अगिनदेहा, खण्ड-3 / रंजन

Gadya Kosh से
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काजल के एक पोर्ट्रेट ने छोटी बेबी को बड़ी बेबी बना दिया और इसने टैरेस-गार्डेन पर जाना अचानक बंद कर दिया।

सक्सेना चौंका, श्रीवास्तव चौंका, काजल भी चौंकी। किसी को पता न चला कि उनकी बेटी एकाएक बड़ी हो गई है।

पहले तो उसके पिता और सक्सेना अंकल, अपनी व्हिस्की चुसकते रहते और कभी-कभी बेबी अपनी रीसेपी खाती रहती। तब श्रीवास्तव के टैरेस-गार्डेन की वी-आई-पी यहीं होती।

बेबी की पसंद का चिकेन-रोस्ट और अंडों का वाटर-पोच उसे सर्व होता। जब उसके पिता और सक्सेना अंकल अपने-अपने ड्रिंक्स चियर्स करते, उस वक़्त बेबी अपना सूप उनके साथ चियर्स करती।

उस समय बेबी बड़ी नहीं थी। सक्सेना अंकल बेबी को अपनी गोद में बैठाते, प्यार करते और बेबी ख़ुश हो जाती। किसी दिन सक्सेना अपने दोस्त से उलझ जाता तो बेबी ठुनक जाती और तब तक रूठी रहती जब तक सक्सेना अपने कान पकड़ कर सॉरी न कह देता और बेबी को प्यार न कर लेता।

लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया।

काजल, बेबी की हर धड़कन से वाक़िफ़ थी।

उसने बेबी को प्यार करते हुए जब उससे पूछा, -'बात क्या है डार्लिंग? आख़िर तुम्हें हुआ क्या है?'

तो उसने जवाब में काजल से अजीब-सी फ़रमाइश कर दी, -'काजल-दी... में आई लव यू?'

काजल जब अवाक् रह गई तो बेबी ने सिर्फ़ एक जुमला कहा, -'प्लीज़़!'

और उलझन में उलझी काजल ने कह दिया था, -'येस बेबी यू में।'

काजल के कहते ही झपट कर बेबी ने उसे जकड़ लिया था और उसके गालों, अधरों को बुरी तरह चूमने-चाटने लगी तो काजल और भी उलझ गई. यह तो साफ़-साफ़ मेंटल केस है, उसने सोचा और सोच कर टेंस हो गई थी।

और काजल के बदन में... उसके गालों में... अधरों के रेशे-रेशे में... बेबी को कहीं भी भारती के शरीर की गंध नहीं आ रही थी। भारती की मानुष-गंध! जो उस वक़्त जनून में डूबी बेबी खोज रही थी।

नतीजे में झटके से उसने काजल को ख़ुद से धकेल कर परे कर दिया और दोनों हथेलियों से अपनी आँखों बंद कर रोने लगी।

काजल और भी उलझ कर रह गई. उसे लगा था बेबी मेंटल केस बन गई है लेकिन उसके बाद उसके मन में एक प्रश्न ने जन्म लिया। कहीं यह लेस्बीयन तो नहीं? लेकिन अब इस स्थिति ने तो उसे पूरी तरह उलझा कर रख दिया।

बेबी अब सारे दिन खोई-खोई-सी रहती। उसकी चमकीली आँखों की चमक बुझ गई. अधरों पर थिरकने वाली मुस्कान, अधरों से गायब हो चुकी थी। सारे दिन 'जानकी कुटीर' में कुलांचें भरती रहने वाली हिरणी शांत हो गई और ऐसे में ही उसने अपने ख़्यालों में एक पुरूष की ख़्याली तस्वीर बनानी शुरू कर दी।

बेबी के ख़्यालों के कैनवस पर एक सुन्दर सजीले नवयुवक की धूमिल आकृति उभरने लगी। सबसे पहले उसकी आँखों उगीं, फिर घुँघराले बाल उभरे... फिर लम्बी खड़ी नाक...अधर... और फिर उसका सम्पूर्ण मांसल शरीर उभर आया।

लेकिन बेबी की परिकल्पना में स्पष्ट कुछ न था। कभी उसके सपनों के राजकुमार की मंूछें उग आतीं तो कभी बिल्क़ुल क्लीन शेब्ड हो जाता। दरअसल बेबी को ख़ुद पता न था उसे कैसी शक्ल चाहिये, इसीलिए उसकी कल्पना में कोई एक चेहरा थोड़ी देर के लिए भी रुक कर ठहरता न था।

वैसे एक बात वह जान चुकी थी, उन चेहरों में कम से कम भारती का चेहरा तो कहीं नहीं था। वैसा सांवला, पिलपिला और नाटा...नहीं...हर्गिज नहीं। जिस मानुष-गंध के लिए उसने काजल को लपेट कर चूमा था उस मानुष-गंध को तो उसने सिरे से ही नकार दिया और उसकी तस्वीर में चेहरे बदलते रहे, रंग बदलते रहे और अब सारे दिन वह अपने दिल के कोरे कैनवास पर अपने अहसास के रंग बिखेरने लगी।

