अक्ल बड़ी या भैंस / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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स्कूल से घर लौटते ही उदय ने चक्की के दो भारी पाट जैसे-तैसे स्टोर से बाहर निकाल लिए. फिर उन्हें लोहे की एक छड़ के, दोनों सिरों पर फसा कर भारोत्तोलन का प्रयास करने लगा। चक्की के पाट बहुत भारी थे। प्रथम प्रयास में ही उसके पीठ में दर्द जागा और वह चीख पड़ा।

उसकी चीख सुनकर माँ रसोईघर से दौड़ती हुई आ गयी। उदय की पीठ में असहनीय पीड़ा हो रही थी। उन्होंने उदय को तब कुछ नहीं कहा। वे उदय को एक तरह से एक अच्छा लड़का मानती थी। उदय जब कुछ राहत-सी महसूस करनेे लगा तो उन्होंने कहा, "बेटा, तुम्हें आज यह क्या सूझी?"

जवाब में उदय की आँखें भर आयीं, "माँ, आज स्कूल में मदन ने फिर मेरा हाथ उमेठ दिया। वह मुझसे बहुत तगड़ा है। मैं उससे भी जयादा तगड़ा बनूँगा।"

"अच्छा, पहले यह बताओ, स्कूल में तुम्हारे अध्यापक किसे अधिक चाहते हैं, तुम्हें या मदन को?"

"मुझे।"

माँ ने उसे समझाया "तुम्हारी बातों से स्पष्ट है कि मदन में शारीरिक बल है, बुद्धि नहीं है। बुद्धिमान आदमी अपने गुण की डींगे नहीं हाँकता। तुम चाहो तो अपनी बुद्धि के बल पर उसका घमंड दूर कर सकते हो।"

माँ के समझाने से उदय को नई शक्ति मिली! वह सोचने लगा। सोचते-सोचते उसकी आँखें खुशी चकम उठीं।

अगले दिन खेल के मैदान में उदय अपने कुछ मित्रो के साथ खड़ा था। तभी वहाँ मदन भी आ गया। अपनी आदत के मुताबिक आते ही उसने डींग हांकनी शुरू की, "देखो, मैं यह पत्थर कितनी दूर फैंक सकता हूँ।" इतना कह कर वह एक भारी से पत्थर को फेंक कर दिखाने लगा।

"मदन, मुझसे मुकाबला करोगे?" मदन ने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा।

"ज्यादा घमंड ठीक नहीं होता," उदय ने अपना ध्यान उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा "इस रूमाल को ही ज़रा उस पत्थर तक फेंक कर दिखा दो।"

"बस ये...ये लो।" मदन ने पूरी ताकत से रूमाल फेंका। रूमाल हवा में लहराता हुआ पास ही गिर गया।

उदय ने हँसते हुए कहा, "तुम इस ज़रा से रूमाल को ही नहीं फेंक पाए, पर मैं इस रूमाल के साथ-साथ एक पत्थर को भी तुमसे अधिक दूरी पर फेंक सकता हॅूँ।" यह कह कर उदय ने रूमाल में पत्थर लपेटा और उसे काफी दूर फेंक दिया। सभी लड़के जोर-जेार से तालियाँ बजाकर हंसने लगे। मदन का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया।

शाम को उदय खुशी-खुशी स्कूल से वापस लौट रहा था। वह आज की घटना जल्दी से जल्दी अपनी माँ को बताना चाहता था।

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