अंध विश्वास / धनन्जय मिश्र
है कम्प्यूटर आरोॅ इन्टरनेटोॅ रोॅ युगोॅ में अखनियों गाँव देहातों में है रंग के अंधविश्वास पैलोॅ जाय छै कि घरोॅ में कोय तरह के आफत-विपतोॅ में पहिने लोग सिनि झोॅर-झरवैया आरो नीम-हकीम डाक्टर सिनि रोॅ शरणों में ही जाय छै, है सोची केॅ कि होयले सकेॅ यांही हमरोॅ रोग व्याध, विपदा दूर होय जैतोॅ। यै में समय आरो पैसा खर्च तॅ होवे करै छै मतुर समय पर ज़रूरी डाक्टरी इलाज के अभावों में सब खेला खतमो होय जाय छै। पीछु पछतैला रोॅ सिबा कुछछु नै रही जाय छै। मतरकि है क्रम रूकै नै छै, अनवरत जारी छै। हेकरा में फायदा होय छै सिर्फ़ हौ सिनि ठग झरवैया आरू नीम-हकीम डाक्टरोॅ के ही। है बात नै छै कि मंत्रों में कोय शक्ति नै छै। मंत्रों में तॅ है रंग शक्ति छै कि असंभव के संभव बनाय दै छै जोॅ उचित साधना आरो कर्म होकरा में सम्मिलित रहेॅ। अंधविश्वासोॅ रोॅ कोय इलाज नै छै, अगर छै तॅ सिरिफ आपनोॅ मजबूत इच्छाशक्ति आरोॅ जोखिम लैके आत्मबल के. सवाल छै कि पहिने से आवी रहलोॅ ई अंधविश्वास रूपी परम्परा केॅ के हटैतै। केकरा में एत्ते सामरथ आरो आत्मबल छै कि है दावन रूपी अंधविश्वास केॅ हटाय पारेॅ। अगर कोय जों हेकरा हटाय रो प्रयास करै लॉ पारे तॉ निश्चित ही हौ घोर जिद्दी या नास्तिक रहे।
बांका जिला में एकटा सहदेवपुर नामक गाँव रहै। वै गामों मेंकत्तेॅ जातोॅ रोॅ बीचों में पंडियो जी सिनि के जात रहै। वै पंडितोॅ में एकटा सुकरात झा नाम करी केॅ पंडित जी, आपनोॅ सेवानिवृत जीवन बिताय रहलो रहै। पंडित सुकरात झा के विषय मेंप्रायः गाँव वाला है जानै छेलै कि हुनी एक नम्बर के गोसबर, जिद्दी आरो नास्तिक रहै। हुनका सामने मेें सभ्भें फेल। हुनका सें बात करै के मतलब छै आफत मोल लेना। हुनका सें अगर तोहें बात करै लेॅ चाहो तॉ हुनका हाँ में हाँ मिलावो, नै तॉ रस्ता नापोॅ। कोट कचहरी हुनकोॅ बाँया जेबो में रहै। हुनका सें प्रायः सभ्भै परहेजे करै रहै। मतलब "एक गाछ लहार, गामों सें बहार।"
पंडित सुकरात झा जी रोॅ परिवारो छोटोॅ रहै। बड़की बेटी सावित्री आरो छोटका बेटा राम। सावित्री रोॅ बहुत पहिने बीहा शंकरपुर गाँव मेंहोलो रहै आरोॅ हौ आपनों पति बुतरू साथे दिल्ली प्रवास में रहै। छोटका बेटा राम झा आपनो गृहस्थी रोॅ गाड़ी बड़ी दिक्कतोॅ से रहीमपुर शहरोॅ के प्राइवेट स्कूलोॅ में शिक्षक बनी केॅ खीचीं रहलोॅ रहै। है स्थिति में पहुँचाय केॅ हेकरोॅ बापोॅ भी कस दोषी नै छेलै। कैन्हे कि बीॉएसॉसीॉ पास होला रोॅ बाद बेटा राम ने आपनोॅ बापो संे बीॉएडॉ करै लॉ पैसा मॉगने रहै है सोची कि शिक्षक ट्रेनिंग रोॅ बाद हाई स्कूलों