अगिनदेहा, खण्ड-10 / रंजन

Gadya Kosh से
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सक्सेना की चमचमाती पुरानी ऑस्टीन कार 'जानकी कुटीर' के पोर्टीको में प्रवेश कर रही थी। मैडम ललिता को आश्चर्य हुआ। उसने अपनी कलाई घड़ी में देखा, साढ़े पांच बज रहे थे। सक्सेना हमेशा सूरज डूबने के बाद ही आता था। आज इस समय कैसे?

-'हैलो डार्लिंग! आज इस वक़्त? बहुत लेट जा रही हो!' पोर्टिको में आकर सक्सेना ने अपना सर बाहर निकाल कर मैडम से पूछा। तभी उसकी नज़र रज्ज़ू पर पड़ी, -' हू इज योर कम्पैनियन? मैडम के जवाब के पूर्व ही उसने दूसरा प्रश्न किया।

-'माई फ्रेंड...लेकिन सर आप आज इस समय? सो...अर्ली?'

सक्सेना ने कार से बाहर आकर जवाब दिया-'आज सुबह से बोर हो रहा था और घड़ी की रफ़्तार भी कम हो गई थी। सोचा तुम्हारे बॉस के साथ थोड़ी देर बिलियर्ड खेल कर टाईम पास करूँगा।' अपनी बात कह कर वह रज्ज़ू को ऊपर से नीचे तक देखने लगा तो मैडम ललिता ने रज्ज़ू का परिचय कराया फिर कहा,

-'ये दोस्त तो भारती जी के हैं लेकिन आज मैंने भी इनसे दोस्ती कर ली है।'

-'वन्डरफुल।' सक्सेना ने रज्ज़ू की ओर देखते हुए-'लक्की ब्वाय' कहा और फिर ललिता को देखते हुए मुस्कुराया-'कभी हम ग़रीब पर भी नज़रे-ईनायत करो डार्लिंग। हम भी तुम्हारी दोस्ती के पुराने तलबगार हैं।'

सक्सेना की बात पर मैडम ललिता जोर से हँस पड़ी। सक्सेना ने 'ओ. के. बाय एण्ड हैव नाईस टाईम' कहा और बढ़ गया, लेकिन दो कदमों के बाद ही पलटा-'मैडम...जाना किधर है?'

-'बस मार्केट तक!'

सक्सेना ने गाड़ी की चाबी मैडम को पकड़ा कर कहा-'ले जाओ इसे। देर हो तो नो प्रॉब्लम...मैं तो यहीं हूँ। आओगी तो पोर्टिको में पार्क कर देना।' और सक्सेना तेज कदमों से श्रीवास्तव के लिविंग की तरफ़ बढ़ गया।

मैडम ललिता कुछ देर वहीं रूकी, सोचती रही, फिर उसने निर्णय लिया-'चलिए रज्ज़ू जी बैठिये अंदर।'

सक्सेना अपनी आदत के अनुसार, जब 'जानकी कुटीर' आया तो उसने ब्लू फेडेड जीन्स पर ब्राईट ब्लू धारियों वाला सफे़द टी-शर्ट पहना था और पैरों में सफे़द कैनवास का फीतों वाला जूता। बालों को उसने शायद आज ही बरगण्डी कलर से डाई किया था जिस पर लगे वेट-हेयर-क्रीम बेहद चमक रहे थे।

यूं ताज़ा-ताज़ा बना-सँवरा सक्सेना, हँसता-मुस्कुराता जब श्रीवास्तव की लिविंग में पहुंचा तो उसने देखा श्रीवास्तव के साथ बेबी बिलियर्ड्स टेबल पर जमी थी। स्नूकर खेला जा रहा था और इस वक़्त स्टिक श्रीवास्तव के हाथ में थी।

सक्सेना की आमद से बेख़बर श्रीवास्तव, अपनी कमर को झुकाए, स्टिक की बो से बॉल को देखते हुए, अपना निशाना पक्का कर रहा था। काजल ने किचन से ही सक्सेना को देखा और वहीं से मुस्कुराई. सक्सेना के पैर उधर ही बढ़ गये।

-'कैसी हो डार्लिंग?' काजल के पास पहुँच कर सक्सेना ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए आगे कहा-'फ़ालतू की चर्बी इकट्ठी कर रही हो डार्लिंग, अब थोड़ी कम करो।'

काजल ने कुछ नहीं कहा। केवल मुस्कुराती रही। सक्सेना के हाथ हमेशा की तरह काजल के कंधे पर जाकर रूक गये। फिर उसने भी मुस्कुराते हुए कहा-

-'मैंने तुम्हें हर्ट करने के लिए नहीं कहा था स्वीट-हार्ट। मोटी होने पर भी तुम अच्छी लगती हो।'

काजल ने नक़ली नाराज़गी में आँखों तरेरी तो उसने माफ़ी माँगने वाले अंदाज़़ में अपने हाथ हटाते हुए कहा-

-'ओ. के...ओ. के. स्वीट-हार्ट...इट्स ओ.के. नाउ टेक इट इज़ी... मैंने तो तुम्हारी ब्यूटी को एप्रिसियेट ही किया है डार्लिंग।' ... अपनी बात कह कर सक्सेना ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे के साथ थम्स डाऊन कर के कहा-'मेक ए स्मॉल फ़ॉर मी। मैं बिलियर्ड्स पर जा रहा हूँ।'

काजल का सर सहमति में डोला और सक्सेना किचन से निकल कर बिलियडर््स टेबल की ओर बढ़ गया।

