अगिनदेहा, खण्ड-12 / रंजन
अपने स्टूडियो में रज्ज़ू आज बेहद व्यस्त और परेशान था। एक तो दोपहर में खाना खाने के बाद वह अपनी दुकान पहुंचा था। सारी रात टेªन में बैठ कर गुजारी थी उसने। घर पहुंचते ही जो सोया तो दिन के ग्यारह बजे तक सोया रहा। नहा-
धोकर भोजन करते-करते दो बज गये, तब वह पहुंचा। दुकान खोलने की ड्यूटी भोला की थी। वह सुबह आठ बजते-बजते ही दुकान खोल कर साफ़-सफ़ाई कर देता था। भोला के अतिरिक्त दो और लड़के रज्ज़ू के स्टूडियो में काम करते थे। एक राजेन्दर जो फ़ोटोे भी खींचता था और डार्करूम का भी काम करता था। दूसरा नारायण जो रीटचिंग और फ़िनीशिंग का काम करता था। तीनों में सबसे बड़ा नारायण था, लेकिन थोड़ा ऊँचा सुनने के कारण सब उसे बहरू कहते थे और रज्ज़ू की अनुपस्थिति में, दोनों लड़के उसे चिढ़ा कर हँसी-मज़ाक करते रहते।
रज्ज़ू ने देखा काऊंटर के शो-केस में बिक्री के लिए एक भी फ़िल्म नहीं बची थी। पूरे शो-केश में फ़िल्मों के खाली डब्बे सजा कर रखे थे अैर नारायण काऊंटर पर बैठा निगेटिव रीट्च कर रहा था। भोला सामने की कुर्सी पर बैठा झपकियां ले रहा था।
रज्ज़ू पर नज़र पड़ते ही वह हड़बड़ा कर उठ गया। नारायण ने भी काऊंटर खाली करने के लिए अपने सामान समेटने शुरू कर दिए.
रज्ज़ू ने स्टूडियो में जाकर चारों तरफ़ एक नज़र डाली फिर काऊंटर में आकर अपनी कुर्सी पर जम गया। नारायण ने पूरे दस दिनों के हिसाब की पुर्जी रज्ज़ू को थमा दी। रज्ज़ू ने हिसाब मिला कर नग़दी ली। सब ठीक था, पैसे भी जमा थे, फिर इन लोगों ने फ़िल्म क्यों नहीं मंगायी? पता चला भोला और राजेन्दर का नारायण से झगड़ा हुआ है। ये दोनों जब उसे धीरे से बहरू कह कर सम्बोधित करते तो वह नहीं सुन सकने के कारण आँखों से सवाल करता था फिर ये दोनों जोर से बोल कर बातें शुरू कर देते। चार दिन पहले, असावधानी में भोला ने जब उसे बहरू कह कर पुकारा तो भोला का स्वर अपेक्षाकृत ऊंचा था जिसे नारायण ने सुन लिया और नतीजे में थप्पड़ खा गया।
बात जब बढ़ गई तो राजेन्दर भी चपेट में आ गया। नारायण का कहना था दोनों आपस में मिले हुए हैं और मिल कर उससे मज़ाक़ करते हैं। रज्ज़ू तो था नहीं, इसलिए मामले का समाधान हुआ नहीं। नारायण ने दोनों से मुँह फुला कर, बात करना बंद कर दिया। अब काऊंटर में नग़दी का मालिक तो वही था। उससे पैसे मांगता कौन? और नतीजा यह हुआ कि चार दिनों से फ़िल्म की बिक्री बंद।
रज्ज़ू को बेहद क्रोध आया। उसने तीनों पर अपना ग़ुस्सा उतारा और तुरंत भोला को फ़िल्म लाने दौड़ा दिया। घंटों उसका मूड ख़राब रहा फिर उसने बेबी के एक्सपोज़ड फ़िल्मों के डेवलपिंग की व्यवस्था शुरू कर दी। राजेन्दर से तो डेवलपिंग करानी नहीं थी, नहीं तो वह देख लेगा। रज्ज़ू को ख़ुद डार्करूम जाना होगा।