ऐसे वक़्त में उसकी उदासी समाप्त हो जाती। पुतलियों की चमक लौट आती और अधरों पर कभी शरारती, कभी शर्मीली मुस्कान थिरकने लगती। बेबी की कल्पना ने अब रोज़़ एक नई तस्वीर बनानी शुरू कर दी। घंटों की कल्पना-परिकल्पना के बाद वह एक सुन्दर चेहरा, अपने अंतरमन के कोंपल में उगाती। उसे संवारती। चेहरे की धुंधली आकृति को थोड़ी और स्पष्ट करती फिर थोड़ी और। वह आऊट ऑफ़ फोकस चेहरा धीरे-धीरे फोकस में आता फिर ... वह चेहरा सामने आ जाता। जागी-जागी आँखों से वह स्वप्न देखती और उसे हक़ीक़त मानने के लिए अपने वज़ूद को इस क़दर मज़बूर कर देती कि उसका सपना हक़ीक़त में तब्द़ील हो जाता।

और जब बेबी उसकी अभिसारिका होना चाहती तब वह विलुप्त हो जाता। फिर भी यक़ीन की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी होतीं कि वह अवसादित होने की जगह रूठ जाती। मनुहार कराती, मुस्काती फिर बैठ जाती और पूरे मनोयोग से लम्बा...बेहद लम्बा, प्रेम-पत्रा लिखना शुरू करती तो घंटों लिखती रहती...लिखती रहती। लिखने के बाद जब उस पर परफ़्यूम के स्प्रे करती तो उसकी बदक़िस्मती कि परफ़्यूम की ख़ुशब़ू, उसके स्व-निर्मित परिकल्पना को अचानक ध्वस्त कर देती। बेबी यथार्थ के धरातल पर ख़ुद को खड़ी पाती। उसका समस्त भ्रम-जाल धराशायी हो चुका होता और तब उसे अवसाद का घना कोहरा घेर लेता।

बेबी की आँखों भर आतीं। वह रोने लग जाती। पहले सिसकियां लेती, बाद में फूट-फूट कर रोने लगती और प्रेमपत्रा के पन्नों को हजार टुकड़ों में विभक्त करती रहती।

कभी जिसका भोलापन और मासूमियत उसके पिता की परेशानी के सबब थे, वही बेबी रोज़़ की तरह अभी तक फ़ोन पर उलझी थी। यह उसके चरित्रा की नई उपलब्धि थी। वह कोई भी नंबर ऐटरेन्डम लगाती। इतनी रात गये फ़ोन उठाता कौन? कॉल अगर तुरंत रिसीव न किया जाता तो उसे डिसकनेक्ट कर, वह कोई भी अगला नंबर लगा देती। उसे तो मतलब था सिर्फ़ सात डिजीट्स से। सात बार बटन दबाना है बस। नम्बरों के कॉम्बीनेशन से उसे क्या लेना-देना? नम्बर कोई भी हो, उसे तो मतलब था केवल कॉल रिसीव होने से।

'हैलो' में अगर पुरूष स्वर आया तो ठीक, नहीं तो तुरंत फ़ोन काटकर वह नये कम्बीनेशन ट्राई करने लगती और यह सिलसिला चलता रहता। बेबी की हालत ठीक उस चिड़िया की तरह हो गई थी जिसकी आँखों खो गई हों और दाने के लिए अंदाज़़ से ही जहां-तहां चोंच मारने के लिये अभिशप्त हो।

परेशान हो गई वह। रात के दो बज रहे थे और उसके लगाए नम्बरों पर केवल रिंग होता रहता था। आजिज़ आकर उसने निश्चय किया कि इस बार वह अपना अंतिम नंबर ट्राई करेगी। हालंाकि पिछले चार नम्बरों को भी उसने यही सोच कर ट्राई किया था कि यह आख़री ट्राई है। लेकिन इस बार उसने फ़ाइनल फ़ैसला किया और सात नम्बरों का एक अनजाना नम्बर लगाया। रिंग टोन आया। एक उनींदी औरत की अलसाई आवाज़ आई, -'हैलो! कौन है इस वक़्त?'

जनाना आवाज़ पर बेबी को निराशा तो बेहद हुई लेकिन क्रोध भी जमकर आया। इतनी मुश्किल से एक कॉल लगा तो वह भी...

-'सोईं हैं मेम साहब?' उसने दांत पीसते हुए कहा तो आवाज़ आई,

-'कौन हो तुम?'

-'पहले मेरी बात का जवाब दे। अकेली सोयी है कि है कोई साथ में?' बेबी की बात ख़तम हुई नहीं थी कि रिसीवर में किसी पुरूष के बड़बड़ाने की आवाज़ आई, -'कौन है डार्लिंग?'

-'अच्छा! तो अकेली नहीं हो तुम, किसके साथ लेटी हो?' बेबी ने पूछा।

-'क्या मतलब?' रिसीवर पर क्रोधित स्वर आया।

-' मेंने पूछा, तेरे साथ...तेरा यार लेटा है...या ख़सम है तेरा? बात करा

मुझसे। '

इस बार बेबी के रिसीवर पर एक रौबिली आवाज़ आई,

-'हैलो! हू ईज कालिंग?'

बेबी ख़िलख़िला कर हँस पड़ी। हँसते हुए ही उसने कहा,

-'रात के दो बजे एक अकेली जवान लड़की क्या चाहती है...नहीं समझते? जिसे लपेट कर लेटा है...उसकी जगह मैं लेटना चाहती हूँ ईडियट।'

और अपनी बात तेज़ी से कह कर हांफती हुई बेबी ने तुरंत फ़ोन काट दिया।

अंधी चिड़ियाँ की चोंच में इस बार जो दाना आया उसे अपनी चोंच से कुचल कर उसने फेंक दिया और उड़ गई.

