अगिनदेहा, खण्ड-7 / रंजन
कोले दा का असली नाम यूं तो कॉलेश्वर त्रिपाठी है, लेकिन कॉलेश्वर से काले और काले से अब कोले दा के नाम से ही वे जाने जाते हैं। यही वजह है कि उनके नाम के बाद अगर 'कोले दा' न लिखा हो तो डाकिया भी उलझ जाए. मुहल्ले भर में किसी को भी उनका असली नाम ज्ञात नहीं। बचपन से सारे लोग उन्हें 'कोले' नाम से ही जानते-पहचानते थे। कोले के बाद 'दा' तो बाद में जुटा जब उन्होंने एक बंगाली युवती से प्रेम-विवाह रचा लिया। पत्नी थी गांगुली और ये त्रिपाठी। विवाह के पश्चात इनकी पत्नी गांगुली से श्रीमती त्रिपाठी हो गई और कोले, बन गए 'कोले दा'। अब सारे मुहल्ला इन्हें 'कोले दा' कहने लगा।
पत्नी का नाम था रूपा गांगुली। कोले दा की परेशानी एक ही थी पत्नी हिन्दी नहीं जानती थी और ख़ुद कोले दा बंगला नहीं बोल सकते थे। अब चूँकि ये जनाब उसपर फ़िदा थे तो ज़ाहिर था, इन्हें थोड़ी-बहुत बंगला सीखनी ही पड़ी।
अब शादी के बाद व्यवस्था यह बनी कि पत्नी अपनी बात बंगला में कहती और कोले दा हिन्दी में और दोनों एक दुसरे की बात समझ जाते।
पत्नी जब अच्छे मूड में होती तो हिन्दी-बंगला मिला कर बोलती लेकिन जब नाराज़ होती तो धाराप्रवाह बंगला बोलने लगती।
अठ्ठाईस वर्षीय कोले दा का चेहरा क्लीन-शेव्ड है। शादी के बाद से ये रोज़़ सवेरे अपना शेव बनाते हैं। शुरू-शुरू में आय का न कोई ज़रिया था न ज़रूरत। पिता जी का होटल चल रहा था, लेकिन विजातीय विवाह के कारण जब से पिता जी का होटल बंद हुआ, इन्होंने कापी-किताब के कवर डिज़ाईन बनाने का काम शुरू कर दिया और उसी मुहल्ले में पिता जी का घर छोड़ कर किराए की कोठरी में रहने लगे।
बाक़ी सब तो खैर कुशल-मंगल ही था और नई-नई पत्नी बन चुकी, ताज़ी प्रेमिका भी रंग-रूप और व्यवहार में ठीक-ठाक ही थी लेकिन गृहस्थी में फँसी पसीने से तर-बतर पत्नी की शक्ल, उसके बिख़रे बाल और आँटा गँुथी उसकी ऊंगलियां देख-देख कर कोले दा का प्रेमी मन बुझ चुका था। गंगा किनारे चुपके-चुपके गपियाने वाली, लाज और शर्म से दुहरी हो जाने वाली इसी लड़की को देखते ही इनकी धड़कनें किस क़दर बढ़ जाती थीं! सिर्फ़ उसकी अंगलियों के पोर को छूते ही, त्रिपाठी के अंदर, सम्पूर्ण सप्तक झंकृत होने लगता था।
और अब वही प्रेमिका, जब पत्नी के रूप में परिवर्तित हो गई तो कोले दा का सारे नशा पानी हो गया और इन्हें फिर से अपनी पहली प्रेमिका याद आने लगी।
छुप-छुपा कर मंदिर में शादी!
घर का कोलाहल!
मुहल्ले में हंगामा!
बंगाली समुदाय में हलचल और अच्छे-ख़ासे पैतृक मकान से बेदख़ली ने तो इनके प्रथम मधुमास के रस को, पहले ही निचोड़ दिया था। पहला एक महीना छुपते-छुपाते, मित्रो की सहायता से जहां-तहां आश्रय बदलते गुज़रा, तब इन्हें किसी प्रकार किराए की दो कोठरियां मिलीं। पत्नी की पहली चूड़ी, पहला माह काम आई, दूसरी गृहस्थी के ज़रूरी बरतन-बासन में। वह तो संयोग ही था कि दोनों चूड़ियों का स्वास्थ्य बेहतर था। सुनार ने लाख खोंट निकाल कर, खाद काट कर भी जितने पैसे दिए, वह कम नहीं थे।
बहरहाल अब तो बात पुरानी हो गई. कोले दा ने अपनी शादी की पहली वर्षगांठ भी मना ली और फ़ाईनआटर््स का डिप्लोमा भी इस क़दर काम आया कि कापियों-किताबों की कवर डिज़ाईन से ही इनकी गृहस्थी चलने लगी।
लेकिन कसक तो रह ही गई. पहला प्रेम इसीलिए असफल हो गया क्योंकि लड़की ईसाई थी और शहर का सम्पूर्ण ईसाई समाज विरोध में इस क़दर खड़ा हो गया कि आनन-फ़ानन इन्हें अपनी प्रेमिका बदलनी पड़ी।
कलाकार थे, सच्चे कलाकार! और कलाकार को प्रेरणा के लिए कम से कम एक प्रेमिका तो चाहिए ही चाहिए. अब इनका दुर्भाग्य ही था कि इनका दूसरा प्रेम क्षणभंगुर ही रहा क्योंकि इनका प्रेम परवान चढ़ता कि इसके पूर्व ही बंगालियों के समाज ने इस क़दर हंगामा मचाया कि देखते ही देखते 'प्रेमिका' इनकी पत्नी बन गई और फिर से एक बार इस कलाकार का हृदय टूट कर रह गया।
लेकिन इनकी गुदाज़ हथेलियों पर अंगूठे के नीचे का प्रदेश, जिसे सामुद्रिक शास्त्रा के ज्ञाता कामदेव का पर्वत कहते हैं, इस क़दर उभरी थीं कि अगर उसपर यक़ीन किया जाये तो इनकी ज़िन्दगी में रोटियों का चाहे अभाव हो जाये, लेकिन हृदय का रस-स्थल कभी शुष्क नहीं हो सकता और चूंकि लकीरें झूठ नहीं कहतीं इसीलिए इच्छा बलवती होते ही इनको अपनी तीसरी प्रेमिका का पता-ठिकाना फ़ौरन ही मिल गया और बेबी पर डोरे डालने को आतुर हो गए.