पिछली बार कलकत्ता से वह पैट्रसन का टैंक और स्पायरल ख़रीद कर लाया था, जो तभी से यूं ही पड़ा था। स्पायरल में फ़िल्म चढ़ाना, राजेन्दर को ज़हमत भरा काम लगता था। जैसे बाक़ी लोग करते थे उसी तरह वह भी टेª में फ़िल्मों को डेवलप करता था। डार्करूम में हमेशा वह अपने पास एक ट्रांजिस्टर रखता।
'विविध भारती' या 'रेडियो सीलोन' लगा कर वह हल्के स्वर में फ़िल्मी गीत सुना करता। डेवलपर में पूरे तीन मिनट फ़िल्मों को रखना पड़ता था। ट्रांजिस्टर में गाना लगा कर वह कैमरे से फ़िल्म निकालता। वेटिंग एजेन्ट में उसे भिंगोता और ज्यों ही दूसरा गाना शुरू होता, वह डेवलपर में फ़िल्म डालकर गाने का आनंद लेता रहता। गाना ख़त्म-डेवलपिंग ख़त्म। झट से डेवलपर वाले टेª से फ़िल्म निकाल कर एसिटिक एसिड ग्लेसियर मिश्रित पानी के टेª में डालता फिर निकाल कर हाइपो वाले टेª में फ़िल्म को फ़िक्स होने डाल देता।
रज्ज़ू ने कई बार कोशिश की थी, लेकिन वह पैटरसन के टैंक में फ़िल्म डेवलप करने से हमेशा भागता रहा।
लेकिन आज वह ख़ुद इसी टैंक में सारी फ़िल्मों को डेवलप करना चाहता था। रज्ज़ू ने राजेन्दर से अपने सामने 'माइक्रोडौल-एक्स' डेवलपर बनवाया। इस डेवलपर में बीस डिग्री सेन्टीग्रेड पर पूरे बारह मिनट डेवलप करना था। चूंकि वातावरण गर्म था इसीलिए उसने भोला से बर्फ़ मंगवाया। वेटिंग एजेन्ट, डेवलपर, रिंज और फ़िक्सर को बोतलों में भर कर उसने बर्फ़ के बकेट में ठूंसा और थर्मामीटर से तापमान नापा।
डार्करूम जाकर उसने स्पायलरों में फ़िल्म लोड किया। उसे टैंक में रखा और बाहर आ गया। रज्ज़ू ने फिर से थर्मामीटर लगाया। तापक्रम अठारह डिग्री सी. हो गया था। उसने डेवलपर का बोतल बाहर निकाला और उसी तापक्रम में उसने उसे टैंक में डाल दिया। दो डिग्री कम ठंडा होने के कारण, डेवलपिंग का समय उसने तद्नुसार और बढ़ा दिया।
यह सारे तमाशा भोला और राजेन्दर बड़ी उत्सुकता से देखते रहे और नारायण स्टूडियो के काऊंटर पर बैठा रहा। दोनों बार-बार दीवार पर टंगी घड़ी को देख रहे थे और रज्ज़ू अपनी कलाई घड़ी में समय देख रहा था। आधे घण्टे में काम समाप्त हुआ तो वे दोनों फ़िल्म देखने के लिए तड़प रहे थे। माइक्रोडॉल-एक्स जैसे अल्ट्रा फ़ाईन-ग्रेन डेवलपर में पहली बार फ़िल्म डेवलप हुई थी, वह भी इतने ताम-झाम के साथ। पांच रुपये की तो केवल बर्फ़ ही आ गयी थी। टेª में डेवलप करना कितना आसान है-राजेन्दर सोच रहा था, यह सारे नख़रा बेकार है। उसे पता था, गर्म केमिकल में फ़िल्म गल जाया करती थी, इसीलिए वह फ़िक्सर में एलम क्रोम डाल कर फ़िक्स करता था। गर्मी और भी ज़्यादा हुई तो वेटिंग एजेन्ट में भी वह एलम-क्रोम डाल देता था। उसे लग रहा था भाई जी ने गलने के डर से ही बर्फ मंगवाया था। रज्ज़ू को तीनों भाई जी कहते थे। फिर उसे यह भी विश्वास था कि सारी फ़िल्म बुरी तरह ओवर-डेवलप हो जायेगी क्योंकि डेवलप तो वह रोज़़ ही करता है और कभी तीन मिनट से थोड़ा भी ज़्यादा हो गया तो फ़िल्म ओवर डेवलप हो जाती थी। तब उसे दुबारा रिड्यूस करना पड़ता था। यहाँ तो भाई जी ने पूरे चौदह मिनटों तक डेवलप किया था। लेकिन अपना शक ज़ाहिर करने में वह झिझकता था। भाई जी की बुद्धि पर गर्व भी करता था। वे हमेशा फ़ोटोेग्राफ़ी की अंग्रेज़ी किताब पढ़ते रहते हैं, वह जानता था। नई-नई बात भी वे हमेशा बताते थे और डार्करूम में नये प्रयोग भी करते थे इसीलिए उसका विश्वास थोड़ा डगमगाया-हो सकता है इस स्पेशल केमिकल में इतना ही वक़्त लगता हो, उसने सोचा। लेकिन अब वह फ़िल्म देखने से ख़ुद को रोक न पा रहा था।
अपने ही फैलाए झमेले में रज्ज़ू फंस चुका था। राजेन्दर से उसने इसीलिए डेवलप नहीं कराया कि वह देख लेगा और अब तो स्थिति और भी बद्तर हो गई. डेवलपिंग की क्वालिटी देखने के लिए राजेन्दर तड़पा जा रहा था।
दरवाजे पर पड़ रही लगातार दस्तकों से बेबी की आँखों खुलीं। सारे पर्दे खुले थे और कमरे में अँधेरा छाया था। अलसाई आँखों से बेबी ने दीवार पर टंगी घड़ी में समय देखना चाहा, लेकिन अंधेरे में उसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। अंगड़ाई लेती वह उठी। ख़ुद को निर्वस्त्रा देख हौले से मुस्कुराई और मुस्कुराती हुई ही वार्डरोब के पास जाकर पहले उसने कमरे में रोशनी की, गाऊन निकाल कर पहना फिर उसने दरवाज़ा खोला।
बाहर मुस्कुराती हुई, मैडम ललिता खड़ी थी। आज उन्होंने शुभ्र सफे़द, चमकती साड़ी पहनी थी। अचानक मैडम पर नज़र पड़ते ही वह चौंक गई.
-'मैडम, आप!' आश्चर्य में बेबी ने पूछा।
-'क्यों... डिस्टर्ब कर दिया मैंने?' मैडम ने मुस्कुराते हुए ही पूछा। अब तक सहज हो चुकी बेबी ने उसे अंदर आने के लिए रास्ता देते हुए कहा-'नहीं, ऐसी क्या बात है, लेकिन आपने मुझे चौंकाया अवश्य है। आइये अंदर।'
बेबी के साथ-साथ अंदर आकर मैडम बैठ गई तो बेबी ने पूछा-'आज सुबह-सुबह अचानक कैसे आयीं आप? इस समय तो आप बेहद बिज़ी रहती हैं।'
-'ग्यारह बज चुके हैं। सुबह है यह? और मुझे तुमसे बातें करनी थी। बॉस से कह कर आयी हूँ मैं।' मैडम अपनी बात कह कर सोफे़ पर आराम से फैल गयीं।
बेबी अभी तक हैरान थी। आमतौर से मैडम बेहद रिज़र्व रहती थी। 'जानकी कुटीर' में किसी से गप्पें मारने की न उन्हें फ़ुर्सत थी, न शौक़। वे हमेशा अपने काम से ही काम रखती थी। बेबी से बमुश्किल गाहे-बगाहे, कभी-कभी दुआ-सलाम हो जाया करती था...बस और आज वही मैडम ख़ास तौर से बेबी के पास बातें करने आयी थी, यह बात बेबी को अटपटी लग रही थी। मामला क्या है आख़िर? यह ज़रूर रज्ज़ू पर बात करेगी, दोस्त जो बनाया है इन्होंने उसे और कल साथ-साथ अंकल की गाड़ी में दोनों ड्रायविंग पर भी निकले थे।
बेबी ने पूरी कोशिश करके चेहरे को सामान्य रखते हुए आख़िर कहा-'मुझसे क्या बातें करनी हैं आपको?'
