अकर्मक क्रिया / अशोक भाटिया
एक बार राय साहब के इलाके की एक गली के लोगों का झगड़ा हो गया। उसमें गली–स्तर के दो नेता उभर आए थे और पूरी गली दो हिस्सों में बॅंट गई थी। झगड़ा हैडपंप लगने न चलने को लेकर था।
पहले गुट का नेता अपनी जनता को राय साहब के पास ले गया।
‘‘जनाब! गली में हैंडपंप की कमी बड़ी महसूस होती है। पानी गरीबों को भी चाहिए। बहुत कम घरों में पानी का नल है, फिर बिजली का कोई भरोसा नहीं।’’
‘‘बताओ, मुझें क्या करना है?’’
‘‘आप इस अर्जी पर अपनी सिफारिश कर दो।’’
राय साहब ने मुस्कराकर दस्तखत कर दिए। अर्जी कमेटी में ले आई गई। कमेटी के प्रधान कुछ दिन में अपने पूर्व प्रधान राय साहब से बातों के साथ इस बारे में भी राय लेने आए। राय साहब की मुस्कान ने प्रधान को उत्तर दे दिया था। अब तक गली का दूसरा नेता भी जान चुका था। वह बाकी की आधी जनता को लेकर दरबार में पहुँच गया। ‘‘राय साहब गली में हैंडपंप की कोई जरूरत नहीं। यह तो पिछड़ेपन की निशानी है। पानी का कनेक्शन जो चाहे ले सकता है। हैंडपंप लगने से जमीन खराब होगी। जहाँ लोग बैठते–खेलते हैं, वहाँ कीचड़ और मच्छरों का राज हो जाएगा।’’
‘‘बताओ,मुझे क्या सेवा करनी है?’’
‘‘राय साहब, इस अर्जी पर कैंसल की सिफारिश कर दें।’’ एम.एल.ए. ने फौरन दस्तखत कर दिए। अर्जी कमेटी में पहुँची और पहली अर्जी को ले उड़ी।
आज बरसों बीत गए हैं। उस गली का हैंडपंप लग रहा है, उखड़ रहा है।