अगिनदेहा, खण्ड-11 / रंजन

Gadya Kosh से
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-'सर! मेरी तो समझ में कुछ न आया,' काजल ने बेबी के कमरे से बाहर आकर श्रीवास्तव से कहा, -'ऐसी क्या बात हो गई अचानक?'

-'उसने क्या कहा?' पूछा श्रीवास्तव ने।

-'मुझे मौक़ा ही कहाँ दिया आप लोगों ने? जब मैं आयी थी तो बेबी तकिये में मुंह छिपाये बुरी तरह रो रही थी। मैंने किसी तरह उसे शांत कर, पानी पिलाया तो अचानक पानी पीकर वह तेज़ी से अपने टेªड-मील पर चली गयी... और आपने तो ख़ुद देखा कितनी अप-सेट थी वह।'

श्रीवास्तव ने जवाब में कुछ नहीं कहा। कॉरीडोर में क़दम बढ़ाता वह

धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा था। मैडम की बात उसे खोलनी होगी, उसने सोचा।

-'बहुत टची है वह,' सक्सेना ने श्रीवास्तव से कहा, मुझे पता होता कि इस तरह इमोशनली इन्वाल्व है वह तो मैं कभी नहीं कहता। '

-'इट्स ओ.के., शी विल वी आल राईट सून। थोड़ा टाईम चाहिए उसे सेटल होने में। मैं बात करूंगा उससे, लेकिन इस वक़्त उसे अकेला छोड़ दो।'

सक्सेना ने सहमति में सर हिलाया लेकिन काजल और भी उलझ गई. अब यह तो वह जान चुकी थी कि सक्सेना साहब ने ही ऐसा कुछ कह दिया है, जिसपर बेबी ने इस तरह रियेक्ट किया; लेकिन वह ख़ुद सक्सेना से कुछ पूछ नहीं सकती थी। वह भी इन दोनों के साथ आगे बढ़ती टैरेस-गार्डेन की सीढ़ियों तक जा पहुंची।

सक्सेना सीढ़ियाँ चढ़ते हुए तमाम मामले को सूत्राबद्ध कर रहा था। उसके दिमाग़ में बेबी का वह वाक्य अभी तक गूंज रहा था जब उसने उससे कहा था -'द बाइलॉजिकल डिमांड इज़ नॉट कन्सर्ड ओनली-विद द मेल जेण्डर।' वह अच्छी तरह जान चुका था कि बेबी अब बड़ी हो चुकी है और उसके तन की जैविक भूख तीव्रता से जग चुकी है। अब ऐसे में वह क्या करे? बेबी ने जब से उसे यह बात कही थी, तभी से उसने हजार बार इसपर सोचा था। आख़िर बेबी ने उसे ही क्यों कहा? चाहती क्या थी मुझसे?

यही वह लाख रुपये का सवाल था जिसे वह उसी दिन से हल करने की कोशिश करता आया था। आख़िर अपने शरीर की भूख की बात, बेबी ने उससे ही क्यों की?

वह भूल गया कि बेबी उसके दोस्त की बेटी है। पहले उसने ख़ुद को समझाया था, बेबी उसके दोस्त की अपनी बेटी नहीं, गोद ली हुई बेटी है। श्रीवास्तव ने उसे अगर अपनी बेटी नहीं माना होता तो? ...क्या रिश्ता रहता श्रीवास्तव का इस लड़की के साथ? ख़रीद कर बनाया गया रिश्ता। इस तर्क ने उसे राहत पहुंचाया था फिर वह अपने इस तर्क पर देर तक हँसा था।

आदमी अपनी ख़ुशी के लिए, अपने हक़ में कैसे-कैसे तर्क खड़े कर लेता है, उसने सोचा और मुस्कुराया।

सक्सेना ने ख़ुद को, बाथरूम के विशाल दर्पण में रोज़़ निहारना शुरू कर दिया था। क्या हुआ है उसे? अभी तो वह पूरी तरह जवान और फ़िट है। श्रीवास्तव को देखो, उम्र में मुझसे दो साल छोटा है लेकिन कैसा थुलथुल बुड्ढा हो गया है। एक भी दांत नहीं बचे उसके. सारे डेंचर नक़ली और वह ख़ुद अभी तक कितना सजीला सुंदर जवान है। बेबी के रिमार्क के बाद से ही वह इन्हीं तर्कों-कुतर्कों में फंसा, आत्म-

मुग्ध होता आया था। आख़िर उसने निर्णय लिया कि बेबी की हरकतों को अब से वह रोज़़ मॉनीटर करेगा और इस बात की तसल्ली करेगा कि क्या वास्तव में बेबी अपनी भूख उससे पूरी करना चाहती है?

और इस निर्णय के पूर्व उसने ख़ुद को समझा दिया था कि नैतिक-अनैतिक में ज़्यादा उलझने की ज़रूरत नहीं है और ज़िन्दगी की खुशियों को टेक-इट-ईज़ी के अपने फार्मूले पर हासिल करते रहना है।

अपने नतीजे को मनचाहे मुक़ाम पर पहुंचाने के अगले ही दिन से उसने मेल-ब्यूटी-पार्लर जाना शुरू कर दिया था जहां वह पूरे दो घंटे स्टीम लेकर फे़शियल करवाता, फिर देर शाम श्रीवास्तव के पास आता। वह रोज़़ नई-नई फ़ैंटेसी सोच कर आता कि आज बेबी को यह कहेगा-वह कहेगा। बेबी ऐसे रिसपॉन्स करेगी-वैसे रिसपॉन्स करेगी। लेकिन उसका बैड-लक कि उस रात के बाद बेबी फिर कभी टैरेस-गार्डेन में नहीं आई और सक्सेना रोज़़-रोज़़ ताव खाता रहा।

और वह रात आई जब उसने आते ही टैरेस-गार्डेन के किचनेट में, काजल के साथ बेबी को देखा, तो बेबी बदल चुकी थी। ज़बरदस्त बदलाव आ चुका था बेबी में, जिसे उसके साथ-साथ ख़ुद श्रीवास्तव ने भी नोट किया था। उसके बाद बेबी ने कभी नाग़ा न किया। वह रोज़़ सक्सेना और श्रीवास्तव को टैरेस-गार्डेन में ज्वायन करने लगी।

श्रीवास्तव ख़ुश था, काजल ख़ुश थी, रामरतन और 'जानकी कुटीर' के सारे लोग ख़ुश थे-क्योंकि बेबी ख़ुश थी। लेकिन सक्सेना ख़ुश न था।

पहले तो उसे आश्चर्य हुआ कि आख़िर 'जानकी कुटीर' में वह शख़्स है कौन, जिसके पास बेबी को अपना ठिकाना मिल गया। कौन है वह? क्या भारती? नहीं...नहीं, इतना गंदा टेस्ट बेबी का हो नहीं सकता। फिर कौन है वह?