बेबी अपने बेड से उछली। नाईटी को नोंच कर अपने बदन से फेंका और दौड़कर बाथरूम पहुँची। शावर खोला और हाँफती हुई उसके नीचे खड़ी हो गई.

अवसाद-विषाद और अलाप-प्रलाप की लहरों में डूबती-उबरती बेबी ने अपना मानसिक सन्तुलन खोना शुरू कर दिया। कभी मौन होती तो सारे-सारे दिन गुज़र जाता, उसके होठों से एक भी शब्द न निकलते।

कभी मुस्कुराने का दौरा पड़ता तो कमरे में बैठी हँसती रहती। श्रीवास्तव तो ख़ुद में व्यस्त रहता लेकिन काजल से बेबी की हालत देखी नहीं जाती। अपने बॉस से सीधे कुछ भी कहने की स्थिति में वह थी नहीं और ख़ुद उसके बस में कुछ था नहीं।

इधर बेबी की दिनचर्या में एक ख़ास बदलाव आ गया। अब वह सपनों की ख़्याली दुनिया से बाहर आ गई. उसने ख़ामख़ा के काल्पनिक प्रेम-पत्रा लिखना बंद कर दिया और अब रात में टेलीफ़ोन करना भी छोड़ दिया। कभी तो उसे यथार्थ के धरातल पर आख़िर आना ही था।

बेबी के अंदर हुए इस परिवर्त्तन ने उसे कुछ हद तक टूटने से बचा लिया था और काफ़ी हद तक वह सम्हाल चुकी थी।

उसमें आये इस बदलाव के पीछे और चाहे जो भी कारण रहे हों, लेकिन सक्सेना के बदले व्यवहार ने भी इसमें बेबी की सहायता की। सक्सेना की ऊल-जलूल हरकतों ने उसे आक्रोश से भरना शुरू कर दिया और उसके आक्रोश ने अवसाद को इस तरह संक्रमित किया कि अवसाद के साथ-साथ बेबी के अंदर का विषाद भी उसे छोड़ कर बाहर आने लगा। काजल उसकी गतिविधियों पर बारीक नज़र रखती थी और यह देख कर उसे सुक़ून मिला कि बेबी अब सामान्य होती जा रही है।

लेकिन काजल को क्या पता था कि सामान्य होते ही वह नये गुल खिलाएगी। सुबह और शाम, 'जानकी कुटीर' के टैरेस पर उसने टहलना शुरू कर दिया। यह तो अच्छी बात थी कि बेबी अब अपने टैरेस पर हवाख़ोरी करने लगी और हो सकता था कि इस बात का मैं ज़िक्र तक नहीं करता, क्योंकि ज़िक्र के काबि़ल यह बात थी भी नहीं। लेकिन बेबी की इस छोटी-सी हवाख़ोरी ने, राह चलते लड़कों की हवा ख़राब कर दी और मामला ज़िक्र के काबि़ल हो गया।

बेबी को पता भी न चला और 'जानकी कुटीर' के सामने वाली सड़क के पार वाली फ़ुट-पाथ पर, सुबहो-शाम, मजनुओं का मेला लगना शुरू हो गया। सामने वाली रेलिंग पर आकर, जब कभी भी वह थोड़ी देर रूक कर सड़क की हलचल देखने लगती। फ़ुटपाथ पर हलचल मच जाती। फ़ुटपाथ से फ़्लाईंग-किस के गोले दग़ने शुरू हो जाते और बेबी को पता ही नहीं होता।

तकरीबन दस से पंद्रह दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा और सड़क के पार वाली फ़ुटपाथ पर आबादी बढ़ती रही...बढ़ती रही कि तभी बेबी ने इस सिलसिले को ही बंद कर दिया।

काजल ने टैरेस-गार्डेन पर सारी व्यवस्था कर दी थी। पूरे तीन हजार वर्ग-फ़ुट के टैरेस-गार्डेन का एक तिहाई हिस्सा, मेक्सीकन ग्रास-कारपेट से भरा था, जिस पर आने-जाने के लिए पत्थर के कलात्मक स्टेप्स बनाये गये थे। इसी के मध्य, पंद्रह फ़ुट के गोलार्ध में इटालियन संगमरमर का बना, बगुले की तरह सफे़द, गोल सतह पर श्रीवास्तव और सक्सेना की कुर्सियां पड़ी थीं। कुर्सियों के सामने काले ग्रेनाइट पत्थर के टॉप वाला गोल टेबुल। जिस पर झक्क् सफे़द कपड़े का टेबल क्लॉथ पड़ा था।

पूर्णमासी की चांदनी के कारण काजल ने आज गार्डेन-अम्ब्रेला खुलवा दिया था। मार्च महीने की गर्मी तो यूं भी सूर्यास्त के साथ-साथ घटती जाती है, फिर भी काजल ने टैरेस के दोनों ग्रास-फ़ाऊंटेन चालू कराने के अतिरिक्त पैडस्टल फ़ैन चला दिए थे। पंखे की तेज ठंडी हवा में 'रात रानी' के फूलों की ख़ुशब़ू तैरने लगी थी।

रॉक-गार्डेन में छिपे स्पीकरों को काजल-दी ने टेस्ट कर लिया था। व्हिस्की की सीटिंग में ख़ास तौर से श्रीवास्तव साहब, अपनी नौजवानी के दिनों का फ़िल्मी गीत सुनना पसंद करते थे। काजल-दी को श्रीवास्तव के तमाम फ़ेवरिट्स ज़ुबानी याद थे। तलत महमूद की गज़लों का तो दीवाना ही था उसका बॉस।

