अगिनदेहा, खण्ड-6 / रंजन

Gadya Kosh से
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लेकिन वह क्या तौबा करता बेबी से!

वह तो उसके दिलो-दिमाग़ पर पूरी तरह छा चुकी थी। इस उम्र में ऐसा ही होता है। काली-कलूठी जवान लड़की भी अगर एक बार देख कर मुस्कुरा दे तो बेड़ा ग़र्क़ और यहाँ तो मामला था बेबी का, जो वाक़ई ताजमहल से भी ज़्यादा सुंदर थी।

डाक्टरी सिलसिला तो जारी था ही। दवाईयों के कोर्स समाप्त होने के पूर्व ही रज्ज़ू को भारती के पास पहुंचना ज़रूरी था।

-'बड़े अच्छे मौके़ पर आए.' उसे देखते ही भारती का चेहरा खिल गया।

-'क्यों ऐसी क्या बात है?'

-' अरे, कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला है यहां। प्रवेश द्वार और मंच निर्माण के डिजाईन का कांट्रेक्ट मुझे ही मिला है। लम्बा काम है, अच्छा हुआ मौक़े पर तुम आ गए. मैं तो अकेला परेशान हो गया!

रज्ज़ू हँसा, 'तो अब अपना आर्टिस्ट रिप्लीका छोड़ कर बांस-बल्ले का ठेकेदार बन गया, क्यों?'

-'अरे नहीं यार! वह तो शामियाने वाले का काम है। हमको तो सिर्फ़ प्रवेश द्वार और मंच का डिजाईन बनाना है। थर्मोकोल का मॉडल बना कर शामियाने वाले को देना है और वहाँ रह कर अपनी देख-रेख में काम कराना है।'

-'मॉडल बना कर दे दो। उसी की नकल कर लेंगे शामियाने वाले... तुमको क्या वहाँ खड़े होकर काम करवाना है?'

-'हां यार, ऐसा ही कांट्रेक्ट है। अभी-अभी तो आए हैं। खाना खायेंगे और तंुरत भागेंगे।'

-'ठीक है, चलो देखते हैं...वैसे अधिवेशन है कहाँ?'

-'यहीं स्टेडियम में।'

भारती स्टेडियम से ही आया था। 'जानकी कुटीर' के गेट पर ही रज्ज़ू से उसकी मुलाकात हो गई थी। दोनों बातें करते हुए अंदर जाने लगे।

-'कितने का कांट्रेक्ट है?' रज्ज़ू ने चलते हुए पूछा।

-'बीस हजार का।'

-'सिर्फ़ थर्मोकोल के मॉडल के लिए बीस हजार?' रज्ज़ू ने आश्चर्य से पूछा तो भारती हँसा।

-'बीस हजार पर चौंक गये तुम...अरे हम तो पछता रहे हैं। जानते हो, बहती गंगा में कितने लोग अपने हाथ धो रहे हैं। बैनर-झण्डी का ही ठेका लाखों में है।'

-'यह इतना पैसा आता कहाँ से है यार।'

-'पैसे की क्या कमी है। सारे अफ़सर, गुंडे और छुटभैये नेता, अभी एक ही काम कर रहे हैं।'

-'क्या?'

-'पैसा तहसील रहे हैं और जानते हो, जितना बड़का बिजनेसमैन है शहर में, सब ग़ायब है।'

-'क्यों?'

-'एक-एक से लाख-लाख रुपये का डिमांड है। ऊपर से कोई रसीद-चिठ्ठा नहीं। अब क्या लोग चीफ़-मिनिस्टर से पूछेगा कि उसके नाम पर कितना रुपया जमा हुआ है।'

-'यह तो ग़ुण्डागर्दी है यार। ऐसे में तो...'

-'अरे रज्ज़ू जी!' काजल ने देखते ही रज्ज़ू की बात काटी, अभी आ ही रहे हैं क्या?

-'हां भाभी, स्टेशन से सीधा आ रहा हूँ। आजकल तो आपके साहब बहादुर माल पर माल कमा रहे हें।'

रज्ज़ू की बात पर काजल के साथ-साथ भारती भी हँसा।

-'आइये बैठिये, मैं चाय बनाती हूँ।' कहते हुए काजल अंदर चली गई. भारती के साथ रज्ज़ू वहीं बराण्डे पर पड़ी बेंत की कुर्सियों पर बैठ गया।

-'तुम्हारी भाभी चाय पिला देगी तो खाना क्या खायेंगे।' रज्ज़ू से कह कर भारती ने बैठे-बैठे आवाज़ लगाई,

-'अरे सुनती हो क्या?'