श्रीवास्तव ने कैनन बनाने के लिए शॉट मारा था जो असफल हो गया उसने अपने दोनों कंधे उचका कर अपनी बेवसी ज़ाहिर की और बेबी को स्टिक देकर कहा, -'तुम्हारा यह स्नूकर मुझे कभी शूट नहीं करता। मैं सिर्फ़ बिलियर्ड्स ही इंज्वाय करता हूँ।'

-'असल राज़ क्यों नहीं खोलते,' सक्सेना ने दूर से ही श्रीवास्तव की बात का जवाब दिया, -'साफ़ क्यों नहीं कहते कि स्नूकर के तीन बॉल वाला गेम तुम खेल नहीं सकते-दिमाग़ लगाना पड़ता है। बिलियर्ड्स में बॉल की भीड़ रहती है...ग़लत निशाना भी हो तो भीड़ में कहीं-न-कहीं तो लगेगा ही।'

सक्सेना की बात पर बेबी मुस्कुराई लेकिन श्रीवास्तव खुल कर हँसने लगा। अब तक सक्सेना पास आ चुका था। उसने बेबी से अपनी बात की तस्दीक़ चाही-'क्यों डार्लिंग! मैंने सही कहा न?'

-'येस अंकल, यू आर एबसोल्यूट्ली राईट। इसीलिए पापा हमेशा स्नूकर से भागते हैं।' कह कर बेबी भी हँसने लगी।

सक्सेना की नज़र स्टिक-स्टैण्ड के पास टंगी स्कोर बोर्ड पर चली गई. उसने देखा, बेबी के स्कोर में अड़तालीस प्वांयट थे और श्रीवास्तव ने अपना खाता भी नहीं खोला था। वह मुस्कुराया और लकड़ी की जाली वाले बेंच पर जा बैठा। इसी समय पैग वाले जाम में आधा पैग व्हिस्की उसके पास आ गयी।

बेबी अपने स्टिक की बो पर खल्ली रगड़ रही थी और श्रीवास्तव मुस्कुराता हुआ सक्सेना को देख रहा था।

-'मुस्कुरा क्यों रहा है? तू भी मंगा ले अपने लिए.' सक्सेना ने कुढ़ते हुए कहा।

बेबी ने मुड़ कर देखा और प्रतिवाद में कहा-'ये क्या पापा...अभी से?'

श्रीवास्तव कुछ कहता कि सक्सेना हँस पड़ा और हँसते हुए ही उसने बेबी से कहा-'क्या अभी से? अरे यह तो ऑफ़िस में बैठा-बैठा सारे दिन बीयर पीता रहता है और बिलियर्ड्स से उठ कर व्हिस्की पीयेगा ही। फिर तुम क्यों ऑब्जेक्ट कर रही हो कि अभी से ही।'

-'तुम दोस्त हो या।' श्रीवास्तव ने सक्सेना से कुछ कड़ी बात कहनी चाही, लेकिन बीच में ही रुक गया और सक्सेना ठठा कर हँस पड़ा। उसके काले मसूढ़े पूरी तरह से नुमायां हो गये। उसकी हँसी रुकी तो उसने किचन की तरफ़ चेहरा घुमा कर ज़ोर से कहा-'काजल! प्लीज़ सेन्ड वन मोर स्मॉल फॉर योर बॉस।' फिर उसने श्रीवास्तव को आहिस्ता से कहा-'नाराज़ क्यों होते हो यार...आती है तुम्हारे लिए भी।'

-'आज शिड्यूल से एडवांस कैसे आ गए!' श्रीवास्तव ने अब सहज होकर पूछा।

-'आ गया बस...आज मेरी भी एक गेम खेलने की इच्छा हो गई.'

-'दैन ज्वायन बेबी, यह तो लगातार कैनन मार रही है आज।'

-'इसके कैनन से ही तो इसके मूड का पता चलता है। जब अच्छे मूड में होती है तो उस दिन इसका फ़ार्म ही अलग होता है।' सक्सेना की बात को डिट्टो करते हुए श्रीवास्तव ने कहा-'बिल्क़ुल ठीक कहा तुमने, आज बेबी बहुत ख़ुश है।'

-'एनी थिंग स्पेशल?' सक्सेना ने मुस्कुराते हुए पूछा।

-'येस! शी हैज मेड हर फ़र्स्ट व्वाय फ्ऱेंड।' कहकर श्रीवास्तव हँस पड़ा तो सक्सेना ज़बरदस्ती मुस्कुराया। उसने व्हिस्की की एक चुस्की ली। जीभ से होठों का चटकारा लिया फिर कहा-'ओह, रियली! हू इज ही?'

बेबी ने मचलते हुए नाराज़गी में कहा-'ओह...पापा!'

लेकिन श्रीवास्तव ने बगै़र बेबी को देखे सक्सेना से कहा, -'अपने आर्टिस्ट का क्लास-फ्रें़ड है वह।'

-'रज्ज़ू?' सक्सेना ने चौंक कर पूछा।

श्रीवास्तव भी चौंका। उसने पूछा-' तुम जानते हो उसे?

सक्सेना ने कुछ नहीं कहा। वह बेंच पर बैठा अपनी व्हिस्की चुसकता रहा। श्रीवास्तव ग़ौर से उसे घूर रहा था तभी उसके लिए व्हिस्की आ गई.