में नौकरी लागी जैतोॅ। मतरकि बेटा रोॅ प्रति लापरवाह आरू अविश्वास रोॅ चलते है सोची के पैसा नै देलकै कि तोहें हमरो पैसा के बुड़ाय देभै। हुनि है सोचल नै पारलकै कि हमरो बाद है सभ्भें पैसा संपत्ति तेॅ हमरो बेटा के ही होतै। डाकौ कहने छै कि "जबे बापोॅ रो गोड़ोॅ के जूता बेटा के गोड़ोॅ में समाय जाय तेॅ वहीं दिनों सें बाप-बेटा के बीचों में मित्रता नांकी व्यवहार आबी जाय छै।" अंगिकौ में एक कहावत छै कि "कि कपूत धन संचय राखौ कि सपूत धन संचय राखौ।" मतरकि है गूढ़ रहस्य केॅ कत्ते बापें निभावेॅ पारै छै। हेकरोॅ नतीजा ई होलै कि वहीं दिनों से बाप-बेटा रोॅ बीचों में शीतयुद्ध चलै लागलै।
यहीं बीचोॅ में एक दिन बेटा राम झा के बीहा तय होलै। राम झा सुन्दर कठ-काठी रो बीॉएसॉसीॉ पास आकर्षक युवक दस बीघा रो अकेला वारिस रहै। बीहा लागै में कोय अड़चन नै होलै। पंडित जी एकभंगो छेलै तॉ छेलै। बीहा रो सब रस्म के व्यवस्था पुरा होय रहलो रहै। आवे कल बारात जैतै। गाँव वाला रोॅ खुशी है सुनी के काफुर होय गेलै कि कल शामै से लड़का रोॅ बाप पंडित सुकरात झा जी लापता होय गेलै। जत्ते मुँह ओत्ते बात। सब अवाक रहै। आबेॅ हुनका खोजतै तेॅ कहाँ खोजतै। व्यवस्था लकवाग्रस्त होय रहलोॅ रहै। मतुर लड़का अडिग छेलै। लड़का के निर्णय होलै कि बीहा रूकतै नै, बीहा आइये होतै, जे की सहिये छेलै। कैन्हें कि है व्यवधान दैवीय नै कृत्रिम रहै। बेटी बापोॅ रोॅ की दोष। सभ्भे सगा-सम्बंधी द्वारा बीहा सम्पन्न होलै। दू-चार दिनों रोॅ बाद बापो घुरी केॅ घोॅर ऐलै। बात ऐलोॅ-गेलोॅ होय गेलै।
समय आगु बढ़ी रहलो रहै। समय रोॅ प्रवाह में तॉ है ताकत छै कि राजा रंक आरू रंक राजा होय जाय छै। पंडित सुकरात झा जी भी आपनो गृहस्थी रोॅ गाड़ी आपनोॅ दम रूपी पेनशनोॅ रोॅ पैसा सें खींची रहलोॅ रहै। आवेॅ हुनको जीवन कुछछु सामान्य होय रहलोॅ छेलै कि तखनिये लागलै कि हुनको जीवन मेंकोय आगिन भरी देलकै। अचानक हुनकोॅ कनियैनी रोॅ हृदयाघात सें इंतकाल होय गेलै। विपत्ति रोॅ मानोॅ पहाड़ टूटी पड़लै। हमरा याद छै कि जबेॅ गामों केॅ छौड़ा सिनि हुनका दुआरी
पर जाय केॅ कोय तरह रो गामांे लेली चंदा मांगै रहै तॉ पंडित जी बेमतलब के प्रश्न पुछी केॅ छौड़ा सिनि केॅ अकबकाय दै छेलै आरू जबेॅ हौ सब घुरै लॉ आबै छेलै तॉ हुनको कनियैनी छौड़ा सिनि केॅ इशारा मेंही बतलावै छेलै कि ऐखनी तोरा सिनि जा हम्में बादोॅ में चंदा दै देभौ। हुनि आपनोॅ मालिक के हमेशा ढाल बनी के जीयै छेलै। आय सचमुचे में पंडित जी एकाकी होय गेलोॅ रहै।