-'क्या है?'

-'अरे भाय, चाय पिला कर भूखे मारोगी क्या? जो बना है लेती आओ...फिर चाय पिला देना।'

काजल बराण्डे पर तेज़ी से आई. बेंत वाले टेबल पर उसने पानी के दो गिलास रखते हुए कहा, -'यह भाय-वाय मत कहा करो मुझे।'

-'तो क्या कहूँ?'

भारती की बात पर काजल की जगह रज्ज़ू ने मुस्कुरा कर कहा, 'ऐ ऽ जी, कहा करो। ऐ ऽ जी, सुनती हो जी ऽ!'

रज्ज़ू की बात पर दोनों को हँसी आ गई. हँसते हुए काजल ने रज्ज़ू से कहा, 'आप ही समझाइए अपने दोस्त को, हमेशा मुझे ऐ भाय, ऐ भाय, कहते रहते हैं। हां तो रज्ज़ू जी...खाना क्या खाइयेगा?'

-'अब भाभी इसमें फरमाइश क्या करना है। जो बना है, ले आइये।'

-'मैं बनाकर कुछ नहीं रखती हूँ। सब्ज़ी और दाल बनी पड़ी है। चावल-रोटी जो कहिए पांच मिनट में तैयार है।'

-'ऐसा करो।' भारती ने कहा, 'कूकर में थोड़ा चावल डाल कर दो-चार रोटियां सेंक लो।'

-'ठीक है फिर, तुम फ्रि़ज से साफ़्ट-ड्रिंक निकाल कर रज्ज़ू जी को दो, मैं फटा-फट खाना खिलाती हूँ।' कहती हुई काजल चली गई.

-'क्या लोगे? थम्स-अप निकालें?'

-'नहीं छोड़ो यार अब खाना ही खायेंगे। लेकिन उसके बाद चाय पिये बगै़र जायेंगे नहीं, याद रखना।'

-'चलो ठीक है फिर।' भारती ने पानी का ग्लास उठाते हुए रज्ज़ू को इशारा किया तो उसने भी ग्लास उठा कर थोड़ा पानी पी लिया।

-'कैसी है सुरेखा?' भारती ने पूछा।

-'अब तो बहुत बेहतर है। हमारे शहर में सही डायगनोस ही नहीं हुआ था। ख़ामख़ा की दवाई और एन्टीबायटिक खिलाता रहा वहाँ का डाक्टर।'

-'अपने बिहार में यही चक्कर है, क्या करोगे। तुम जानते हो? पूरे देश की दवा फैक्ट्री हमारे बिहार के नाम पर चलती है। यहाँ लोग भुंजा की तरह दवाई खाते रहते हैं। अच्छा और बताओ क्या हालचाल है दोस्तों के?'

-'हम दोनों का तो एक ही दोस्त है और उसका हाल, हम से बेहतर तुम्ही जानते हो।'

-'हम कैसे जानेंगे?'

-'क्यों, आया नहीं था तुम्हारे पास, अपना रिप्लीका लेके. क्या हुआ फिर? क़ासिम भाई ने क्या कहा उसको?'

भारती बुरी तरह हँसा और जब उसकी हँसी थमी तो उसने कहा, 'तुम भी तो फाईन-आर्ट के डिप्लोमा होल्डर हो। रिप्लीका में तुम अनुकृति करोगे हू-ब-हू या अपना दिमाग़ लगाओगे? बोलो।'

-'मामला क्या हुआ था।'

-'अरे यार, कोले दा ने तो वाक़ई कमाल कर दिया।' द लास्ट सपर 'के रिप्लीका में उन्होंने अपनी मर्जी से जो चाहा कलर्स चेंज़ कर दिया। अब तुम्ही बताओ, हमलोग तो अर्थ-कलर्स के पिगमेंट्स से कितनी मेहनत कर डिट्टो शेड्स बनाते हैं और ये जनाब...अब क्या बताएँ बड़ा अजीब क़िस्सा हुआ।'

रज्ज़ू की उत्सुकता बढ़ गई, 'हुआ क्या, वह तो बताओ.'