कला विद्यालय के समय इनके दो ही घनिष्ठ मित्रा थे, भारती और रज्ज़ू। रज्ज़ू तो कुंवारा था और भारती को महानगर में पत्नी के साथ-साथ मकान भी मिला, काम भी मिला और जैसा कि आपको पता ही है कि बड़ी जद्दोजहद के बाद भारती के हाथ क़ासिम नाम का आर्ट डीलर क्या मिला, मानो अलादीन का चिराग़ ही मिल गया। क़ासिम ने भारती से पुराने मशहूर चित्रों की अनुकृति बनवानी शुरू कर दी और देखते ही देखते उसकी क़िस्मत बदल गई.
भारती आख़िर था तो दोस्त ही! कोले दा, जा पहुंचे उसके पास और आगे का सारे मामला तो आप जान ही चुके हैं। लेकिन अगर आपने यह सोचा है कि कोले दा गुनाहे-बेलज्ज़़त होकर लौट आए तो जनाब इस ख़्याल से तौबा कीजिये। हमारे कोले दा इतने भी कमज़ोर नहीं हैं कि हवा का एक थपेड़ा इन्हें उड़ा दे। इन्होंने तो बडे़-बड़े तूफ़ान हँसते-हँसते झेले हैं।
भारती के पास जाकर तो इनके दिल के बुझे चिराग़ फिर से रौशन हो गए. इस बार विनीता के आकर्षण ने इनको चुम्बक की तरह इस प्रकार खींचा कि कलाकार ने अपना दिल निकाल कर उसके क़दमों में रख दिया।
इनकी राह में रुकावटें भी आईं। रज्ज़ू अपनी बहन और माँ के साथ भारती के पास पूरे दो दिन रह कर आया था और अब कोले दा की क़िस्मत की मार ही कहिए कि वह दुबारा फिर जा पहुंचा वहीं और उसपर गज़ब यह कि इस बार, पूरे एक हफ्ते के लिए.
पहले तो कलाकार कसमसाया था फिर उसने रज्ज़ू की उपेक्षा कर दी।
गधा है वह तो! लड़कियों के मामले में बिल्क़ुल अनाड़ी और ऊपर से सामने कोई आ जाए तो घबराहट से उसकी बोलती ही बंद हो जाती है! वह क्या करेगा?
यह सोचते ही वह मुस्कुराने लगा।
काजल ने रज्ज़ू और भारती के सामने चाय की प्यालियां रखते हुए कहा,
'अब आपके इस तरह एभ्वायड करने से काम नहीं चलेगा रज्ज़ू जी.'
भारती को काजल की बात अखरी और रज्ज़ू की जगह उसने काजल से पूछा-'तुम क्यों इस क़दर इंटरेस्ट ले रही हो? पहले भी तुमने इससे कहा था कि यह बेबी से बात करे। मामला क्या है? क्या तुम जानती नहीं हो बेबी को? ख़ामख़ा इसे क्यों फँसा रही हो?'
-'तो और क्या करूं मैं, किस क़दर दौड़ती-फांदती आई थी वह, तुम्हें पता नहीं है' काजल भावावेश में कहती रही, 'गर्वनेस रही हूँ मैं उसकी, सहेली हूँ मैं बेबी की। उसकी एक-एक धड़कन पहचानती हूँ मैं। देखा नहीं, किस डिप्रेशन में थी वह? और अब मैं नहीं चाहती कि वह फिर अवसाद की अंधी खाई में जा पहुँचे।' क्षण भर वह रुकी फिर उसने आगे कहा, -'हो सकता है वह रज्जू जी से प्यार करने लगी हो...मैंने कहा... हो सकता है... तो ऐसी स्थिति में यही इकलौते आदमी हैं जो उसे फिर से अवसादग्रस्त होने से बचा सकते हैं।'
-'मैं क्या करूंगा भाभी?' इस बार रज्ज़ू बोल पड़ा, 'मैं मानता हूँ कि विनीता जी बेहद खूबसूरत हैं। मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि उनके लिए मेरा अपना दिल भी धड़कता है, लेकिन मेरे लिए तो...'
-'क्या मेरे लिए,' इस बार भारती ने तड़प कर कहा, 'प्यार करते हो तो जाकर कह क्यों नहीं देते? लिपट जाओ उससे...यही तो वह चाहती भी है, लेकिन आगे होगा क्या? फ़्लर्ट करोगे उससे? धोखा दोगे बेबी को? और तुम्हारी भाभी चाहती है वह अपने अवसाद से बाहर आ जाये। भाई कमाल है। मैं तो इस मामले में बिल्क़ुल पड़ूंगा नहीं लेकिन अब मुझे लगता है तुम लोग बगै़र बवाल किए मानोगे नहीं।'
-'यार तुम तो...' रज्ज़ू ने कुछ कहना चाहा लेकिन भारती ने उसे आगे कुछ कहने न दिया और उबल पड़ा, 'छोड़ो यार! अच्छा मुझे साफ़ बात बताओ, शादी करोगे बेबी से?'
अचानक इस अप्रत्याशित प्रश्न ने रज्ज़ू को मौन कर दिया। उसने यहाँ तक तो अभी सोचा ही न था। क्या शादी करेगा वह बेबी से? उसने ख़ुद से यही प्रश्न किया तो उसे लगा, विनीता जी जैसी जीवन संगिनी उसे मिल जाए तो बाक़ी क्या रहा जीवन में। सारे सपना ही साकार हो जाए. बल्कि हक़ीक़त तो यह है कि इतना बड़ा तो उसका सपना भी न था, यह तो सपनों से भी आगे की बात थी।
और इसी बिंदु पर अंतर्द्वद्व ने जन्म लिया उसके अंदर। क्या विनीता जी जैसी अत्याधुनिक स्वप्न सुंदरी उसके जीवन में आ सकती है? यह तो चांद पा लेने जैसी ख्वाहिश है! यह तो संभव ही नहीं। फिर उसकी और विनीता जी की जीवन-शैली ही नहीं, जीवन स्तर में भी जमीन-आसमान का अंतर है।
-' अब सोचने क्या लगे? मुझे साफ़-साफ़ जवाब दो। शादी करोगे बेबी से
...और कर भी लिया तो रखोगे कहाँ? ...बेडरूम देखा है तुमने उसका? तुम्हारे पूरे घर से भी बड़ा है और वह भी एयरकंडीशन्ड। तुम तो उसे एक वक़्त का खाना भी नहीं खिला सकते। उसके ब्रेक-फ़ास्ट से डिनर तक का मेन्यू अगर सुन लो तो पागल हो जाओगे कि यह होता क्या है? भावना में बहकर दिमाग़ काम करना बंद कर देता है। गोबर भर जाता है दिमाग़ में। इसीलिए प्यार आदमी को अंधा कर देता है। मैं नहीं चाहता हूँ...'
