अगर यह सोना मिल भी जाए तो क्या है... / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अगर यह सोना मिल भी जाए तो क्या है...
प्रकाशन तिथि : 21 अक्तूबर 2013



गड़े हुए खजाने की तलाश पर दुनिया के कई देशों में अनगिनत फिल्में बनी हैं और किताबों का भी अंबार लगा है। अनर्जित धन हथियाने की इच्छा बलवती होती है और तरह-तरह की कपोल कल्पना को जन्म देती है, यहां तक कि वर्षों पहले कोई चाचा सात समंदर पार गया था और अपनी अकूत जायदाद कपोल कल्पनाओं में खोए हुए भतीजे के लिए छोड़ गया है। तांबे की चूडिय़ों को सोने में बदलने का झांसा आज भी दिया जाता है। सोने के निर्माण के कीमिया अर्थात रसायन ने उतने ही लोगों को ठगा है जितने जवान बने रहने की औषधि ने। यहां तक कि यथार्थ की कहानी भी हमें कुछ नहीं समझा पाई कि पुत्र से जवानी उधार लेने का परिणाम भी सुखद नहीं होता। बूढ़े शांतनु की इच्छा पूरी करने के लिए भीष्म ने ऐसी शपथ खाई कि हस्तिनापुर का इतिहास ही बदल गया और कुरुक्षेत्र में अनगिनत निर्दोष लोगों का भी खून बहा। कुछ चतुर लोग जानते हैं कि चिरयौवन और सोने की चाह में गहरा संबंध है, इसलिए जवानी के जोश की औषधि के नाम पर स्वर्ण भस्म का छलावा भी कम लोकप्रिय नहीं रहा और सामंतवाद के दिनों में इसका अच्छा-खासा व्यवसाय रहा है।

बहरहाल, सोने की प्राप्ति या अवसरों की उपलब्धि के लिए 'एलडोरेडो' शब्द का इस्तेमाल होता है और अनेक देशों में अनगिनत लोग एलडेरिडो की तलाश में अमेरिका आए और पूंजीवादी संस्कृति को अपना सबसे हृदयहीन स्वरूप प्राप्त हुआ। 'मैकनाज गोल्ड' नामक हॉलीवुड फिल्म खूब सफल रही थी। 'एलडोरेडो' नामक फिल्म भी बनाई गई। सनी देओल और विवेक ओबेरॉय अभिनीत 'नक्शा' इस श्रृंखला की ही भारतीय फिल्म थी। विजय आनंद की 'छुपा रुस्तम' भी हिमाचल के नीचे दबे सोने की खोज की कथा थी। इसमें देवानंद और हेमामालिनी जैसे प्रसिद्ध सितारे थे। स्टीवन स्पिलबर्ग ने 'रेडर्स ऑफ द लास्ट आर्क' में भी खजाने की खोज के विचार को ही अलग स्वरूप दिया था। 'नक्शे' के दो टुकड़ों को जोडऩे के लिए अनेक फिल्मों में रहस्य और रोमांच को गूंथा गया है। सिनेमा की ऊर्जा रही है मनुष्य की अनर्जित धन की लालसा। इस आदिम अदम्य इच्छा का फल कितना दुखद हो सकता है इसे विश्व सिनेमा के प्रथम दार्शनिक कवि चार्ली चैपलिन ने अपनी 'गोल्डरश' में एक दृश्य रखा है कि इस मृगमरीचिका के पीछे भागते हुए लोग भूख से इतने पीडि़त हैं कि चमड़े के जूते के तल्ले को खाने के लिए उबाल रहे हैं और चैपलिन पूरी संजीदगी से तल्ले के कील ऐसे निकाल रहा है मानो गोश्त से हड्डी निकालकर खा रहा हो। एक सदियों पुरानी लालसा के इस भयावह अंजाम को हास्य दृश्य की तरह प्रस्तुत किया गया है।

सोने के मूल्यवान होने के साथ ही उसके भ्रम होने के दिव्य सत्य को हमारे धार्मिक आख्यानों में भी प्रतीकात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। सीता के आग्रह पर राम का सोने के हिरण का पीछा करना और परिणामस्वरूप सीता का रावण द्वारा अपहरण और महाभारत में माद्री के आग्रह पर पांडू का हिरण के भ्रम में ऋषि को मारना और शापग्रस्त होना तथा संपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण के पैर के तलवे को हिरण समझने के कारण तीर चलाना और उनका नश्वर देह को छोडऩा इत्यादि के साथ ही यह भी गौरतलब है कि हिरण को ही नहीं ज्ञात कि उसके पैर से ही वह सुगंध आ रही है जिसकी तलाश में वह उम्र की छलांग लगाता रहता है। इस विषय पर 'अलकेमिस्ट' लोकप्रिय किताब है। बहरहाल, आजकल भारत में सोने के लिए खुदाई चल रही है और क्या सचमुच में सोना मिलने पर देश से अभाव मिट जाएंगे और किसी की आंख में आंसू नहीं होंगे या मिलकर भी यह निकम्मेपन और रिश्वतखोरी में लुट जाएगा? अनर्जित गड़े धन से देश नहीं बनता। वह परिश्रम, प्रतिभा और अपार मेहनत से बनता है। सोने की चिडिय़ा के रूप में भारत के कभी लोकप्रिय होने के कारण ही लुटेरों ने आक्रमण किया था। हम न इतिहास से सीखते हैं, न धार्मिक आख्यान से। सोने की लंका में जैसे कुंभकरण सोता था, वैसे ही सोते हुए लोगों का देश है।