-'अब छोड़ो खाना खा लो पहले, फिर बताएगें। लम्बी कहानी है कोले-दा की।'

काजल ने खाना लगाना शुरू कर दिया। रज्ज़ू को भी ज़ोरों की भूख लगी थी लेकिन उसने खाते हुए ही पूछा-'अब शॉर्ट-कट में बताओ न, हुआ क्या? क़ासिम भाई ने क्या कहा आख़िर?'

-'क्या कहेगा क़ासिम भाई, उसने तो अपना सर पीट लिया और दफ़ा किया कोले दा को किसी तरह।'

-'चलो अच्छा हुआ। मुसीबत तो टली।'

-'किसकी मुसीबत?'

-'तुम्हारी और किसकी?'

-'मेरी क्या मुसीबत टली?'

-'कमाल है! अरे अब तुम्हारे रिप्लीका बिजनेस पर कोले दा का खतरा तो न रहा।' और कहते ही रज्ज़ू हँसा।

-'कोई मुसीबत नहीं टली है।'

-'क्या मतलब?'

-'अब क्या बताएँ तुमको।'

-'क्यों? क्या हो गया अब! कोई दूसरा बखेड़ा खड़ा किया क्या?'

-'हां यार!'

-'हुआ क्या आखिर?'

-'पूछ लेना अपनी भाभी से।'

-'अब सस्पैंस मत मार।'

तभी हाथों में परोसन लिए काजल फिर आ गई. आते ही उसने नाराज़गी ज़ाहिर की, -'कम से कम खाना तो खा लीजिये शांति से, फिर बातें करते रहिये।'

रज्ज़ू ने कहा, 'भाभी कुछ नहीं चाहिए अब। आप सिर्फ़ दो कड़क चाय बना दीजिये और हमारे पास पांच मिनट बैठिये।'

-'आप भी कमाल करते है रज्ज़ू जी. खाना खाकर चाय पीता है कोई?'

-'अब क्या कीजियेगा भाभी आपका देवर ऐसा ही है। वह हमेशा चाय पीता है।'

-'तुम भी पीयोगे?' काजल ने भारती से पूछा तो उसने भी सहमति में सर हिला दिया। काजल चली गई.

-'हां यार, बता न अब...हुआ क्या?'

रज्ज़ू के प्रश्न पर भारती ने बुरा-सा मुँह बनाकर कहा, 'यह कोले दा कैसा आदमी है?'

-'मामला भी बताओगे कि ख़ाली भूमिका सुनाते रहोगे।'

-'अब क्या कहें तुमसे, बेबी उस पर बेहद ख़फ़ा है। उसने काजल को चेतावनी दी है कि इस आदमी को कैम्पस में घुसने नहीं देना है।'

-'अच्छा!' रज्ज़ू चौंका, 'सो क्या कर दिया है उसने?'

-' यही तो समस्या है, बेबी कुछ कहती नहीं, बस बार-बार वार्निंग देती है, वह न घुसे इस घर में। अब यह तो एक परेशानी है ही। आख़िर यह हमारा अपना घर तो है नहीं और अगर वह अपने पर आ गई तो हो सकता है, हमें भी अपना ठिकाना ढूंढना पड़े।

चाय के दो कप लेकर काजल वहीं बैठ गई. उसने भारती की अंतिम पंक्तियां सुन ली थीं। बैठते ही उसने रज्ज़ू से कहा,

-'आप रज्ज़ू जी, बात करियेगा बेबी से?'

-'भाभी मैं? मैं क्या बात करूंगा उससे।'

-'आप ही बात कर सकते हैं। आपसे बहुत इम्प्रेस्ड है वह।'

-'मुझसे इम्प्रेस्ड?'

-'हां उसने कहा था मुझसे।'

रज्ज़ू बेहद ख़ुश हो गया लेकिन ऊपर से गंभीरता ओढ़े उसने पूछा, -'क्या कहा था आपसे।'

-'अब छोड़िये भी। मैंने कहा न, आज आप उससे बात कीजियेगा।'

-'अभी तो भारती के साथ स्टेडियम जाना है।'

-'आकर बात कीजियेगा उससे। एक बात और बता देती हूँ आप दोनों से। बेबी इस क़दर क्यों बिगड़ी है, वह तो बताती नहीं लेकिन मैं अपनी बात कहती हूँ। मुझे आपलोगों का यह दोस्त पसंद नहीं है।'

-'क्यों भाभी, आप ऐसा क्यों कह रही हैं!'