उस दिन उसे ख़ुद पर ख़ंुदक आयी थी, जिस दिन हँसते हुए श्रीवास्तव ने उसे भारती के दोस्त के विषय में बताया था। कितना बड़ा गधा था वह। 'जानकी कुटीर' की हर ईंट, जिस बात को जानती थी, उसी बात का पता लगाने बेव़़कू़फ़ों की तरह भटकता रहा था। पहले ही पूछ लेता श्रीवास्तव से तो उसे फ़ौरन पता चल जाता कि वह शख़्स भारती का दोस्त था जो वहीं 'जानकी कुटीर' में मौज़ूद था। अब क्या करे वह? उसकी इच्छा हुई कि वह अपने सिर के बाल नोच ले। लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। मन-मसोस कर रह गया था वह।

अब उसका एक ही मिशन रह गया। बेबी के प्रति श्रीवास्तव को

सावधान करते रहना। टैरेस-गार्डेन में बेबी की लगातार उपस्थिति में वह कुछ नहीं कर पाता लेकिन ज़रा भी मौक़ा मिलते ही, बेबी के हटते ही, वह बगै़र चूके अपनी पुड़िया खोल देता।

श्रीवास्तव के लिए बेटी की ख़ुशी के आगे और कोई ख़ुशी न थी। उसकी बेटी अवसाद से निकल आई थी। यही सबसे बड़ी बात थी और वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जिससे उसकी बेटी का दिल टूट जाये। उसके दिल पर हल्की-सी भी खरोंच उसे क़बूल न थी। सक्सेना की सलाह पर वह रोज़़ सोचता। उसने छुप कर भारती के साथ आते-जाते उसके दोस्त को, अपने ऑफ़िस की खिड़कियों से कई बार देखा था। कई बार उसने चाहा भी कि उससे अपनी बातें करे लेकिन वह डर गया। उसने ऐसा कुछ न किया। आख़िर उसके मास्टर दिमाग़ में यही आईडिया आया कि इस बेहद नाज़ुक मामले में वह अपनी सहयोगी ललिता की मदद ले।

उसने अपने दोस्त से अपने प्लान को छुपाया और ललिता को रज्ज़ू के पीछे लगा दिया। आज जब सक्सेना ने भारती के दोस्त पर अपना रीमार्क पास किया तो श्रीवास्तव ने इसे पूरी सहजता से मुस्कुराते हुए सुना। उसने सोचा इसे क्या पता, असली माजरा क्या है। लेकिन सक्सेना तो आज बेहद ख़ुश था। उसे बेहतरीन तुरूप का पत्ता, अचानक हाथ लगा। उसने इस मौके़ का फ़ायदा उठाना ज़रूरी समझा और जब बेबी पूरी तरह अप-सेट होकर भागी तो उसने बेहद ख़ूबसूरती से अपने चेहरे पर संजीदगी ओढ़े अपनी पीठ थपथपाई और ख़ुद को शाबाशी दी-आई हैव डन इट फ़ाईनली। '

सक्सेना के साथ श्रीवास्तव और काजल टैरेस-गार्डेन में जम चुके थे और इनका दौर शुरू हो चुका था।

भारती, लकड़ी के फ्ऱेमों में कैनवास स्टेªच करने में व्यस्त था और रज्ज़ू वहीं स्टूडियो में भारती की कुर्सी पर आँखों मूंदे निढ़ाल बैठा था। आज बुरी तरह थक चुका था वह। दोपहर टैरेस-गार्डेन पर थका देने वाले बेबी के फ़ोटोे-सेशन से जो सिलसिला शुरू हुआ तो देर शाम तक उसे चैन न मिला। दिमाग़ी तौर पर वह लगातार व्यस्त रहा।

अभी-अभी क़ासिम भाई रूख़सत हुए थे, जिसके बाद भारती ने ख़ुद दो कप चाय बनाई. चाय की चुस्कियों के दौरान उसने रज्ज़ू के साथ गप्पें मारीं और फिर अपने काम में जुट गया।

पहली बार जब रज्ज़ू को आराम नसीब हुआ तो वह भारती की कुर्सी पर जम गया। उसने आँखों बंद कर लीं और अपनी चेतना को विचार-शून्य करना शुरू कर दिया। यह उसकी पुरानी आदत थी। जब कभी भी वह दिमाग़ी तौर पर थक जाया करता, आँखों बंद कर पहले शरीर के अंगों को शिथिल करता-तनाव-रहित करता फिर चेतना को विचार-शून्य करना शुरू कर देता। यद्यपि, विचार-शून्य स्थिति में वह कभी नहीं पहुँचता, तथापि अपनी मानसिक थकान मिटाने में वह बहुधा

सफल रहता।

आज भी उसने यही किया। प्रारंभ में तो उसकी चेतना में कई चेहरे, कई बातें, एक के ऊपर एक सुपर इम्पोज़ड होने लगे जिन्हें वह बाहर फेंकता गया, परन्तु बेबी की आकृति को वह बाहर न कर पाया। शायद वह ख़ुद भी यही चाहता था कि उसकी चेतना बेबी पर केंद्रित हो जाए.