सक्सेना ने वातावरण को रहस्यमय कर दिया था। हाथों में स्टिक पकड़े बेबी भी उसी की तरफ़ देखने लगी और व्हिस्की पकड़े श्रीवास्तव भी सक्सेना को घूरता रहा।

अपनी बची हुई सारी व्हिस्की एक बार ही गटक कर सक्सेना ने बेंच में बने ग्लास होल्डर में फंसा कर श्रीवास्तव को देखा और कहा-'जानता हूँ मैं। अभी-अभी पहली बार देखा है। वेरी इनोसेंट लुकिंग ब्वाय। लेकिन जब तुमसे जाना कि वह बेबी का ब्वाय फ्रें़ड है तो मुझे ख़ुद पर कोफ़्त हुई. क्या हो गया है मुझे! मैं तो सोचता था, अपनी आँखों के एक्स-रे से मैं किसी भी उड़ती चिड़िया को देखते ही पहचान सकता हूँ। बट सौरी, दिस टाईम आई फेल्ड। वह तो बेहद चालू है यार।' सक्सेना की अंतिम पंक्ति ने विस्फोट किया। बेबी तो चुप रही लेकिन श्रीवास्तव ने रियेक्ट किया।

-'क्या कहते हो सक्सेना। ... कहते हो, अभी-अभी देखा है उसे और देखते ही कमंेंट भी पास कर दिया?'

सक्सेना फिर मुस्कुराया-'तो एक्सप्लेन करना होगा मुझे।' एक नज़र उसने बेबी को देखा फिर श्रीवास्तव से कहना शुरू किया-'तुम्हारे पोर्टिको पर ललिता के साथ था वह। दोनों साथ-साथ निकल रहे थे। मैंने जब मैडम से पूछा तो पता है उसने मुझे क्या कह कर उससे इंट्रोड्यूस कराया?'

-'क्या?' श्रीवास्तव ने उत्सुकता से पूछा तो सक्सेना ने फिर विस्फोट किया, -'मैडम ने मुस्कुरा कर उसे अपना ब्वाय-फ्ऱेंड बताया और श्रीवास्तव! उस समय उसकी आँखों की चमक और उसके चेहरे की ख़ुशी देखकर, मुझे लगा कि मैडम ललिता ने अपनी उम्र को वापस ढकेल दिया है।'

अपनी बात समाप्त कर वह मौन हो गया। श्रीवास्तव ने बड़ी मेहनत कर अपने चेहरे पर आने वाले भाव को रोका। उसे यह जानकर ख़ुशी हुई कि मैडम ने उसकी बात को इतनी जल्दी अंजाम देना शुरू कर दिया था। तभी दोनों चौंके, बेबी तेज कदमों से आगे बढ़ी। श्रीवास्तव ने उसे रोका भी, परन्तु वह पैर पटकती हुई लिविंग से बाहर निकल गई.

मैडम ललिता, रज्ज़ू के साथ जहां आकर बैठी, वहाँ से सूरज का डूबता गोला और गंगा जल में पड़ रहा उसका प्रतिबिम्ब बड़े मोहक थे। हरी-भरी घास वाले क्लब के खुले विस्तृत मैदान के अंतिम छोर पर जहां मैडम, प्लास्टिक की कुर्सियों पर रज्ज़ू के साथ बैठी, वहीं से कंक्रीट की रेलिंग पूरे मैदान में गुज़री थी। गंगा की धारा पचास फ़ुट नीचे बह रही थी। रेलिंग के पास खड़े होने पर विशाल पत्थर के बोल्डर्स नज़र आते थे जो पैंतालिस डिग्री के कोण पर नीचे तक जड़े थे।

क्लब का विस्तृत मैदान दर्जनों छतरियों से भरा था, जिनकी छाँह में कुर्सियां और टेबल रखे थे। छतरियों के अतिरिक्त कई पाईप भी गड़े थे जिनके सिरों पर सफे़द प्लास्टिक के ख़ोल में बिजली के बल्ब लगे थे। इन्हीं पाइपों में छोटे-छोटे स्पीकर भी थे जो क़रीब जाने पर ही दिखते थे। सदस्यों का आवागमन देर शाम के बाद प्रारंभ होता था इसीलिए मैडम ललिता और रज्ज़ू के अतिरिक्त सारे मैदान खाली था।

क्लब में ऑस्टिन के प्रवेश के साथ ही सिक्यूरिटी का लड़का दौड़ा आया था। उसने ससम्मान पहले कार का बायां दरवाज़ा खोला। रज्ज़ू के उतरते ही उसने उसे बेआवाज़ बंद किया और चक्कर काट कर दाहिना दरवाज़ा खोल दिया। मैडम ने बाहर आकर उसे पार्किंग के लिए कहा और रज्ज़ू के साथ पोर्टिको की तरफ़ बढ़ गई. सिक्योरिटी वाले लड़के ने बड़ी दक्षता से कार को स्टार्ट किया और पार्किंग लॉट की तरफ़ बढ़ गया।

रज्ज़ू के लिए यह वातावरण बिल्क़ुल नया और उत्सुकता भरा था। उसने देखा पोर्टिको के बाद क़तार से कई कक्ष बने थे जिनके शीशे के दरवाज़ों पर नियोन ट्यूब्स के अक्षरों में, कहीं 'कान्फ्रें़स' कहीं 'गेम्स' लिखे थे। आगे के कक्षों में भी ऐसे ही अक्षर चिपके होंगे। रज्ज़ू ने देखा, रिसेप्सन काउंटर पर जाकर मैडम ने रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए. बाहर कैम्पस में सिक्यूरिटी के लड़के, पुलिस वाली खाकी वर्दी में थे। रज्ज़ू ने यहाँ मार्क किया, कुछ लड़के नीली पैंट, सफे़द क़मीज और नीली टाई में थे और कुछ नीली पैंट और सफे़द क़मीजों में।

