अंधेरी हवाओं के बीच / प्रमिला वर्मा
सोनल ने बहुत बातें बताई थीं उस द्वीप की। समुद्र के किनारे दूर-दूर तक फैली सफेद रेत। द्वीप को तीन ओर से घेरे गहरा सतरंगी रंगों वाला समुद्र और समुद्र के किनारे पर काली चट्टानें और नजदीक ही बना विशाल गेस्ट हाउस। नहीं गेस्ट हाउस नहीं कहेंगे... बल्कि दो कमरे, किचिन की व्यवस्था और सामने वरांडा. वरांडे से नीचे उतरो तो गुदगुदी घास का लॉन। चारों ओर लगे नारियल के पेड़ और भी कई दरख्त... और गमलों में लगे फूलों के पौधे।
बहुत उदासी में भरकर शेफाली जी ने अपनी दोस्त सोनल को फोन लगाया था-'सोनल, उस द्वीप में कॉटेज की व्यवस्था करवा सकती हो, बहुत लम्बे समय के लिए मैं वहाँ जाना चाहती हूँ और हाँ सुनो एअर टिकिट भी।'
'अरे क्या हुआ शेफाली जी, इतनी उदासी क्यों? क्या रोहित नहीं आया?' सोनल शेफाली जी का स्वभाव जानती है। कभी वे खुशी से चहकती रहती थीं और कभी एकदम उदास।
'नाम मत लो रोहित का मेरे सामने। बस मेरा काम कर दो यार।'
'हाँ, ठीक है... अभी बैठूंगी इंटरनेट पर तो करवा दूंगी और कौन साथ जा रहा है?' सोनल ने पूछा।
'कोई नहीं।' उन्होंने फोन बंद कर दिया था।
सोनल उनसे लगभग 20-22 वर्ष छोटी है। लेकिन शेफाली जी की ज़िन्दगी के रिश्ते जबसे खत्म हुए हैं, उन्होंने किसी से रिश्ता बनाना ही बंद कर दिया था। सोनल छोटी है तो क्या हुआ? बस दोस्त है उनकी।
शेफाली जी अपनी ज़िन्दगी के 54 मील चल ली हैं। लेकिन अपने आपको ऐसा रखा है मानो अभी युवा ही हैं। उनका बेटा जीवित होता तो अभी तीस वर्ष का होता। लेकिन सब कुछ खोकर भी शेफाली जी अपनी ज़िन्दगी को अपनी तर्ज पर जी रही हैं। मित्रो से घिरे रहना उन्हें पसंद है। शेरो-शायरी करती हैं, लेकिन स्वयं नहीं लिखतीं, बल्कि गजलों को बहुत अच्छे से गा लेती हैं। उनके घर में अपने देश के ही नहीं, पाकिस्तान के ग़ज़ल गायकों के अलबम हैं। वे कुछ भी काम करती रहती हैं, इधर ग़ज़ल बजते रहते हैं। शहर में होने वाले मुशायरों, गजलों के कार्यक्रम वे कभी नहीं छोड़तीं।
'यार क्या हो रहा है, सोनल कह रही थी तुम चोरवाड़ जा रही हो? यह भी कि बहुत सारे दिनों को।' घर में घुसते हुए उनकी अभिन्न मित्र अनुराधा ने कहा।
'हाँ, अनुराधा।' लगा वे रो पड़ेंगी। लेकिन इतनी भी कमजोर नहीं हैं वे। रोई हैं अनुराधा के सामने भी। लेकिन नहीं अभी वे कुछ नहीं बता पाएंगी। शायद फिर कभी।
'बस अनुराधा ऐसा लग रहा है कहीं किसी स्वच्छन्द द्वीप पर अकेली रहूँ जाकर। इसीलिए सोनल को बुकिंग का कहा। सोनल अपने साथियों के साथ वहाँ जा चुकी है और उसके अनुपम प्राकृतिक वर्णन का कसीदा पढ़ चुकी है।'
अनुराधा जानती है, शेफाली को। जब उसको कुछ कहना होता है तब सब कुछ कह डालती है, नहीं तो कुछ भी नहीं। लेकिन शेफाली कम से कम अनुराधा से कुछ नहीं छिपातीं। ज़िन्दगी में ऐसा कुछ नहीं जो शेफाली और अनुराधा से आपस में छिपा हो। दोनों ने इधर-उधर की बातें कीं, फिर पिछले ग़ज़ल अल्बम की ताज़ा ग़ज़ल दोनों ने मिलकर गाई.
