अंधेरा /फ़ज़ल इमाम मल्लिक
Gadya Kosh से
रोशनी छलने लगी थी और अन्याय का बोलबाला था।
उजाले अब बेतरह डराने लगे थे... पता नहीं कब, कहाँ, क्या हो जाए।
कुछ नहीं कहा जा सकता... उसने बहुत सोचा-विचारा.... और फिर अंधेरा कर डाला।
अंधेरा उसे अब रास आने लगा है।