समय बड़ोॅ से बड़ोॅ घाव भरी दै छै। जे नै रहलै ऊ तेॅ नैंहे रहलै, आरू जे रही गेलै ई धरती पर ओकरा धीरज धारण आरू जीयै के शक्ति भगवानै दै छै। पंडित जी भी छाती पर पथ्थर धरी केॅ जीयेॅ लागलै। कहियो-कहियो हुनका घरोॅ के चहल-पहल बेटी-जमाय, नाती, नतिनी रोॅ कारण बढ़ी जाय तेॅ कहयो बेटा-पुतोहु आरू पोता-पोती रोॅ आवैय रोॅ कारण। मतरकि आरू दिन हुनी प्रायः एकाकी ही रहै छेलै।
गामांे रोॅ बाहर पंडित जी के एक टा दस कट्ठा रो जमीन (बारी) रहै। दू-तीन सालोॅ सें हौ जमीनोॅ पर ट्रैक्टरों सें माँटी गिरी रहलोॅ छेलै। लागै छेलै कि शायद हुनी हौ बारी के घेरै लेली ईटोॅ बनवैतै। ईटोॅ में लागत सें बेसी फायदा देखी केॅ गांमोॅ रोॅ कत्ते नी छोटोॅ पूंजी वाला आदमी ईटोॅ रोॅ व्यापार करै छै। पंड़ियो जी सोचनें होतै कि वारी घेरला रोॅ बाद, जे ईटोॅ बची जईतै होकरा बेची लेबै। बात तेॅ सच्चे छै, मतरकि ईटोॅ बनाय लेली कुछछु मौलिक जानकारी के ज़रूरत पडै छै। जेना कि ईटोॅ बनाय लेली मात्र के हिसाब सें सबसे पहिने कोयला के इन्तजाम करी लॉ। बादोॅ में कोयला इन्तजामोॅ में देर होतै छै आरू ईटोॅ के कुछछु मात्र प्राकृतिक आपदा सें बरबाद होतै छै। हेकरा सें बचाव लेली पहिने सें पन्नी, डमोलोॅ, पुआल के व्यवस्था करी लॉ। एक टा आरू बात ज़रूरी है छै कि ईटोॅ बनाय लेली आपनोॅ खास एक-दू विश्वासणीय आदमी रहवे करेॅ, जेकरा से कखनु बिपरीत परिस्थिति में हौ आदमी से तोरा मदद मिली जाय, कैन्है कि यै में कत्ते नी झंझट होतै छै। एकल्ला सें तोहें कानभे की कब्बर खोदभेॅ। पंडित जी है सिनि बातोॅ सें अनजान रही केॅ एक लाख ईटोॅ बनवाय लागलै।
चैत बैसाखोॅ रोॅ महिना रहै। चैता फसलोॅ कटी रहलो रहै। हिन्ने कत्ते दिनों सें प्रकृतियों विपरीत होय गेलोॅ रहै। रही-रही केॅ बर्षा भी होय जाय छेलै जेकरा सें कामों में विघ्न आना स्वाभाविके रहै, मतुर काम जारी छेलै। अकेलो पंडित जी परेशान रहै। मजदूरोॅ सिनि जल्दी-जल्दी कुछछु कच्चे ईटोॅ रोॅ होड़ लगाय केॅ आपनोॅ पैसा बनाय रहलो छेलै, जेकरा पंडित जी गमै लेॅ नै पारै छेलै। यही बीचों में पंडित जी रोॅ बेटा राम झा केॅ कोकरौह सें ईटोॅ बनाय रोॅ बात मालुम होलो रहै। अच्छा-खराब सब बात भूली केॅ बापों लेली प्यार उमड़लोॅ छेलै। राम झा आपनोॅ परिवार साथे घोॅर ऐलो रहै। बाप-बेटा रोॅ बीच शीतयुद्ध अखनियो जारी रहै। भोरैय राम झा ईटोॅ बनाय केॅ जघ्घो जाय के होढ़ो केॅ बर्षा चलते हिन्हें-हुन्हे गिरलोॅ देखी केॅ आपनै सें बात करै लागलै कि-"काश! बाबु जी ईटोॅ बनाय लेली पहिनें से अगर हमरा से बातचीत करने होतियै तॉ के जानेॅ है रंग ईटा रोॅ बरबादी होतियै?" मोॅन मसोसी केॅ, हौ घोॅर आवी केॅ शान्त भाव सें बाबु जी सें