'ठीक है यार शिशिर आता होगा। घर में मुझे न पाकर रूठकर बैठ जाएगा। मैं चलती हूँ।' अनुराधा ने कहा।
'हाँ, जाओ शिशिर तो तुम्हारे लिए बच्चा है। जा उसे संभाल। वरना रात को अकेली पलंग पर कसमसाएगी और वह सोफे पर सो जाएगा।'
अनुराधा के जाते ही शेफाली की आंखों के समक्ष कल का मंजर तैर जाता है। उफ कैसे होते हैं ये पुरुष। क्या दोस्ती के यही मायने हैं। सोनल ने टिकिट भी बुक करवा दी थी और वहाँ कॉटेज की बुकिंग भी।
'कल दोपहर की फ्लाइट है।' सोनल ने बताया। 'आप ही तो जल्दी जाना चाहती थीं।'
'नहीं, ठीक है सोनल, कल की ही टिकिट ठीक है। मुझे एकदम बदलाव चाहिए। वरना टूट जाऊंगी।'
'अच्छा, याद से टिकिट का प्रिन्ट निकाल लें। देखिए शूज, सॉक्स, दवा, मोबाइल का चार्जर और हाँ अपनी इलेक्ट्रिक केटली और चाय वगैरह रख लें। हर बार आप बेसिक और ज़रूरी चीजें भूल जाती हैं।' सोनल ने कहा।
'हाँ, भई रख लेती हूँ। लो अटैची खोल ली है, बोलती जाओ मेरी मां।' वे हंसने लगीं।
उनके चहुं ओर उनके वैलविशर हैं ही, लेकिन सोनल और अनुराधा। उन दोनों के बगैर तो उनकी ज़िन्दगी अधूरी ही है।
वे कुछ कपड़े रखती हैं। एक बड़ा कैप... हाथ ठिठक जाते हैं। रोहित लाया था गॉगल और कैप सिंगापुर से। वे कैप को दूर फैंक देती हैं। ऐसे लोगों की यादें दूर फेंकनी हैं। गॉगल तो वह पहले ही सोनल को दे चुकी थीं। लेकिन तब रोहित था उनकी ज़िन्दगी में... आज नहीं है। हाँ, गॉगल नाक पर चुभता था, तो अलग कर दिया था। रोहित, रोहित... जिसकी यादों से दूर भागकर वे इस एकाकी द्वीप पर जा रही थीं। वह प्लेन की खिड़की पर अपना चेहरा सटाए साथ-साथ उड़ रहा था।
उन्हें इच्छा हुई कि प्लेन की खिड़की पर कुछ भारी चीज दे मारें। लेकिन ऐसा सोचने मात्र से वह दूसरी खिड़की से झांकने लगता।
तो हम चोरवाड़ से 32 किलोमीटर दूर एअरपोर्ट पर उतर रहे हैं। वे अपनी अटैची थामे अकेली खड़ी थीं।
'मैडम शेफाली...' होटल से टैक्सी आई है। वे सोनाली के प्रबंध को देखकर दंग रह जाती हैं। छोटी-सी उम्र में वह अपनी फर्म की प्रबंधक है और बिजनेस की बड़ी-बड़ी डील उसी के भरोसे छोड़ी जाती हैं।
वे अपना मोबाइल आॅन करती हैं तो अनुराधा के एसएमएस चारों तरफ से टूट पड़ते हैं, मानो उनके चारों ओर अनुराधा के शब्दों की सुरक्षा दीवाल बन गई थी।
'हाँ रे, पहुंच गई. धीरज तो रख। कॉटेज में पहुंचने दे, फिर फोन करूंगी। अभी तो एअरपोर्ट के बाहर हूँ।' उन्होंने एक छोटा-सा फोन अनुराधा को किया फिर सोनल को फोन लगाया।
'यार सोनल, टैक्सी भी आ गई है। अब हर जगह जाने का प्रबंध तुम्हारे जिम्मे। मेरी छोटी प्रबंधक मित्र।' दोनों हंसने लगी थीं।
सभी कसैली बातों को कुछ समय के लिए पीछे छोड़कर वे कॉटेज में घुसती हैं। वाकई समुद्र तट भी सुंदर है... और जैसा सोनल ने बताया था कॉटेज भी सुंदर है।
'मैम चाय।'
'हाँ, ला दो और ब्रेड बटर भी।' उन्हें हाई बी.पी. की दवा भी खानी थी। अब वे चाय नाश्ता करके कुछ समय आराम करेंगी और फिर देखेंगी कि चारों तरफ का माहौल कैसा है। उन्होंने चाय का घूंट भरा ही था कि... लगा बाहर कॉटेज के गेट से कोई निकला है। वे झटपट कमरे की खिड़की पर आ गई. देखा... हाँ, सचमुच कोई जा रहा था। अरे यह तो शाम का धुंधलका है और सामने समुद्र की गर्जन। इसीलिए तो वे यहाँ आई थीं। उन्होंने जल्दबाजी में चप्पल ही पहन ली और मोबाइल हाथ में लेकर निकल गईं। सुबह से कुछ ऐसा हैवी खाया नहीं था अब नाश्ता करके अच्छा लग रहा है।