-'टेक इट इज़ी डार्लिंग।' मैडम हँस पड़ी फिर उन्होंने कहा-'बात क्या है? ठीक से सोई नहीं रात में? तुम्हारी आँखों में अभी तक।'
आगे मैडम कुछ और कहती कि हँस पड़ी बेबी. उसकी हँसी रुकी तो उसने मुस्कुराते हुए कहा-'अब और ज़्यादा सस्पेंस क्रिएट मत कीजिए मैडम, बात क्या है सीधे प्वायंट पर आइए तो बेहतर होगा।'
-'ओ. के. माय डियर, सीधे प्वायंट पर ही आती हूँ... चाय पिओगी? कह दूँ?'
-'नो मैडम, थैंक्स। मैं बेड-टी नहीं लेती। आप लेंगी?'
-'नो आयम ओ. के...तो चलो अपने मतलब पर आती हूँ मैं।'
बेबी सम्हल कर बैठ गई. उसकी उत्सुक निगाहें मैडम की आँखों में
गड़ गईं।
-'तुम किसी अफ़ेयर में हो आजकल?'
मैडम की बात बेबी को तोहमत-सी लगी। उसकी भवें तन गईं। उसने सिर्फ़ एक शब्द में प्रश्न करते हुए कहा-'तो?'
-'मैंने कहा न, टेक इट ईज़ी! मैं तुम्हें इम्बैरेस नहीं कर रही, सिर्फ़ जानना चाहा है...तुम्हारे साथ यूँ तो मेरा डायरेक्ट कोई रिश्ता नहीं, फिर भी तुम्हारे पापा चूंकि मेरे इम्पलायर हैं और ख़ुद मैं उम्र में तुम्हारी माँ की तरह हूँ... मुझे अपनी माँ नहीं तो बड़ी बहन ही मानकर मुझे इतनी लिबर्टी तो दो कि तुम्हारी फ़ीलिंग्स को शेयर कर सकूं, तुम्हें गाईड कर सकूं।'
-'तो आप मुझे गाईड करने आयी हैं?' बेबी की आँखों में व्यंग्य उभर आया। उसकी आवाज़ तीखी हो गई.
-'नाराज़ हो गई तुम। मैं तुम्हें हर्ट करने नहीं आयी।'
-'तो सपोर्ट करने आयी हैं।'
-'येस ऑफ़कोर्स, तुम्हें सपोर्ट भी करूंगी।'
-'मेरे दोस्त से दोस्ती करके...क्यों?' बेबी की आवाज़ और भी तीखी हो गई. उसकी समझ में सारी बातें आ गयी थीं। रज्ज़ू से अलग करना चाह रही हैं मैडम। वाह क्या डिप्लोमैसी है। बेबी को आक्रोश के साथ-साथ इस बात पर हैरानी हो रही थी कि मैडम अपने स्वार्थ के लिए कितनी जल्दी खुलने लगी थीं।
मैडम की मुस्कुराती निगाहें बेबी के बदलते मनोभावों पर जमी थीं। अचानक वह खिलखिला कर हँस पड़ी और फिर हँसते-हँसते ही कहने लगीं-
-'यू हैव कमप्लीट्ली मिसअण्डरस्टूड मी। चलो कोई बात नहीं। अचानक जब कल मैंने तुम्हारे दोस्त से दोस्ती कर ली तो तुम्हारा कन्फ़्यूज़ होना नैचुरल है। चलो मैं एक्सेप्ट करती हूँ मैंने कल ही उसे अपना दोस्त बनाया है एण्ड आई फ़ील प्राऊड ऑफ़ हिम। नाऊ बी काम्फ़र्टेब्ल एण्ड टॉक विद मी। लेकिन पहले तुम फ्ऱेश हो जाओ. मैं तुम्हारा ब्रेक-फ़ास्ट मंगवाती हूँ।' बेबी का समस्त आक्रोश अब उत्सुकता में बदल गया। आँखों फाड़े वह मैडम को देखती रही और हँसती हुई मैडम ने उठ कर बेबी की बाँह पकड़ी-'चलो उठो...फ्ऱेश हो जाओ, मैं ब्रेकफ़ास्ट के लिए कह कर आती हूँ।'
मैडम ने बड़े लाड़ से बेबी को बाथरूम भेजा और ख़ुद बाहर निकल गयी।