जिन सोचों से विमुक्त होने के लिए उसने अपनी अँखें बंद की थीं, आख़िर उन्हीं विचारों ने उसकी चेतना को आ घेरा। बेबी के विषय में वह सोचने लगा। उसने तो हद ही कर दी। कितनी सहजता से उसने रज्ज़ू को खुला न्यौता देकर ख़ुद को परोसने में कोई संकोच न किया। कमाल की लड़की है यह! उसने सोचा। ऐन उसी वक़्त अगर काजल नहीं आ जाती तो क्या होता? बेचैन हो गया वह।

वह क्या कोई संत-मुनी-महात्मा है? उसे याद आने लगा। ख़ुद उसके मन में भी तो उत्तेजना फैलने लगी थी। उसे स्वीकार करना पड़ा, वह ख़ुद कामुक होने लगा था।

उसने सारी बातों पर क्रमबद्ध विचार करना शुरू किया। बेबी से वह सम्मोहित है-बेहिचक उसने माना। उसे अपनी जीवन-संगिनी के रूप में उसने फिर से देखने की कोशिश की तो वह बेचैन हो गया। इस स्तर पर बिल्क़ुल मिस-फिट था वह। हर लिहाज़ से और हर सतह पर। फिर? और यही प्रश्न था जो सुलझने की जगह उलझता जा रहा था। उलझनें जब और भी बढ़नी शुरू हो गईं तो उसने इस प्रश्न को झटक कर बाहर कर दिया।

बेबी आख़िर है क्या? सोचने लगा वह-क्या यह लड़की चरित्राहीन है? और रज्ज़ू ने चरित्रा को परिभाषित करना शुरू कर दिया। ठीक ही तो कहती है वह। चरित्रा का सेक्स से क्या सम्बंध? रज्ज़ू मुस्कुराया, यह तो बेबी की परिभाषा है। लोग अपनी ख़ुशी, अपने स्वार्थ के लिए किसी भी विषय को, अपने मतलब में परिभाषित कर लेते हैं। रज्ज़ू ने चाहा वह मान ले कि बेबी ग़लत है, उसकी आकांक्षा अनुचित है, लेकिन बेबी पर उसकी आशक्ति और ख़ुद उसकी अपनी कमज़ोरियों ने उसे कमज़ोर करना शुरू कर दिया और वह किसी ठोस निश्चय पर पहुँचने में पूर्णतः असमर्थ-असहाय हो गया।

-'सो गए क्या फ़ोटोेग्राफ़र?'

भारती के प्रश्न ने उसकी तंद्रा तोड़ी। चौंक कर उसने अपनी आँखों खोलीं तो भारती ने फिर कहा।

-'बैठे-बैठे सो गये?'

मुस्कुराने लगा रज्ज़ू लेकिन चेहरे पर मुस्कुराने का भाव न आया। उसकी आँखों से उदासी फैल कर मुस्कुराने का असफल प्रयास कर रही थी।

-'अरे हुआ क्या तुम्हें? किस सोच में पड़े हो?'

भारती ने कैनवास स्टेªच करते हुए फिर पूछा।

-'मैं सुबह वाली टेªन पकड़ लूंगा। अब रैली की भीड़ हो या।' रज्ज़ू के होठों से अस्फ़ुट स्वर फूटे।

-'मामला क्या है आख़िर? यूं अचानक...हुआ क्या तुम्हें?'

-'होना क्या है? बस! अब मुझे जाना है...और इस बात पर अब आगे बहस मत करो।'

-'सुबह वाली टेªन तो बहुत अर्ली है यार, पांच बजे खुल जाती है। इस टेªन को पकड़ना सम्भव नहीं है।'

रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा लेकिन भारती समझ गया। यह अब नहीं रुकेगा, लेकिन जो बात वह नहीं समझ पाया, वह यह थी कि अचानक बैठे-बैठे रज्ज़ू को आख़िर हुआ क्या? बात तो थी परसों की। कल... टेªन क्या, सारे शहर में रैली की भीड़ होगी। टैªफ़िक तक उलझा रहेगा... और ऐसे में?

अचानक रज्ज़ू ने कहा-'रात वाली टेªन पकड़ लंू? राईट टाईम भी हो तो पौने बारह बजे खुलेगी।'

-'प्लेटफार्म इंस्पेक्टरी करनी हो सारी रात, तो पकड़ो इसे। कम से कम तीन-चार घण्टे लेट चलती है रोज़़...तुम जानते ही हो।'

-'प्रॉब्लम क्या है? पांच बजे सुबह की जगह चार बजे. एक ही घण्टे का तो फ़र्क है। यूं भी सुबह वाली टेªन के लिए घण्टा भर पहले निकलना ही होगा और चार बजे निकलने का मतलब है, रात में तीन बजे उठो।'

-'अब तुमसे बहस नहीं करूंगा, सिर्फ़ इतना बता दो, मामला क्या है?'

-' बहुत हो गया यार। मुझे लगता है, तुम्हारे पास और रुका रहा

तो। ' बात अधूरी छोड़ कर रज्ज़ू चुप हो गया।

-'तुम्हारा इशारा बेबी की तरफ़ है।'

-'हाँ।'

-'डरते हो उससे?'

-'मैं अब अपने-आप से डरने लगा हूँ।'

भारती मुँह-बाये रज्ज़ू को देखने लगा। दोनों चुप रहे। स्टूडियो में मौन छाया रहा और फिर रज्ज़ू ने ही मौन तोड़ते हुए अपनी बात शुरू की-

-'मैं रोक नहीं पाऊंगा ख़ुद को। बेबी का आकर्षण मुझे तेज़ी से उसकी ओर खींचता है और वह लड़की भी इतनी बिंदास है कि वह... और भारती! तुम तो जानते हो मुझे, मैं बेहद कमज़ोर आदमी हूँ। तुरन्त ही सेन्टीमेन्टल हो जाता हूँ और ज़्यादा इन्वॉल्व होने का अर्थ है, मेरी बर्बादी। शादी मैं कर नहीं सकता और शायद मुझसे शादी करने में उसे भी कोई इंटरेस्ट नहीं है। मुझसे प्यार भी करती है कि नहीं, मुझे इसमें भी शक है...फिर तुम्ही बताओ, मेरे और बहते जाने का अर्थ क्या है?'

बगै़र रुके रज्ज़ू ने धाराप्रवाह अपनी भड़ास निकाल दी तो भारती भी गंभीर हो गया। काजल की कही बात उसके अंदर कहीं गँूजने लगी-'मैं नहीं चाहती बेबी दुबारा डिप्रेसन में चली जाए.'

भारती ने हौले से कहा-'बेबी को बग़ैर बताए चले जाओगे?'

-'क्या करूँ?'