वे सीधे समुद्र के किनारे काली बड़ी चट्टानों की तरफ चली गईं। समुद्र की लहरें इन चट्टानों को टकराकर तकरीबन 6-7 फीट तक ऊंची उछल रही थीं। उन्होंने अचानक अपने भीतर खुशी-सी महसूस की और उन चट्टानों के पास, लहरों की टकराहट के पास जाने को उतावली-सी भागीं, ताकि उस ठंडे पानी की बौछारों को वे अपने शरीर पर महसूस कर सकें। इस जल्दबाजी में उनकी एक चप्पल चट्टान पर छूट गई और वे उसे उठाने समुद्र की लहरों की ओर भागीं तभी एक पुरुष हाथ ने उनका हाथ पकड़ लिया। वे लगभग लहरों में गिर ही जातीं, लेकिन उन्हें किसी ने सम्हाल लिया।
'क्या करती हैं, अभी आप समुद्र में गिर जातीं।' तब तक दूसरी लहर ने आकर उन दोनों को समूचा भिगो दिया। फिर तीसरी... चौथी... लहर... वे दोनों सम्हल ही नहीं पा रहे थे। हवा चीख रही थी। एक अद्भुत रुलाई-सी थी हवा में। पुरुष ने उनका हाथ पकड़कर विपरीत दिशा की ओर खींचा। वह उन्हें चट्टानों पर काफी दूर तक ले गया, जहाँ लहरें नहीं थीं।
'अरे मैं तैरना जानती हूँ।' वे मुस्कुरा कर बोलीं।
'तैरना? मैडम यह चोरवाड़ है। इन चट्टानों के नीचे जहाँ आप खड़ी हैं, दूर तक समुद्र का पानी है। यह एक लम्बी-चौड़ी सुरंग जैसी है। पिछली बार जब मैं यहाँ आया था तो नौ विदेशी पर्यटक ऐसे ही लहरों को अपने शरीर पर अठखेलियाँ कराने उस ओर गए थे। सेकेन्डों में वे नौ लोग गायब हो गए थे। फिर काफी समय तक यहाँ सुरक्षा गार्ड तैनात किए गए थे। इस गांव के लोग बताते हैं भाटा के समय भी इन सुरंगों में किसी ने जाने का साहस नहीं जुटाया।'
'ओह, तो आपने मुझे बचा लिया। लेकिन मेरी चप्पल।'
'जाने दीजिए, यह आपका चोरवाड़कका पहला दिन है।' दोनों ही खिलखिलाकर हंसने लगे। सामने समुद्र के क्षितिज पर नारंगी गोला डूबने को व्याकुल था। कुछ ही मिनटों में तट जो एकाकी था, समुद्र, रेत सब कुछ स्याह कालेपन में डूब गए.
'यहाँ के कॉटेज सुंदर हैं, मैं वर्ष भर में 3-4 चक्कर अवश्य यहाँ के लगाता हूँ। यह समुद्र का किनारा... सतरंगी पानी और ये विशाल दरख्त मुझे बुलाते हैं।' उसने जानकारी दी।
'ओह, मेरा परिचय, मैं शेलेन्द्र कपूर हूँ। पहाड़ का रहने वाला, मेरे कुछ बिजनेस हैं। जिनसे थककर मैं यहाँ आता हूँ।'
'जी, मैं शेफाली हूँ... बस यही परिचय... मैदानों से ऊबकर हम पहाड़ जाते हैं और आप लोग पहाड़ों से ऊबकर समुद्र किनारे आते हैं।' शेफाली ने कहा।
'अजी, पहाड़ों से कोई ऊब सकता है? उन्हीं पहाड़ों को देखने के लिए अलग-अलग मूड होता है।' उसने कहा।
'वह कैसे?' शेफाली अचानक उस व्यक्ति की बातों में घिरने लगी थीं।
'वहीं, जैसे हर औरत खूबसूरत होती है। कई औरतें शरीर और मन दोनों से खूबसूरत, कई शरीर से... और कई सिर्फ़ मन से... वैसे शेफाली जी आप सचमुच सुंदर हैं। तो चलिए इस सुंदर वातावरण को और सुंदर बनाया जाए। आप कॉफी पीना पसंद करेंगी?'