मैडम ने रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद रज्ज़ू की हथेली पकड़ ली। सिहरन-सी दौड़ी उसकी रगों में। रज्ज़ू को साथ लिए वह आगे बढ़ गई. यह एक इनडोर प्लांट्स से सजा चौड़ा गलियारा था जिसके दाहिने खुले में तक़रीबन हजार वर्ग फ़ुट में डहलिया के फूल खिले थे। इसी के मध्य एक रास्ता चला गया था जिसके दूसरे सिरे पर नियोन ट्यूब से लिखा था 'आई एम हंगरी'। रज्ज़ू मुस्कुराया-तो यह रेस्टोरेंट है! ऐसे नाम चुनने की कारीगरी उसे अच्छी लगी।

मैडम आश्चर्यजनक रूप से मौन थी और पूरी शालीनता से रज्ज़ू का हाथ थामे हौले-हौले बढ़ी जा रही थी। कार में तो इसकी बातें ख़त्म ही नहीं होती थीं। कितनी बातें करती है यह? रास्ते भर वह सोचता रहा था और क्लब में प्रवेश के उपरान्त उसने अभी तक कुछ नहीं कहा था।

गलियारे के समापन के बाद विस्तृत हरा मैदान प्रारंभ हो गया था जिसके छोर पर कंक्रीट की रेलिंग लगी थी। रज्ज़ू ने मैदान में प्रवेश करते ही, दूसरे छोर पर लगा सिनेमा का स्क्रीन देखा। यह ज़रूर वाटर-प्रूफ़ होगा उसने सोचा, क्योंकि दो मोटे खम्भों से तना यह स्क्रीन खुले आकाश के नीचे था। इस स्थल की विशालता-विलासिता और वैभव ने उसमें हीन-भावना का संचरण कर दिया जिसे प्रयत्नपूर्वक छिपाये वह मैडम के साथ मैदान के छोर पर गड़ी छतरी तक आ पहुंचा।

तभी नीली पैंट और नीली क़मीज वाले एक लड़के ने तेज़ी से आकर, एक कुर्सी की पीठ पकड़ कर, उसे मैडम के लिए टेबल से दूर सरकाया और मैडम के बैठते ही वह रज्ज़ू के लिए दूसरी कुर्सी पर लपका।

दोनों के बैठते ही वह लड़का पीठ पीछे दोनों हाथ बांधे आदेश की प्रतीक्षा में ससम्मान खड़ा हो गया।

-'क्या लोगे?' मैडम ने मुस्कुरा कर पूछा और रज्ज़ू अंदर ही अंदर चौंका। मैडम अचानक आप से तुम पर आ गई थीं, लेकिन उसे अच्छा लगा। कितनी बड़ी हैं मैडम उम्र में और जब वह बार-बार रज्ज़ू जी-रज्ज़ू जी कह रही थी तो उसे बड़ा अटपटा लगा था। मैडम ने अचानक सम्बोधन बदल कर।

-'हैलो ऽ ऽ...मैंने पूछा था क्या लोगे?'

मैडम की बात पर उसकी तंद्रा टूटी, लेकिन उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या जवाब दे, फिर भी उसने हौले से कहा-'कुछ भी...जो आप चाहें!'

-'ओ.के.' वह लड़के की तरफ़ मुड़ी-'ब्रिंग सम लाईट स्नैक्स विद ब्लैक कॉफ़ी।'

लड़के ने सर हिलाया तो मैडम ने फिर कहा-'रुको और रज्ज़ू से पूछा -' तुम ब्लैक कॉफ़ी लेते हो? '

रज्ज़ू हिचकिचाया। दरअसल उसकी समझ में नहीं आया, यह ब्लैक कॉफ़ी क्या होती है। मैडम शायद समझ गई थी। वह मुस्कुराई और लड़के से कहा-'वन ब्लैक एण्ड वन विद डैस ऑफ़ मिल्क।'

-'येस मैडम!' उसने फिर सर झुकाकर कहा और मुड़ कर तेज़ी से चला गया।

अब मैडम रज्ज़ू से मुख़ातिब हुई. उसने पूछा-'तुम फ्ऱी क्यों नहीं होते?' क्षण भर बाद ही उसने फिर कहा-'एण्ड सॉरी, मुझे आप वाली फ़ारमेलिटी पसंद नहीं है इससे डिस्टेंस बढ़ जाता है, एण्ड आई डोंट लाईक डिस्टेंस्सेज़ इन फ्ऱेन्डशिप... राईट?'