-'मैं बेकार बात बढ़ाना नहीं चाहती, बस कह दिया न यह आदमी ठीक नहीं है।' दृढ़ता से अपनी बात कह कर काजल ने चाय की दोनों खाली प्यालियां उठा लीं।

भारती ने अपनी पत्नी को अजीब नज़रों से देखा। काजल की बात पर वैसे भी वह चौकन्ना हो गया था। ज़रूर कोई बात है, जो यह बता नहीं रही और जब उससे रहा न गया तो उसने चाय की प्याली लेकर जाती हुई काजल को टोका, 'बात क्या है? तुम छुपा क्यों रही हो? क्या किया है कोले दा ने?'

-'छोड़ो भी अब...मैंने कह दिया न, मुझे भी तुमलोगों का यह दोस्त बिल्क़ुल पसंद नहीं है।'

-'अब बताओगी भी कुछ?'

-'क्या सुनना चाहते हो?' काजल के नेत्रों से क्रोध झलकने लगा। उसका यह नवीन रूप था। रज्ज़ू तो भला क्या देखता, भारती ने भी उसका यह स्वरूप पहले कभी नहीं देखा था। उसने आँखों से ज्वाला बरसाते हुए कहा, 'वह तुम्हारी पत्नी पर बुरी नज़र रखता है।' भारती और रज्ज़ू तो सन्न रह गये और काजल

क्रोध में पैर पटकती चली गई.

अधिवेशन स्थल पर मैदान और स्टेडियम, मज़दूरों, ठेकेदारों और अधिकारियों से भरा था। सरकार के प्रत्येक विभाग की गाड़ियां, जीप और ठेकेदारों के पचासों ट्रक, मैदान में फैले थे। रज्ज़ू ने इसके पूर्व कभी ऐसा नज़ारा न देखा था। अभी वह स्टेडियम के अंदर गया नहीं था, जो मुख्य आयोजन स्थल था। स्टेडियम के बाहर का मैदान अगर इतनी हलचलों से भरा था, तो अंदर की स्थिति क्या होगी। एक सम्पूर्ण नगर ही बसाया जा रहा था। अतिथियों के निबंधन के लिए विशाल पंडाल, उसके बाद उससे भी विशाल भोजनशाला। चौड़े-चौड़े रास्ते, जिनपर मोरंग के छोटे-छोटे गोल पत्थर बिछाए जा रहे थे। मुख्य सड़क से निबंधन स्थल तक की चौड़ी सड़क का सौंदर्यीकरण किया जा रहा था। अनेक द्वार और वंदनवार सजाए जा रहे थे।

नेताओं के इतने विशाल कट-आऊट खड़े किए जा रहे थे कि देख कर यक़ीन न होता था, यह सारे तामझाम सिर्फ़ तीन दिनों के लिए किया जा रहा है। लाखों वर्ग-फ़ुट प्लाई-बोर्ड ख़र्च कर भव्य मुख्य प्रवेश द्वार और स्टेडियम द्वार खड़े किये जा रहे थे।

आख़िर ये सत्ताधारी राजनीतिक दल, इस दिव्य-भव्य आयोजन के माध्यम से, जनता को क्या संदेश देना चाहते हें।

भारती के साथ 'जानकी कुटीर' से रज्ज़ू जब स्टेडियम के लिए चला, उस वक़्त उसकी धड़कनें तेज थीं। काश बेबी की एक झलक ही उसे मिल जाये। होगी कहाँ इस वक़्त वह। अब तो भारती की चेतावनी की तलवार भी, उस पर नहीं रही। हज़ार क़िस्म की बातें एक साथ उसे मथने लगीं। काजल भाभी से उसकी क्या बातें हुई हैं। उन्होंने कहा, बेबी आपसे इम्प्रेस्ड है। क्या अर्थ हुआ इसका। वह सोचता जाता और मुस्कुराता जाता। रज्ज़ू के दिल में हज़ारों अनार फूट रहे थे। पूरी दिवाली मन रही थी वहां। सामने आ जाएगी तो, कहेगा क्या उससे। फिर अपनी कल्पना में रज्ज़ू ने बेबी से बातें करनी शुरू कर दीं।

-'कहाँ खो गये भाय!' रिक्शे में उसके साथ बैठा भारती उससे पूछ रहा था, 'मामला क्या है? सुरेखा की चिन्ता हो रही है?'

