अंजू महेन्द्रू: सोबर्स से इम्तियाज तक / जयप्रकाश चौकसे

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अंजू महेन्द्रू: सोबर्स से इम्तियाज तक
प्रकाशन तिथि :09 सितम्बर 2017


आज कल छोटे परदे पर प्रस्तुत एक धारावाहिक में अंजू महेन्द्रू नज़र आ रही हैं। उम्र की इस ढलान पर भी अंजू महेन्द्रू का सौंदर्य जस का तस कायम है। वे पहली बार मीडिया पर तब चमकीं जब उन्होंने एक क्रिकेट मैच के दौरान गैरी सोबर्स को पिच पर चूमा। निर्माता जीपी सिप्पी ने राजेश खन्ना और बबीता अभिनीत 'राज' बनाई थी परंतु राजेश खन्ना को सितारा पद मिला शक्ति सामंत की फिल्म 'आराधना' से, जिसकी लोकप्रियता का आधार था सचिन देव बर्मन का मधुर संगीत, जिसे सुनने मात्र से शरीर में चीनी की मात्रा बढ़ जाती थी। ज्ञातव्य है कि सचिन देव बर्मन पूर्वोत्तर की एक छोटी रियासत के राजकुमार थे परंतु संगीत क्षेत्र में उन्हें सम्राट का दर्जा हासिल था। सचिन देव बर्मन इतने आधुनिक विचारों के थे कि विगत सदी के छठे दशक में अपने निवास स्थान का नाम 'जेट' रखा था। उस दौर में भारत के आकाश तक में छोटे विमान ही उड़ते थे।

बहरहाल, राजेश खन्ना और अंजू महेन्द्रू स्कूल से कॉलेज तक की शिक्षा तक सहपाठी और घनिष्ट मित्र रहे। यह मित्रता उनकी प्रेम कहानी के समाप्त होने के बाद भी जारी रही। 'राज' की असफलता के बाद राजेश खन्ना के लिए कठिन समय था परंतु अंजू महेन्द्रू ने उनका साथ दिया और उन्हें नैराश्य से बचाया भी। 'आराधना' की सफलता के बाद सितारा राजेश खन्ना लोकप्रियता के अंतरिक्ष में सैर करने लगे और अंजू महेन्द्रू बार-बार उन्हें जमीनी हकीकत से इस कदर दूर जाने पर रोकती-टोकती रहीं और यही उनके बीच के संबंध में दरार बन गया। प्राय: आप अपने सच्चे मित्रों को इसी तरह खोते हैं। सफलता का श्वेत अश्व आपको लेकर सरपट भागता तो है परंतु गहरी खाई में भी जा पटकता है।

बहरहाल, राजेश खन्ना ने अंजू महेन्द्रू को एक विशाल बंगला खरीदकर भेंट स्वरूप दिया था। वे एक दरियादिल प्रेमी थे और उन्होंने अपनी हर प्रेमिका को महंगी चीजें भेंट स्वरूप दी हैं। यही काम सलमान खान भी कर रहे हैं। राजेश खन्ना का मिज़ाज़ इसी तरह का था। ज्ञातव्य है कि वे एक अमीर सजातीय संतानहीन दम्पती द्वारा गोद लिए हुए लाड़ले पुत्र थे। एक खिलौना तोड़ने पर उन्हें दस दिलाए जाते थे। वे एक महंगी स्पोर्ट्स कार में बैठकर कॉलेज जाते थे, वह भी उस दौर में जब अधिकतर छात्र बमुश्किल साइकिल खरीद पाते थे। वे कॉलेज के नाटकों में अभिनय करते थे और सहपाठी रमेश तलवार उनके निर्देशक थे। जब यश चोपड़ा ने राजेश खन्ना के साथ 'इत्तेफाक' नामक फिल्म की शूटिंग प्रारंभ की तो कामकाज को सरल बनाने के लिए रमेश तलवार को अपना सहायक निर्देशक बना लिया। दो दशकों तक यश चोपड़ा और रमेश तलवार की मित्रता जारी रही। राजेश खन्ना भावना की उसी तीव्रता से दुश्मनी निभाते थे, जिससे उन्होंने दोस्ती निभाई थी। उन्होंने जान-बूझकर अपनी बारात अंजू महेन्द्रू के बंगले के सामने से निकालने और वहां देर तक रुके रहने का आदेश दिया था। वे अंजू को जलाना चाहते थे कि यह बारात उनके लिए भी आ सकती थी। राजेश खन्ना के भीतर बिगड़ैल बच्चा ताउम्र किलकारियां लेता रहा, रुठता, रोता-हंसता रहा। राजेश खन्ना के जहाज की लंगर की तरह रही अंजू महेन्द्रू परंतु राजेश खन्ना महिला मित्रों को प्लेट जैम की तरह इस्तेमाल करते थे। ज्ञातव्य है कि जहाज में रेत की बोरियां रखते हैं परंतु संकट के समय इन बोरियों को समुद्र में फेंक दिया जाता है ताकि जहाज डूबे नहीं। इन बोरियों को ही प्लेट जैम कहते हैं। जाने कैसे तमाम अंतरंग रिश्तों में ये प्लेट जैम ही रिश्तों को भंवर में डूबने से बचाते हैं।

कालांतर में अंजू महेन्द्रू ने अभिनेता अमजद खान के भाई इम्तियाज से शादी की। वे भी रंगमंच से जुड़े व्यक्ति थे। स्पष्ट है कि राजेश खन्ना का जीवन भी एक त्रासद नाटक की तरह ही रहा और ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'आनंद' के एक संवाद को चरितार्थ करता रहा। हंसोड़ जानी वॉकर द्वारा अदा किए संवाद का आशय था, 'जहांपनाह' हम सब स्टेज पर प्रस्तुत पात्रों की तरह हैं और केवल निर्देशक जानता है कि कब, कौन-सा पात्र मंच पर आएगा और कब पटाक्षेप करेगा। संसार रंगमंच का निर्देशक ऊपर बैठा है परंतु प्रदूषण के कारण यह देख नहीं पा रहा है कि पात्र किस तरह अभिनय कर रहे हैं। नाटक में जाने कैसे नायक खलनायक की भूमिका में आ गया और खलनायक को ायक समझकर दर्शक तालियां पीट रहे हैं।

अगर आज राजेश खन्ना जीवित होते तो अंजू महेन्द्रू से इस बात पर खफा होते कि वह कोई छोटी चीज का हिस्सा कैसे हो सकती हैं, भले ही वह तमाशे का परदा क्यों न हो? 'किंग साइज' एक बड़ा भ्रम है चाहे वह बिस्तर हो, रंगमंच हो या जीवन हो। जीवन के मयखाने में शैम्पेन से देशी ठर्रे तक सब पीना पड़ता है।