर की टंकी खोलकर देखी थी। तब उन्होंने मुझे बताया था कि स्कूटर में सिर्फ चार-पांच किलोमीटर दूर जाने तक का ही पेट्रोल है।'
'लेकिन बेटे, यहां से पीसीओ और पेट्रोल पम्प तो सिर्फ पांच किलोमीटर दूर ही है। तुम्हारे पापा पीसीओ से फोन करके पेट्रोल पम्प से पैट्रोल ले लेंगे और दस-पन्द्रह मिनट में यहां पहुंच जाएंगे। है ना ?'
'सर, मैंने कहा था न कि पापा जल्दी में थे, इसलिए डेढ़-दो घंटे से पहले पापा यहां नहीं पहुंच सकते। उन्हें यहां से गये अभी आधा घंटा ही तो हुआ है सर।' अपनी हाथ घड़ी की ओर देखते हुए अंजू दृढ़ता से बोली।
'अंजू बेटे, पहेलियां मत बुझाओ... साफ-साफ बताओ कि फोन के अलावा कोई और काम भी था क्या उन्हें ?' सर ने झुंझलाकर पूछा। 'और तो कोई काम नहीं था सर। पापा स्कूटर तो जल्दी के कारण ले कर गऐ थे लेकिन जल्दबाजी में शायद उन्हें यह ध्यान नहीं रहा होगा कि आज मिलेगा नहीं। अब सर, आप ही बताइये कि पीसीओ से घर तक स्कूटर को पैदल खींच कर लाने में पापा को कितनाक समय लग जायेगा ?' और अंजू की बात से संतुष्टï हो कर सर चले गये।
एक दिन अंजू के घर एक पड़ोसन आई। मौहल्ले के छोटे-बड़े सब लोग उसे आण्टी कहते थे। आण्टी आते ही अंजू से बोली, 'अंजू बेटी, तेरा अनिल भैया कहां है ?'
'भैया की तो आण्टी तबियत खराब है इसलिए पापा उसे उल्टी करवा रहे हैं लेकिन भैया को उल्अी आ ही नहीं रही है।' अपनी ठोडी पर हाथ रखते हुए अंजू ने आण्टी के अंदाज में ही जवाब दिया।
'वाह भई वाह ! तेरे भैया की तबियत खराब है तो उसे कोई दवा दो। उल्टी नहीं आ रही है तो फिर खामखां उल्टी करवा कर क्यों जा रही है उसे ?' आण्टी ने कहा।
'वो क्या है आण्टी कि अनिल भैया है ना... अपने दोस्त के बड़े भाई की बारात में गया था। वहां उसने जल्दी-जल्दी में इतना ज्यादा हलवा खा लिया था कि बस पूछा ही मत। यहां आते ही भैया की तबियत ज्यादा बिगड़ गई तो पापा उसे डॉक्टर के पास लेकर गये। डॉक्टर साहब ने बताया कि अनिल भैया को उल्टी आने पर बिल्कुल ठीक हो जायेगा। इसलिए पापा है ना... अनिल भैया को उल्टी करवा रहे हैं।'
'तो यूं बोल ना।' और मुंह बिचका कर आण्टी चली गई।
'आण्टी, क्या काम था भैया से ? किसी और के बारे में नहीं पूछोगी क्या ?' अंजू ने जोर से कहा लेकिन आण्टी जा चुकी थी।
एक बार अंजू की कक्षा में गणित वाले सर ने एक सवाल पूछा। सवाल था कि एक पेड़ पर बीस चिडिय़ां बैठी हैं और उस पेड़ के नीचे जोर से एक धमाका होता है। धमाके की आवाज से आठ चिडिय़ां उड़ जाती हैं तो बताओ पेड़ पर शेष कितनी चिडिय़ां बचेंगी ?
सब बच्चे एक साथ बोले, 'बारह।'
सर का ध्यान अंजू की तरफ गया। वह चुपचाप बैठी थी। सर बोले, 'क्यों अंजू, पेड़ पर शेष कितनी चिडिय़ां बची?'
'एक भी चिड़ी नहीं बचेगी सर।' अंजू ने खड़े होते हुए कहा।
कक्षा के सब बच्चे हंसने लगे। सर बोले, 'क्या बात है अंजू, तुझे घटाओ के ये साधारण से सवाल ही नहीं आते?'