-'अरे नहीं...मैं तो यूं ही।'

-'देखो दोस्त मैं सब समझता हूँ। दोस्त हूँ तुम्हारा। एक-एक नस पहचानता हूँ मैं। तुम चिन्ता न करो। डाक्टर साहब का समय तो सुबह सात से दस ही है न। मैं चलंूगा साथ में।'

-'मैंने कहा न, मैं सुरेखा की चिन्ता नहीं कर रहा। इतना बेहतर इलाज हुआ। उसकी बीमारी भी पकड़ में आ गई. डाक्टर से तो सिर्फ़ आगे की दवा ही लिखानी है...बस...कल सुबह लिखा ही लूंगा।'

-'फिर किस ख़्याल में डूबे थे? कोले दा के बारे में सोच रहे थे?'

-'नहीं, भाभी के बारे में सोच रहा था।' वह झूठ बोला।

-'हां! मुझे भी आश्चर्य हुआ और सबसे बड़ी बात यह थी कि तुम्हारी भाभी ने मुझे आज से पहले, कभी कुछ नहीं बताया।'

मैदान आ गया था। दोनों रिक्शे से उतर गये। पैसे देकर अब इन्होंने मैदान में प्रवेश किया।

-'कमाल है दोस्त।'

-'देख लिया! कैसा तामझाम है यहां। अधिवेशन दस दिनों के बाद शुरू होगा लेकिन अभी से नजारा कैसा है, वह देखो और अभी क्या, सूरज को तो डूबने दो, फिर देखना। कोई मानेगा नहीं कि बिहार में भी बिजली संकट है। हज़ारों-लाखों किलोवाट की रोशनी से सारे इलाक़ा जगमगा जाएगा।'

रज्ज़ू ने बात काटी, 'छोड़ो इस अधिवेशन को...मैं काजल भाभी के बारे में सोच रहा हूँ। मतलब क्या था उनके कहने का?'

-'मुझे भी जानना है...पूछूंगा उससे। हमको लगता है कोले दा ने कुछ ग़लत हरकत करने की कोशिश की है तुम्हारी भाभी से।'

-'नहीं तो कुछ आपत्तिजनक बात कह दी होगी। लेकिन यार, वह ऐसा है तो नहीं।'

-'तुम्हें क्या पता कौन कैसा है? और फिर मर्द की आँखों का भाव एक औरत जितना पढ़ सकती है, उतना और कोई दूसरा नहीं पढ़ सकता।'

रज्ज़ू ने भारती की बात का समर्थन किया फिर कहा, 'ठीक है, मुझे भी बताना क्या कहानी है कोले दा की, वैसे एक बात तो बताओ. तुमने तो विनीता जी से मुझे बात तक करने से मना कर दिया था। पिछली बार उन्होंने जब भी मुझे विश किया, मैंने जवाब तक नहीं दिया और ऊपर से मेरे सर पर तुम सवार भी रहते थे कि कहीं मैं उससे दोस्ती न शुरू कर दूं, फिर इस बार ऐसी क्या बात हुई कि तुम्हारे सामने काजल भाभी ने मुझे उससे मिलने को कहा और तुम चुप रहे।'

रज्ज़ू की बात पर भारती हँस पड़ा, -' बेवकूफ हो तुम! मैंने तुम्हें

सावधान किया था कि उससे बच कर रहना। कोले दा को भी बता दिया था। तुमने तो अपना क्रेडिट बना लिया और उसने अपने साथ-साथ हमारी भी लुटिया डुबो दी। अब चूंकि बेबी की नज़र में तुम्हारी इज्ज़त बन गई है तो उसे समझाओ कि कोले दा के कारण वह हम पर वार न करे। हम भी आगे से सावधान रहेंगे कि अब वे हमारे पास न आयें। '

यानी पूरी ट्रैफिक क्लीयर! यही वह वाक्य था जिसने रज्ज़ू की चेतना पर दस्तक देकर उसे मुदित कर दिया। सारे विरोधी धाराशायी हो गये और उसकी पलकें, एक क्षण के लिये, बेबी की छवि समेटे बंद हो गईं। बेबी उसके समक्ष मूर्त्त हो गई.

