अक्स / अर्चना राय
"अरे रघु सुनो जरा!"
"जी बेबी साब।"
"अरे! वहाँ दरवाजे पर क्यों खड़ा है, यहाँ आकर बैठ न, मेरे पास..."
"नहीं बेबी साब, नौकर की क्या औकात जो मालिक के साथ बैठे, मैं यहीं ठीक हूँ।"
"कौन नौकर? तू होगा मेरे बाप का नौकर, मेरा नहीं।"-अभी अभी नहा कर आई वह तरूणी अपने गीले वालों से पानी की लढियों को झटकते हुए बोली।
"क्या फ़र्क़ पड़ता है। आपके पिता ने मुझे आपकी हिफ़ाज़तके लिए ही रखा है।"-ज़मीन को घूरते हुए वह बोला।
"अच्छा छोड़ सुन न, तुम मुझे बहुत अच्छा लगता है।"-बात बदलते हुए वह बोली।
"तेरी बड़ी-बड़ी आंखें, भोली-सी सूरत और हकलाते हुए बोलना, सब कुछ बहुत भाता है।"
"बेबी साब! यह क्या कह रही हैं? आपको ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।"
"मैं एक लड़की हूंँ और तू एक लड़का, अपने दिल की बात कहने में क्या ग़लत है।"-अपनी झील-सी गहरी आंखों में काजल डालते हुए वह बोली।
"नहीं बेबी साहब, यह ठीक नहीं है।"
"मैं जानती हूंँ, तू भी मुझे पसंद करता है।"
"नहीं, ...आपको कुछ गलतफहमी हुई है।"
"पर तू मेरी जिस तरह से परवाह और हिफ़ाज़तकरता है, मेरी हर छोटी बड़ी चीज का ध्यान रखता है। और कल तो तू दुश्मन के इलाके से अपनी जान जोखिम में डालकर, मुझे बचाकर लाया उससे, मैं क्या समझूं?"-अपने उजले माथे पर बिन्दी लगाते हुए बोली।
"यह तो मेरा फ़र्ज़ था।"
"अरे चार और भी मुस्टंडे थे, हिफ़ाज़तके लिए, पर वे सब भाग गए और तू खड़ा रहा।"-होठों पर लिपस्टिक लगाते हुए वह अदा से बोली। वह उसे रिझाने में कोई कसर नहीं छोडना चाहती थी।
"और तू यह नीचे देख कर क्यों बात कर रहा है, मेरी तरफ़ देख न!"-थोड़ा झल्लाते हुए वह, उसकी झुकी हुई गर्दन को उसकी ठोड़ी पकड़कर ऊपर करते हुए बोली।
"नहीं, ... नहीं देख सकता।"-हाथ झटक कर पीठ देकर खड़ा हो गया।
"क्यों, नहीं देख सकता, मेरी सूरत इतनी बुरी है क्या?"-आईने को हाथ में लेकर ख़ुद को निहारते हुए वह विचलित होकर बोली।
"क्योंकि ...आपकी आपके चेहरे में, मुझे मेरी मरी छोटी बहन दिखाई देती है"
अचानक उसके हाथ से आइना छूटकर ज़मीन पर गिर कर टुकड़े-टुकड़े हो गया और हर टुकड़े में उसे अपना एक अलग ही चेहरा दिखाई दे रहा था।