अंधों के शहर में आईने बेचना / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अंधों के शहर में आईने बेचना
प्रकाशन तिथि : 15 जुलाई 2014


फिल्म कलाकार सबसे अधिक समय आईने के सामने गुजारते हैं। हर शॉट के लिए कई बार प्रयास किया जाता है आैर हर प्रयास के पहले मेकअप-मैन सितारे को आईना दिखाता है। महिला सितारे ही क्या अनेक आम महिलाएं भी अपने पर्स में एक छोटा आईना रखती है आैर अवसर मिलते ही स्वयं का चेहरा देखती हैं। खुद पर सदैव मुग्ध रहने वाले कुछ नारसिस्ट सितारे अपने शयन कक्ष में चारों आेर आईने लगाते हैं। ग्रीक पुरातन पुस्तकों में नारसिस्ट नामक व्यक्ति स्वयं की छवि घंटों निहारने को इस कदर पसंद करता था कि एक दिन झील के पानी में स्वयं को निहारते हुए कुछ मंत्रमुग्ध सा होकर उसमें गिर गया आैर तैरना नहीं आने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसीलिए स्वयं की छवि को निहारने वाले को नारसिस्ट कहते हैं आैर इस प्रवृति को नारसिज्म।

आईने की खोज कब हुई आैर किसने की इसका ज्ञान नहीं है। संभवत: सूर्य के किरणों के कारण धूप को दिशा देने की ताकत के कारण इसकी खोज हुई होगी आैर यह भी संभव है कि यह बेल्जियम में हुआ होगा क्योंकि उनकी गुणवत्ता के कारण वे जग प्रसिद्ध हैं। राज परिवारों से लेकर आम आदमी के जीवन तक में आईने उपयोगी होते हैं। साहित्य में आईने पर बहुत कुछ लिखा गया है आैर अनेक फ्रेज भी लोकप्रिय हैं, मसलन अंधों के शहर में आईना बेचना। लेखक विचारक यही करते हैं। फाइव स्टार होटल अमीरों के बाथरूम में एक आईना होता है जो छवि को खूब बड़ा बताता है। मूंछ काटने इत्यादि के नफासत वाले कामों में इस तरह के आईने मदद करते हैं। इनमें शरीर का एक-एक रोंया नजर आता है। डॉक्टर भी एक लघु आईने से गले के भीतर की जांच करते हैं आैर दांत के डॉक्टर के लिए भी यह उपयोगी होते है। उस नाई की दुकान बेहतर व्यवसाय करती है जहां उम्दा आईने लगे होते है।

मनोरंजन जगत में आईनों की भूमिकाएं बदलती रहती है। जवानी में सितारों की आईनों से दोस्ती होती है आैर जब उनकी फिल्में असफल होने लगती है तो आईना उन्हें दुश्मन नजर आने लगता है। उन्हें लगता है कि यह कमबख्त उन्हें चिढ़ा रहा है। सफल आैर समृद्ध लोग महंगे आैर बड़े आईने लगाते हैं आैर निहायत ही मुफलिस आदमी सड़क पर पड़े टूटे आईने का एक हिस्सा घर ले आता है आैर उसी में अपनी छवि देखता है। यह मामला ऐसा ही है जैसा अमीर के घर भगवान की बड़ी मूर्तियां लगी होती है आैर गरीब छोटे से गुजारा करता है आैर ऐसा भ्रम होता है कि बड़ी मूर्ति ज्यादा समृद्धि देती है गोयाकि मूर्तियों आैर आईनों की साइज से आशीर्वाद बरसता है। लघुतम आईने होते हैं आैर आदमकद भी होते हैं। आजकल बाजार में भी मेगा मार्केट होते हैं, महा आरतियां होती है आैर दशकों तक महज सितारा कहने से काम चल जाता था परंतु अब सुपर सितारा कहे बगैर बात नहीं बनती। एक तरह से पूरा समाज ही गुब्बारे की तरह फूल गया है परंतु गुब्बारे फटते हैं, पिचकते भी हैं आैर उनकी हवा भी निकल जाती है। इस तरह के फूटे हुए गुब्बारे विकृत रबर की तरह दिखाई देते हैं जैसे कोई फितना पड़ा हो या जैसे कुचला हुआ अहंकार पड़ा हो। हर सुविधा-भोगी समाज का अंत फूटे गुब्बारे की तरह होता है।

सितारों आैर नेताओं के लिए श्रेष्ठ आईने उनके चमचों आैर छुटभइयों की आंखें होती हैं। वे उन्हीं में वे अपनी लोकप्रिय छवि देखते हैं, अपना अहंकार देखते हैं। प्रशिक्षित चमचे आैर चुइंगगम से बने छुटभइया अपनी आंखों के आईने को बदलने में माहिर होते हैं आैर लंबे समय तक सितारा आैर नेता अपनी लोकप्रियता के गिर जाने को समझ ही नहीं पाते।

गुजरे हुए दौर में गांवों में तीज त्योहार पर मेले लगते थे आैर उनमें प्राय: एक तंबू ऐसा होता था जिनमें लगे आईनों में शक्लें भयावह नजर आती थीं, छवि विकृत नजर आती थी आैर लोग पैसा देकर इस तंबू में जाते थे। राजकपूर ने 'सत्यम शिवम सुंदरम' में सौंदर्य के उपासक नायक को इस तरह के तंबू से चीख मारकर बाहर भागते दिखाया था आैर उस समय उसे नहीं मालूम था कि एक कुरूप लड़की उसके जीवन में आने वाली है आैर आत्मा के सौंदर्य का पाठ उसे पढ़ाने वाली है। दरअसल नारी शरीर के बेहिचक प्रदर्शन के कारण इस फिल्म की अच्छाइयों की आेर भी ध्यान नहीं गया। आईनों की दास्तां लंबी हो सकती है। यह संभव है कि आईने का आविष्कार पुरुष ने किया हो कि नारियां आत्ममुग्धा बनी रहें आैर पुरुष की पैदाइशी कमतरी को नहीं समझ पाएं।