-'चलिए भाभी आपका दुर्गा रूप भी देख लिया।' बेसिन में चाय की प्यालियां धोते हुए रज्ज़ू कह रहा था, 'थोड़ी देर के लिए तो, सच पूछिए मैं घबड़ा गया।'

सस्पेन पर काजल ने तीन कप दूध डाला था फिर उसमें तीन कप पानी मिलाते हुए उसने रज्ज़ू की बात को संशोधित किया, 'दुर्गा नहीं, काली का रूप कहिए रज्ज़ू जी.'

-'क्यों?'

-'आपकी भाभी काली जो है!'

सस्पेन के दूध से ज़्यादा उफना रज्ज़ू का दिल। काजल ने उफनते हुए

दूध में चाय की पत्ती डाल दी।

-'हैलो ओ ऽ।'

रज्ज़ू ने चाय के धोए हुए दोनों कप किचन के सिंक पर रखते हुए गर्दन घुमाई तो उसकी धड़कनें रूक गई. बेबी खड़ी मुस्कुरा रही थी। रज्ज़ू से नज़र मिलते ही उसने फिर कहा, -'हैलो मिॉ हेजीटेंट!'

अपनी बात कह कर वह खुल कर हँसी. मोतियों जैसी चमकती दंतपंक्ति पर लरज़ते अधर! आज उसने नीली जीन्स पर सफे़द इजिप्सीयन कॉटन की क़मीज पहनी थी। दोनों बाँह कुहनियों तक मुड़े थे और दायीं कलाई पर चमड़े के बेल्ट में जकड़ी घड़ी चमक रही थी। पैरों में चप्पलों की जगह उसने आज नागरा जूतियां पहन रखी थीं। रज्ज़ू का दिल तो उसे देखते ही धड़कने लगा था, वह जवाब क्या देता?

उधर जब बेबी की हँसी थमी तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, -'मैंने तुम्हारा नाम मिॉ हेजीटेंट रख दिया है। तुम लड़कियों से, शरमाते ही इस क़दर हो कि तुम्हारा और कोई दूसरा नाम हो ही नहीं सकता, क्यों काजल दी, मैंने ठीक कहा न?' उसने काजल से मुख़ातिब हो कर पूछा तो उसने कप में जाल लगा कर चाय डालते हुए जवाब दिया, 'मेरा देवर वैसा नहीं है जैसा तुमने कहा है और देखो, मेरे साथ चाय बनाने में हाथ बँटा रहा है या नहीं? और फिर, मुझसे तो रज्ज़ू जी बिल्क़ुल नहीं शरमाते। तुम्हारी बात कैसे मानूं। लो चाय पियो।'

काजल ने पहले बेबी फिर रज्ज़ू को चाय दिया।

-'और आप भाभी?' रज्ज़ू ने अपनी चाय लेते हुए पूछा।

-'है न मेरे लिए, मैं भी लेती हूँ। तुम लोग बैठो।' काजल ने एक नया कप निकाल कर अपनी चाय डाली और रज्ज़ू से कहा, 'अभी चाय और है आपके लिए'।

-'आप कितनी चाय पीते हैं?' बेबी की बात पर रज्ज़ू सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया।

-'मत पूछो बेबी, इनको चाय से बेहद प्यार है।'

-'सिर्फ़ चाय से?'

-'अब यह तो तुम ख़ुद पूछ लेना, वैसे मैं सोचती हूँ अभी इनके दूध के दांत टूटे नहीं हैं।'

काजल की बात पर बेबी खिलखिला कर हँस पड़ी। हाथ का प्याला छलका और सारी चाय उसके कपड़ों पर गिर पड़ी।

-'सॉरी काजल दी' बेबी उठी। काजल दी ने झटके से एक तौलिया उठाया और सिंक में भिंगो कर बेबी के पास आई.

-'रहने दीजिये, मैं चेंज़ करके आती हूँ।'

रज्ज़ू को अर्थपूर्ण नज़रों से निहारती और मुस्कुराती वह चली गई.

-'रज्ज़ू जी, एक बात कहूँ?'