काजल जानती थी उसका बॉस ड्रिंक-सेशन के समापन पर डिनर लेने के काबि़ल नहीं रह जाता, इसीलिए वह इस सेशन के दौरान टैरेस के किचनेट के पास जमी रहती और ड्रिंक्स के साथ-साथ श्रीवास्तव का पसंदीदा प्रिपेरेशन सर्व कराती रहती। श्रीवास्तव को अंडे में स्क्रैम्बल्ड, चिकन में ग्रील्ड और मछली में प्रौन फिश-फ्राय बेहद पसंद था। इन्हें देखने के बाद वह ख़ुद पर काबू न रख पाता और जम कर टूट पड़ता। जबकि सक्सेना का सारे ज़ोर सिर्फ़ पीने पर रहता और श्रीवास्तव के ख़ाने पर राशनिंग लगाने की भी वह पूरी कोशिश करता रहता। उसे श्रीवास्तव का बढ़ता वज़न और कोलेस्ट्रोल, वास्तव में परेशान करते और ड्रिंक-सेशन की शुरूआत भी इन दिनों इसी नोंक-झोंक से होती।

आज श्रीवास्तव के साथ टैरेस गार्डेन में आते ही पहले तो वह ख़ुश हो गया। अपनी रोज़़ की आदत के अनुसार काजल को अपने से सटाते हुए उसने कहा, -'काजल यू आर ग्रेट! आज तो तुमने सेवेन स्टार डीलक्स...एरेन्जमेंट कर दिया।' कह कर उसने रोज़़ की तरह काजल के गाल थपथपाये फिर पूछा-'जैसमीन स्प्रे किया है क्या?'

-'नहीं सर! यह तो रात रानी के फूलों की ख़ुशब़ू है।'

-'लेकिन इस सुगंध को हवा में इस क़दर मिक्स कर देना तो तुम्हारी अपनी टेक्नीक है...डार्लिंग।'

सक्सेना अब श्रीवास्तव की ओर मुख़ातिब हुआ-'देखा श्रीवास्तव? दोनों फाउँटेन के पीछे आज इसने पैडस्टल चला कर कैसा कमाल का इनवरानमेंट क्रियेट कर दिया है। हवा भी ठंडी हो गई और उस पर नशीले जैसमीन के परफ़्यूम का नशा। इट इज रियली इमेजिंग। यार ड्रिंक तभी जमता है जब कम्पनी भी अपनी हो और इन्वॉरमेन्ट भी नशीला। आओ चलो अब।'

उसने काजल को छोड़ श्रीवास्तव को पकड़ा और कारपेट के स्टेप्स पर चलता हुआ उसे हिदायत देनी शुरू कर दी-'आज अपनी जीभ पर कंट्रोल रखना। तुम्हारे किचनेट का फ़्लेवर, इंट्री के साथ ही मेरी नाक में घुस गया है।'

-'तुम भी यार मेरे डॉक्टर की तरह ही मुझे धमकाते रहते हो। अब सेवेन्टी फोर क्रास कर रहा हूँ...आज तक कभी हॉस्पीटल गया... बोलो? ...और एक तुम हो कि मेरे ख़ाने पर ही नज़रें गड़ाये रहते हो।' श्रीवास्तव ने बड़ी बेरूख़ी से कहा और फिर बैठते हुए बाक़ी बातें कह दीं, -'फैक्ट यह है माई डियर यंग मैन ऑफ़ सेवेन्टीसिक्स कि तुम्हारा दोस्त भी आज तक पूरी तदुरूस्ती के साथ तुम्हारे सामने जिन्दा है। सिगरेट नहीं पीता, ऐय्याशी नहीं करता और खाना भी भला क्या खाता हूँ? लंच तो रोज़़ ही स्केप कर जाता हूूं। अब ब्रेक फ़ास्ट के बाद जब डायरेक्ट डिनर ही नसीब होता है, तो तुम मेरे सर पर तलवार उठाये खड़े हो जाते हो।'

-'रबीश!' सक्सेना झुंझला गया-'बेकार की बात मत करो। तुमने देखा है और अच्छी तरह जानते हो तुम डॉ। जैन ने क्या कहा था तुमसे...तुम्हारे कोलेस्ट्रोल का लेवल कहाँ पहुंच चुका है। मेरी मानो तो अपनी आर्टरी चेक कराओ. मुझे तो लगता है, ब्लौकेड्स भी शुरू हो चुका होगा।'

-'स्टौप इट यार! इस सुहाने एटमास्फेयर को ख़ामख़ा डिस्ट्रॉय मत करो। टेक दि थिंक्स ईज़ी एण्ड इंज्वाय नाउ।'

सक्सेना जवाब देता कि तभी रामरतन के साथ काजल आ गई. रामरतन के हाथों में एक बड़ा केशरौल था। उसने टेबल पर उसे रखा ही था कि सक्सेना ने काजल से शिकायत की-'क्या बात है डार्लिंग? अभी तक अपना रंग-पानी नदारत है?'

काजल मुस्कुराई-'आज का प्रिपेरेशन्स तो पहले टेस्ट कीजिये सर! आपकी व्हिस्की भी फ़ौरन हाज़िर होती है।' कह कर उसने टेबल पर रखे क्रोकरिज सजाना शुरू किया और रामरतन ने अगले चक्कर में फ्रि़ज से निकाले मिनरल वाटर के बोतल और कपड़े से चमकाए शीशे के दो ग्लास टेबल पर लाकर रख दिए. सोडा-मेकर तो पहले से ही टेबल के कोने पर रखा ही था।

-'क्या फ़्लेवर है!' श्रीवास्तव ने केशरौल का टौप खोलते ही कहा-'आज कल अपना रामरतन कान्टीनेन्टल रेसीपी का स्पेशलिस्ट हो गया है।'

इसी समय व्हिस्की की नई बोतल लिए रामरतन भी आ गया तो श्रीवास्तव ने उससे कहा-'इस उम्र में तुम्हें अब ये रेसीपी सिखाता कौन है, रामरतन?'

