अंतरिक्ष में डॉ. स्वाति मोहन की बिंदिया / जयप्रकाश चौकसे

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अंतरिक्ष में डॉ. स्वाति मोहन की बिंदिया
प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2021


भारत में जन्मी स्वाति मोहन अमेरिकन नागरिक हैं और नासा के मंगल मिशन की सदस्य रही हैं। स्वाति मोहन एक आम अमेरिकन स्त्री की तरह कपड़े पहनती हैं। अपने माथे पर बिंदिया लगाती हैं। इस तरह अपनी भारतीयता को अक्षुण्ण रखती हैं। यह बिंदिया कभी-कभी उनका विजिटिंग कार्ड भी बन जाती है।

अरसे पहले क्रिकेट मैच के कॉमेंट्री बॉक्स में मंदिरा बेदी की बिंदिया लोगों को आकर्षित करती थी। पिच से अधिक चर्चा मंदिरा की बिंदिया की होती थी। सुभाष घई की फिल्म ‘परदेस’ में भारतीय कन्या का विवाह उसके पिता के बाल सखा अमरीश पुरी अभिनीत पात्र के इकलौते पुत्र से होने वाला है और अमेरिका को जानने विवाह पूर्व ही उसे अपनी बुआ के साथ अमेरिका ले जाया जाता है। फिल्म में गीत था, ‘ये दुनिया एक दुल्हन, दुल्हन के माथे की बिंदिया ये मेरा इंडिया।’

इकलौता बिगड़ैल पुत्र, विवाह पूर्व ही भारतीय कन्या से अंतरंगता स्थापित करने का प्रयास करता है। कन्या विरोध करती है, तो वह हिंसा पर उतर आता है। कन्या बचाव के लिए बिगड़ैल के सिर पर प्रहार करती है। बिगड़ैल के पास दिखाने के लिए माथे पर चोट है, परंतु कन्या अपने भीतरी घाव कैसे दिखाए। प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाने के कारण उसे ही दोषी घोषित किया जाता है। फिल्म के क्लाइमैक्स में अपनों द्वारा त्याग दिए जाते समय, वह संकोच तजकर अपने भीतरी जख्म दिखाती है। हाल ही में अकारण जेल में ठूंसी गई साहसी महिला ने जेल में पहुंचाई गई चोटों का पूरा विवरण नहीं दिया है। उस बेचारी को यह नहीं ज्ञात कि जेलें वैसी ही होती हैं जैसा समाज होता है। असमानता व अन्याय आधारित समाज की जेलों में मानवीय करुणा कैसे पाई जा सकती है। पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी किताब में लिखते हैं कि युद्ध के कारण पनपे काले बाजार ने कुछ लोगों को रातों-रात अमीर बना दिया है। पिता चाहता है कि उसकी बेटी आधुनिका दिखे। माता, निर्देश देती है कि परिधान बदल लो परंतु पैर की उंगली में बिछिया और माथे पर बिंदिया लगाना। नेहरू कहते हैं कि यह नवे रिच लोग आधुनिकता का सैटेलाइट पकड़ने के लिए उड़ते हैं, परंतु इस कवायद में उन्हें न तो सच्ची आधुनिकता समझ में आती है और वे अपनी सांस्कृतिक ज़मीन भी खो देते हैं। गीतकार शैलेंद्र का गीत है, ‘पंख हैं कोमल, आंख है धुंधली, जाना है सागर के पार..., तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम...।’ विज्ञान सम्मत और तर्क प्रधान विचार शैली ही सच्ची आधुनिकता है। इसका पोशाक से कोई लेना-देना नहीं है। ‘लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का’ नामक फिल्म भी इसी विचार को अभिव्यक्त करती है। ताजा समाचार यह है कि 139 वर्ष पूर्व बनी एक ऐतिहासिक महत्व की इमारत को दूसरे स्थान पर ले जाया गया और ऐसे स्थापित किया मानों इस नई जगह ही वह इमारत बनाई गई थी। मनुष्य भी इसी तरह एक देश से दूसरे देश जा बसते हैं। ऊंची सैंडल, लिपस्टिक से रंगे होंठ और परचम से लहराते स्कर्ट के साथ ही बिंदिया और बिछिया धारण की जा सकती है। व्यक्ति पूर्व की तरह इंटरनल और पश्चिम की तरह एक्साइटिंग हो सकता है। भीतरी पहचान हर बदलते आवरण में भी कायम रखी जा सकती है। फिल्म संगीत में पूर्व का माधुर्य व पश्चिम की सिन्थेसिस प्रस्तुत की जानी है।

अमिताभ बच्चन और जया बच्चन अभिनीत ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘अभिमान’ में गीत है, ‘आय हाय तेरी बिंदिया रे।’ राजेश खन्ना और मुमताज अभिनीत फिल्म ‘दो रास्ते’ का गीत है, ‘बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी...।’ दरअसल आधुनिकता बनाम संस्कृति कोई युद्ध नहीं है। छद्म आधुनिकता की तरह छद्म देश प्रेम अजीब परिणाम दे सकता है। हड़ताल पर बैठे पंजाब के किसानों ने घोषणा की है कि पंजाब में दूध के भाव पेट्रोल के समान बढ़ाए जाएंगे। क्या इस निर्णय की प्रेरणा किसान कन्याओं से ली है? क्या इसे हम प्रतीक स्वरूप आंदोलन की बिंदिया कह सकते हैं?