अंतर्ध्यान / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Gadya Kosh से
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वह गरीब किन्तु ईमानदार था.ईश्वर में उसकी पूरी आस्था थी.परिवार में उसके अतिरिक्त माँ, पत्नी एवं दो बच्चे थे. उसका घर बहुत छोटा था,अतः वे सभी बड़ी असुविधापूर्वक घर में रहते थे. ईश्वर को उन पर दया आई, अतः ईश्वर ने प्रकट होकर कहा-- "मैं तुम्हारी आस्था से प्रसन्न हूँ,इसलिए तुम लोगों के साथ रहना चाहता हूँ ताकि तुम्हारे सारे अभाव मिट सकें."

परिवार में ख़ुशी की लहर छा गई.क्योंकि घर में जगह कम थी,अतः उसने अर्थपूर्ण दृष्टि से माँ की ओर देखा.माँ ने पुत्र का आशय समझा एवं ख़ुशी -ख़ुशी घर छोड़कर चल दी ताकि उसका पुत्र अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रह सके.

"जहां माँ का सम्मान नहीं हो, वहां ईश्वर का वास कैसे हो सकता है. ईश्वर ने कहा और अंतर्ध्यान हो गया.