रामरतन शरमाया-'आरो के, सरकार... काजले दी अंगरेजी किताब सें पढ़ी केॅ हमरा जेना-जेना बतावै छै...हम्में ओन्हें पकाय छियै।'

रामरतन की अंगिका बोली और उसके अंदाज़़ पर श्रीवास्तव तो केवल मुस्कुरा कर रह गया लेकिन सक्सेना बेतहाशा हँस पड़ा।

रामरतन की समझ में कुछ न आया फिर भी वह झेंपता हुआ अपनी किचनेट की तरफ़़ भागा। रामरतन, श्रीवास्तव की 'जानकी कुटीर' का सबसे पुराना स्टाफ़ था, लेकिन आज तक उसे हिन्दी बोलना न आया, बल्कि अपनी मातृभाषा अंगिका तक वह शुद्ध न बोल पाता था। फिर भी 'जानकी कुटीर' का अन्नदाता तो वही था। काजल ने कितनी कोशिश की थी कि वह ढंग के कपड़े पहने लेकिन उसे तो घुटनों तक की धोती और मारकीन वाली गंजी ही पसंद थी। जाड़े में वह अपनी गंजी पर ऊनी स्वेटर और गले में मफलर बांध लेता। जूते तो उसने कभी पहने ही नहीं। कहता जुत्ता में बड़ी उकरू होय छै, हमरो चप्पले ठीक छै काजल दी और बेचारी काजल-दी, 'जानकी कुटीर' की चीफ हाऊसकीपर! उसकी बातों पर अपना सर ठोंक कर रह जाती।

इधर श्रीवास्तव ने ग्रील्ड-चिकेन का पहला टुकड़ा उठाया ही था कि सक्सेना ने उसे डांटा-'क़ायदा भी भूल गए ड्रिंक्स का... पहले व्हिस्की चियर्स करो, पहला सिप लो... फिर दिखाते रहो अपना चटोरापन।'

सोडा मेकर के साईफ़न से उसने दोनों के ड्रिंक्स में सोडा पंच करते हुए आगे कहा-'वैसे मेरे कहने से तो मानोगे नहीं। जम के लुत्फ़ उठाओ, रामरतन के कान्टीनेन्टल रेसीपी का।'

दोनों हाथो में ड्रिंक्स उठाकर, उसने अपने बायें हाथ का ड्रिंक श्रीवास्तव को थमाते हुए 'चियर्स' कहा और एक बेहद छोटा सिप लेकर अपने होठों का चटकारा लेते हुए एक ही बार में पूरा पैग गटक गया।

उसकी इस हरकत पर, श्रीवास्तव ने सक्सेना को तीखी नज़रों से घूरा।

-'और यह था तुम्हारे ड्रिंक-सेशन का तुम्हारा क़ायदा? अरे ड्रिंक क्या भागा जा रहा है जो ऐसा बिहेव करते हो इसके साथ?'

श्रीवास्तव ने इस वक़्त अपना वही जुमला दुहराया जो वह सक्सेना के पहले पैग पर रोज़़ कहता था और सक्सेना ने जवाब में वही कहा जो श्रीवास्तव से रोज़़ कहता था-'पहले पैग का यही क़ायदा है। पहला पैग हमेशा पटियाला बनाओ, फ़र्स्ट सिप लो, सोडा की प्रोपर मिक्सिंग चेक करो और गटक जाओ दुश्मन की तरह, ताकि तुम्हारे ड्रिंक्स से तुम्हारी दोस्ती हो जाये... फिर अगला और उससे अगला पैग पीते रहो चुस्कियां ले-लेकर... दोस्तों की तरह।'

रोज़़ का अपना फ़ेमस डायलॉग देकर उसने फिर से अपना काला मसूढ़ा पूरी तरह खोल दिया, हँसने लगा वह खुलकर।

तभी काजल हाथों में हॉट बॉक्स लिए हाज़िर हुई-'योर फ़ेवरिट प्रॉन फ्ऱाई सर।'

'थैंक्स काजल।' श्रीवास्तव ने प्रॉन फ्ऱाई के नाम पर ख़ुश होकर आगे कहा, -' आज तुमने म्यूज़िक क्यों बंद रखा है?

-'सॉरी सर! आप प्रौन्स टेस्ट कीजिए, मैं ऑन करती हूँ।'

तेज़ी से किचनेट में जाकर उसने प्लेयर ऑन कर दिया। साथ ही उसने दोनों पैडस्टल फ़ैन बंद कर दिये। पंखों का शोर, गीत सुनते वक़्त उसका बॉस पसंद न करता था।

चांदनी अभी तक टैरेस पर उतरी नहीं थी। टैरेस की मंद रंगीन रोशनी, पानी के फ़व्वारों से छन कर आती हवा की लहरें और रातरानी की ख़ुशब़ू में भींग कर आती तलत महमूद की स्वर लहरी-

' प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी,

तू बता दे कि तुझे प्यार करूं या न करूं? प्यार पर...'

