अंतिम यात्राओं की अजीब दास्तां / जयप्रकाश चौकसे

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अंतिम यात्राओं की अजीब दास्तां
प्रकाशन तिथि : 10 जुलाई 2014


कुछ लोग अपने जीवन काल में ही किंवदंती बन जाते हैं और कुछ लोगों की मृत्यु के बारे में किवदंतियां बन जाती हैं, जैसे हमारे महानतम कवि कबीर की मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि चादर से ढकी उनकी मृत देह को कुछ लोग दाह क्रिया के लिए ले जाना चाहते थे, तो कुछ उसे सुपुर्द-ए-खाक करना चाहते थे। द्वंद्व के समय चादर के नीचे से मृत देह अदृश्य हो गई तो आधी चादर को जलाया गया, आधी को दफन किया गया। इसी तरह से कुछ लोग नरगिस के बारे में विवाद कर रहे थे कि समझौता हो गया वे सधवा की तरह अर्थी के रूप में ले जाई गई और नरगिस को उनकी मां जद्दनबाई के पास सुपुर्द-ए-खाक किया गया और इसी तरह का वाकया मेरे उपन्यास 'दराबा' की एक पात्र के साथ हुआ। जेनिफर केंडल कपूर की उनकी इच्छा के अनुरूप लंदन में दाह क्रिया की गई। यह दौर कुछ ऐसा ही है कि हर व्यक्ति को जीवन काल में ही तय कर लेना चाहिए कि उसकी मृत देह के साथ क्या किया जाए। क्योंकि उदयप्रकाश की एक कहानी में एक व्यक्ति अपने अस्तित्व को प्रमाणित नहीं कर पाया और उसकी नौकरी कोई करता रहा।

पंकज कपूर अभिनीत ऑफिस -ऑफिस नामक सीरियल के एक मार्मिक एपिसोड में एक व्यक्ति बीमार होने के कारण तीन माह तक पेंशन लेने नहीं गया तो भ्रष्ट ऑफिस ने उसे मृत घोषित कर दिया। चौथे महीने में वह पेंशन लेने गया तो उससे कहा गया कि वह अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र लाए। कुछ रिश्वत देकर काम बन सकता था, परंतुु ईमानदारी के हैंगओवर के कारण उस सेवानिवृत्त शिक्षक ने रिश्वत नहीं दी और जब उसे अपने जीवनकाल में ही नर्क की यातना भुगतनी पड़ी तो थक-हार कर उसने इंडिया गेट पर अफसरों को बुलाया। उसने उन्हें अलग-अलग फोन किया था और अफसरों में जंग छिड़ गई। उनमें हर एक अकेला ही रिश्वत हड़पना चाहता था। उसने जीवन का प्रमाण-पत्र पाने की इच्छा रखने वाले सेवानिवृत्त मास्टर ने तीनों को थप्पड़ जड़ दिया। तीनों ने मुकदमा ठोंक दिया। जज ने कहा कि अदालत मौका-ए-वारदात पर 'इजलास' करेगी और पूरा प्रकरण पुन: 'स्टेज' किया जाए। इस खेल में तीनों अफसरों ने अनचाहे ही रिश्वत लेने का दबाव बनाने की बात स्वीकार की और जज ने उन्हें दंडित करते हुए सेवानिवृत्त मास्टर साहब को याद दिलाया कि वह कभी उनका शिष्य रहा है, इसलिए जानता था कि वे सच बोल रहे हैं तथा मौका-ए-वारदात पर 'इजलास' का प्रहसन उन्होंने प्रमाण जुटाने के लिए किया। गोयाकि जज को सत्य का ज्ञान था परन्तु प्रमाण तो 'जुटाना'ही पड़ता है। कभी हमारे सीरियल भी सार्थक होते थे, परंतु यह बात प्राइवेट चैनलों की गला फाड़ टीआरपी प्रतिद्वंद्विता के पहले की है।

एक विज्ञापन फिल्म में जीवन के प्रमाण पत्र की बात चलने पर दादा अपनी बांह पर अपने नाम का गुदना दिखाते है तो स्मार्ट पोता कहता है इससे कुछ प्रमाणित नहीं होता, क्या आपके पास वैध जन्म प्रमाण पत्र है चंद क्षणों में विज्ञापन फिल्में ढाई घंटे की कथा फिल्मों से ज्यादा कह देती हैं। मसलन आजकल खाना पकाने के लिए एक तेल की विज्ञापन फिल्म में एक दादी अस्पताल में अपने बीमार अधेड़ पोते को घर की दो चम्मच दाल पिलाने का आग्रह करती है परन्तु नर्स पांच सितारा अस्पताल के नियम से बंधी है परन्तु एक दिन वह थककर इजाजत देती है। पोता बड़े चाव से दादी के हाथ से दाल पीता है और पहली बार उसमें 'जीवन के चिन्ह नजर आते हैं'। पार्श्वगीत है 'पूरा बचपन जुबां पर लिया, तेरी आंच का उतरा जो मैंने चख लिया'। मुंबई में मेरे पड़ोसी और मकान मालिक ग्रेनविल डेब्रो का निधन हुआ और उनकी मृत देह को चर्च ले जाया गया, जहां क्रिश्चियन प्रार्थना हुई और बताया गया कि यह पहल डेब्रो की थी कि महंगे ताबूत का खर्च बचाने के लिए चर्च ही एक शानदार ताबूत में शव लाए और प्रार्थना के बाद उसे अन्य सदस्य के लिए सुरक्षित रखा जाए। इस महंगाई और दिखावे के दौर में इस तरह की पहल प्रशंसनीय है।

सारी उम्र डेब्रो साहब ने चर्च की सेवा की और अपने प्रयासों से चर्च की जमीन के दस्तावेज सरकारी दफ्तर से निकाले। उनका जीवन और आचरण आदर्श रहा तथा सारे क्रिश्चियन समाज को उन पर गर्व है। आश्चर्य तब हुआ जब ग्रेनविल डेब्रो की इच्छा के अनुरूप उनकी मृत देह को इलेक्ट्रिक शवदाह गृह लाया गया और परिसर में शिवजी की विराट मूर्ति के सामने चर्च के पादरियों और अन्य लोगों ने बाइबिल की प्रार्थनाएं सस्वर समवेत गाते हुए मृत देह को इलेक्ट्रिक शव दाह गृह में पहुंचाया। अपने शानदार सूट और टाई पहने ग्रेनविल डेब्रो के चेहरे पर आध्यात्मिक प्रकाश था। क्रिश्चियन परिवार और पादरयों के साथ अन्य सभी धर्मों के लोग वहां मौजूद थे। आज के संकीर्णता के दौर में उदारता का यह महान उदाहरण भारत की गंगा, जमना, सरस्वती संस्कृति का शंखनाद है जिसमें चर्च के आर्गन की ध्वनि भी स्पष्ट सुनी गई। अगर बांटने वाली शक्तियां काम कर रही हैं तो एकता और समन्वय की शक्तियां भी सक्रिय है।