रज्ज़ू ने उत्सुकता से काजल को देखा। काजल ने चिंतित स्वर में कहा, 'मुझे खतरे की घंटी सुनाई पड़ रही है।'

रज्ज़ू चौंका, लेकिन मौन रहा। काजल कहती रही, 'मैं आँखों पहचानती हूँ। बेबी की आँखों में मैंने वह देखा है, जिसे सच कहूँ, तो देखने के लिए मैं तरसती थी। वह आपसे प्यार करने लगी है रज्ज़ू जी' !

रज्ज़ू की सम्पूर्ण चेतना में संगीत की झंकार गूंज गई जैसे। काजल के शब्दों की प्रतिध्वनियां उससे आ-आकर टकराने लगीं।

-'बड़ी अभागी और प्यार की प्यासी है बेचारी। वैसे क्या नहीं है इसके पास। धन है, दौलत है, बंगला है, गाड़ी है, फिर भी सच कहूँ तो यह बेचारी कंगाल है। भाई क्या होता है? बहन क्या होती है? माँ की ममता और पिता का प्यार क्या होता है, इसने जाना ही नहीं ...'

कहते-कहते काजल अचानक मौन हो गई. भारती आ गया था। आते ही उसने रज्ज़ू को हड़बड़ा दिया, 'चलो उठो यार, जल्दी चलो डाक्टर उठ जाएगा। पहले ही मैं लेट हो चुका हूँ'।

-'आता हूँ भाभी।' रज्ज़ू ने काजल से कहा तो भारती ने बात काटी, 'अभी कहाँ आयेंगे हम। डाक्टर के पास से सीधे स्टेडियम जाना है।'

-'और खाना?' काजल ने पूछा।

-'आज खाना कैंसिल! वहीं खा लेंगे कुछ। शाम में ही आएँगे वापस।' उसने रज्ज़ू का हाथ पकड़ा, 'अब चलो भी यार' !

भारती के साथ रज्ज़ू 'जानकी कुटीर' के सामने वाली सड़क पर रिक्शे के लिए रुका था कि तभी उसने देखा, सीढ़ियों पर नई क़मीज पहने बेबी ऊपर जा रही है।

बेबी अपने निजी-जिम में वेट-लिफ्टिंग कर रही थी, जब उसने झरोखों के शीशे के पार रज्ज़ू को देखा। भारती के साथ रज्ज़ू 'जानकी कुटीर' में प्रवेश कर रहा था। पूरे तीस दिनों के बाद वह वापस आया था। उसे देखते ही बेबी का व्यायाम रूक गया। उसकी सांसें तेज़ हो गईं। धड़कनें बढ़ीं और कंठ सूखने लगे। भाग कर वह शीशे के पास जा पहुंची। उसने देखा दोनों काजल के विंग में जा पहुंचे थे।

बेबी के अंतस में उग आयी कोंपलों में कलियां उगीं और फूल खिलने लगे। वह दौड़ कर बाथरूम गई, शावर लिया, कपड़े बदले और झटपट तैयार होकर बाहर निकली। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। बेबी की नज़र के सामने ही भारती के साथ रज्ज़ू वापस जा रहा था। धक्क् से रह गई वह। अब क्या करे? आवाज़ देकर रोक ले उसे? फिर उसने देखा, रज्ज़ू बगै़र अपनी अटैची के, खाली हाथ था। वह मुस्कुराई और भागती हुई काजल के पास जा पहुँची।

-'अरे! ...बात क्या है, जो इस क़दर भागी आई?' काजल ने उसकी उखड़ी सांसों को लक्ष्य करते हुए पूछा।

-'नहीं, नहीं, बात क्या होगी, मैं तो यूं ही चली आई.'

-'वाह री, मेरी लाजो...तुम्हें तो झूठ बोलना भी नहीं आता। दौड़ती आई है और कहती है, यूं ही चली आई...आ... आकर बैठ मेरे पास।'

काजल ने ममता छलकाते हुए उसे अपने क़रीब बैठाया, 'चाय पीयेगी?'

- 'नहीं' ।

-'पानी?'

-'हां, पानी ले लूंगी।'

-'बैठ...लाती हूँ।'

फ्रि़ज से काजल ने पानी की बोतल निकाली। शीशे के ग्लास में पानी डाला और बेबी को ग्लास पकड़ाया। उसने एक ही सांस में ग्लास खाली कर दिया तो काजल ने पूछा, 'और?' बेबी ने इंकार किया तो वह ग्लास और बोतल वापस रख कर बेबी के पास बैठ गई.