-'अब बस करो यार!' रज्ज़ू ने अधीर होकर कहा, 'अपना रिकार्ड बंद करो अब। किसने कहा तुमसे कि मैं शादी करना चाहता हूँ उनसे। यह सही है कि मेरा दिल उनको चाहता है। बगै़र छिपाये मैं कह रहा हूँ, प्यार करना चाहता हूँ मैं। साफ़ कहूँ तो अभी-अभी मैंने जाना है, प्यार करता हूँ उससे। विनीता जी से मैं प्यार करता हूँ। लेकिन यह तो मेरा अपना निजी मामला है, बिल्क़ुल पर्सनल। क्या लोगों को फ़िल्म की हिरोइनों से प्यार नहीं हो जाता? राह चलती लड़की क्या कभी किसी का दिल नहीं खींचती? तो क्या...'
-'समझ गया मैं,' भारती ने कहा, 'हो गया बंटाढार! फिर न कहना कि मैंने तुम्हें सावधान न किया। जो करना है करो और तुम्हारे पास तो अब एक सेक्रेटरी भी है,' उसने काजल की तरफ़़ हथेली उठाते हुए अपनी बात पूरी की, 'तुम्हारी मीटिंग्स फ़िक्स करती रहेगी।'
काजल अब तक मौन थी। आरंभ में तो उसे यह बहस अजीब लगी थी परन्तु रज्ज़ू ने जब अपनी भावनाऐं प्रकट कर दीं तो वह नये चक्कर में फँस गई. उसने इस दृष्टिकोण से तो सोचा ही न था कि रज्ज़ू भी अपने दिल में उसके प्रति कोमल भावना रखता है।
चिन्तित हो गई वह। अब क्या होगा? यह तो खेल ही ख़राब हो गया। वह जान गई कि बेबी का चाहे जो हो लेकिन अब रज्ज़ू जी का भी भगवान ही मालिक है। क्या होगा इनका? वह रज्ज़ू को पहचान गई थी। जो होने वाला था, उसे सोच कर ही वह कांप गई.
काजल हौले से उठी। चाय की ख़ाली प्यालियां उठा कर उसने सिंक में रखा। हाथ धोया। उसे भी इन दोनों के साथ आज अधिवेशन स्थल जाना था। लेकिन अब नहीं जाएगी वह। उसका मूड ही ख़राब हो गया।
-'तुम लोग जाओ मैं नहीं जा सकूंगी।'
-'क्यों...क्यों नहीं जाओगी तुम? थोड़ी देर पहले तक तो हमारा काम देखने के लिए तड़प रही थी। अब क्या हो गया तुम्हें?' भारती ने उलझन में पूछा।
-'बस यूं ही, अब मन नहीं रहा...जाऊंगी फिर किसी दिन।'
भारती ने अब और समय बर्बाद करना उचित न समझा।
-'चलो भाई,' उसने रज्ज़ू से कहा, 'औरतों के मूड का कोई ठिकाना नहीं होता, कब सम्हले-कब बिगड़े, कोई नहीं जानता।'
अपनी बात कह कर उसने ज्योंही परदा हटाया, चौंक गया। बेबी चुपचाप वहाँ खड़ी थी।
काजल भी चौंकी। उसने वहीं से कहा, 'अंदर आ जाओ, बाहर क्यों खड़ी हो।' भारती और रज्ज़ू चले गये और बेबी जाते हुए रज्ज़ू को प्यार भरी आँखों से निहारती, काजल के पास अंदर आ गई.
-'चुपचाप बाहर खड़ी क्या कर रही थी।'
-'बातें सुन रही थी।'
बेबी का जवाब सुन कर काजल अवाक हो गई. कुछ क्षण बाद उसने बेबी से पूछा, -'क्या सुना?'
-'वही सुना जो आपके साहब और देवर कह रहे थे।'
-'तो तुमने सब कुछ सुन लिया?'
-'हां।'
गंभीर हो गई काजल। उसकी समझ में न आया अब क्या कहे वह। यह लड़की तो ख़ुद साफ़-साफ़ कह रही है कि उसने सारी बातें सुन ली हैं। कुछ भी तो छुपाया नहीं। अब वह क्या करे?
-'अच्छा बैठ मेरे पास...तुमने जब सब कुछ ख़ुद अपने कानों से सुन ही लिया है तो बता अब तुम्हें क्या कहना है? ... चाय बनाऊं? पीयेगी?'
-'नहीं काजल दी, रहने दीजिये।'
-'तो चल बैठ'
बेबी को अपने सामने बैठा कर काजल ने अपनी उत्सुक निगाहें उसके चेहरे पर गड़ा दीं। गुमसुम बैठी बेबी अचानक मुस्कुराई.
-'कुछ कहेगी भी या मुस्कुराती रहेगी?'
-'काजल दी! आपका देवर बहुत अच्छा है।'
-'वह कैसे?'
-'कितनी सादगी और मासूमियत से उसने अपनी बात कह दी... बिल्क़ुल साफ़-साफ़। ...मैं क्यों नहीं कह पाती काजल दी?'