रज्ज़ू की लाख कोशिशों के बावज़ूद, राजेन्दर और भोला ने डेवेलप की हुई फ़िल्में देख लीं। रज्ज़ू को भी पता था कि दोनों बदमाशों ने पूरे फ्ऱेम देख लिए हैं और वे दोनों भी जान रहे थे कि भाई जी को पता है कि हमने देख लिया है। लेकिन दोनों मोर्चे ख़ामोश थे।
रज्ज़ू स्टूडियो के काऊंटर पर बैठा था। अंदर स्टूडियो में नारायण ग्राहक का पासपोर्ट फ़ोटोे खींच रहा था। काउंटर के शोकेस में फ़िल्में भर चुकी थीं। राजेन्दर डार्करूम में था और भोला बड़े जोश में सारे शीशे साफ़ करके चमका रहा था। शायद अभी-अभी कोई ट्रेन आई थी। चौराहे पर अचानक भीड़ बढ़ गई. तभी कोले दा अपने जावा मोटर साईकल पर आ पहुँचे। रज्ज़ू को दूर से ही देखा, मुस्कुराए और स्टूडियो के सामने मोटर साईकल खड़ी कर अंदर आये।
-'आंय जी! आये कब?' काऊंटर के सामने कुर्सी पर बैठते हुए उन्होंने पूछा तो रज्ज़ू मुस्कुराया।
-'आज ही सुबह पहुँचा हूँ।'
-'लम्बा रह गए इस बार।'
-'हां! भारती ने रोक लिया था। रैली है न आज।'
-'तो? तुमको भी भाषण-वाषण देना था क्या?' कह कर कोले दा हँसे तो रज्ज़ू ने कहा-'गेट डिज़ाईन का उसने कंाट्रैक्ट लिया था।'
-'अच्छा! तो छोड़ दिया रिप्लीका का बिजनेस? हम तो जानते ही थे। उसका डीलर भी फ़ाल्तुए है। जानते हो कि नै, हमरे पीछे भी पड़ा था वह। अब तुम्हीं बताओ...रिप्लीका बनाऐंगे हम? सभ्भे को भारतीए समझता है वह। खैर छोड़ो कैसा रहा वहाँ?' कोले दा की आँखों चमकने लगीं-'बेबी से मिले?'
रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा, तो उन्होंने फिर खोदा।
-'मिले कि नै अपनी हिरोईन से?'
-'आप भी कोले दा!' रज्ज़ू के स्वर में आज़िजी थी।
-'लो...अब इसमें शरमाने-लजाने का क्या है?'
-'हमलोगों को फ़ुर्सत थी कोले दा? दो दिन तो डाक्टर के चक्कर में ही लग गये। बाक़ी दिन, सुबह से शाम तक रैली वाले मैदान में ही फँसे रहे।'
कोले दा, हो...हो...कर हँस पड़े फिर उनकी आँखों सिकुड़ीं और उन्होंने बेहद रहस्यात्मक स्वर में कहा-
-'हमको तो देखते ही दौड़ पड़ती है वह...अब क्या कहें तुमको...हम क्या कोई।' और आगे कुछ न कह कर फिर हँसने लगे कोले दा।
उनकी कुत्सित मुस्कुराहट भरी आँखों में वासना की डोर उभर आयी। रज्ज़ू को बेहद बुरा लगा। बेबी के प्रति कोले दा के कलुषित विचार पर, अंदर ही अंदर वह तिलमिला कर रह गया लेकिन कहा कुछ नहीं। कोले दा के पास बात करने के लिए एक ही विषय था। वे घुमा-फिरा कर इसी प्रसंग को खोदते रहे और रज्ज़ू हाँ-हँू करते-करते जब ऊब गया तो अंततः उसने नाराज़ होकर कहा-
-'अब छोड़िए भी बेबी को, आप का क्या हाल-चाल है?'
-'मेरा तो ठीक्के है। आते कहाँ हो तुम आज-कल...देखो तो सही क्या कर रहे हैं हम?'
-'क्या कर रहे हैं?'
-'ख़ाली पोर्ट्रेट बन रहा है।'
रज्ज़ू चुप रहा तो कोले दा फिर चहके-'तुम तो जानते ही हो, ऑरिजिनल का हम कभी ग्राफ़ नहीं करते हैं...डायरेक्ट स्केच! करेगा कोय?'