'जी, बिल्कुल। लेकिन केंटीन में नहीं।'
'अजी, यहाँ आकर कोई केंटीन में बैठेगा?' उन्होंने होटल ब्वॉय को आवाज दी और शेफाली के कॉटेज के लॉन में बैठना पसंद किया। अमेरिकन ग्रास के लॉन में दो आरामकुर्सियाँ रखी थीं और एक टेबिल।
उन्होंने शेफाली की ओर देखते हुए कहा-'आपके पति को बुला लें। वे निश्चय ही सो रहे होंगे। है ना?'
'नहीं, मैं अकेली आई हूँ।' उन्होंने कहा। इसी बीच कॉफी और वेफर्स होटल ब्वॉय रखकर गया था। वे वेफर्स का एक टुकड़ा उठाकर कुतरने लगीं और इस एकाकी बीच पर अचानक इस तरह आने का मकसद ढूंढ़ने लगीं।
अचानक ही दोनों के समक्ष चुप्पी पसर गई थी।
'मैंने शायद ग़लत वक्त पर ग़लत सवाल पूछा?' शैलेन्द्र कपूर ने हिचकिचाहट से पूछा।
'नहीं, बहुत कॉमन सवाल था। वह भी हमारे देश का सवाल... स्त्रियाँ तो घूमने जाती हैं अपने पति के साथ, तो इतनी डिपेंड होती हैं कि कहाँ रुकी है, कौन-सा होटल है, यह भी नहीं जानतीं। कई बार तो ऐसा लगता है शेखर जी कि यदि वे कहीं बिछड़ गईं तो, बिसूर बिसूरकर रोएंगी कि मैं कहाँ जाऊँ...? कहाँ ढूंढ़ू अपने उनको...?' वे हंस दीं। फिर उन्होंने बात बदल दी।
'...लेकिन कपूर सरनेम तो पहाड़ों में नहीं होता।'
'हाँ। मेरे दादाजी दिल्ली में रहते थे। फिर पिताजी ने सोलन में व्यापार शुरू किया और वहीं बस गए तो हम तो पहाड़ के ही हैं न? फिर देहरादून में मैंने पढ़ाई की।' अचानक शैलेन्द्र चुप हो गए.
कॉफी खतम हो गई थी। औपचारिकतावश शैलेन्द्र ने पूछा-'डिनर का क्या प्रोग्राम है?'
'मैं रूम पर ही डिनर मंगवाऊंगी। गुडनाइट।' कहते हुए वे कॉटेज के भीतर चली गई.
देर तक शॉवर कैप लगाकर वे शॉवर के नीचे नहाती रहीं। कितनी ढेर-सी किताबें लाई हैं वे। जिन्हें मुंबई में वे पढ़ ही नहीं पाती थीं। अब कोई अच्छी-सी ग़ज़ल सुनेंगी और कौन-सी किताब पहले पढ़नी है यह छाटेंगी।
शॉवर कैप उतारा तो देखा सामने के बाल भीगे थे। घुंघराले काले बाल उनके गोरे चेहरे पर छाए थे। उन्होंने नए सिरे से अपने आपको देखा। माँ भी तो इतनी ही सुंदर थीं। लेकिन बाबू सुंदर तो नहीं थे। लेकिन दोनों का अपार प्यार और एक दूसरे के प्रति समर्पण को वे आज भी महसूस कर सकती है। क्या कोई पति वर्षों बीतते रहने के बाद इतना प्रेम कर सकता था। जितना बाबू ने किया माँ को।
'कैसा है महेश?' माँ ने शादी के बाद पहली बार आई हुई शेफाली से पूछा था।
वह चौंक पड़ी थीं। महेश... उसका तो स्पर्श तक नहीं जाना था उन्होंने। छोटी बहन हॉस्टेल में रहकर पढ़ रही थी और बड़ी बहन अपने पति बच्चों में मगन थीं। किससे बांटे हृदय का दर्द... लेकिन माँ काफी कुछ समझ चुकी थीं। कहीं कुछ है जो शायद शेफाली से भी छुपा है। थोड़े दिन माँ के साथ रहकर वे लौटी थीं।