-'अगर जाना ही चाहते हो तो मिल कर जाओ उससे।'

रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा। चुप रहा वह। रात के नौ बज चुके थे। क्या उसे मिलना चाहिए बेबी से? उसके दिल ने कहा-' हां! उसे ज़रूर एक बार बेबी से मिल लेना चाहिए. ठीक है वह ज़रूर मिलेगा बेबी से और फिर उसे हमेशा के लिए गुड-बाय करके अपनी टेªन पकड़ लेगा।

-'ठीक है... मैं जाते वक़्त उससे मिलता जाऊँगा। तब तक काजल भाभी भी आ जाएगी। उनके साथ ही जाकर मिल लूंगा।' भारती ने चैन की संास ली और वापस फ्ऱेमों में कैनवस टाईट करने लगा।

-'तुम अपना काम करो, मैं स्टेशन से चक्कर मार कर आता हूँ।' भारती ने नज़रें उठाकर रज्ज़ू को देखा तो उसने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, -'टिकट भी ले लूंगा और टाईमिंग का भी पता कर लूंगा।'

-' ओ. के...लेकिन रुकना नहीं, जल्दी आना

टेªड मील पर चलती-हाँफती और थकती बेबी तनाव से भरती जा रही थी। एक ही बात जो उसे कचोट रही थी, वह था मैडम ललिता से रज्ज़ू की निकटता। तो जनाब ने उसे अपना दोस्त बना लिया है! ख़ुद मैडम ने उसे अपना ब्वाय-फ्ऱेंड कह दिया। रज्जू को तो वह मासूम समझ रही थी और क्या निकला वह। बेबी सोचने लगी, उससे कहाँ चूक हो गई! मैडम में ग्लैमर है, सेक्स-अपील भी है लेकिन मैडम को तो वह शालीन महिला समझती थी। कितनी इज्ज़त थी उसके दिल में उनके प्रति। फिर अचानक सारे गणित इस तरह क्यों उलट गया।

टेªड-मील पर जिस रफ़्तार से वह चल रही थी, उससे कहीं ज़्यादा तेज रफ़्तार से, उसके अंदर विचारों का झंझावात चल रहा था। रज्ज़ू ने क्यों किया ऐसा? और मैडम! वह कैसे बदल गयी। वह तो अपने बचपन से उन्हें देख रही है। कितनी अच्छी थीं वह! अचानक एक नए ख़्याल ने उसे चौंकाया। वह सक्सेना अंकल के बारे में सोचने लगी। अंकल ने झूठ तो नहीं कहा? लेकिन इसमें उनका क्या फ़ायदा?

टेªड-मील पर चलती बेबी अचानक रूक गई. इस नये ख़्याल ने उसे राहत पहुंचाया था। उसका सारे तन-बदन पसीने से नहाया था। उसकी सूती इजिप्सियन क़मीज, उसके पसीने से जहां-तहां चिपक गयी थी। मोटे ब्लू कपड़ों के जीन्स के अंदर उसकी टांगे पसीने से भर गयी थीं और छाती धौंकनी की तरह चल रही थी। एयर-कन्डीशनर प्रारंभ से ही बंद था। रोती-कलपती जिस हाल में वह आई थी, उसे एयर-कन्डीशनर का भान कहाँ था।

बहरहाल टेªड-मील के स्टैण्ड को दोनों हाथों से थामे उसने अंकल के विषय में सोचना शुरू किया, तो उसे अंकल में आये अचानक बदलाव नज़र आने लगे। बेबी को आज जब वे घूर रहे थे, उस वक़्त वह उत्तेजना में थी लेकिन अब उसके ज़ेहन में अंकल की ज़हरीली मुस्कान और उनकी आँखों की चमक दिखाई देने लगी। चलो मान लिया, उन्होंने रज्ज़ू से उसे अलग-थलग करने के उद्देश्य से, ऐसा विस्फोट कर दिया। लेकिन वे रज्ज़ू को जानते ही कब थे?

कहीं उसके पापा ने तो...नहीं, उसने अपने दिमाग़ को झटक दिया। वहीं खड़े-खड़े उसने सामने खिड़की के पर्दे हटाए. खिड़की खोली तो ठंडी हवा का झोंका आया। उसे अच्छा लगा। एक पल को उसने अपनी आँखों बंद कर लीं और बाहर से आ रही ठंडी हवा को, अपने अन्दर भरना शुरू कर दिया। उसे अच्छा लगा। उसने आँखों खोलीं तो देखा। अकेला रज्ज़ू भारती के विंग से आ रहा था। चौंकी वह! यह तो यहीं है...फिर अंकल ने।

तब तक वह अपनी नज़रें झुकाए क़रीब आ चुका था। बेबी ने उसे आवाज़ देते हुए व्यंग किया-'हो गए फ्ऱी अपनी गर्ल-फ्ऱेन्ड से?'

रज्ज़ू ने चौंक कर बेबी को देखा तो बेबी ने उसे अंदर आने का संकेत कर दिया। अच्छा ही हुआ कि बेबी ख़ुद मिल गई अन्यथा काजल भाभी के साथ आना उसे अटपटा लग रहा था। दरअसल इसी बात पर सोचता हुआ वह रेलवे-स्टेशन जाने के लिए निकला था, लेकिन बेबी ने उसे यह क्यों कहा कि हो गये फ्ऱी अपनी गर्ल-फ्ऱेंड से? तत्काल इसका उत्तर भी उसे मिल गया। इसने यहीं से उसे देखा होगा। झिझका वह, पता नहीं मैडम के साथ उसे देख कर बेबी ने क्या समझा होगा? इसके कहने के अंदाज़़ से तो ज़ाहिर है, ख़फ़ा है मुझसे। इन्हीं विचारों में उलझा वह अंदर आ गया।

बेबी अभी तक टेªड-मील पर ही खड़ी थी। उसका चेहरा सपाट था। कोई भाव नहीं। आँखों भी भावहीन थीं। उसने वहीं खड़े-खड़े आदेश दिया-' वार्डरोब खोल कर कैमरे का किट निकालो।

बेबी की आवाज़ इस क़दर ठंडी थी कि कांप गया रज्ज़ू। क्या हो गया बेबी को? लेकिन यंत्रावत उसकी टांगे वॉल-युनिट में लगे वार्डरोब की ओर बढ़ गए. उसने वार्डरोब खोला, किट निकाला और दरवाज़ा बंद कर बेबी की ओर मुड़ा। '

-'कैमरा निकाल कर लोड करो।'

किट में ही बची हुई फ़िल्म थी। रज्ज़ू ने कैमरे में फ़िल्म भर दी।

-'फ़्लैश लगाओ.'