'आते हैं सर।' अंजू ने दृढ़ता से कहा।
'फिर इतना आसान सा सवाल ही नहीं बता सकी तू।'
'सवाल तो बिल्कुल ही आसान है सर, लेकिन मेरा उत्तर भी गलत नहीं है।'
'गलत कैसे नहीं है। तूं तो कहती है कि एक भी चिड़ी नहीं बची।'
'मैं बिल्कुल सही कह रही हूं सर। यदि गलत है तो ऐसा करके देख लीजिए। किसी पेड़ पर बीस चिडिय़ां बैठी हों और उसके नीचे आप कोई धमाका करते हैं तो सभी चिडिय़ां एक साथ ही उडेंग़ी।'
'लेकिन अंजू बेटे, ये तो सवाल था। हमने तो माना था कि पेड़ के नीचे धमाका होने पर आठ चिडिय़ां उड़ गई।'
'सर, ऐसा आप मानते ही क्यों हैं, जो असम्भव है। वैसे भी सर, हम गलत बात को झूठ-मूठ भी क्यों मान लें।' और तभी झुट्टïी की घंअी बज उठी।
एक दिन अंजू के घर के सामने वाले मास्टर जी अपना मकान बदल रहे थे। वे घर का सामान ले जाने के लिए एक ट्रैक्टर किराये पर लेकर आये। सामान देखकर ट्रैक्टर वाला कहने लगा, 'मास्टर जी, सामान ज्यादा है। दो चक्कर लगेंगे।'
'एक ही चक्कर में ले चलो भैया। किराया दस रुपए और ले लेना। मुझे जरा जल्दी है। साढ़े नौ बजे ड्ïयूटी पर पहुंचना है।' मास्टर जी घड़ी की तरफ देखते हुए बोले। अंजू भी वहीं खड़ी थी। वह बोली, 'मास्टर जी, ज्यादा जल्दी मत करो, नहीं तो देर हो जायेगी।'
'अरे रहने दे-रहने दे। मुझ पर तेरी बातों का असर नहीं होने वाला।' और मास्टर जी अंजू की तरफ आंखें निकालते हुए ट्रैक्टर की ट्राली में सामान भरने लगे। घंटे भर में घर के सामान से ट्राली ऊपर तक भर गई। फिर मास्टर जी ने फटाफट रस्सी से पूरे सामान को बांधा और ड्राइवर के साथ आगे बैठ गये। ट्रैक्टर चल पड़ा।
ट्रैक्टर घर से तीस-चालीस फीट ही चला था कि अचानक 'जरड़' की आवाज के साथ ही ट्रैक्टर में रखे सामान से बंधी रस्सी टूट गई। रस्सी के टूटते ही नया डबल बैड जमीन पर आ गिरा। डबल बैड गिरते ही कई टुकड़ों में बिखर गया।
डबलबैड का यह हाल देखकर मास्टर जी का दिल बैठ गया। वे झटपट खड़े हुए और उन्होंने चलते ट्रैक्टर से ही छलांग लगा दी। वे औंधे मुंह गिरे। फिर झट से उठे और बड़ी मुश्किल से उबल बैड को इकठ्ठïआ करके वापस ट्राली पर रखा। फिर रस्सी बांधी और घड़ी में समय देखते हुए खुद पीछे ही बैठ गये। ट्रैक्टर चल पड़ा।
अब ट्रैक्टर चालीस पचास कदम ही और चला होगा कि मास्टर जी 'धड़ाम से कुर्सियों समेत नीचे आ गिरे। मौहल्ले के कुछ बच्चे जो वहां खड़े थे, तालियां बजाते हुए जोर-जोर से हंसने लगे। तभी एक आदमी ने मास्टर जी का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा, 'क्या हुआ मास्टर जी, लगी तो नहीं ?'
'नहीं-नहीं, लगी तो नहीं भाई।' कह कर उठते हुए मास्टर जी अपने कपड़े झाडऩे लगे और वह आदमी उनकी कुर्सियां ट्राली में डालकर रस्सी से बांधते हुए बोला, 'मास्टर जी, इतनी जल्दी मत करो। जल्दी से हमेशा देर होती है।'
मास्टर जी अपनी ऐनक ठीक करते हुए बोले, 'हां भई शर्मा जी आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं और आपकी बेटी अंजू भी सही कहती है।'
'अंजू ने ही तो मुझे सिखाया है कि जल्दबाजी अच्छी नहीं होती।' हंसकर कहते हुए शर्मा जी ने मास्टर जी के हाथ पर ताली पीटी तो वे भी हंसने लगे।