महेश अधिकतर लंदन में ही रहते थे। घर बहुत बड़ा और खाली था। वे बड़े-बड़े कमरों में चहलकदमी करतीं। फिर बाहर बगीचे में और घर के भीतर रखे गमलों में उन्होंने अपने आपको खपा दिया था। महेश लौटे तो यूं घर को गार्डन बना डालने पर खुश भी हुए और लटकने वाले पौधे चढ़ती बेलें, फूलों की झाड़ियों पर उन की पसंद की दाद भी दी।
याद है उन्हें, जब वे शादी होकर घर आई थीं। उसी रात एक फोन ने महेश को हिला दिया था। वे पलंग पर सजी दुल्हन बनी बैठी रह गई और उसी रात की सुबह 4 बजे की फ्लाइट से महेश लंदन चले गए थे। पूरा महीना बीत चुका था। महेश नहीं लौटे। परन्तु फोन आते थे। उनकी बड़ी बहन भी अपने शहर लौट गई थीं। यही उनका ससुराल था। महेश लौटे तो शराब पीते बैठे रहते, या फोन में लम्बी... लम्बी की जाने वाली बातचीत में व्यस्त रहते। इस तरह शादी का एक वर्ष गुजर चुका था।
'क्या हुआ था शेफाली? तू इस तरह अचानक क्यों चली गई थी? तू तो बड़ी हिम्मत रखती है। बरसों से अकेली रह रही है।' अनुराधा फोन पर थी।
रो पड़ी शेफाली-'अनुराधा, जिसको इतना प्रेम किया वह इतना नीचे गिर जाएगा, सोचा नहीं था।'
'अरे, कुछ बताएगी भी या यूं रोती रहेगी। क्या हुआ मुझे सब बता। मैं जानती हूँ, जब तक मुझे ठीक से बताएगी नहीं, तेरा मन हल्का नहीं होगा।' थोड़ी देर वह रोती रहीं। अनुराधा ने रो लेने दिया। संयत हुई, कहा-'दो दिन पहले रोहित आया था। आते ही कहने लगा-" देखो, फ्राइड फिश लाया हूँ। तुम्हारे लिए बियर एकदम चिल्ड है और अपने लिए व्हिस्की।' स्वयं ही किचन में गया और दो गिलास, बाऊल में बर्फ और प्लेट में फिश निकाली। दोनों पीते रहे। मैं खुश थी ऐसा ही दोस्त चाहा था मैंने। जो मेरे दिल के करीब हो। हम दोनों पीते रहे थे कि एकाएक उसने अपने नजदीक मुझे घसीटा... और बड़ी बेदर्दी से मेरे कपड़े उतारने लगा। मैं हतप्रभ रह गई अनु। बियर का सुरूर और एक ऐसा इन्सान जिसे मैं पिछले दो वर्षों से प्यार कर रही थी कुछ कह नहीं पाई. अनुराधा। यह क्या? क्या यह प्रेम है, मैं गुस्से से कांप उठी। मैंने उसे भरपूर ताकत से अलग किया और कपड़े सम्हालती हुई दूसरे कमरे में आकर पलंग पर गिर पड़ी। वह कब गया पता नहीं चला। अनु, मैं इतनी रोई कि उल्टियाँ होने लगीं। प्रेम का यही एक रूप अनु... बता तो तू... क्या वह मुझे प्रेम करता था। तू ही तो कहती थी कि वह मुझे प्रेम करता है, साफ दिखाई देता है। वह क्या समझता था कि मैं उससे शारीरिक प्रेम चाहती हूँ। '
वे फूट-फूटकर रोने लगीं। अनुराधा ने बहुत मुश्किल से उन्हें सम्हाला और 'रात को फोन करती-करती हूं' कहा।
उन्होंने रूम ब्वॉय को बुलाया।
'क्या है डिनर में?'
'फ्रायड फिश, मैम यहाँ की फिश बहुत फेमस है।' लड़के ने कहा।
'नहीं। फिश नहीं, वेज में क्या है?'
'छोले पूरी, पालक पनीर और ढेर-सी सब्जियों के नाम वह बताने लगा।'
'ठीक है खूब गरम कुरकुरी पूरी और छोले ले आओ.'
डिनर शुरू ही किया था शैलेन्द्र कपूर आ गए.