काजल से बातें कर वह सीधे अपने कमरे में आई. एयरकंडीशनरों को चालू किया और सारे पर्दों को खींच कर कमरे में अँधेरा कर दिया। टी. वी. ऑन करके पलंग पर बैठ गई. टेलीविज़न के मद्धिम उजाले में उसने रिमोट से दर्जनों चैनल बदले लेकिन उसका मन न लगा। क्या करना चाहती है, उसे ख़ुद नहीं पता। दिल चाहता था...बस मुस्कुराती रहे...यूँ ही...ख़ामख़ा...या खिलखिला कर हँस पड़े
...ज़ोरों से...या भींच ले तकिए को...अजीब-सी कसक भर गई उसके अंदर।
वह पलंग से नीचे उतरी। फ्रि़ज से जूस का एक केन निकाला। ग्लास मेें जूस डाला, लेकिन एक छोटी घूंट ही लेकर उसे छोड़ दिया। जिम के पास गई, वाकर के हैण्डल को पकड़ा लेकिन उसे भी छोड़ कर वापस आ गई. उसने फिर टेलीविज़न पर निगाह डाली, दो-चार चैनल फिर बदले और झुंझला कर उसे भी बंद कर दिया। कमरे में फिर अँधेरा भर गया।
उसने सोचा खिड़कियों के पर्दे़ हटा दे, फिर अगले ही क्षण स्विच बोर्ड के पास जा कर कमरे की ट्यूब लाईटें जला दीं। वह वार्डरोब के पास पहुंची, उसे खोला। सोचा जीन्स और शर्ट उतार कर ढीले कपड़े पहन ले। लेकिन उसने ऐसा न किया। वार्डरोब बंद कर दिया उसने और म्यूज़िक कैबिनेट के पास पहुँच कर अपना फ़ाईव प्वायंट वन चैनल वाला म्यूज़िक सिस्टम ऑन किया। काजल से उसने कल ही तलत की वी.सी.डी. ली थी। तलत के स्वर गूंजने लगे।
बेबी को तभी उस दिन की घटना अचानक याद आई जब उसने वी.सी.डी. का डिस्क फेंक दिया था क्योंकि वह सिंगल टैªक का मोनो डिस्क था। लेकिन आज उसे तलत के मोनो टैªक ने, गुदगुदी से भर दिया।
बेबी ने कमरे की रोशनी बंद कर, उसे फिर अंधेरे से भर दिया और पलंग पर लेट कर तलत के शब्दों से ख़ुद को भिंगोना शुरू किया। सेमल की रूई से भरे तकिए को उसने अपने अंक में भींचा और रज्ज़ू के सपनों में खो गई.
काजल के कमरे में भारती और काजल के साथ रज्ज़ू बैठा है और तेज़ी से वहाँ पहुंच कर बेबी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा है, 'कैसे बुद्धू हो तुम, कुछ समझते क्यों नहीं? चलो उठो, मेरे साथ चलो।'
रज्ज़ू कुछ नहीं कहता है। काजल कुछ नहीं कहती है। कोई कुछ नहीं कहता और रज्ज़ू का हाथ पकड़े, उसे बेबी ले आती है, अपने कमरे में।
-'चलो बैठो चुपचाप...क्या लोगे?'
-'पानी! मुझे एक ग्लास पानी चाहिए. कंठ सूख रहा है मेरा!'
-'बुद्धू कहीं केे। लड़की नहीं देखी कभी? ...अच्छा लो पानी पीयो। प्यार करते हो तो कहने में डरते क्यों हो?'
-'मैं...मैं...किससे प्यार करता हूँ?'
-'मुझसे।'
-'हां...ठीक कहा तुमने। मैं वाक़ई तुमसे प्यार करता हूँ, लेकिन तुम... तुम और मैं...'
खिलखिला पड़ी वह और झटके से रज्ज़ू का हाथ पकड़ कर उसकी गोद में जा बैठी।
-'क्या करती हो तुम।' रज्ज़ू घबड़ा जाता है।
बेबी ने आँखों खोलीं, मुस्कुराई और उठ कर पलंग से नीचे उतर गई. ग्लास में पड़े जूस को पीकर खाली किया। म्यूज़िक सिस्टम बंद करके वापस अपने पलंग पर आ गई. अब पूरा कमरा अंधेरे, ठंढक और शांति से भरा था। उसने फिर से आँखों मूंदी।
-'सुनो मैं तुम्हारी मॉडल बनना चाहती हूँ, लेकिन कैनवास की नहीं... कैमरे की। फ़ोटो खींचोगे अपने मॉडल की?'
-'मुझसे फ़ोटो खिंचाओगी?'
-'हां फ़ोटो भी खिचाऊंगी और तुम्हे प्यार भी करूंगी।'
-'पहले क्या करोगी?'
हँस पड़ी वह खिलखिला कर, -'ईडियट! मैं तो तुम्हें बुद्धू समझती थी।'
-'अब क्या समझती हो?'
-'स्मार्ट!'
-'तो बताओ मुझे, पहले प्यार करोगी या पहले फ़ोटो खिंचाओगी? क्योंकि दोनों काम साथ-साथ नहीं हो सकते।'
-'क्यों?'
-'क्योंकि मैं फ़ोटोग्राफ़र हूँ, पेशेवर फ़ोटोग्राफ़र! मेरे हाथ में अगर कैमरा आ गया तो मैं बाक़ी सब भूल जाता हूँ।'
-'सब कुछ भूल जाते हो?'
-'हां सब कुछ।'
-'फिर याद क्या रहता है?'
-'क्रियेशन, सिर्फ़ क्रियेशन। कैमरा मेरा टूल बन जाता है, ब्रश बन जाता है और मैं क्रियेटर बन जाता हूँ, बाक़ी सब भूल जाता हूँ।'
-'ओ. के. मुझे मंजूर है। मैं भी देखना चाहती हूँ कि एक जवान और मुझ जैसी सुन्दर लड़की के सामने रहते तुम कैसे, सिर्फ़ और सिर्फ़, अपना क्रियेशन ही याद रख सकते हो।'
-'चैलेंज करती हो?'