श्रीवास्तव की पलकें मुंद गईं...खो गया था वह!

-'चलो हो गई छुट्टी... अब यह रोना शुरू करेगा।'

कहते हुए सक्सेना उठकर खड़ा हो गया। हाथों में अपना ड्रिंक लिए ग्रास-कारपेट में बने स्टेप्स पर पूरी नज़ाकत से चलता, किचनेट में खड़ी काजल के पास जा पहुँचा-'अब वह तभी जगेगा जब सौंग फ़िनिश होगा।' उसने काजल के कंधे पर अपना बांया हाथ रखते हुए कहा।

काजल जानती थी सक्ेसना साहब तब तक उसका क्लास लेते रहेंगे जब तक यह गीत चलता रहेगा और यही हुआ भी।

-'जान ले लोगी तुम मेरे दोस्त का। अरे किसने कहा है तुमसे इतना स्पाइसी प्रिपेरेशन उसे ठूंस-ठूंस कर खिलाने के लिए?'

अब काजल कुछ कहती कि वह फिर कहने लगा-'प्रौन्स का वह इतना ही शौक़ीन है तो जैपनीज रेसीपी नहीं बनवा सकती? इतनी तो रेसीपी बुक्स चाटती रहती हो तुम, एक कान्टीनेन्टल डिस ही बचा है इसके लिए?'

-'लेकिन सर!'

-'व्हाट लेकिन सर?' उसने फिर काजल को डांटा। -'पहले ही ओवर वेट है वह, उपर से इसकी कोलेस्ट्रोल की रिपोर्ट देखो... लेवल कितना इन्क्रीज कर गया है।'

काजल बेचारी रूआंसी हो आई. उसकी आँखों के कोर छलछला गये कि तभी श्रीवास्तव की तीखी आवाज़ आई, -' उधर किचनेट में क्या मीटिंग कर रहा है?

इधर आ। '

श्रीवास्तव अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा था। सक्सेना ने देखा श्रीवास्तव अपनी बाइफ़ोकल उतार कर, रूमाल से आँखों पोंछ रहा है। ऐसा ही करता था वह। तलत महमूद की विरहिणी स्वर लहरियां, विभोर होकर सुनता, उसकी पंक्तियों में खो जाता और पलकों के अंदर ढंकी उसकी आँखों डबडबा जातीं। लेकिन सक्सेना उसकी हालत से ख़ुद को हमेशा अनजान ही बनाए रखता। उसके दिल में अपने दोस्त के प्रति कसक-सी उठती लेकिन उसे अच्छी तरह पता था, श्रीवास्तव अपनी पीड़ा बांटना तो दूर-उसे हजार परदों में कैद रखने पर आमादा था।

सक्सेना ने उसकी तरफ़ कदम बढ़ाते हुए अपना ड्रिंक लिया और फिर पूछा-'सांग फ़िनिश हुआ नहीं... तुमने आँखों खोल दीं? आँखों ही ख़ाली नहीं खोलीं, अपना एटेन्सन तक तलत से हटा लिया...भाई कमाल हो गया आज तो।'

-'तो क्या करता मैं? बेचारी लड़की के क्लास लेने देता तुम्हें? अरे खाता मैं हूँ, ख़ाने की फ़रमाईश, करता मैं हूँ। वह तो इम्पलाई है मेरी। उसे तो बस ऑडर्स ओबे करना है और अगर उसने अपने इमप्लायर के ऑर्डर ओबे किये हैं तो क्या ग़लत किया है?'

भावावेश में और भी न जाने श्रीवास्तव क्या-क्या कह जाता इसीलिए सक्सेना ने उसे रोका-'ठीक है दोस्त, नाउ स्टॉप दिस टॉपिक। सॉरी... ग़लती मेरी थी। मुझे तुम्हारे पर्सनल मैटर्स में इस तरह नहीं भिड़ जाना था। आई एम रियली सॉरी।' कहता-कहता सक्सेना अपनी कुर्सी पर जम गया।

श्रीवास्तव को भी अपनी ग़लती का तुरंत अहसास हो गया। उसने सक्सेना को हर्ट कर दिया था। लेकिन वह यह भी जानता था कि इस समय अगर उसने उसे पुचकारा तो वह और भी बिदकेगा, इसीलिए उसने अपना ऐक्शन बदल लिया।

-'चल ड्रिंक बना भाई, ज़्यादा ड्रामा मत कर और यह क्या बच्चों की तरह जब-तब रूठता रहता है। चल...कम ऑन एण्ड टेक इट ईज़ी। ड्रिंक बना जल्दी।'

श्रीवास्तव की बात पर इस बार सक्सेना मुस्कुराया-'ठीक है बेटा ले पकड़।' उसने ड्रिंक बनाकर उसे थमाते हुए फिर कहा, -'यह तुम्हारा चौथा ड्रिंक है एण्ड रिमेम्बर, आई हैव नॉट ऑफ़र्ड इट टू यू. तुमने ख़ुद मांगा है मुझसे।'

-'ओके माई डियर! अब पांचवा ड्रिंक... मेरे मांगे बगै़र, अगर तुमने मुझे ऑफ़र न किया, तो ज़रूर याद रखूंगा इसे।'

श्रीवास्तव ने गंभीरता से जो बात कह दी उसपर सक्सेना फिर से खुल कर हँस पड़ा।

श्रीवास्तव अपनी उंगलियों से फ्ऱेंच कट दाढ़ी ख़ुजाने लगा। सक्सेना समझ गया उसका दोस्त पूरी तरह तरंग में आ चुका है। श्रीवास्तव की आदत थी-व्हिस्की ज्यों-ज्यों उसे चढ़ती जाती, वह और भी गंभीर होता जाता और फिर, अपने दाढ़ी के बाल ख़ुजाना शुरू कर देता।

-'तुम्हें चढ़ गई है।' सक्सेना ने कहा।

-'और तुम्हें?' श्रीवास्तव ने तपाक से पूछा फिर कहा, -'चढ़ तो तुम्हें भी गई है।'

-'कैसे जाना?'