'अरे, आपने डिनर शुरू कर दिया, मैंने सोचा हॉल में ही चल कर खाते।' वे मुस्कुरा दीं। शाम ही पहचान हुई और डिनर तक इतनी आत्मीयता।
'ठीक है खाइये, मैं हॉल में जाकर खाऊंगा।' वे होटल ब्वॉय के साथ ही कॉटेज से बाहर निकल गए.
रात को फिर अनुराधा का फोन आया। देर तक दोनों ने बातें कीं। अनुराधा बोली-'देख शेफाली, प्रेम का यही मतलब होता है। तुम लोग दो वर्ष से प्रेम कर रहे हो। तुमने शादी के लिए मना कर दिया था। अब जब लिव इन रिलेशन में रहोगे तो क्या संन्यासी बनकर। मैं समझती हूँ शेफाली, यह बात तर्कसंगत नहीं है। हाँ, लेकिन ऐसी जानवर जैसी पहल तो किसी के भी मन को तोड़ देगी। वही तेरे साथ हुआ। यही पहल प्रेम और मनुहार भरी होती तो शायद तू भी मान जाती।'
शेफाली चुपचाप सुनती रही। 'फिर तेरा जवान बेटा भी तेरी आंखों के सामने गया। तू एक माँ है इतनी जल्दी तेरा हृदय किसी को स्वीकार नहीं कर सकेगा।'
हाँ, सच तो कह रही है अनुराधा। जब भी कुछ सोचा तो उनका बेटा नील सामने आ जाता। कितनी मुश्किल होती थी यह मानने में कि नील अब नहीं है।
'क्या हुआ था आपके बेटे नील को?' शैलेन्द्र कपूर दूसरे दिन सुबह को सैर पर साथ थे। समुद्र का गर्जन शांत था। लहरें धीमे-धीमे रेत पर आतीं और वापस लौट जातीं। वे दोनों समुद्र किनारे टहल रहे थे।
'जान्डिस हुआ था बी टाइप का। मुंबई के डॉक्टर्स ने मना कर दिया था तो हम दिल्ली लेकर गए थे। अच्छा हुआ महेश तब लंदन से आ गए थे। तुरन्त हवाई जहाज से नील को लेकर गए. वहाँ एडमिट कराया। एक दो आयुर्वेदाचार्य भी देखने आए, लेकिन लिवर ने काम करना बंद कर दिया था। उसी दोपहर वह हमें छोड़ कर चला गया और इत्तेफाक देखिए कि उसके बीमार पड़ने से पहले, ठीक दो दिन पहले महेश ने मुझे लंदन की खबर सुनाई थी जिसे वे 18 वर्षों से छुपाए हुए थे। वहाँ लंदन में उनकी पत्नी और 16 वर्ष का बेटा था। अर्थात लंदन वे इसलिए जाते थे। अपनी उस गृहस्थी को सम्हालने जो मेरे आने के बाद बसी थी। मेरा उनके प्रति अत्यधिक विश्वास ही मुझे डुबो गया समूचा। नील जब गया तब वह 20 वर्ष का था। इतने वर्ष मुझे पता ही नहीं चला। यानी कभी महेश ने पता तक नहीं चलने दिया। इतनी खामोशी से सब कुछ छुपाया। वे मेरे पास ऐसे रहते थे मानो मजबूरी थी लंदन में रहने की कि मुझे वे बहुत मिस करते थे। ओह, कितना झूठ फरेब... मुझे लगता है उन्होंने नहीं बताया होता तो शायद मैं इतना न टूटती। लेकिन अचानक मुझसे दोनों छिन गए.'
शेफाली ने बताते हुए इतने वर्षों बाद अपने आपको वैसा ही टूटा महसूस किया।
समुद्र पर सूर्योदय की सतरंगी किरणें अठखेलियाँ कर रही थीं। जैसे पानी पर इंद्रधनुष खिल आया हो।
" मुझे इसीलिए यहाँ का समुद्र भाता है, इन्द्रधनुषी रंगों वाला। शैलेन्द्र ने समुद्र पर दूर देखते हुए कहा।
'हाँ, ऐसा समुद्र मैंने मॉरिशस में देखा था। मॉरिशस तो महेश के साथ ही गए थे। लेकिन बाद में उनके लंदन बस जाने के बाद अकेले ही घूमते रहे।' शेफाली ने कहा।
'क्या बिजनेस था महेश जी का?'