-'येस डार्लिंग। मैं चैलेंज करती हूँ। निकालो अपना टूल...मैं अपने टूल्स निकालती हूँ।'
-'तुम कौन से टूल्स निकालोगी, तुम तो मॉडल हो।'
फिर से खिलखिलाती है वह।
-'ख़ुद देख लेना। चलो कैमरा तैयार करो अपना।'
वह अपने किट से निकोन का बॉडी निकालता है। बॉडी के लेंस माऊंट में सौर्ट ज़ूम लगाता है। फ़िल्म लोड करता है। किट से कई फ्लैश यूनिट निकाल कर कमरे में अलग-अलग कोणों पर लटकाता है। सारे फ़्लैश युनिटों में स्लैब लगाता है और कैमरे के फ़्लैश को फ़ायर कर, सारे युनिट का सिंक्रोनाईज़ेशन चेक कर मुस्कुराता है।
-'चलो अब मैं तैयार हूँ।'
-'मैं भी तैयार हो जाती हूँ।'
-'तुम्हें क्या करना है।'
-'तैयार होना है, सिर्फ़ एक मिनट लंूगी मैं।' कहकर झटके से वह बाथरूम का दरवाज़ा खोलती है। अंदर जाती है और अपनी क़मीज उतार कर शीशे में ख़ुद को देखती है। होठों पर नैचुरल लिपिस्टिक लगा कर, ग्लेसियर लगाती है और मुस्कुराती हुई वापस आकर, फ़ोटो-सेशन के लिए पोज़ देती खड़ी हो जाती है। जिन्स के ऊपर अपने बदन पर उसने सिर्फ़ एक डिजाईनर ब्रेसरी पहनी है।
रज्ज़ू के हाथों में फ़्लैश मीटर है, वह सारे फ़्लैश फ़ायर कर एपरचर की रीडिंग लेता है। निकोन के एपरचर रिंग पर उसकी उंगलियां घूमती हैं और कैमरे के व्यूफ़ाइंडर से वह बेबी को कम्पोज़ करता है। विभिन्न कम्पोज़िशनों में, विभिन्न कोणों से वह क्लिक करने लगता है। प्रत्येक क्लिक पर निकोन के शटर की आवाज़ गूंजती है।
फिर रज्ज़ू का स्वर आता है, 'ओ.के., थैंक यू.'
-'यह थैंक्स किसके लिए?'
-'तुम्हारे लिए. यह मेरी आदत है, क्लिक करने के बाद मैं अपने क्लायंट को थैंक्स कहता हूँ।'
-'मैं तुम्हारी फ्रेंड हूँ, क्लायंट नहीं।'
-'जब मेरे हाथ में कैमरा न रहेगा तो मैं भी तुम्हारा दोस्त ही रहूँगा।'
-'ऐसा?'
-'हां, ऐसा?'
-'ओ.के. माई डियर, देखती हूँ।'
-'देख लेना।'
बेबी झटके से दुबारा बाथरूम जाती है और ब्रेसरी खींच कर फेंक देती है।
इस बार वह अपने टूल्स, अपने साथ लिये आई है और पोज़ देकर फिर खड़ी हो गई है। फिर से क्लिक की आवाज़ें आती हैं, फ़्लैश फ़ायर होने लगते हैं और शटर की आवाज़ें गूंजने लगती हैं। लेकिन इन आवाज़ों के ऊपर बेबी की अपनी
धड़कनों की आवाज़ सबसे तेज़ और तीव्र होकर उसके अंदर गूंजने लगती है।
उसकी अपनी धड़कनें इस क़दर तेज हो गईं कि उसका सारे स्वप्न-लोक भंग होकर बिखर गया। जागी आँखों में देखे सपनों में डूब कर, उत्तेजना में हाँफने लगी वह। सारे एयरकंडीशनर पूरी तेज़ी से ठंढी हवा फेंक रहे थे। फिर भी बेबी के माथे पर पसीने की बूंदें भर आयीं। बेबी ने उठ कर कमरे में रोशनी कर दी। उसकी मादक घबराहट बढ़ी जा रही थी। उसने आगे बढ़ कर वार्डरोब खोला। अपना गाऊन निकाला और बाथरूम के अंदर चली गई.
-'देखो मि। हेजीटेंट' बेबी ने अपने ईजीचेयर पर रज्ज़ू को हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा-'इस तरह फ़ोर्सली पकड़ कर तुम्हें ले आई...सच पूछो तो मुझे भी अच्छा न लगा, लेकिन मेरे पास और कोई च्वाईस न था...क्या करती मैं...बोलो?'
एक तो रज्ज़ू ख़ुद हैरान-परेशान था, ऊपर से बेबी के कक्ष की भव्यता ने उसे अपने रौब में ले लिया था। क्या कहता वह? भारती अधिवेशन स्थल पर गया हुआ था। नाश्ता करके रज्ज़ू भी जाने ही वाला था कि काजल के सामने ही बेबी ने आकर मानो रज्ज़ू का अपहरण ही कर लिया। काजल ने कोई विरोध नहीं किया और बेबी, रज्ज़ू का हाथ पकड़, अपने साथ ले गई.
रज्ज़ू के ईज़ीचेयर की बांह पर बेबी बैठ गई थी और अपने दाहिने हाथ को कुर्सी की पीठ पर फैला कर उसने रज्ज़ू से सवाल किया-'आख़िर इस क़दर शर्मीले क्यों हो तुम?'
-'नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।'
-'फिर क्या मुझे एभ्वायड करना चाहते हो?'
रज्ज़ू ने जवाब न दिया तो बेबी ने फिर कहा, -'तो बात क्या है आख़िर...तुम मुझसे नज़र क्यों चुराते हो? बात क्यों नहीं करते मुझसे?'
-'क्या बात करूं?'
हँस पड़ी बेबी, 'अब यह भी मैं ही बताऊं?'