उसने फ़्लैश अटैच कर दिया तो बेबी ने अगला आदेश दिया-'क्लोज़ द डोर।'

और दरवाज़ा अंदर से बंद हो गया। बेबी ने खिड़की बंद करके पर्दे़ खींच दिए और तब वहीं खड़े-खड़े फरमान जारी किया-'नाउ एक्सपोज़ मी।'

बेबी के तेवर पर रज्ज़ू बुरी तरह उलझ गया। फ़ोटोे खींचने का आर्डर पास कर बेबी ने अपनी क़मीज के तीनों बटन खोल दिए. एक बड़ा हिस्सा अनावृत हो गया।

वह उसी तरह अपने टेªड-मील पर खड़ी थी। चेहरा अभी भी वैसा ही भाव-शून्य था। उसका आदेशात्मक स्वर अभी भी वैसा ही ठंडा था।

निकोन का डेडिकेटेड फ्लैश बादलों में बिजली की तरह चमका और शटर की खिच्च ऽ-ऽ ऽ वाली आवाज़ हौले से गूंजी.

अब तक शांत खड़ी बेबी की साँसें फिर से तेज़ हो र्गइं। उसने अपनी क़मीज का अगला बटन खोला। फ़्लैश फिर चमक रज्ज़ू समझ गया था, वह अपना आख़िरी बटन भी खोल देगी और उसने ठीक समझा था। बेबी ने अपनी निरीक्षक नज़रों से रज्ज़ू को निहारा और क़मीज की आख़िरी बटन भी खोल दिया। रज्ज़ू ने फिर क्लिक किया, बिजली फिर चमकी। बेबी का चेहरा आवेशित हुआ और उसकी काँपती आवाज़ आई-'गये कहाँ थे मैडम के साथ? और अचानक वह यार कैसे बन गई तुम्हारी? ...'

उसके तेवर देख रज्ज़ू तो यूं ही असहज था। उसकी बातों पर तुरंत उसे कोई जवाब न सूझा तो बेबी ने फिर पूछा-' तुमने आज पहली बार किया, या कि पुराने फ़्लर्ट हो?

-'बेबी तुम।'

-'बोलो, बोलो...बताओ मुझे,' बीच में ही रज्ज़ू की बात काटते हुए उसने तड़प कर कहा-'उस बुढ़िया में ऐसा क्या मिल गया तुम्हें जो मेरे पास नहीं है? तुम्हें शर्म नहीं आई? उसकी उम्र क्या डेटिंग वाली है? अरे पचास साल की बुड्ढी है वह...पता है? ले कहाँ गयी थी तुम्हें...?'

रज्ज़ू को अपनी बात कहने का मौक़ा दिए बगै़र, उसने एक के बाद दूसरे प्रश्नों की झड़ी लगा दी और जब रुकी तो बुरी तरह हाँफने लगी।

रज्ज़ू अब तक बुरी तरह झुंझला चुका था। बेबी की सुडौल छातियों की निर्वसन जोड़ी अगर उसने सामान्य अवस्था में देखी होती तो हो सकता था, वह भी सामान्य व्यक्ति की तरह ही रिएक्ट करता, परन्तु यहाँ तो वह तीखे शब्दों की झाडू चलाती उसे बेधे जा रही थी। दिल कर रहा था-बंद दरवाजे़ को खोल कर फ़ौरन बाहर निकल जाए, लेकिन वह चुपचाप खड़ा रहा-मौन।

-'गूंगे क्यों हो गये...बोलते क्यों नहीं?'

-'क्या बोलंू मैं, तुमने तो अपने अंदर इतना ज़हर भर लिया है कि मेरे कुछ कहने न कहने का क्या फ़ायदा?' आख़िर उसने अपनी जबान खोली और अपनी बात कह कर पहले चुपचाप सोफ़े पर बैठ गया। फिर कहना शुरू किया, -'मैडम मेरी माँ की उम्र की हैं और आज उनसे मिलने के बाद मेरे दिल में उनके लिए इज्ज़़त और आदर का भाव पैदा हो चुका है। शालीन और शिष्ट महिला हैं वह। उनके व्यवहार में कुलीनता और बातों में शालीनता है। उनका स्नेह पाकर मैं गौरव का अनुभव कर रहा हूँ और रहा मेरे फ़्लर्ट करने की बात...तो तुमने अगर अभी तक मुझे नहीं जाना, तो मैं क्या कह सकता हूँ।'

अपनी बात कह कर वह कुछ क्षण मौन रह गया। बेबी अपलक उसे देखती रही। रज्ज़ू ने फिर कहना शुरू किया, -'तुम्हारी तरह हसीन और भरपूर जवां लड़की के साथ अगर मैंने कोई बेजा हरकत न की तो क्या अर्थ हुआ इसका? ...मैं फ़्लर्ट हूँ... हाँ, हूँ मैं फ़्लर्ट...फ़्लर्ट हूँ मैं...कहते-कहते उसकी आँखों भर आईं और गला रूंध गया। बेबी को नज़र भर देखा फिर कहा, -' जा रहा हूँ मैं...मेरी वजह से तुम्हारा दिल दुखा...अफ़सोस है मुझे। '

बेबी टेªड-मील से उतरी। हौले-हौले चलती वह रज्ज़ू के पास आई-'उठो...और प्यार करो मुझे।' रज्ज़ू ने न कुछ जवाब दिया न उठा।

-'कहा न, कम एण्ड लव मी।' उसने फिर कहा और रज्ज़ू फिर भी बैठा ही रहा।

-'बहुत घमंड है तुम्हें ख़ुद पर,' बेबी अब बिफर गई. कुछ क्षण वह वहीं खड़ी मौन रही और अचानक उसने अपनी क़मीज निकाल कर फेंक दी-'देखती हूँ मैं भी आज...टेक योर कैमरा एगेन एण्ड क्लिक मी।'

उछल कर बेबी पलंग पर कूदी। कमर के उपर पूर्ण निर्वसना बेबी वज्रासन की मुद्रा में बैठ गई. रज्ज़ू ने कैमरा नहीं उठाया। सोफे़ पर बैठा बेबी को निर्निमेष देखता रहा।

-' क्यों, हवा निकल गई तुम्हारी? चलो...नो प्राब्लेम, कैमरे को वहीं रहने दो और आ जाओ मेरे पास। मुझे पता था, सौ नहीं तो हजार डिग्री पर तो पिघलोगे ही।

कैसी लड़की है यह! रज्ज़ू को वितृष्णा होने लगी। झटके से वह उठा। कैमरा उठाया और एक्सपोजिंग शुरू कर दिया।

बेबी अपने यौवन का तापक्रम बढ़ाती गई, रज्ज़ू की वितृष्णा बढ़ती गई और अपने ही ताप में बेबी पिघलती रही।

फ़िल्म का आख़िरी फ्ऱेम समाप्त हो गया। बेबी की आँखों में चमकता चैलेंज बुझता गया और वे सजल होती गयी। अंत में रोती हुई वह उठी और

क्रोधित नज़रों से रज्ज़ू को देखती दौड़कर बाथरूम में जा घुसी.