'कार्गो का। बाद में सुना, उनका लंदन में खूबसूरत बंगला है जहाँ नेहा और उनका बेटा रहते हैं।'
'समझ में नहीं आया शेफाली जी आप सुंदर हैं, पढ़ी-लिखी हैं, फिर महेश जी ने ऐसा क्यों किया?' शेखर कपूर को इतने अंतरंग प्रश्न करने का हक किसने दिया। शेफाली सोचती हैं लेकिन फिर भी वे इस उलझे चक्रव्यूह में फंस रही हैं। क्या वे जानती नहीं कि भीतर से वे भरपूर सशक्त हैं। सीधी हैं, लेकिन इतनी भी नहीं कि किसी को समझ न पाएँ। बरसों से अकेली रह रही हैं। अभी तक तो अनुराधा ही यह सब पूछती थी... अब ये शेखर कपूर... मात्र कुछ दिनों का घूमने का साथ।
वे दोनों समुद्र की रेत पर पड़ी आरामकुर्सियों पर बैठ गए. धूप से बचने के लिए ऊपर बड़ी-बड़ी रंगबिरंगी छतरियाँ लगी थीं।
शेफाली चुप ही थीं। क्या बताऊँ कि महेश एक स्वार्थी व्यक्ति था। शराब पीकर चिल्लाता था और दुनिया के सबसे घटिया इन्सान की तरह पेश आता था कि नेहा के पास अपार सम्पत्ति और वहाँ रहने की नागरिकता थी... क्या बताऊँ? वे अचानक बोल पड़ीं।
'जाने दीजिए, जिस बात का मन न करे, वह नहीं करना चाहिए.'
वे कॉटेज में लौट गए थे।
शेफाली ने देखा था शेखर कपूर कॉटेज के बरांडे में अखबार लिए बैठे थे। आकर्षक व्यक्तित्व है इस पुरुष का। कितना कुछ पूछता है और वे मंत्रबद्ध होकर सबकुछ बताती रहती हैं। भीतर पहुंचकर उन्होंने अपने छोटे से सीडी प्लेयर पर नृत्य के गाने लगा लिए. वे कहीं भी जाती हैं, अपना सीडी प्लेयर अवश्य साथ ले जाती हैं। उन्होंने चुनरी को कमर पर कस कर बांध लिया। बिखरे घुंघराले बालों की पोनी बांधी और ट्रेवल बैग से अपने घुंघरू निकालकर बांध लिए. अब वह नाच रही थीं। एक नृत्य दो नृत्य, तीन नृत्य फिर तीसरा नृत्य पूरा होते ही वे निढाल-सी सोफे पर गिर गई. सांस धोंकनी-सी चल रही थी। वे बहुत उत्तेजित हो रही थीं। इस वक्त उन्हें रोहित के सिवा कोई दूसरा याद नहीं आ रहा था। इच्छा हुई रोहित की तस्वीर अलमारी से निकालकर फेंक दें और टूटी गिरी कांचों पर नृत्य शुरू कर दें। घायल हो जाने दें अपने पैरों के उन तलवों को जिनकी तारीफ रोहित किया करता था। मुलायम और गुलाबी तलवे... मैंने किसी के नहीं देखे।
नृत्य रुकने पर रोहित ने उन्हें अपनी बांहों में कस लिया था। कहाँ थीं तुम अभी तक? तुम्हें तो फ़िल्मों में जाना था। अनोखा सौन्दर्य, अनुपम नृत्य। वे थक कर रोहित के कंधे पर अपना सिर रख देती हैं।
महेश तो जानते थे कि उन्हें नृत्य प्रिय है, लेकिन कभी नहीं कहा कि दिखाओ। बल्कि वे गाना बजते ही बाहर से रूम बंद कर देते थे।
लगा दो जोड़ी आंखें खिड़की पर झांक रही हैं। सचमुच शैलेन्द्र ही थे। वे मुस्कुरा दीं। दरवाजा खोला तब तक घुंघरू पैरों में बंधे थे।
वे बगैर इजाजत लिए भीतर आ गए.
'शेफाली जी, कोई अपने अकेलेपन को, अपने दु: खों के साथ इतनी जिन्दादिली के साथ जिए, यह पहली बार देखा, सुना। आप सचमुच जीनियस हैं। मैं सोचता था पत्नी की मृत्यु के बाद सबकुछ खतम हो गया, मैं उन्हें प्रेम करता था, कभी नहीं सोचा कि कोई दूसरा ज़िन्दगी में आ सकता है। लेकिन आपने तो सारी परिभाषाएँ एक तरफ सरका दीं। इस निर्जन द्वीप में नृत्य... गजल... पठन।'
'इस निर्जन द्वीप में आने का कारण नहीं पूछूंगा, लेकिन यदि एक नृत्य दिखा सकें तो?'