रज्ज़ू कुछ न कह कर केवल मुस्कुराया तो उसने मचलते हुए कहा-'दिस इज फ़ाऊल...यह नहीं चलेगा। डोंट बी हेज़ीटेंट।'

मैडम कुछ देर रज्ज़ू को नशीली आँखों से देखती रही। उसके होंठ थोड़े फैले। अधरों पर मंद मुस्कुराहट थिरकी। फिर मुस्कुराते हुए ही मैडम ने कहा-' कम ऑन यार। यूं चुपचाप बैठे रहने के लिए ही हम आये हैं? ...अच्छा एक बात बताओ ...हम दोनों अब दोस्त हैं कि नहीं? ।

रज्ज़ू की चेतना में विनीता के कहे वाक्य गूंजने लगे। पहले उसने दोस्ती कबुलवाई और बाद में दोस्ती का स्तर पूछने लगी। उसे लगा मैडम भी उसी टैªक पर आगे बढ़ेगी। वह सोचने लगा। यह हाई-प्रोफ़ाईल सोसायटी क्या ऐसी ही है? इस सोसायटी में लोग कितनी आसानी से सेक्स के धरातल पर पहुंच जाते हैं। कोई लाज नहीं, कोई शर्म नहीं। इतनी सहजता से सेक्स के लिए पूछ लेते हैं जैसे चाय-पानी के लिए पूछा जा रहा हो।

सच तो यह था कि अपने से उम्र में बड़ी मैडम की मोहकता की रौब ने उसे पूरी तरह अपनी जकड़ में ले लिया था। इतनी सुन्दर-आकर्षक और मोहक औरत के सान्निध्य का नशा उसके संस्कारों की धज्ज़ियां उड़ा रहा था। क्या फिसल जाये वह मैडम के आगोश में? लेकिन इसकी परिणति क्या होगी? और फिर हो सकता है कि मैडम के लिए वह ग़लत सोच रहा हो। हो सकता है कि मैडम खुले विचारों वाली आधुनिका हो। ऐसी सुरूचि-सम्पन्न शालीन महिला के समक्ष अगर उसने कोई हल्की बात कह दी तो इसका नतीजा क्या होगा? तुरंत इनकी नज़रों से गिर जाएगा वह। नहीं वह सम्हालेगा ख़ुद को। कोई हल्की बात नहीं करेगा, मैडम से।

मैडम रज्ज़ू की आँखों में आँखें गड़ाये मंद-मंद मुस्कुरा रही थी जब रज्ज़ू ने निर्णय लेकर शांत-सहज शब्दों में कहा-'हम दोस्त हैं मैडम...लेकिन दोस्ती की मर्यादा में दोस्त।'

-'तुम कहना चाहते हो डिगनीफ्ऱायड फ्ऱेन्डशिप?'

-'येस मैम।'

मैडम की आँखों में अचानक ख़ुशी छलकने लगी। रज्ज़ू के लिए प्रशंसा के भाव आये, फिर भी उसने पूरी तरह तसल्ली कर लेने के लिए कहा-

-'यह तुम्हारी शर्त्त है?'

-' नहीं मैडम। शर्त्ताें पर दोस्ती नहीं हो सकती और मैं कन्डीशनल फ्रें़डशिप करना भी नहीं चाहता।

रज्ज़ू की बात पर हँस पड़ी मैडम।

हँसी रुकी तो उसने कहा-'मैं भी तो वही कह रही हूँ। फ्रेंडशिप में कन्डीशन्स क्यों? अगर बैरियर्स ही लगानी हो तो दोस्ती कैसी?'

रज्ज़ू की बात का उन्होंने विपरीत विश्लेषण कर दिया और मुस्कुरा कर रज्ज़ू की प्रतिक्रिया देखने लगी। इसी समय ब्लू यूनिफ़ार्म वाला लड़का तेज़ी से आ पहुँचा। उसने स्नैक्स, कॉफ़ी और दो ग्लासों के अलावा मिनरल वाटर के बोतल सजा दिए.

-'एनी थिंग मोर मैडम?' उस लड़के ने बड़ी विनम्रता से पूछा।

मैडम ललिता ने नज़रें उठाईं-'येस, प्लीज़ ब्रिंग वन पैडस्टल फ़ैन हियर।'

मैडम के कहते ही उसने सर हिलाया और तेज़ी से चला गया। मैडम ने रज्ज़ू को देखा-'अभी तक हवा में गर्मी है।'

रज्ज़ू ने सहमति में सर हिलाया और कॉफ़ी का जग उठा लिया। -'कुछ ड्रिंक्स वगैरा लौगे?' मैडम ने पूछा।

-'ड्रिंक्स?' रज्ज़ू ने पूछा तो मैडम मुस्कुराई.

-'क्यों ड्रिंक्स नहीं लेते?'

-'नो मैडम।'

-'ओकेज़नली?'

-'नो।'

-'कुछ सिगरेट वगै़रह चाहिए?'

-'मैं सिगरेट नहीं पीता।'

मैडम कुछ कहना चाह रही थी, तभी दो लड़के हाथों में पैडस्टल फ़ैन उठाए आ पहुंचे। उन्होंने थोड़ी दूरी पर उसे रखा और बिजली के एक्सटेंशन कॉर्ड से फ़ैन ऑन कर दिया। हवा का तेज झोंका आया।

-'इट्स ओ. के., मैडम?' लड़कों में से एक ने पूछा।

-'येस इट्स ओ.के...थैंक्स।'

दोनों लड़के सलाम कर तेज़ी से चले गये।

मैडम के खुले-लम्बे बाल तेज हवा के झोंके से उड़ने लगे जिसे समेटने की उसने कोई कोशिश न की। आज उसने हल्के आसमानी रंग की साड़ी पहन रखी थी और साड़ी की तो यही ख़ूबी है कि एवरी थिंग इज़ कवर्ड एण्ड एवरी थिंग इज़ एक्सपोज़्ड। ऊपर से साड़ी बांधने का भी मैडम का तरीक़ा इतना शानदार था कि सेक्स अपील बढ़ाने के बावज़ूद भी उसमें फूहड़पन की जगह एक आकर्षक शालीनता थी।

