अगनपाखी / मैत्रेयी पुष्पा / पृष्ठ 2

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हलफनामा। उज्रदारी।

मैं भुवनमोहिनी, पत्नी स्वर्गीय विजयसिंह वल्द स्वर्गीय दुरजयसिंह, निवासी ग्राम विराटा, जिला झाँसी, यह दावा करती हूँ कि मैं अपने पति के हिस्से की चल-अचल सम्पत्ति की हकदार हूँ। मुझे इत्तला मिली है कि मेरे पति के साथ मुझे भी मृतक दिखाया गया है और मेरे जेठ कुँवर अजयसिंह ने अपने अकेले का हक बरकरार रखा है। क्योंकि स्व. विजयसिंह की कोई सन्तान नहीं। कचहरी से अर्ज है कि अपने पति की जायदाद का हक सौंपा जाए। मैं कुँवर अजयसिंह की हकदारी पर सख्त एतराज करती हूँ।

बकलम खुद-भुवनमोहिनीतहसील में जब अर्जी पढ़ी गयी तो जानकार लोग सन्न से रह गये। कुँवर अजयसिंह का चेहरा पीला पड़ गया जैसे उन्होंने सामने खड़ी बाघिन देख ली हो, जबकि वहाँ कोई स्त्री उपस्थित नहीं थी। जो कुछ उनसे पूछा गया, उसका वे जवाब दें, उससे पहले बोले, ‘‘मैं गाँव के लोगों को गवाहों के रूप में पेश करना चाहता हूँ। जिसने यह दरख्वास्त दी है, वह हमारा कोई छिपा हुआ दुश्मन है। मेरा भाई मर चुका है और उसकी घरवाली ने बेतवा नदीं में डूबकर जान दे दी थी। सारा गाँव साक्षी है। मुझे समय चाहिए।’’

गाँव में हल्ला हो गया, विजयसिंह की औरत ने देवी का अवतार ले लिया। कचहरी हिला दी। नहीं, उसका पुनर्जन्म हुआ है। कैसा पुनर्जन्म, चुड़ैंल योनि में आ गयी है।

महज चार महीना ! इतनी जल्दी अवतार लिया, कचहरी को ललकारने लगी ! चमत्कार हो गया। किसी किसी ने कहा-पुजारी मर गया, करामात छोड़ गया ! इलाके में हलचल है।

मंदिर में वह पुजारी नहीं, उसकी बदली हुई कथा नहीं, मगर पूजा देने वालों में भुवन का किस्सा है। कब से चला आ रहा इतिहास...दांगी की बेटी देवी दुर्गा की कथा और बलिदानों का सिलसिला पलटता है। भक्त जन आह भरते हैं-यह कैसा महापाप हुआ देवी !