रज्ज़ू फिर मौन हो गया। उसका दिल तो बेबी के ख़्याल से ही धड़कने लगता था और यहाँ तो वह बेबी के साथ ही... उसके कक्ष में... बिल्क़ुल अकेला था। उसपर से बेबी इतने क़रीब बैठी थी कि उसके होश ही फ़ाख़्ता हो गये। कितनी बातें, कितने ख़्याल आ रहे थे उसके दिल में। होंठ बंद थे और अंदर ही अंदर अनेक संवाद चल रहे थे। लेकिन एक शब्द भी वह कह न पा रहा था।
उसके जीवन में यह पहला मौक़ा था जब एक इतनी सुन्दर लड़की के साथ वह अकेला था। बेबी मुस्कुराती हुई उठी। फ्रि़ज के पास जाकर उसने जूस के दो कैन निकाले। दो ग्लासों में उसे डाल कर वापस आई. उसने दोनों ग्लास सेन्टर टेबल पर रखे और वाल कैबिनेट में रखे म्यूज़िक सिस्टम को ऑन कर दिया। इंस्ट्रूमेंटल संगीत की मध्यम स्वरलहरी सम्पूर्ण कक्ष में गूंजने लगी।
-'अरे जूस तो लो।' इतने प्यार और मनुहार से बेबी ने आदेश दिया कि रज्ज़ू के हाथ ने फ़ौरन ग्लास उठा लिया। उसने एक घूंट लेकर ग्लास वापस रख दिया।
बेबी ने दूर रखा कुशन उठा कर सेन्टर टेबल के पास रखा। उस पर बैठ उसने अपना ग्लास उठा कर रज्ज़ू की ओर बढ़ाते हुए कहा-'लो, एक सिप मेरे ग्लास से ले लो।'
रज्ज़ू हिचका तो उसने फिर कहा, 'कम ऑन...हैव ए सिप।'
रज्ज़ू ने बेबी के हाथ से जूस का ग्लास लेकर एक छोटा सिप लिया और बेबी को ग्लास वापस कर दिया। वह मुस्कुराई और पूरा जूस पी गई. खाली ग्लास रखती हुई उसने हाथों से इशारा किया तो रज्ज़ू ने भी अपना ग्लास खाली कर दिया।
-'आपने मेरा जूठा क्यों पीया?'
बेबी की आँखों में चंचल मुस्कुराहट चमकी।
उसने कहा-'नहीं समझे?'
-'नहीं।'
-'बुद्धू...हो तुम...इतना भी नहीं समझते?'
आँखों से उतरती चंचल मुस्कुराहट उसके अधरों तक आ पहुंची। अधर खुल कर फैले और शुभ्र-सफे़द मोतियों-सी दंत-पंक्ति झिलमिलाई.
एयर कंडीशनरों की ठंडी हवा में संगीत की स्वर लहरी तैर रही थी। वैभवपूर्ण विशाल कक्ष और ऐसे में बेबी की उपस्थिति का अहसास। क्या कहे, क्या करे? उसे कुछ सूझ न रहा था। वह लगातार बेबी से नज़रें चुराये बैठा रहा।
-'डू यू लव मी?'
बेबी के प्रश्न पर वह चौंका। उसने नज़र घुमा कर बेबी को देखा।
उसने फिर पूछा, -'प्यार करते हो मुझसे?'
फँसी-फँसी-सी आवाज़ में रज्ज़ू के होंठ बुदबुदाये, -'पता नहीं! लेकिन आपके सामने आते ही, आपको देखते ही...'
अपनी बात वह पूरी न कर सका क्योंकि बेबी बिगड़ी, -'यह आप-आप क्या लगा रखा है? मैं क्या बड़ी हूँ तुमसे?'
-'नहीं।' वह फिर हकलाया।
-'तो यह आप-आप क्या है? क्या हम दोस्त नहीं हैं?'
-'वह तो हैं।'
-'फिर यह' आप'का ड्रामा छोड़ो...' तुम'कहो मुझे।'
रज्ज़ू फिर घबड़ा गया। बड़ी मुश्किल से उसने कहा, -'ठीक है अब आपको वही कहूँगा।'
-'क्या?'
-'बेबी जी!'
बेबी खिलखिला कर हँस पड़ी। हँसी रूकी तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, 'अभी लम्बा वक़्त लगेगा तुम्हें। लम्बी टेªनिंग देनी पड़ेगी, लेकिन उसके लिये तुम्हें मेरा दोस्त बनना पड़ेगा...बनोगे?'
रज्ज़ू कुछ कहता कि बेबी ख़ुद बोल पड़ी-'अरे मैं तो भूल ही गई थी। दोस्त तो हम हैं ही...अभी तो तुमने एक्सेप्ट किया था। किया था न?'
-'हाँ।' रज्ज़ू ने सहमति में सर हिलाकर कहा और सोचने लग गया... दोस्ती की बात कब हुई थी? पहली-पहली बार तो अभी मिला है वह बेबी से...और दोस्ती कब क़बूल कर ली उसने? ...चलो तो उसे क्या ऐतराज़ है दोस्ती क़बूल करने में।
-'तो मिलाओ हाथ।'
बेबी ने हाथ बढ़ा दिया तो रज्ज़ू ने भी हाथ बढ़ाया। बेबी की हथेली बड़ी नाज़ुक थी। यों भी पहली बार उसने किसी लड़की से हाथ मिलाया था। बेबी का सम्पूर्ण अस्तित्व उसकी हथेलियों से गुज़र कर, रज्ज़ू की शिराओं में प्रवाहित
होने लगा।
-'नाउ, लेट अस डिसाइड अवर लेवल ऑफ़ फ्रेंडशिप।' बेबी ने अपनी चंचल निगाहों से रज्ज़ू को घूरते हुए कहा।
-'यह क्या होता है?'
-'अरे यार! दोस्ती का लेवल नहीं समझते? देयर आर थ्री लेवल ऑफ़ फ्ऱेंडशिप। वन इज भर्वल...सिर्फ़ गप्पें मारो दैन इनफ़ार्मल...किस एण्ड हग इच अदर, एण्ड द थर्ड इज़ फ़ुल्ली फ़िजिकल।'
रज्ज़ू के कान लाल हो गये। काँप गया वह। अच्छा था कि बैठा था। खड़ा रहता तो उसकी दोनों टांगे थरथराने लगतीं।
बेबी मुस्कुराती आँखों से रज्ज़ू को देख रही थी। रज्ज़ू के चेहरे पर आने वाले भावों को ग़ौर से देखती हुई उसने अपनी बात आगे बढ़ाई,
-'देखो मिस्टर! आपस में फ्ऱैंक रहना ज़रूरी है और अगर हम दोस्त हैं तो हमें हमारी दोस्ती की हद ज़रूर मालूम होनी चाहिए. ख़ास कर दोस्ती जब अपोज़िट सेक्स के साथ हो।'
एक क्षण वह रूकी लेकिन रज्ज़ू को मौन देखकर उसने फिर कहा, -'अब हम दोनों दोस्त हैं। मान लो मेरी इच्छा तुमसे सिर्फ़ भर्वल दोस्ती रखने की है और तुम दिल ही दिल में कुछ और चाहते हो तो...गड़बड़ हो जायेगी न? दोस्ती ही टूट जाएगी इसमें तो। इसीलिए यह ज़रूरी है कि हम दोनों अपनी हदें तय कर लें। क्या चाहते हो तुम? किस लेवल की दोस्ती करोगे?'