रज्ज़ू ने कैमरे से फ़िल्म निकाली। किट में सारे इक्विपमेंट सजाए और वॉल युनिट में उसे यथास्थान रख दिया। बेबी का बाथरूम बंद था। अंदर से झरने की मंद आवाज़ वहाँ तक आ रही थी। रात के पूरे दस बज चुके थे। रज्ज़ू ने दरवाज़ा खोला और बाहर आ गया।

टैरेस-गार्डेन के स्पीकर में गंूजते संगीत के स्वर कॉरीडोर तक आ रहे थे। रज्ज़ू समझ गया, ऊपर अभी तक महफ़िल जमी है। अब टिकट के लिए स्टेशन जाने का कोई तुक नहीं था। वह सीधा ही अपने सामान के साथ निकल जाएगा। उसने निर्णय लिया और भारती के विंग की तरफ़ बढ़ गया।

विंची के कैटलग में प्रकाशित 'द लास्ट सपर' पेंटिंग का पिंटोग्राफ़, स्टैण्ड पर रखे कैनवास पर प्रोजेक्ट हो रहा था और भारती उसके स्केच में व्यस्त था। तभी रज्ज़ू ने स्टूडियो में प्रवेश किया। उसे देखते ही भारती ने कहा-'कहाँ चले गए थे भाई? अभी आ रहे हो...इस वक़्त?'

रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा। बैठ गया चुपचाप और भारती फिर से काम में जुट गया। स्केच करते हुए ही उसने फिर पूछा-'क्या हुआ? टेªन की पोज़ीशन क्या है? राईट टाईम है?'

-'कोई टाईम राइट नहीं है आज।' अचानक रज्ज़ू के मुंह से निकला फिर उसने अपनी बात सुधारी-

-'राईट-टाईम ही है और अब मैं निकलूंगा।'

-'अभी निकल कर क्या प्लेटफ़ार्म इंस्पेक्टरी करोगे?'

रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा तो उसने फिर कहा, -'अभी पूरे दो घंटे बाक़ी हैं। अभी जाकर क्या करोगे? फिर खाना भी तो नहीं खाया है तुमने।'

-'मुझे भूख भी नहीं है...खाना नहीं खाऊँगा मैं।'

-'काजल से भी नहीं मिलोगे?'

-'भाभी कब आएँगी, पता नहीं। यूँ भी ग्यारह के बाद ही वह आयेंगी।' रज्ज़ू उठ कर खड़ा हो गया-' अब मैं जाऊंगा, तुम अपना काम करो।

-'अरे कमाल है! ऐसी भी क्या बात हो गई? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?'

-'सब ठीक है यार। बस, अब मैं निकलूंगा।'

-'घर की याद आ रही है?'

रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा और वहीं पड़ा अपना एयर-बैग उठा कर

कंधे पर लटका लिया।

-'ओ. के. दोस्त! चलता हूँ अब।' कहकर वह रुका नहीं। बाहर निकल आया। कॉरीडोर खाली था। तेज़ क़दमों से उसने कॉरीडोर पार किया और सीढ़ियां उतर गया। भारती स्टूडियो से बाहर आकर रेलिंग पकड़े, रज्ज़ू को जाते देखता रहा। सीढ़ियां उतर कर वह बगै़र मुड़े 'जानकी कुटीर' के प्रवेश द्वार तक पहुंचा, रुका फिर मुड़ा। भारती ने समझा वह उसकी तरफ़ देखेगा, लेकिन रज्ज़ू तो बेबी के कमरे को देख रहा था। पूरा एक मिनट गुज़र गया लेकिन उसकी निगाह नहीं फिसली। वह अचल खड़ा वहीं देखता रहा और फिर अचानक मुड़ कर उसने तेज़ी से अपने कदम बाहर बढ़ा दिए. रज्ज़ू सड़क पर रुका और बगै़र पीछे मुड़े पैदल ही बढ़ गया।

नज़रों से ओझल हो जाने के बावज़ूद भारती वहीं खड़ा, सड़क को देखता रहा। सामने फ़ुटपाथ की गुमटियां बंद थीं। इक्के-दुक्के लोग चल रहे थे, लेकिन सड़क पर वाहनों का आवागमन बदस्तूर चालू था। हेड-लैम्प की रोशनी और हॉर्न की आवाज़ें सन्नाटे को चीरती गूँज रही थीं।

कंधे पर एयर-बैग लटकाए आगे के गोलम्बर तक रज्ज़ू पैदल ही पहंुचा। गोलम्बर के बाद बायीं तरफ़ दर्जनों रिक्शेवाले, अपने रिक्शे पर बैठे आपस में बतिया रहे थे। रज्ज़ू ने स्टेशन के लिए वहीं एक रिक्शा पकड़ा।

बाजार बंद हो चुका था लेकिन आवा-जाही चालू थी। उसने अपने दिमाग़ की सारी हलचलें बंद कर दीं और सड़क के दोनों तरफ़ की बंद दुकानों को देखता, आगे बढ़ता रहा।