रज्ज़ू हँसने लगा। कोले दा की यह पुरानी आदत थी। पेंटिंग के प्रति आत्मविश्वास तो अच्छी बात है लेकिन कोले दा का अहंकार उसे कभी अच्छा नहीं लगता था। अपने अंतर के भाव छिपा कर प्रत्यक्ष में उसने कहा-
-'फिर तो आजकल चांदी कट रही है, कोले दा आपकी? ...कुछ नाश्ते का भी ख्याल रखिए दोस्तों का।'
रज्ज़ू की बात पर कोले दा ने मुँह सुखा कर कहा-'अभी कहाँ?' अभी तो अंटी खाली करके कैनवस और कलर ख़रीदे हें। डेलीवरी करने के बादे न पैसा आएगा। '
रज्ज़ू मुस्कुराया। ख़र्चे की बात पर कोले दा का हाथ तुरंत ऊपर उठ जाता था। यह पुरानी बात थी। बहरहाल वह कुछ कहता कि इसके पूर्व उसकी नज़र रंगकर्मी मतवाला पर पड़ी।
-'कहां चले गए थे रज्ज़ू जी?' कहते हुए वे स्टूडियो के काऊंटर पर आ
धमके और कोले दा को देखकर मुस्कुराए फिर उनकी बगल वाली कुर्सी पर जमते हुए उन्होंने रज्ज़ू से कहा-'आपके ग़ायब रहने से सारे काम रुका पड़ा है। चलिए ज़रा रासो बाबू के पास।'
रासो बाबू का अपना प्रिंटिंग प्रेस का व्यवसाय था जहाँ मतवाला का एक नाटक छप रहा था। रज्ज़ू समझ गया, मामला क्या है। रासो बाबू को पैसे देने होंगे। मतवाला का नाटक वही प्रकाशित करवा रहा है। वह अपने काऊंटर से निकला और कोले दा को वहीं बैठने कहकर मतवाला के साथ निकल गया।
रज्ज़ू के निकलते ही नारायण काऊंटर पर आ बैठा और राजेन्दर भी डार्करूम से बाहर निकल कर कोले दा के पास आकर खड़ा हो गया। कोले दा समझ गए. राजेन्दर तक़ाज़ा करेगा। दरअसल राजेन्दर ने अपनी स्वर्गीया माँ का एक फ़ोटोे, कोले दा को पेंटिंग बनाने के लिए पिछले साल ही दिया था। कोले दा ने ही एक दिन मौज में आकर उसे कहा था कि वे फ्ऱी में उसकी माँ की पेंटिंग बना देंगे और राजेन्दर ने घर के पूजा स्थल में टंगी एकमात्रा फ़ोटोे लाकर, कोले दा को सौंप दी थी। तभी से कोले दा को राजेन्दर रोज़़ अपनी जेब से चाय पिलाता था और पेंटिंग के लिए ख़ुशामद करता था। कोले दा भी बिना झिझक उसकी चाय पीते और पेंटिंग पूरी करने का वादा कर देते और सिलसिला यूं ही चलता रहता। अब पता नहीं कोले दा अपने वायदे पर खरे उतरेंगे या नहीं लेकिन राजेन्दर ने अपना धीरज नहीं छोड़ा था। बाहर आते ही उसने भोला को चाय लाने भेजा और चेहरे पर ख़ुशामदी मुस्कान लाकर उसने कोले दा से अपनी पेंटिंग के विषय में रोज़़ की तरह पूछा।
-'तुम्हारे लिए स्टेªच किया हुआ कैनवस मंगाये हैं। फ्ऱेम करके शुरु कर देंगे...फिकर काहे करते हो।' कोले दा कह कर मुस्कुराने लगे। फिर कहा-'यह मतवाला जी का क्या खिस्सा है?'
-'भाई जी किताब छपवा रहे हैं इनकी।'
-'यही सब करेगा तुमरा मालिक...फिजूल काम में इसका मन ज़्यादा लगता है। एक न एक आदमी पड़ा रहता है इसके पास। जो कमाता है लुटाते रहता है। और देखो! धंधा-पानी छोड़ कर भारती के पास दस दिन रह गया। बेगारी करता रहा वहां।'
राजेन्दर ने कुछ नहीं कहा। अपने मालिक के काम में भला वह कह भी क्या सकता था? फिर भी कोले दा से उसने कहा-'अब पता नहीं क्या काम है इनका वहाँ? कहे हैं फिर जाएंगे।'
-'क्या! फिर जाएगा...कब?'