-'हां, तो मेरी लाड़ो...बोल अब, इस क़दर उड़ कर कैसे आई?'

बेबी मौन रही तो काजल मुस्कुराई फिर हौले से उसने कहा, 'मेरा देवर, आया तो सिर्फ़ दो दिनों के लिये था लेकिन अब रूकेगा।'

-'कब तक?'

अनचाहे ही बेबी के शब्द निकले और पूछते ही वह झेंप गई. काजल ने कुछ कहा नहीं। वह बेबी की अकुलाहट से आनंदित होने लगी।

-'ठीक है फिर, मैं जाती हूँ...काजल दी।' बेबी ने उठते हुए कहा।

-'अपनी काजल दी के पास क्या सिर्फ़ पानी पीने आई थी?'

-'आप भी तो काजल दी...बस!'

-'अच्छा...अच्छा...चल बैठ चुपचाप और सुन। रज्ज़ू जी अभी रहेंगे। कल सुबह डाक्टर के पास जाकर, आगे की दवाई लिखानी है उनको। फ़ोन पर माँ को बता देंगे और फिर पूरे हफ्ते इनके साथ रहेंगे।'

कुछ क्षण रुक कर काजल ने बेबी के चेहरे को देखा, मुस्काई और फिर अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा, 'तुम तो जानती ही हो, कांग्रेस के अधिवेशन में तुम्हारे भैया कितने व्यस्त हैं। इस समय रज्ज़ू जी का आना, उन्हें बहुत अच्छा लगा। अकेले परेशान थे, इनको अचानक एक सहयोगी मिल गया तो इन्होंने रज्ज़ू जी को रोक लिया है। अभी दोनों तो वहीं गये हैं।'

कहते-कहते अचानक काजल गंभीर हो गई. एक क्षण चुप रहकर उसने पूछा, -'एक बात पूछनी है मुझे, अगर बताना न चाहो तो मत बताना। दरअसल अभी-अभी इन दोनों से यही बात हो रही थी।'

काजल की बात पर बेबी चौंकी, 'क्या बात काजल दी?'

-'कोले दा पर तुम क्यों नाराज़ हो?'

कोले दा के नाम पर उसका मूड ऑफ़ हो गया। उसने कुछ नहीं कहा तो काजल ने आगे कहा, 'दरअसल मुझे भी कोले दा पसंद नहीं हें और मैंने रज्ज़ू जी के सामने इनको साफ़-साफ़ कह भी दिया। तुम न बताना चाहो तो मत बताओ. वैसे मैं तो समझ ही सकती हूँ, उन्होंने तुमसे भी अभद्र व्यवहार किया होगा।'

-'मुझसे भी? इस' भी 'का क्या अर्थ हुआ काजल दी? क्या आपसे भी उसने बद़तमीजी की है?'

-'अच्छा छोड़ो इस बात को। कोले दा को न तुम पसंद करती हो, न मैं...बस इतना ही काफ़ी है।'

बात आगे बढ़ती कि तभी काजल दी को खोजता रामरतन आ गया।

-'क्या बात है रामरतन?'

-'बात की होतै, काजल दीदी...हम्में की नै आबेॅ पारौं?'

हँस पड़ी काजल-'अरे नहीं... मेरा यह मतलब नहीं था। अच्छा बताओ बात क्या है?'

-'आज शाम की बनतै...अच्छे छै, बिटियो यहीं छै। बताबो त ओकरे जोगाड़ होतै।'

रामरतन की बात का जवाब दिया बेबी ने-'आज लेग कबाब बनाइये काका!' फिर उसने काजल से कहा, 'पापा को एग स्क्रैम्बल्ड बहुत पसंद है। चिकेन लेग-कबाब की ड्रेसिंग, आज सलाद और स्क्रैम्बल्ड से करेंगे दीदी।'

-'ठीक है रामरतन' काजल ने कहा, 'तंदूर लगा देना। मार्केट से क्या मंगाना है, मैं लिस्ट बना देती हूँ।' काजल बेबी की तरफ़़ मुख़ातिब हुई, 'देखती हूँ मैं...फिर बातें करूंगी।'