चेहरे पर मेक-अप करने का उन्हें न शौक़़ था न ज़रूरत। यहाँ तक कि भवें भी इतनी पतली और किनारों पर नुकीली थीं कि उसके लिए मैडम को पार्लर जाने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ी।

कॉफ़ी की चुस्क़ियों के मध्य रज्ज़ू ने मैडम के चेहरे का निरीक्षण अपने फ़ोटोेग्राफ़ी के नज़रिए से किया तो उसके अंदर जो पहला शब्द गूंजा वह था, कम्प्लीट फ़ोटोेजेनिक। 'भरा-भरा गोल चेहरा, पतली-लम्बी-नुकीली और ऊंची नाक, चमकता भाल, बड़ी-बड़ी मृगनयनी आँखों, सुन्दर तराशे अधर और मोतियों-सी झिलमिलाती दंक्त पंक्ति। रज्ज़ू ने सोचा-' किसी भी कोण से फ्ऱेम करो, एवरी ऐंगल इज परफेक्ट। ' ऊपर से सूखे-चमकीले और लम्बे-घने बाल।

-'क्या सोचने लगे?' मैडम मुस्कुराई.

-'कुछ नहीं...मैं कैमरे की आँख से आपको देख रहा था।' रज्ज़ू ने भावविहीन स्वर में कहा।

-'देख लिया?'

-'हाँ! देख लिया। आप बिल्क़ुल फ़ोटोेजेनिक हैं।'

-'यह फ़ोटोेजेनिक क्या होता है?'

-'प्रत्येक चेहरे में एक न एक कमी होती है। जिसे छिपाने के लिए हम अपने कैमरे को ऐसे कोण में रखते हैं, जहां से वह नज़र न आए. ऐसे कोण को ही हम अपनी भाषा में' परफेक्ट ऐंगल 'कहते हैं और जब हमसे भूल हो जाती है, हम ग़लत कोण से कैमरा क्लिक कर देते हैं, दैन इट इज़ कॉल्ड रौंग ऐंगल। अब कुछ चेहरे ऐसे भी होते हैं जिसमें कोई कमी नहीं होती। जिस कोण से भी देखो परफेक्ट और आपका चेहरा ऐसा ही है-' फ़ोटोेजेनिक '।

रज्ज़ू की बात वह ध्यान से सुन रही थी। फ़ोटोेजेनिक शब्द उसके लिए नया नहीं था लेकिन उसकी इतनी तफ़सील से वह आज पहली बार वाकिफ हुई. रज्ज़ू ने तो पूरी सहजता से तकनीकी बात कही थी लेकिन थी तो यह तारीफ़ ही। रज्ज़ू के इस अप्रत्यक्ष कम्प्लीमेंट्स से उसके गुलाबी गाल थोड़े और लाल हो गये। आँखों में आये, ख़ुशी के भाव को उसने छुपाते हुए कहा-

-'थैंक्स फौर योर कम्पलीमेंट्स...तो कब कर रहे हो मेरा फ़ोटोे-सेशन?'

-'जब आप कहें?'

-'तुम अपना प्रोग्राम थोड़ा एक्सटेंड क्यों नहीं कर देते। वर्किंग डेज में, मैं एफोर्ड नहीं कर सकती।'

-'फिर तो इस ट्रिप में कोई चांस नहीं है। अगली बार आऊंगा तो करूंगा।'

मैडम ने कुछ नहीं कहा। वह मौन हो गई. फिर धीरे-धीरे कॉफ़ी के साथ स्नैक्स चलता रहा और मैडम रज्ज़ू का इंटरव्यू लेती रही। रज्ज़ू का परिवार, व्यापार वगै़रह पर वह बातें करती रही।

सूरज डूब चुका था। मैदान में लगे सारे बल्ब जल गये। छिट-पुट लोगों का आना शुरू हो गया और स्पीकरों से वाद्य-यंत्रों का मध्यम स्वर निकल कर, वातावरण में घुलने लगा।

टैरेस-गार्डेन पर रसोईया रामरतन के साथ काजल के जाने का वक़्त हो चुका था और श्रीवास्तव से यही कहने के लिए वह आ रही थी कि तभी बेबी को रोते हुए तेज़ी से आते देख वह बुरी तरह से चौंकी।

श्रीवास्तव से उसकी नज़रें टकरायीं तो उसने काजल को बेबी के पीछे जाने का इशारा किया। काजल ने सहमति में सिर हिलाया लेकिन बेबी के पीछे तत्काल न जाकर पहले वह रामरतन के पास गई. उसे टैरेस-गार्डेन पर जाकर काम सम्हालने का निर्देश दिया और फिर वह लिर्विंग से बाहर निकली।

वह जानती थी ऐसी दशा में बेबी सीधे अपने कमरे में ही जा सकती है और उसका अनुमान ठीक था। बेबी अपने पलंग पर औंधी लेटी रो रही थी।

काजल ने कुछ नहीं कहा... कुछ नहीं पूछा। वह सीधे जाकर लेटी हुई बेबी के सिरहाने बैठ गई और अपने हाथों से उसका सर सहलाने लगी। बेबी ने कोई प्रतिक्रिया न की, वह उसी तरह तकिए में मुंह गाड़े सिसकती रही। कुछ देर तक सहलाते रहने के पश्चात काजल उठी। फ्रीज़ से पानी की बोतल निकाल कर एक ग्लास में डाला और वापस बेबी के सिरहाने आकर बैठ गई. थोड़े मनुहार के बाद आख़िर उसने बेबी को बैठा कर दो घूंट पानी पिला ही दिया।