-'अब यह तो हमलोग नहीं जानते हैं लेकिन वहाँ से जो फ़ोटोे खींच के लाए हैं। वही पहुँचाने जाऐंगे शायद।'
चौंके कोले दा-'फ़ोटोे! अरे किसका फ़ोटोे खींचा है तुमरा मालिक?'
गड़बड़ा गया राजेन्दर। उसे यह बात नहीं बतानी थी। धोखे में ज़बान फिसल गई उसकी और कोले दा ने खोद-खोद कर आख़िर न केवल सारी बात जान ली बल्कि डार्करूम में सूखने के लिए टंगी फ़िल्म भी देख ली।
ख़ुशामद करने की अब कोले दा की बारी थी। उन्हें सारी फ़िल्म का कान्टैक्ट प्रिंट चाहिए था और राजेन्दर की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अपने मालिक से ग़द्दारी करे।
मैडम के सामने बेबी ने अपना ब्रेक-फ़ास्ट ख़त्म किया। मैडम ललिता से उसे रज्ज़ू की पूरी कहानी का पता चल-चुका था। मैडम ने केवल एक ही बात छुपाई कि रज्ज़ू का टेस्ट उसने किसके आदेश से लिया था। बहरहाल मैडम ने रज्ज़ू के लिए अपनी ओर से ग्रीन सिग्नल देकर बेबी को निहाल कर दिया।
बेबी ने भी मैडम के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया।
-'चलो अब मेन ईशू पर आओ.' मैडम ने बेबी से कहा-'सारे कन्फ़्यूज़न तो क्लीयर हो गया। अब यह बताओ डार्लिंग, आगे करना क्या है? वुड यू मैरी हिम?'
अचानक इस प्रश्न के लिए बेबी तैयार न थी। वह कोई जवाब न दे सकी तो मैडम ने फिर से अपना प्रश्न दुहराया-'चुप क्यों हो गई? अभी और अफ़ेयर्स चलाना है या शादी करनी है...या अभी कुछ सोचा नहीं?'
-'अभी कुछ कह नहीं सकती...उसके सेंटीमेन्ट्स भी जानने होंगे मुझे। वह क्या चाहता है, क्या सोचता है। फिर उसका ख़ुद का क्या बैकग्राऊंड है...कैसी फैमिली से बिलोंग करता है। कुछ भी तो नहीं जानती मैं।'
-'फिर जानती क्या हो?'
-'आई एम इन लव विद हिम! दिस मच आई नो। एण्ड दिस इज़ एनफ़ फ़ौर मी।'
मैडम मुस्कुरायी। उनकी आँखों में ममत्व उभरा और उन्होंने उठ कर बेबी को अपने अंक में भर कर चूम लिया-'गॉड ब्लेस यू माई बेबी... अच्छा तो अब मैं चलती हूँ।' अपनी बात कह कर मैडम बेबी से अलग हो गई तो बेबी ने इठला कर उनका हाथ पकड़ लिया-'वन मिनट मोर मैडम...मुझे आपसे एक काम है।'
-'येस, टेल मी।'
-'मुझे आप अपनी तरह, साड़ी बांधना सिखा दीजिए.'
मैडम अपनी निर्निमेष निगाहों से बेबी को देखने लगी। बेबी ने फिर कहा-'मैं उसके सामने साड़ी में जाना चाहती हूँ।'
-'साड़ी है तुम्हारे पास?'
बेबी ने इंकार में सर हिलाया फिर कहा, -'मैनेज हो जायेगा।'
-'ओ. के. डार्लिंग! मैं सिखाऊंगी तुम्हें...अच्छा अब जाऊंगी मैं।' मैडम ने अपनी स्नेहमयी आँखों से बेबी को कुछ क्षण निहारा और अचानक उसे अंक में भर, फिर चूम कर कहा, -' मैं प्रार्थना करूंगी प्रभू से, इस लड़के को तुमसे वह कभी जुदा न करे।