-'तुम्हारे कंधे से।' श्रीवास्तव ने मुस्कुरा कर कहा, -'देखो।' कहकर उसने अपना दायां कंधा दायीं ओर झुकाते हुए सक्सेना को बताया, -' तुम्हें जब चढ़ जाती है तो तुम्हारे कंधो का बैलेंस चेंज हो जाता है। नशें में पहुंचते ही तुम्हारा बायां

कंधा उंचा हो जाता है और दायां नीचा। '

-'इज़ इट दैट?' सक्सेना ने आश्चर्य से पूछा।

-'येस माई डियर।' श्रीवास्तव मुस्कुराया।

-'ओ. के. दैन...आई एक्सेप्ट, आई एम ड्रंक्ड और इसी नशे में मैं आज कुछ कहूँगा, लेकिन यह मत समझना कि मैं नशे में कह रहा हूँ।' सक्सेना ने इस बार वास्तव में अपनी बात गंभीरता से कही।

-'यह तो देव आनंद के' गाईड'फ़िल्म का डायलाग है यार।' श्रीवास्तव ने कहकर अपनी दाढ़ी ख़ुजाई, -'येस आई रिमेम्बर, वहीदा रहमान से देव आनंद ने यही कहा था कि कुछ कहूँगा तो कहोगी, नशे में कह रहा हूँ और जवाब में वहीदा ने क्या कहा जानते हो?'

उसने साथ-साथ अपने हाथ को नचाते हुए सक्सेना से पूछा तो उसकी ज़ुबान से निकला-'क्या?'

'वहीदा ने कहा, जो कुछ कहना है... कह डालो नशे का बहाना लेकर।'

श्रीवास्तव अपनी बात कह कर पहली बार हँसा। सक्सेना ने बुरा-सा मुंह बनाकर अपने चौथे ड्रिंक को बाटम-अप कर दिया।

-'अब यार जो कहना चाहते हो, कह भी डालो।' श्रीवास्तव ने इस बार अपना हथियार डाल दिया।

-'क्या कहूँगा अब।' सक्सेना ने कहा-'तुम तो टेम्पो ही ब्रेक कर देते हो।' कहकर उसने बेहद इत्मीनान से अपना पांचवा ड्रिंक बनाया और साईफ़न से सोडा पंच करते हुए कहा-'शादी कर ले यार...बस और कुछ नहीं कहँूगा।' कह कर सक्सेना ने श्रीवास्तव के रिएक्शंस देखने के लिए उसकी आँखों में झांका।

-'नाऊ ऐट दिस ऐज?' श्रीवास्तव ने हाथ उठा कर पूछा, -'सोसाईटी क्या कहेगी?'

-'तुमने अपनी लाईफ स्पॉयल कर दी तो रोका था इस सोसाईटी ने?' सक्सेना उबला, -'कहा किसी ने बैचलर रहो, एण्ड लीव एलोन। बोलो?' सक्सेना ने मुंह बिचकाते हुए कहा-'सोसायटी क्या कहेगी। एण्ड एक्सेप्ट माई प्वाइंट, दिस इज अननैचुरल लाईफ़, दैट यू आर लिविंग माई डियर। सेक्स इज नथिंग बट इन फैक्ट, इज़ आवर फ़ूड...एण्ड वन कैन नॉट अफ़ोर्ड टू स्केप इट। शादी नहीं करनी है तो मत कर, रख ले किसी को एण्ड इंज्वाय योर लाईफ़...टू इट्स फ़ुल स्ट्रेंथ।'

श्रीवास्तव के टैरेस गार्डेन पर पूरा चांद उतर आया था और मैक्सीकन ग्रास-कारपेट उसकी शीतल चांदनी में और भी नशीली दीखने लगी थी। हवा के ठंढे झोंके में गार्डेन में लगे पौधों की पत्तियां झूम रही थीं। पानी के फ़व्वारे अपनी तीव्रता में चल रहे थे। रंगीन बल्ब अभी भी जल रहे थे। तलत महमूद की ग़ज़ल जैसे, टैरेस गार्डेन की ठंडी हवा, पानी के फ़व्वारे, रात-रानी की ख़ुशब़ू, हल्की रंगीन रोशनी, सक्सेना की उमंग और श्रीवास्तव के दिल की जलन के बीच, चांदनी में भींगती हुई गूंज रही थी।

' मेरे ख़्वाबों के झरोखों को सजाने वाली...

पूछ कर अपनी निग़ाहों से बता दे मुझको,

मेरी रातों के मुकद्दर में सहर है कि नहीं...

प्यार पर बस तो नहीं है...'