पूरी तरह गड़बड़ा गया रज्ज़ू। उसकी तो इच्छा हो रही थी कि वह झटपट बेबी को अपनी बांहों में जकड़ कर चूम ले लेकिन बंद होठों से शब्द तो निकल नहीं पा रहे थे, उठ कर चूम लेना तो बहुत बड़ी बात थी। फिर उसके दिल में एक और समानांतर विचार आया। उसने सोचा इस तेवर में इतनी स्पष्ट बातें करने वाली लड़की कहीं नाराज़ न हो जाए. क्या करे वह? जवाब क्या दे?
दरअसल दोनों के मानसिक स्तर की सतह ही भिन्न थी। रज्ज़ू तो किसी लड़की से आँखों मिलाकर बातें करने में भी असमर्थ था और बेबी थी कि ब्लेड की धार की तरह सब कुछ इतनी सहजता से और साफ़-साफ़, बगै़र किसी लाग-लपेट के कह गई.
आख़िर रज्ज़ू ने अपनी समस्त हिम्मत जुटा कर कहा, -'आप किस लेवल पर मेरी दोस्त बनेंगी?'
-'फिर आप! ...अच्छा छोड़ो, तुम क्या चाहते हो?'
-'मैं शर्त्तो पर कुछ नहीं चाहता, ख़ास कर दोस्ती तो बिल्क़ुल नहीं।'
-'शाबाश मेरे शेर। आख़िर तुम्हारी ज़ुबान तो खुली,' वह मुस्कुराई फिर कहा, 'लेकिन तुमने मुझे मिसअण्डरस्टूड किया है। मैंने दोस्ती की शर्त्त कहाँ रखी है? मैंने तो अपनी बात साफ़-साफ़ कह दी है और तुमसे केवल यह जानना चाहा है कि हम दोनों अपनी दोस्ती में कितने क्लोज़ हो सकते हैं? और वह भी सिर्फ़ इसीलिए कि बाद में हमें कोई तकलीफ़ न हो...हम अपने रेंज को जान जायें और उससे आगे नहीं जाएं।'
-'मेरी तरफ़ से आप निश्ंिचत रहें। मैं अपना रेंज कभी पार नहीं करूंगा।'
-'बगै़र जाने कि तुम्हारी रेंज क्या है?'
-'वह आप बताइये...क्या है मेरा रेंज?'
-'मैं तो तुम्हें बड़ा इनोसेन्ट समझती थी लेकिन तुम तो पूरे स्मार्ट निकले,' हँसने लगी वह और हँसते हुए ही उसने अपनी बात पूरी की, -'कितनी खूब़सूरती से तुमने बॉल को मेरे कोर्ट में डाल दिया...चलो मैं ही रेंज फ़िक्स कर देती हूँ।' कह कर रूकी, मुस्कुराई. एक रहस्यमय चंचल मुस्कान उसके चेहरे पर थिरकने लगी, उसकी आँखों चमकीं और उसने हौले से कहा, -'देयर इज़ नो रेंज बिटविन अस! तुम जितना चाहे मेरे क़रीब आ सकते हो।'
पहली बार रज्ज़ू हँसा, फिर उसने बेबी से पूछा, -'और आप?'
-'बेवकूफ हो तुम! अब क्या यह भी मुझे ही कहना होगा? जब मैंने ख़ुद एक्सेप्ट कर लिया कि तुम्हारी कोई रेंज नहीं, यू में कम ऐज क्लोज़ ऐज यू लाइक, फिर तो' ...और खुल कर हँस पड़ी वह।
रज्ज़ू अब तक सहज हो चुका था और उसने सोच लिया था, वह उठ कर बेबी को अपनी बांहों में जकड़ लेगा। लेकिन एक और बात उसे उलझा रही थी। बेबी के लिए जो स्पन्दन उसके दिल में है, जितना आवेग, जितना सम्मोहन और प्यार उसके अंदर भरा है, क्या बेबी के अंदर भी उसके लिए ऐसे ही कोमल भाव हैं या यह केवल इसके अंदर की भूख है? बुरी तरह उलझ गया वह। बेबी आख़िर चाहती क्या है?
-'यही बुराई तुममें...तुम बीच-बीच में खो जाते हो। नाउ कम आन फ़ास्ट एण्ड किस मी।' बेबी ने वहीं बैठे-बैठे, आमंत्राण में अपने दोनों हाथ फैला कर कहा।
बेबी के आदेश ने उसकी कोमल तंतुओं को स्पंदन-विहीन कर दिया। कमाल लड़की है यह तो! किस करना है तो बिजली का स्विच दबाओ और झट से किस कर लो। दूसरे आर्डर पर बाँहों में भर लो और अगले आर्डर पर तुरंत मुक्त हो जाओ. उसके ज़ेहन में जो पहले शब्द गूंजे, वे थे-'मैकेनिकल लव।'
वह झटके से खड़ा हो गया। बेबी भी मुस्कुराती हुई खड़ी हुई, लेकिन सारे मामला उलझ गया। उसने कहा, -'मैं बेहद लेट हो गया हूँ। भारती आ गया होगा। मुझे जाना चाहिए.'
चौंकी वह, -'यह अचानक तुम्हें क्या हो गया? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?'
-'मैं बिल्क़ुल ठीक हूँ विनीता जी.'
-'नाराज़ हो मुझसे?'
-'नाराज़ तो मैं कभी हो ही नहीं सकता आपसे। आप नहीं जानती आपसे मैं।'
-'हां! हां! बोलो...तुम मुझसे...बोलो आगे, रूक क्यों गये?'
-'आप जानती हैं!'
-'क्या? ...क्या जानती हूँ मैं?'
-'एक ही सीटिंग में कितनी बातें होंगी। अभी रहने दीजिये। फिर मिलता हूँ आपसे।'
-'तो अभी नहीं मिलोगे?'
-'नहीं, भारती इंतजार करता होगा।'
-'एक मिनट भी नहीं?'