वे अचानक उठकर खड़ी हो गईं। उन्होंने सी.डी. प्लेयर पर एक सूफी गाना लगाया... उस पर नृत्य... मानो कोई 21-22 वर्ष की माहिर नृत्यांगना समक्ष हो। वे मंत्रमुग्ध हो देखते रह गए.
नृत्य पूरा हो चुका था। वे घुंघरू खोल रही थीं। माथे पर पसीने की बूंदें थीं। जिसमें घुंघराले बाल चिपक गए थे... वे बोलीं-'एक बार फिर टूटी हूँ शैलेन्द्र जी। बहुत अरसे के बाद नील के जाने के बाद सोचा था फिर कोई ज़िन्दगी में आया है। मैं उसे प्यार करने लगी थी। लेकिन उसने मुझे ऐसा डुबोया कि बहुत कोशिश की लेकिन किनारे दूर हटते गए.'
वह फ़िल्मों में असिस्टेन्ट डायरेक्शन में कार्यरत था। उसका परिवार अर्थात उसकी मां, पिता और भाई आदि दूसरे शहर में रहते थे। मुझे पहले ही समझ जाना था कि वह महेश से अधिक स्वार्थी है, शायद मुझे लोगों की पहचान नहीं है। मैं उससे लिव इन रिलेशन में रहना चाहती थी। मेरा मेरे शहर में भरपूर संसार है। मित्रो का, सभा सोसायटी का लेकिन, वह कहता था-'तुम शादी करके मेरे घर रहोगी। वहाँ माता-पिता की सेवा करोगी। मेरी दोनों भाभियाँ भट्टी पर नान-रोटियाँ सेंकती हैं। नान-रोटियाँ आदि वहाँ के ढाबों पर बिकने जाती हैं। यह काम तुम भी करोगी। मैं कभी-कभी आया करूंगा। फिर हम बहुत प्यार करेंगे।' वे हंसने लगीं।
'वाह क्या ज़िन्दगी की प्लानिंग थी।' उन्होंने कहा था। वह जानता था मैं कैसे रहना पसंद करती हूँ। लेकिन वह अपनी सडी-गली इच्छाएँ मुझ पर थोपने लगा। मैंने सोचा चलो, शादी या साथ रहने की कामना न सही, एक अच्छा दोस्त, तो है ही। लेकिन एक दिन उसने दोस्ती की सीमाएँ भी तोड़ दीं। वे अचानक चुप हो गईं। शेखर ने भी शेफाली से कुछ नहीं पूछा।
रात अनुराधा को फोन पर बताया-'अनु, मेरे कॉटेज के बाजू में ही उसका कॉटेज है। हम मार्निंग, ईवनिंग वॉक, समुद्र किनारे पर चहलकदमी, डूबते, उगते सूरज को देखना, लगता है, वे एक अच्छे समझदार मित्र साबित होंगे। रोहित का दिया घाव भी भर ही जाएगा।'
'देख शेफाली, तू फिर वहाँ से शीशे की तरह टूट कर नहीं आना। तेरी शीशे की किरचें फिर तू टूट-टूटकर बटोरेगी। मुझे अच्छा नहीं लगता तेरा इस तरह टूटना बिखरना। समझती क्यों नहीं, पुरुष यही एक चाहत हमसे रखते हैं। पहले महेश... फिर रोहित।'
वे हूं-हाँ करती रहीं। फोन बंद हो गया। आई तो थीं अपनी घुटन से उबरने, यहाँ आकर वे ऐसे... नहीं, वे और टूटना नहीं चाहतीं। ठीक ही कहती हैं अनुराधा।
सुबह वे जल्दी उठ गईं। यहाँ तक कि समुद्र अंधेरे में डूबा था। वे बाहर निकल गई वहाँ अंधेरी हवाएँ चल रही थीं, काला समुद्र भी उन अंधेरी हवाओं के साथ-गर्जन कर रहा था। उन्होंने अनु को फोन लगाया। नहीं, वह कहाँ इतनी जल्दी उठती है वह तो... पति की बाहों में गहरी नींद में होगी। उन्होंने अनु को एसएमएस किया, 'मैं आ रही हूँ अनु आज ही।' वह जब तक एसएमएस खोलेगी, मैं एयरपोर्ट पर शायद हवाई जहाज में बैठ चुकी होऊंगी। उनके पैरों के नीचे अंधेरे में डूबी काली रेत थी वे तेजी से कॉटेज की ओर बढ़ रही थीं।