हिचकियां बंद होने के बाद भी बेबी की आँखों सजल थीं और काजल के लाख पूछने पर भी वह मौन थी।

श्रीवास्तव की किसी बात पर इसका दिल टूटा हो, यह तो सम्भव नहीं, काजल ने सोचा और रहे सक्सेना साहब! उनसे बेबी रूठ जाए, यह भी मानने वाली बात नहीं। बेबी तो उनकी आँखों का तारा है। फिर आख़िर क्या बात हो गई, जो इस तरह यह लड़की टूट कर बिखर गई. यही प्रश्न था जिसने काजल को उलझा कर परेशान कर दिया।

बेबी ने चेहरे पर भाव बदले। उसकी सजल आँखों में आक्रोश उभरा और चेहरा तमतमाने लगा। वह झटके से नीचे उतरी। उसकी साँसों की गति बढ़ गई.

काजल देखती रही और बेबी, तेज़ी से आगे बढ़ कर ज़िम तक जा पहुँची। उसने टेªड-मिल ऑन किया और उसपर चढ़ कर उसने अपने दोनों हाथों से टेªड-मिल का हैण्डल थामा, फिर तेज़ कदमों से उसपर चलने लगी। धीरे-धीरे उसने अपनी गति बढ़ानी शुरू कर दी।

काजल चिन्तित नज़रों से बेबी की हरकत देख रही थी, उसी समय सक्सेना के साथ श्रीवास्तव ने कमरे में प्रवेश किया। उसकी प्रश्नभरी निग़ाह काजल से टकराई. काजल ने आँखों ही आँखों में ज़िम की ओर इशारा किया जहाँँ बेबी हाँफती हुई टेªड-मिल पर लगभग दौड़-सी रही थी।

काजल पलंग से उठ कर तेज़ी से श्रीवास्तव के पास आई और उसका हाथ पकड़े बाहर चली आई. पीछे-पीछे सक्सेना भी आ गया।

मैडम ललिता से मुक्त होकर रज्ज़ू जब सीढ़ियाँ चढ़ कर भारती के विंग में पहुँचा, तो उसके पैर अचानक ठिठक गए. अंदर से एक अपरिचित स्वर आ

रहा था।

-'भारती बिरादर! आपकी इस रैली ने तो मेरी ऐसी-तैसी कर दी। आपने इस-बीच मेरे काम पर बिल्क़ुल तवज्ज़़ो नहीं दी और उधर पेरिस से, मेरे कम्प्यूटर पर, मेल का सिलसिला शुरू है। क्या जवाब दूं उन्हें...मैं तो परेशान हूँ बिरादर।'

रज्ज़ू ने अंदाज़़ लगाया, यह ज़रूर वही पेंटिंग का डीलर है। रज्ज़ू ने उसका नाम याद करने की कोशिश की, लेकिन दिमाग़ पर बहुत ज़ोर देने के बाद भी उस वक़्त उसे उसका नाम याद न आया तो उसने भारती के स्टूडियो का पर्दा हटाकर अन्दर प्रवेश किया।

-'आओ महारथी' उसे देखते ही भारती ने चहकते हुए कहा-'इनसे मिलो, यही हैं क़ासिम भाई और क़ासिम भाई, ये मेरे दोस्त रज्ज़ू जी हैं। फ़ाईन-आटर््स में हम दोनों साथ-साथ थे।'

-'बड़ी ख़ुशी हुई बिरादर आपसे मिलकर,' अब क़ासिम रज्ज़ू के साथ शुरू हो गया, -' अपने दोस्त को समझाइये जरा। इतनी बड़ी सप्लाई मैंने इनके ही बल पर क़बूल किया है और आपके दोस्त हैं कि काम पर कोई तवज्ज़़ो ही नहीं देते

...अरे बिरादर! अब आप ही मुझे बताइये, इस रैली-वैली से क्या हासिल होने

वाला है? '

भारती मुस्कुराते हुए उठा।

-'क़ासिम भाई. सांस तो लेने दीजिए इसे।' उसने बीच में अपनी बात कह कर रज्ज़ू को देखा, -'चलो उस टूल को खींचो।'

रज्ज़ू ने स्टूडियो के दूसरे कोने पर रखा टूल खींचा, फिर तीनों बैठ गए तो रज्ज़ू ने क़ासिम से कहा-'आप फ़िक्र न करें, अब भारती बिल्क़ुल फ्री है। कल से आपका काम शुरू और इसे करना ही क्या है? ...आप ज़रा मुझे कोले दा की कहानी सुनाइये, मैंने सुना है, आपके पास' द लास्ट सपर 'लेकर आए थे।'

रज्ज़ू ने मुस्कुराते हुए कोले दा की बात शुरू की, तो क़ासिम ने ऐसा मुंह बनाया कि लगा उसके मुंह में कुनैन की गोली चली गई हो।

-'ला-हौल-विला-क़ ूवत! किसका ज़िक्र छेड़ दिया आपने? वह भी क्या कोई आर्टिस्ट है? विंची की औलाद तो कई हैं इस इल्म की दुनिया में, लेकिन वह तो बाप है विंची का। विंची की पेंटिंग्स में बेहूदा फेर-बदल कर जनाब फ़र्माते हैं-यह उनकी अपनी ऑरीजनेलिटी है। ...और आदमी भी इतने भद्दे क़िस्म का है वह कि मेरे मुंह पर सिगरेट का छल्ला इराद़तन फेंकता है।'

क़ासिम अपनी रौ में कहे जा रहा था और रज्ज़ू के साथ भारती, उसकी बातों को रस ले-लेकर सुन रहा था।

वह कहता रहा-'पहली मुलाक़ात में ही मैं समझ गया था, यह शख़्स निहायत घटिये दर्जे का है। आप जानते हैं बिरादर...अपनी पहली आमद पर ही उसने भारती बिरादर के लिए क्या फ़रमाया था?'