रेलवे स्टेशन पूरी तरह गुलज़ार था। रिक्शे से उतर कर, वह टिकट-बुकिंग काऊंटर के आगे खड़े लोगों की लम्बी क़तार के अंत में खड़ा हो गया। 'जानकी कुटीर' की छाया अभी भी उसके ज़हन में छायी थी। सारी क्रम-विहीन घटनायें क्रम में आ रही थीं-जा रही थीं। आख़िर वह धीरे-धीरे खिसकता काऊंटर तक पहुंचा। टिकट लिया और एक नम्बर प्लेटफ़ार्म पर आया। टेªन की कोई सूचना नहीं थी। ग्यारह बज चुके थे और उसकी टेªन अनिश्चित थी। उसने प्लेटफ़ार्म पर दूर तक नज़रें घुमाईं। सिमेंट से बने सारे बेंच भरे थे। बैठने की कहीं कोई जगह नहीं थी। उसने पूरे प्लेटफ़ार्म का चक्कर लगाया और फिर बाहर निकल आया।

सामने बजरंगबली के विशाल मंदिर में शायद अष्टयाम का जाप हो रहा था। चारों दिशाओं में लटके स्पीकरों से कीर्त्तन के स्वर गूंज रहे थे। धीरे-धीरे चलता रज्ज़ू मंदिर के प्रांगण में जा पहुंचा। बड़ी-सी दरी पर बैठे लोग झूम-झूम कर कीर्त्तन कर रहे थे और उनके चारों तरफ़ बैठा जन समूह कीर्त्तन के स्वर में मग्न था।

अंतस के झंझावात से मुक्ति के लिए रज्ज़ू वहीं एक कोने में चुपचाप बैठ गया। अब यहाँ उसे बेबी के ख़्याल से छुटकारा मिल जाएगा। उसने भी कीर्त्तन के स्वरों में अपना स्वर मिलाना चाहा। दिल को कीर्त्तन में रमाना चाहा लेकिन वह ऐसा कुछ न कर पाया। उसकी बेचैनी और भी बढ़ने लगी।

-'ऐ भाय।' किसी ने अचानक उसे टोका। रज्ज़ू ने देखा, घुटनों तक धोती और गंजी पहने वह एक स्थूलकाय नाटे कद का व्यक्ति था। उसके माथे पर चंदन-रोली का टीका लगा था। रज्ज़ू समझ गया। यह व्यक्ति यहाँ का पुजारी है।

-'जूता पहने काहे बैठ गये भईय्या,' तीव्र और नाराज़ स्वर में उसने कहा -'जाईये, जूता खोल कर आइये।'

रज्ज़ू को तुरंत अपनी भूल का अहसास हुआ। झटके से वह उठ कर सीढ़ियों पर आया, जहां जूते-चप्पलों के अम्बार पड़े थे। हालांकि सीढ़ियों के नीचे बैठी एक औरत पैसे लेकर जूते-चप्पल रख रही थी, फिर भी कई लोगों ने सीढ़ियों को ही जूता-स्टैण्ड बना दिया था।

रज्ज़ू ने अपनी कलाई घड़ी में समय देखा। बारह बज रहे थे। उसे अब भूख भी लगने लगी थी। उसने जूते खोलने का विचार छोड़ दिया। उसे कुछ खा लेना चाहिए. उसने नज़रें दौड़ाईं। सामने कई होटल थे। वह होटलों की तरफ़ बढ़ गया। फिर उसे लगा, पहले टेªन की पोज़ीशन जानना ज़रूरी है-फिर खाना खाया जायेगा। वह टहलता हुआ वापस प्लेटफ़ार्म पर पहुंचा। सूचना-पट्ट पर उसने देखा तो पता चला, टेªन दो बजे आएगी। यानी अभी भी पौने दो घण्टों की वक़्त-गुजारी और

करनी थी।

प्लेटफ़ार्म पर ही उसने गरमा-गरम पूड़ी-सब्ज़ी खा कर नल से पानी पीया और फिर चहलक़दमी शुरू कर दी। सिमेंट वाली बेंच पर एक व्यक्ति उठंग कर लेटा था। रज्ज़ू ने उससे थोड़ी जगह मांगी तो उसने बुरा-सा मँुह बनाते हुए जगह दे दी। अब रज्ज़ू वहाँ इत्मीनान से बैठ गया। बेबी के ख़्यालों ने फिर से उसे आ घेरा। बेबी के एक-एक शब्द उसके ज़हन में गूंजने लगे।

'सौ नहीं तो हज़ार डिग्री पर तो पिघलोगे ही।'

काजल भाभी ने बेबी के लिए जो कुछ कहा था, उसने उसके दिल में बेबी का एक विशिष्ट चित्रा अंकित कर दिया था। लेकिन समस्या यह थी कि बेबी के व्यवहार से वह चित्रा मेल नहीं खाता था। रज्ज़ू ने पूरी ईमानदारी से बेबी के चरित्रा का विश्लेषण करना शुरू कर दिया। उसके साथ गुज़रे क्षणों की अनुभूति, उसे साफ़-तौर पर एक बेहद बिंदास और चरित्राहीन लड़की घोषित कर रही थी। लेकिन क्या, वाक़ई बेबी चरित्राहीन है?

यही वह मुख्य प्रश्न था जिसने उसे पहले भी विचलित किया था और उस वक़्त भी विचलित कर रहा था।

रज्ज़ू ने बेबी की छोटी-छोटी हरकतों पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू किया। उसके कहे शब्दों को अपने अन्दर दुहराना शुरू किया और सारी बातों को विश्लेषित करने लगा। विभिन्न तर्को-कुतर्कों से ख़ुद को समझाने की उसने लाख कोशिश की लेकिन उसके अंतस ने बेबी को चरित्राहीन ही क़रार दिया और निश्चय के इस बिन्दु ने उसे फिर बेचैनी से भर दिया।

तभी उसने सोचा, यह लड़की अगर इतनी ही दिलफेंक और चरित्राहीन है तो फिर आज तक इसके चर्चे क्यों नहीं हुए? क्या नहीं है उसके पास? धन है, दौलत है, कोठी-गाड़ी है! रूप है, सौन्दर्य है, यौवन है तो फिर कोई कहानी क्यों नहीं? ऐसे में तो इसे कुख्यात हो जाना था। इस बिन्दु पर आकर उसके समस्त तर्क अवरूद्ध हो गये। उसे कोई जवाब न मिला। तो क्या वह वाक़ई प्रेम में आबद्ध हो गई? और इतनी आबद्ध कि स्त्राीजनक लज्जा और शील को उसने पूरी तरह विसर्जित कर दिया?