बोललै, "बाबु जी, हम्में अखनी, बनलोॅ ईटोॅ के देखी केॅ आवी रहलो छियै। लगभग पचास हजार ईटोॅ बनी गेलोॅ छै। कुछछु ईटोॅ बरबादोॅ होलो छै, कोय बात नै छै। दिनोॅ खराब चली रहलोॅ छै हमरोॅ मोॅन छै कि पहिनेॅ है बनलो पचास हजार ईटोॅ रोॅ भट्टा लगाय केॅ पकाय लेलोॅ जाय, तबे बचलोॅ हौ पचास हजार ईटोॅ केॅ बादो में बनबावोॅ। यै में बाबु जी तोरो की सलाह छौ।"
है सुनथै, लागलै कि पंडित जी के तरबा रोॅ लहर कप्पाड़ोॅ पर चढ़ी गेलो रहै आरू हुनी गरजी-गरजी के बोलै लागलै-"तोहें की सोचै छै की हम्मी सबसें बेसी होशियार छियै। हमरोॅ कामोॅ में दखलदानी नै दै। हम्में जे करै छियै, ठीक्के करै छियै। के घुरि-घुरि भट्ठा लगवैतै। हमरा की खाली यहाँ काम छै। हम्में की तोरा सें एक्कों पैसा माँगै छियौ। जे होतै देखलोॅ जैतै। हम्में एक्के बार एक लाख ईटोॅ रो भट्ठा लगवैवे। बड़ा हमरा सें सलाह माँगै वाला ऐलो छो।" है कही के हुनी गोस्सा से बाहर निकली गेलै। है गरजा धोकी सुनी केॅ बाहर कत्ते नी आदमी जमा छेलै। गाँव घरोॅ में है रंग कत्ते नी आदमी रहै छै जेकरा दोसरा रोॅ लड़ाय झगड़ा में ही मोॅन लागै छै। बेटा राम झा मनझमान आरू लजाय केॅ माथोॅ पर हाथ धरी केॅ बैठी गेलै बिना कोनोॅ एक्को शब्द बोलने। है देखी केॅ बाहर गिल फिल रहै। वहीं में कोय बोललोॅ रहै "नेचर आरू सिगनेचर की कहियोॅ बदल्लो छै?" वहा दिन बेटा भी परिवार लैके आपनोॅ गंतव्य स्थानोॅ पर चल्लोॅ गेलै।
पंडित जी रोॅ दिन-चर्या पर कोनो खास असर नै पड़लै। दिन बीती रहलो रहै। ईटोॅ बनी रहलो रहै आरू बीचोॅ-बीचोॅ में बर्षा भी जारी रहै। बीचोॅ में एक सप्ताह भर बर्षा रूकलोॅ रहै। एक लाख ईटा रोॅ गिनती पंडित जी मजदूरोॅ से लै लेने रहै। आवे समस्या छेलै तॉ सिर्फ़ कोयला मंगवाय केॅ। कोयला उपलब्ध रहतियै तॉ काम जल्दी शुरू होतियै। बर्षा पानी दिनों में कोयला रोॅ खच्चोॅ कुछछु बढ़ी जाय छै।
खैर! कोनोॅ तरह सें कोयला आनलो गेलै। आवे भट्ठा लगवैया रोॅ अकाल छेलै, कैन्हें कि गामों में पंडित जी के सभ्भें अच्छा सें जानै रहै। बगलो रोॅ गामांे से कुछछु बेसी मजदूरी रोॅ शत्तोॅ पर मजदूर मिललै। काम शुरू होलै। पहलेॅ दिनों सें पंडित जी आरू भट्ठा मजदूरोॅ से कुछछु लौकिक शत्तोॅ के नै मानै लेली बकझक शुरू होय गेलोॅ रहै। आरू संयोगो है होलै कि अभी तॉ भट्ठा रोॅ आधार छानी केॅ कोयला ही पड़लोॅ रहै कि वही राती में है रंग तुफानी झोॅर पड़लै कि भट्ठा रोॅ चारोॅ तरफ पानी ही पानी छेलै। सच्चे हीं कोय कहनै रहै कि "ईटोॅ पाकलौं तॉ लाल नै तॉ मांटी रो दिवाल।" सुबह पंडित जी देखलकै कि बर्षा सें भट्ठा रोॅ ईटोॅ माँटी बनी कॉ कोयला साथे कारोॅ बनी गेलोॅ रहै आरू ईटोॅ रोॅ होढ़ ढही केॅ माँटी बनी गेलोॅ छै। पंडित जी माथा पर हाथ धरि के बैठलोॅ रहै। राती भट्ठा पर कोय नै छेलै आरू भट्ठा झांपै के भी कोय व्यवस्था नै छेलै, जेकरा सें बाहरी मजदूर जे भागलै तॉ फेरू धुरि केॅ नै ऐलै। झरोॅ सें होढ़ के ईटा रोॅ रंग बदरंग अलगे होय रहलोॅ रहै।