-'क्या?' रज्ज़ू ने हँसते हुए पूछा।

-' कहा, भारती तो मेरा जूनियर है। ब्रश पकड़ना तो उसे मैंने ही

सिखाया है। '

क़ासिम ने अपनी बात कहते हुए कोले दा की ऐसी ऐक्ंिटग की कि दोनों खुल कर हँस पड़े। भारती की हँसी थमी तो उसने रज्ज़ू से कहा-'कैसा आदमी है यह बोलो...मेरी ही थाली में छेद करने लगा।'

रज्ज़ू ने कहा-'पहले कैसे बिदकता था रिप्लीका से! याद है तुम्हें... रिप्लीका बनाने पर क्या कमेंट्स था उसका?'

-'छोड़ो यार...वह ऐसा ही है। एक-आध साल हमसे उम्र में बड़ा क्या है कि...'

भारती की बात काटी रज्ज़ू ने, -'ग़लती हमारी ही है। हमीं ने उसे आप-आप कह कर अपने सर पर चढ़ाया है।'

-'अरे कमाल बात करते हो यार! जब पहली बार जान-पहचान हुई थी तो वह भी हमें आप ही कहता था, भूल गये? वह तो बाद में हम' आप'पर ही रह गए और वह' तुम'पर उतर आया।'

याद आया रज्ज़ू को। भारती ने ठीक कहा था। फाईन-आर्टस के कोर्स में शुरूआती परिचय के वक़्त, सभी एक-दूसरे को 'आप' कहकर सम्बोधित करते थे। कोले ने ही एक दिन सबको बताया था कि उम्र में वह सबसे सीनियर है। जहां तक रज्ज़ू को याद है, उसने ख़ुद को चार-पांच साल बड़ा बताया था और अचानक 'तुम' पर उतर आया। वह तो बाद में पता चला कि उम्र में सिर्फ़ एक साल या उससे भी कम का फ़र्क था।

-'ख़ैर छोड़ो! कोले दा उस्ताद आदमी हैं, इतना तो मानोगे?' रज्ज़ू ने भारती से पूछा तो वह मुस्कुराया।

-'हां दोस्तों का कबाड़ा करने में तो वह वाक़ई उस्ताद है।' भारती ने जवाब में कहा।

-'अब इस आदमी का ज़िक्र करके क्यों वक़्त बर्बाद करते हो बिरादर?' क़ासिम ने उक्ता कर कहा-'अब जुट जाओ काम में फ़ौरन और फटा-फट दो-चार नग तैयार करो।' फिर वह रज्ज़ू की ओर पलटा-'बिरादर! आप भी हेल्प कर दो अपने दोस्त की...आख़िर आप भी आर्टिस्ट हो बिरादर!'

जवाब भारती ने दिया-'ये तो आज से कल तक उड़ जायेंगे क़ासिम भाई...और वैसे भी इन्होंने ब्रश छोड़ कर कैमरा थाम लिया है, फ़ोटोेग्राफ़र बन गये हैं अब। लेकिन आप फ़िक्र नहीं करें, मैं कल से जुट जाऊंगा आपके काम में। मैं समझ रहा हूँ आपकी समस्या और मैं कोई नाशुक्रा भी नहीं हूँ। एहसान है आपका मेरे ऊपर, इसे मैं कभी भूलंूगा नहीं। आप बेफ़िक्र होकर जाइए.'

क़ासिम उठ खड़ा हुआ और जाते-जाते उसने कहा-'शुक्रिया! मैं इस यक़ीन के साथ तुम्हारे दर से जा रहा हूँ बिरादर कि कल से आप काम से लग जाओगे ...लेकिन ख़्याल रहे ज़्यादा तेज़ी दिखा कर क्वालिटी से कम्प्रोमाईज़ न हो।'

भारती भी अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो चुका था। उसने क़ासिम के हाथ को अपने हाथ में थाम कर कहा-

-'ऐसा कुछ नहीं होगा क़ासिम भाई! पहले से बेहतर करने की कोशिश करूँगा।'

-'अल्लाह तुम्हारे ईल्म में बरकत दे...तो चलता हूँ बिरादर, ख़ुदा हाफ़िज़।'

क़ासिम ने भारती को कलेजे से लगाते हुए कहा फिर रज्ज़ू को भी ख़ुदा हाफ़िज कह कर रूख़सत हो गया।

-'आदमी बहुत अच्छा है तुम्हारा क़ासिम भाई.' उसके जाने के बाद रज्ज़ू ने वापस बैठते हुए भारती से कहा।

-'छोड़ो क़ासिम भाई को, मैं तो मरा जा रहा हूँ सिर्फ़ यह जानने के लिए कि मैडम के साथ कैसी गुज़री?'

-'मरे क्यों जा रहे हो? तुमने ही तो मुझे उनके साथ नत्थी करके भेजा था।'

-'नत्थी करके?'

-'हां! नत्थी करके. मैं तो पहचानता तक नहीं था तुम्हारी मैडम को।'

रज्ज़ू ने जिस तरह ठोंक कर अपनी बात कही, भारती बेतहाशा हँस पड़ा।