अक्षय खन्ना की दूसरी पारी और राजमा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2019
भूतपूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह के जनसंपर्क अधिकारी द्वारा लिखी किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' से प्रेरित फिल्म असफल रही परंतु उसमें जनसंपर्क अधिकारी की भूमिका अक्षय खन्ना ने प्रभावोत्पादक ढंग से अभिनीत की। भाजपा में विश्वास रखने वाले अनुपम खेर ने विरोधी दल के नेता की भूमिका अभिनीत की जिसमें वे अपने भीतरी द्वंद्व से उबर ही नहीं पाए। संभवत: उनके कॅरिअर का सबसे बुरा अभिनय रहा। उन्हें यह भूमिका अस्वीकृत करना चाहिए थी, क्योंकि सारे समय वे कांग्रेस विरोध का प्रलाप करते रहते हैं तो कांग्रेसी प्रधानमंत्री की भूमिका कैसे कर पाते। अपने लोभ पर नियंत्रण करना कठिन होता है।
सुपर सितारे रहे विनोद खन्ना के सुपुत्र अक्षय खन्ना को प्रकाश मेहरा ने 'हिमालय पुत्र' नामक फिल्म में प्रस्तुत किया। उस दौर में उन्होंने ऋषि कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म 'आ अब लौट चलें' में नायक की भूमिका अभिनीत की। ऐश्वर्या राय अभिनीत इस फिल्म में राजेश खन्ना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की थी। यह फिल्म असफल रही। नदीम-श्रवण का संगीत भी पसंद नहीं किया गया। इस फिल्म की शूटिंग के समय ही ज्ञात हुआ कि अक्षय खन्ना को राजमा खाना बहुत पसंद है। उसी दौर में सुभाष घई ने भी अपनी फिल्म 'ताल' में अक्षय खन्ना और ऐश्वर्या राय को लिया। एआर रहमान ने फिल्म में मधुर संगीत दिया। पहली बार आनंद बख्शी और एआर रहमान ने जुगलबंदी की। कर्णप्रिय संगीत के बावजूद फिल्म असफल रही। इस तरह अपने प्रारंभिक दौर में अक्षय खन्ना ने लगभग एक दर्जन असफल फिल्मों में अभिनय किया। इन सारी फिल्मों के असफल होने की जवाबदारी फिल्मकारों की है परंतु ठीकरा अक्षय खन्ना के सिर पर फोड़ा गया। कोई मजबूत व्यक्ति भी इन असफलताओं से टूट जाता परंतु राजमा पसंद करने वाले अक्षय खन्ना अलग मिट्टी से बने थे। ज्ञातव्य है कि अक्षय अपने पिता विनोद खन्ना की पहली पत्नी से जन्मे हैं। एक दौर में विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन समान कद के सितारे माने जाते थे परंतु विनोद खन्ना आचार्य रजनीश के साथ अमेरिका चले गए। उन्होंने अभिनय क्षेत्र के सिंहासन के निकट पहुंचकर उस पर विराजने से आध्यात्म की राह पर चलना बेहतर समझा परंतु उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं हुई और शिखर सितारा पद वे स्वयं छोड़ चुके थे। गोयाकि वे उस तरह के सिद्धार्थ रहे जिसे न ज्ञान प्राप्त हुआ न ही राज किया। इस तरह की दुविधा अक्षय खन्ना ने कभी नहीं पाली। उनकी विचार प्रक्रिया में किसी तरह की दुविधा नहीं रही। उनका लक्ष्य हमेशा यह रहा कि बेहतर काम करते हुए स्वयं को सभी प्रकार की प्रतियोगिताओं से दूर रखना है। गोयाकि संसार में रहते हुए सांसारिकता से कोई मोह नहीं रखना है। इसी बात से याद आता है साहिर लुधियानवी का गीत जो उन्होंने केदार शर्मा की फिल्म 'चित्रलेखा'के लिए लिखा था। ज्ञातव्य है कि यह फिल्म भगवती चरण वर्मा के उपन्यास से प्रेरित है। गीत इस तरह है...'संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे/ इस लोक को अपना न सके, उस लोक को तुम क्या पाओगे/ ये पाप है क्या, ये पुण्य है क्या, पर धर्म की मोहरें हैं/...यह भोग भी एक तपस्या है, तुम त्याग के मारे क्या जानो/ अपमान रचयिता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे/ हम जन्म बिताकर जाएंगे, तुम जन्म गंवाकर जाओगे...।'
बहरहाल अक्षय खन्ना की चरित्र भूमिकाओं वाली दूसरी पारी अत्यंत सार्थक मानी जा सकती है। उन्होंने श्रीदेवी केंद्रित फिल्म 'मॉम' में इंस्पेक्टर की भूमिका निभाई। अत्यंत सफल व कमजोर फिल्म 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में भी उनके अभिनय को सराहा गया। अक्षय खन्ना पटकथा से ऊपर उठकर अभिनय कर पाते हैं। गोयाकि खराब निर्देशन और कमजोर लेखन के बावजूद वे भूमिका में जान फूंक देते हैं और यही कलाकार की क्षमता की अग्नि परीक्षा है। उन्हें अपनी दूसरी पारी में पहली पारी से अधिक धन मिल रहा है और फिल्म बाजार में उनकी मांग बढ़ती जा रही है। सफलता के इस दौर में भी राजमा ही उनकी पसंद का भोजन है। कुछ लोग सफलता के दौर में मुर्गी व मांस खाकर इतराते हैं। आज का रईस खाता कम और प्लेट में छोड़ता ज्यादा है परंतु इस हिमालय पुत्र ने अपनी जमीनी हकीकत को हमेशा अपनाया है। याद आता है कि अमेरिका के ऑरेगॉन में विनोद खन्ना की भेंट अपने हमशक्ल से हुई थी। उससे उन्होंने वार्तालाप किया। उस व्यक्ति ने बताया कि वह स्वयं और उसके पिता, दादा, नाना कभी भारत नहीं आए। मान्यता है कि समान शक्ल के सात व्यक्ति एक कालखंड में अलग-अलग स्थानों पर जन्म लेते हैं। यह विचारणीय है कि राजमा की भूमिका अक्षय खन्ना के जीवन में क्या है? यह कोई पारिवारिक परंपरा नहीं है। राजमा में प्रोटीन की मात्रा अन्य पदार्थों की तुलना में अधिक है। मांस, मुर्गी से भी अधिक प्रोटीन राजमा में है। ज्ञातव्य है कि 14 किलोमीटर ऊंचाई पर बने वैष्णो देवी के मंदिर की पालकी यात्रा कराने वाले मजदूर दिन में तीन बार यह यात्रा करते हैं और राजमा ही उन्हें इतनी शक्ति देता है कि 50 कोस अमीरों को ढो सकें। चींटी अपने वजन से 50 गुना अधिक भार ढो लेती है।