आबेॅ कुछ दिनों से झोॅर बंद रहै। पंडित जी बदहवास आरू परेशान छेलै। आबे नयाँ शिरा सें भट्ठा लगाय लेली मजदूरोॅ रोॅ खोज होय रहलोॅ रहै। मतरकि कोय मजदूरेॅ हांमी नै भरै छेलै। पंडित जी रोॅ डोॅर चरम पर रहै। मतुर यहोॅ सच छै कि जबेॅ कोय चीजोॅ रोॅ डोॅर चरम पर पहंुची जाय छै तॉ डरोॅ भी खतम होय जाय छै। पंडित जी भी है सोची लेलकै कि जे होतै तॉ होबे करतै, कहियौ नै कहियौ तॉ भट्ठा लागवे करतै। पंडित जी कॉ शिथिल देखी के मजदूरेॅ है सोची कॉ पहल करलकै कि अखनी पंडित जी गैरी में गिरलो छै, कुछछु बेसी मजदूरी लैके कैन्हें नी भट्ठा लगाय देलो जाय। मजदूरोॅ रोॅ अगुवा 'घोलटी' पंडित जी रोॅ पास आवी कॉ बोललै-"कि हो पंडित जी, ईटोॅ कॉ छोड़िये देने छौ, भट्ठा लगवैवौ की?" "हाँ लगवैवै, बोलो केना केॅ लगैभो। एक लाख ईटों में से कत्ते नी ईटों तॉ नष्ट होय गेलो छै। आवेॅ तोरा सिनि बचलोेॅ ईटों रोॅ भट्ठा लगाय रोॅ ठीका लै लॉ। पंडित जी बोललै। एक निश्चित राशि पर भट्ठा रोॅ ठीका पर बात तय होलै। फेरू मजदूरोॅ रोॅ लीडर घोलटी बोललै-" पंडित जी भट्ठा लगाय में आरू नी कत्ते सिनि खटकरम करै लॉ लागै छै जेकरा से भट्ठा रोॅ ईटो खुब लाल टुभुक रंग नाकी पाकै छै, पहिनै कहला पर नीकों रहै छै। "" कि खटकरम करै लॉ लागै छै साफ-साफ बोलो पंडित जी बोललो रहै। "भट्ठा लगाय रोॅ समय भट्ठा के पूजा होय छै, भट्ठा में सुबह-शाम धूप अगरबत्ती देखलाय लॉ पड़ै छै, भट्ठा कखनु सूनोॅ नै रहै छै, हेकरा लेली हमरा सिनि केॅ दोनों बेला भोजन दै लॉ लागै छै, भट्ठा में आगिन लगाय रोॅ समय पाठा रोॅ बलि लागै छै," है सभ्भे बात घोलटी बोललो रहै।
है सुनथैं पंडित जी अगिया बैताल होय के घोलटी से बोललै-"सुने घोलटी है सिनि खटकरम नांकी अंधविश्वास केॅ हम्में नै मानै छियै। तोरा सिनि सें जे बात होलोॅ छै, होकरै पर कायम रही के काज करेॅ नै तॉ तोरो मरजी हम्में बकवास नै सुनै छियै।" यहाँ लगे ना राहुर माया। " ध्यान में राखी के पंडित जी रो काज शुरू होलै। सप्ताह भरी में भट्ठा लागी केॅ तैयार होलै, आगिनो पड़लै। आशंका रोॅ बीचों में भट्ठा खुब नीको सें पाकलै। आबेॅ गाँव-घरोॅ में चर्चा छेलै कि देखो, पंडित जी कोनोॅ खटकरम रूपी अंधविश्वास के नै मानलकै, मतुर तैइयो ईटो रोॅ भट्ठा नीकोॅ सें पाकलै।