रज्ज़ू का मस्तिष्क बोझिल हो गया। वह जितना ही सोचता उतना ही और उलझ जाता। अब उसने ख़ुद अपने आप को ख़ुद से अलग होकर देखना शुरू किया। अपनी हरकतों, अपने व्यवहार और आचरण पर सोचना शुरू किया। क्या वह ख़ुद सही था? बेबी के प्रति वह ख़ुद किस क़दर आसक्त था। उससे मिलने, बातें करने को कितना आतुर था। दिल तो उसका यही चाहता था कि बेबी उसे पत्नी रूप में मिल जाये। यह तो दिमाग़ ने विद्रोह किया। दोनों के मध्य, स्तर का भेद, मानसिकता का भेद और न जाने कितने अन्य प्रश्न खड़े हो गये। अन्यथा वह तो...और ज़रा बेबी की तरफ़ से देखा जाए तो उसकी क्या ग़लती है। रज्ज़ू ने तो कभी पूछ कर देखा नहीं कि क्या वह शादी के लिए तैयार है? शायद तैयार हो वह! और तैयार क्या, शायद उसने यही फ़ैसला भी कर लिया हो! किसे पता है? और शायद इसीलिए उसने समर्पण कर दिया हो?

मैडम पर उसने कैसा रियेक्ट किया था? क्या रिश्ता था उसका रज्ज़ू से? उसकी इसी हरकत से तो उसके अधिकार बोध का पता चल गया। न जाने वह कब तक वहाँ बैठा सोचता रहता कि तभी उसकी टेªन की उद्घोषणा के साथ शांत प्लेटफ़ार्म पर हलचल मच गयी।

रज्ज़ू भी हड़बड़ा कर उठा। उसकी टेªन शोर करती प्लेटफ़ार्म पर आ रही थी।

शीतल जल की फुहार में घुल कर जब बेबी अपेक्षाकृत शांत हुई तो उसने बाथरूम का शावर बंद कर दिया और भींगे बदन बाथरूम से निकल आई. कमरे में रज्ज़ू नहीं था। उसकी अनुपस्थिति से आकुल बेबी कुछ देर वहीं निश्चल खड़ी रही। फिर उसे अपने सम्पूर्ण निर्वसन भींगे शरीर का भान हुआ। वापस बाथरूम जाकर उसने अपने तन पर तौलिया डाला। भींगे बालों पर ब्रश कर पानी की बूंदें झाड़ीं। वापस अपने कमरे में आकर उसने तीनों ए. सी. चालू कर दिए. फिर कुछ देर यूं ही मौन खड़ी रही।

सेन्ट्रल टेबल पर हॉट बॉक्स में रखे खाने को देखा लेकिन कुछ भी खाने की उसकी इच्छा न हुई. उसने चाहा वह टी.वी. ऑन कर दे, फिर उसकी इच्छा बदल गई. उसने म्यूज़िक सिस्टम ऑन कर, 'सुनहरी यादें' वाली वी. सी. डी. लगा दी। कमरे में अँधेरा कर दिया और गीले तौलिये को बदन से अलग कर पूर्ण-निर्वसना हो पलंग पर ढह गई.

शंकर जयकिशन के सुर, ए. सी. की ठंढक और कमरे के अंधकार में भींगने लगे। लेकिन बेबी इसमें भींग न सकी। उसके कानों में यह रस घुल न सका। वह कुछ सुन नहीं पा रही थी। उसके चित्त में अब कोई आवेश, कोई उत्तेजना नहीं थी। पूर्ण शांत थी वह।

ग़लती उसी की है, समझ चुकी थी वह। काजल दी के कमरे के बाहर उसने स्पष्ट सुना था। रज्ज़ू उससे प्यार करता था। ख़ुद स्वीकार किया था उसने। वह तो शादी भी करना चाहता था उससे, लेकिन अपने और उसके बीच, स्टैटस के फ़र्क पर कन्फ़्यूज़ हो गया था वह।

बेबी ने फिर अपनी हरकतों पर विचार करना शुरू किया और जब अपनी निर्लज्जता पर उसने ग़ौर किया तो उसे ख़ुद पर शर्म आयी। उसने तो उसे सीधे तौर पर सेक्स के लिए इनवाईट कर दिया। उसने फँसे हुए को फाँसने की कोशिश करके सारे मामला ख़ुद ही ख़राब कर दिया। क्या सोचता होगा रज्ज़ू! उसने सोचा, वह तो ख़ुद बेहद सेन्सेटिव है और ऊपर से आर्टिस्ट। जब वह उसे फ़ोटोे सेशन में उत्तेजित करने का प्रयत्न कर रही थी, उस समय वह अपने फ्ऱेम की कम्पोज़िशन में खोया था। कैसी ईडियट है वह। अननेसेसरी और अनकॉल्ड-फ़ॉर काम किए उसने।

उसे क्या पड़ी थी कि वह स्केच बनाकर उसे एक्सप्लेन करे कि लड़कियां कैसे कन्सीव करती हें। दूसरे शब्दों में उसने उसे उत्तेजित करके फ़िज़िकल कान्टैक्ट के लिए ओपन इनविटेशन दे दिया।

क्या सोचा होगा उसने? दूसरा कोई होता तो...कांप गयी बेबी. रज्ज़ू ने जो किया वह आम आदमी नहीं करेगा। बेबी मुस्कुराने लगी। वह आम इंसान होता तो बेबी क्या अपना दिल निकाल कर रख देती इस तरह। वह तो ख़ास है। तभी तो बेबी ने...वह फिर मुस्कुराई. उसे अपने चुनाव पर गर्व हुआ।

उसने निश्चय किया। वह ख़ुद को अब कम्प्लीट चेंज़ कर लेगी। उसी की तरह ढल जाएगी वह और इस निश्चय ने उसकी आत्मा को चैन से भर दिया। शंकर जयकिशन के स्वरबद्ध बोल अब उसके अंदर सीधे प्रविष्ट होने लगे।

सुख और आमोद से भर गई वह।

बेबी ने पलंग पर लेटे-लेटे अपनी आँखों बंद कर लीं। उसके होठों पर मंद-मंद मुस्कान थिरकने लगी। उसने देखा, वह साड़ी पहने रज्ज़ू के सामने खड़ी मुस्कुरा रही है और रज्ज़ू कौतूहल भरी नज़रों से देख रहा है। बड़ी देर तक बेबी अपनी कल्पना में खोई रही, फिर उसने अपनी आँखों खोलीं और स्वर लहरियों में डूब गई.