श्रीवास्तव की पलकें, छलक रहे आंसुओं को बांध न पा रही थीं, वे ढलक रहे थे और ऐसे में उसके हाथ व्हिस्की का पांचवा पैग आ चुका था। सक्सेना ने उसे पांचवां ड्रिंक दिया या उसने ख़ुद अपने लिये बना लिया, इसका ज़िक्र ज़रूरी नहीं। ज़रूरी ज़िक्र के काबि़ल था सक्सेना का उखड़ा मिज़ाज़।

भला यह भी कोई बात है? क्या मतलब है इस इडियोसी का? श्रीवास्तव का बच्चा, कह कर अपना ग़म न हल्का करता है, न बांटता है। रोता है तो रोता ही रहता है-तौबा...ऐसे में यह ड्रिंक सेशन एरेंज ही क्यों करता है? उसके दिल में आया-काजल से कहे, बंद करो इस तलत महमूद को। लेकिन उसने ऐसा कुछ न किया।

-'ब्लडी कावर्ड!'

सक्सेना की तीखी आवाज़ पर चौंक कर श्रीवास्तव ने आँखों खोलीं तो सक्सेना ने उससे कहा-'कायर कहीं का, एक इकलौती औरत के लिए सारी ज़िन्दगी रो-रो कर गुज़ार रहा है। इतनी भी हिम्मत नहीं है कि अपने यार से बता कर दिल हलका करले अपना।'

श्रीवास्तव अपना बाईफ़ोकल उतार कर, रूमाल से अपनी आँखों पोंछने लगा और सक्सेना अपनी रौ में कहता रहा-'तुम्हें पता है? यह शराब ग़म को ग़लत नहीं करती। जिस किसी ने भी यह जुमला कहा है, मैं नहीं जानता, शराब से वह कितना वाबस्ता रहा था, लेकिन मेरा मानना है कि यह ग़म को कभी ग़लत नहीं करती। यह तो बस एलिवेटर है। ख़ुशी में पियो तो ख़ुशी दोबाला हो जाती है। ग़म में पियो तो डिप्रेशन में डूब जाओ और इसी चक्कर में तुम हमेशा अपने अतीत के जख़्मों को कुरेद-कुरेद कर ताज़ा करते रहते हो।'

-'बस...बस कर यार!' श्रीवास्तव मुस्कुराया-'मैं अपने घाव को कुरेदता नहीं हूँ, न अपनी पीड़ा और अपने दर्द को शराब पीकर दोबाला करता हूँ। मैं तो इस टीस को इंज्वाय करता हूँ यार...इंज्वाय करता हूँ...बस।' कह कर उसने सर लटका दिया।

-'मैं सब समझता हूँ, मुझे मत समझाओ. तुमसे सीनियर ही हूँ दो साल। तुम्हारी फ़िलासफ़ी से ज़िन्दगी नहीं चलती। ज़िन्दगी की फ़िलासफ़ी एक ही है-तू नहीं तो और सही और नहीं तो और सही। मुझे देख...तुमसे ज़्यादा तंदुरूस्त हूँ अभी और मेरे भी अपने बायोलाजिकल डिमाण्ड्स हैं। मुझे भी औरत चाहिए...और तू क्या समझता है...यूं ही रंडवा रहता हूँ मैं? मेरी बात मान, तो सिर्फ़ एक हफ्ते की छुट्टी कर अपनी इस कोठी से, चल मेरे साथ। देख मं् तुझे कैसे रीचार्ज कर देता हूँ। बोल डू यू एक्सेप्ट माई प्रपोज़ल?' रौ में अपनी बात कह कर उसने जब श्रीवास्तव को ग़ौर से देखा तो वह जवाब देने लायक रहा ही नहीं था। पूरी चढ़ चुकी थी उसे।

तभी अचानक बेबी की उपस्थिति के एहसास ने सक्सेना को चौंकाया। उसने अपनी गर्दन घुमा कर बेबी से कहा, -' कैसी हो बेटी।

-'आई एम फ़ाईन अंकल।' बेबी ने जवाब देते हुए बनावटी मासूमियत से पूछा, -'यह बॉडी के बायोलाजिकल डिमांड्स क्या हैं अंकल?'

सक्सेना को सहसा बिच्छू का डंक लग गया। उसकी समझ में न आया, बेबी को क्या जवाब दे। ज़ाहिर था, उसने उसकी बातें सुन ली हैं। सहसा यह टैरेस पर आई कैसे? कोई बच्ची तो है नहीं, सब समझती है; लेकिन मामले को सम्हालना तो था ही-साथ ही वह इस समय बेबी से बातें करने की स्थिति में भी नहीं था।

उसने बेबी की बात छोड़ कर काजल को आवाज़ दी। -'तुम्हारा बॉस अब रिटायर होना चाहता है।' उसके आते ही उसने कहा, -'इसे इसके बेडरूम में ले चलो।' फिर सक्सेना ने बेबी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, -'सपोर्ट हर।'

-'आपने मेरी बात को एव्याइड कर दिया अंकल, बट आई हैव वन थिंग टू टेल यू. दि बॉडीज बायोलाजिकल डिमांड... इज नॉट कन्सर्न्ड ओनली... टू दि मेल जेन्डर।'

बेबी का चेहरा तमतमा रहा था। अपनी बात कहते हुए उसके होंठ थरथरा रहे थे। फिर भी पूरी दृढ़ता से अपनी बात कहकर उसने अपने पापा को सम्हाल लिया।

श्रीवास्तव चला गया। काजल चली गई. बेबी चली गई.

बेबी की बातें। उसके शब्द। वहीं रह गये...

सक्सेना के दिल में। सक्सेना के दिमाग़ में।

सक्सेना की पूरी चेतना में गूंजते रहे, -'दि बॉडीज बायोलाजिकल डिमांड इज़ नॉट कन्सर्न्ड ओनली, टू दी मेल जेन्डर।'