अंतरिक्ष में तारों को मतदान का अधिकार / जयप्रकाश चौकसे

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अंतरिक्ष में तारों को मतदान का अधिकार
प्रकाशन तिथि : 04 अप्रैल 2019


आमिर खान ने फिल्म 'सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा' में अभिनय करने से इनकार कर दिया है। पटकथा रोचक है परंतु आमिर खान के लिए समय निकालना कठिन हो रहा है। ज्ञातव्य है कि 'दंगल' के लिए उन्होंने वजन बढ़ाया था। 'गजनी' के लिए जिम में घंटों मेहनत करके मसल्स बनाई थीं। वे अपनी हर फिल्म के लिए स्वयं को तैयार करते हैं। कुछ दशक पूर्व एक अमेरिकन फिल्म का कथासार कुछ इस तरह था कि एक कंपनी मोटी रकम लेकर प्रशिक्षण देती है और अंतरिक्ष यात्रा पर भेजती है। वे यात्रा पर जाने के इच्छुक उम्मीदवार को बैठाकर अंतरिक्ष के दृश्य परदे पर दिखाते हैं और कानों में अजीबोगरीब ध्वनियां सुनाई पड़ती है। यह काम प्रतिदिन घंटों किया जाता है। इतना ही नहीं, उसे निर्देश दिया जाता है कि वह उस ऊबड़-खाबड़ जमीन को समतल करे, जहां भविष्य में मनुष्य बसाए जाएंगे। इस तरह बिना कोई पारिश्रमिक दिए, उम्मीदवार से पृथ्वी पर ही कंपनी अपनी जमीन को समतल भी करवाती है। इस तरह आभासी अंतरिक्ष यात्रा कराने के ठगी के काम से कंपनी ने धन अर्जित करते हुए अपनी जमीन को भी समतल करवा लिया। इस तरह अंतरिक्ष यात्रा का सपना ठगी के अनूठे काम से पूरा किया गया।

अंतरिक्ष में भेजे गए सैटेलाइट के टुकड़े हो गए, जिसमें बड़ी साइज के टुकड़ों को नष्ट कर दिया गया परंतु अनेक सूक्ष्म कण तितर-बितर हो गए हैं। कालांतर में ऐसा ही कोई टुकड़ा उल्का बनकर धरती पर आ गिरेगा और बहुत कुछ नष्ट हो जाएगा। ज्ञातव्य है कि कुछ वर्ष पूर्व ऐसे ही एक उल्का को समुद्र में गिराया गया था।

दुनिया में केवल मुट्‌ठीभर देश ही अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेज रहे हैं और यह काम दशकों से किया जा रहा है। परिणाम स्वरूप अंतरिक्ष में कबाड़ एकत्रित हो रहा है। मनुष्य ने पृथ्वी पर जमकर लूटखसोट की है और उसकी भूख की चपेट में अंतरिक्ष भी आ गया है। पृथ्वी की अंतड़ियों से खनिज पदार्थ निकाले गए और उन अंतड़ियों में अब अल्सर (छाले) पड़ गए हैं। मनुष्य की अंतड़ियों में पड़े अल्सर का कारण हाइपर एसिडिटी को माना गया है। कुछ लोगों के शरीर में अम्ल आवश्यकता से अधिक बनता है। इस अतिरिक्त अम्ल से अल्सर बनते हैं। मनुष्य की बेचैनी और भीतरी छटपटाहट के कारण यह अतिरिक्त अम्ल बनता है परंतु सच्चाई यह है कि अल्सर एक अलिखित कविता है। यह बुद्धिजीवियों का रोग है और नेताओं को कभी नहीं होता। जो स्वयं रोग है, उसे कैसे रोगी बनाया जा सकता है।

पृथ्वी पर सड़कों पर ट्रैफिक जाम लग जाता है। हर व्यक्ति शीघ्रता में है, इसलिए यातायात सिग्नल भी तोड़ता है। महानगरों में प्रतिदिन कहीं न कहीं जाम लग जाता है। इसके अभ्यस्त लोग अपने साथ टिफिन भी रखते हैं और मोबाइल पर गेम खेलते हैं। अब हमने अंतरिक्ष में भी जाम लगा दिया है। वहां कबाड़ का ढेर लग रहा है। अंतरिक्ष में स्वच्छता अभियान चलाया जाना आवश्यक है। वहां यातायात नियंत्रित करने के लिए कोई पुलिस वाला नहीं है। अंतरिक्ष में हुई दुर्घटना का प्रभाव धरती पर भी पड़ता है। फिल्मकार कैमरन की 'अवतार' नामक फिल्म में पृथ्वी का एक दल अंतरिक्ष में एक गोले पर वृक्ष काटता है ताकि वहां प्रयोगशाला स्थापित की जाए तो एक सदस्य का संवाद है, 'यहां काटे गए हर वृक्ष की पीड़ा धरती के सभी वृक्ष महसूस कर रहे हैं। धरती का कोई वृक्ष सहानुभूति में पछाड़ खाकर गिर सकता है।'

इसका आर्थिक पक्ष भी चिंताजनक है। हर प्रयास में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। लाखों लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है। बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। कई रोग असाध्य बने हुए हैं, क्योंकि मेडिकल शोध के लिए बजट नहीं है। इस सबको अनदेखा करके अंतरिक्ष में घुसपैठ जारी रखी जा रही है। दरअसल शोध का उद्‌देश्य अधिकतम लोगों की भलाई होनी चाहिए परंतु उसे व्यक्तिगत जीत के रूप में प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए। इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि उसे चुनाव प्रचार का हिस्सा बनाया जा रहा है। महाभारत में एक श्लोक इस तरह है, 'हतं कृपणवित हि राष्ट्र हन्ति नृपश्रियम् दद्याच्च महतो भोगान क्षद्दभय प्रमुदेत सलाम!!' यह अनुशासन पर्व 61:26 से लिया गया है। इस श्लोक का अर्थ है कि जब पहले से ही गरीब व्यक्ति के सीमित साधन भी उससे लिए जाते हैं तब पूरे विश्व को नुकसान पहुंचता है।

राजा का प्रथम कर्तव्य है कि आम आदमी भूखा न रहे। इसका यह तात्पर्य भी है कि पृथ्वी पर आम आदमी की आवश्यकताओं को अनदेखा करके अंतरिक्ष अभियान चलाना राजधर्म का पालन करना नहीं है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की इतनी बड़ी कीमत अदा नहीं की जा सकती। यह भी एक विकल्प हो सकता है कि चीन की तरह भारत में भी जीवनपर्यंत सिंहासन दे दिया जाए, इस शर्त पर कि वह आम आदमी को अपनी मेहनत से रोजी रोटी कमाने दे। आम आदमी को सहायता नहीं, उसे अपनी इच्छा से जीने की स्वतंत्रता चाहिए। उसे यह न बताया जाए कि उसे क्या पहनना है और क्या सोचना है। क्या अंतरिक्ष में भी प्रचार आवश्यक है? क्या तारों को मताधिकार है?