अंधेरा /फ़ज़ल इमाम मल्लिक

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोशनी छलने लगी थी और अन्याय का बोलबाला था।

उजाले अब बेतरह डराने लगे थे... पता नहीं कब, कहाँ, क्या हो जाए।

कुछ नहीं कहा जा सकता... उसने बहुत सोचा-विचारा.... और फिर अंधेरा कर डाला।

अंधेरा उसे अब रास आने लगा है।