-'आप तो नाराज़ होने लगीं विनीता जी. मैंने कहा न।'
-'ओ. के. माई डियर, अगर मेरे लिए ...अपने दोस्त के लिए तुम्हारे पास एक मिनट भी नहीं है, दैन आई विल नाट प्रेस यू टू स्टे विद मी एनी मोर।' इस बार रज्ज़ू ने हथियार डालते हुए कहा, -'ठीक है, मैं रुक जाता हूँ और तभी जाऊंगा जब आप धक्के मार कर मुझे बाहर करेंगी।'
अपनी बात कहते-कहते रज्ज़ू तो वापस उसी इजी चेयर पर फैल कर बैठ गया और बेबी खिलखिाला कर हँसने लगी।
अभी तक इनोसेन्ट है यह-बेबी ने सोचा। तभी उसके अंदर अचानक काजल दी के पेंटिंग्स का ख़्याल कौंध गया, जिसे उसने अपने हाथों क्षत-विक्षत कर दिया था।
पता नहीं उसने ऐसा क्यों किया। लेकिन रज्ज़ू को अपने इतने पास पाकर वह सोचने लगी-क्या यह मुझे अपना मॉडल बनाएगा? अभी पिछले ही दिनों तो उसने कल्पना में रज्ज़ू से अपना फ़ोटो सेशन कराया था। तब उसे पता कहाँ था-यह आर्टिस्ट भी है। वह तो बाद में उसे काजल दी ने बताया था।
तुरंत ही उसकी चेतना में एक दृश्य कौंधा। भरत नाट्यम की मुद्रा में वह पूर्ण निर्वसना बनी खड़ी है। रज्ज़ू के बांये हाथ में स्टेªचुला है। दाहिने हाथ में ब्रश लिये वह उसे निहार रहा है। रोमांचित हो गई वह। उसके शरीर का रोम-रोम हर्षित हो गया।
बनायेगा यह मुझे अपना मॉडल? पेंट करेगा, मुझे कैनवास पर? ...लेकिन यह तो भारती के काम में इंगेज्ड है! निराश हो गई वह। बेबी ने निश्चय कर लिया। कैनवास की मॉडल तो वह बनेगी ज़रूर...अब चाहे जब चान्स मिले, लेकिन अपना एक फ़ोटो-सेशन तो वह करा ही सकती है। पापा का लाया कैमरा भी तो है ही उसके पास। इस फ़ोटो सेशन के चक्कर में इसका हेजीटेशन भी टूटेगा। अभी पहली-पहली मुलाकात में उसका इस क़दर एक्सपोज़्ड हो जाना भी ग़लत है। उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ। क्या सोचता होगा...मेरे बारे में!
रज्ज़ू शांत बैठा था।
बेबी ने कहा-
-'बहुत दिनों से एक इच्छा है मेरी,' बेबी अचानक गंभीर हो गई. उसकी आवाज़ कहीं बहुत गहरे से निकलने लगी। उसने कहना जारी रक्खा, -'किसी आर्टिस्ट, किसी कलाकार, किसी फ़ोटोग्राफ़र की मॉडल बनना चाहती हूँ मैं। मैं चाहती हूँ तुम मेरा एक फ़ोटो सेशन करो और तुम्हारे कैमरे के फ्ऱेम में, मैं समा जाऊं। वैसे अच्छा तो यह होता कि कैनवस पर तुम मुझे पेंट करते और मैं रोज़़ तुम्हारे सामने पोज़ देती। लेकिन तुम तो रुकोगे नहीं इसीलिए फ़ोटो सेशन ही सही...बोलो करोगे मेरा फ़ोटो सेशन?'
रज्ज़ू मंत्रामुग्ध-सा सुन रहा था। बड़ी अजीब बातें कर रही है यह। बेबी जैसी मॉडल का सपना तो सभी कलाकार, सभी फ़ोटोग्राफ़र देखते हैं। ऐसी मॉडल, अगर कलाकार के कैनवस और छायाकार के कैमरे के सामने पोज़ के लिए उपलब्ध हो तो फिर क्या बात है? रज्ज़ू को इस बात पर आश्चर्य था कि ऐसा ख़्याल ख़ुद उसे क्यों नहीं आया।
उसकी आँखों स्वप्निल हो गईं। उसे लगा बेबी अपने हाथ में पीले गुलाब के गुच्छे पकड़ कर खड़ी है और वह ईजेल पर रखे कैनवास पर उसका पोटेर्ªरेट बना रहा है। बेबी, मोनालिस़ा है और वह विंची। नेपथ्य में वायलिन के स्वर और सामने बेबी. रज्ज़ू अपने बांये हाथ में रंगों से भरे स्ट्रेचुला और दायें हाथ में ब्रश पकड़े कैनवस पर, पूरे मनोयोग से बेबी की आकृति साकार कर रहा है।
-'तुममें यही सबसे बुरी बात है; बेबी की आवाज़ ने उसे चौंकाया,' तुम बैठे-बैठे कहीं खो जाते हो...बोलो कब करोगे मेरा फ़ोटोे सेशन? '
-'जब कहो, मैं तैयार हूँ। लेकिन इसके लिए मुझे अपना इक्यूपमेंट्स लाना होगा...अगली बार जब आऊंगा, अपना पूरा किट लेता आऊंगा।'
-'है न, मेरे पास,' बेबी ने कहा और उठ कर उसने वाल यूनिट के एक बॉक्स से एक किट बैग निकाल कर, सामने सेन्टर टेबल पर रखते हुए कहा, 'देख लो, इसमें क्या-क्या है?'
रज्ज़ू ने किट खोला। उसकी आँखों आश्चर्य से फैल गईं। निकोन एफ फाईव की बॉडी, नार्मल लेंस के अतिरिक्त सौर्ट-ज़ूम, डेडिकेटेड फ्लैश-गन, पोर्टेबल स्टैण्ड और कोकीन फिल्टरों का पूरा बॉक्स।
-'यह सारे ताम-झाम तुम्हारा है?' उसने आश्चर्य चकित होकर बेबी से पूछा?
-'पापा इंग्लैण्ड से लेकर आए थे। तभी से यूं ही रखा है...कैसा है?'
-'क्या कहती हो? यह कैमरा तो मेरा सपना है। अब पता नहीं मैं कभी ख़ुद खरीद पाऊंगा या नहीं, लेकिन मैं इससे तुम्हारा फ़ोटोे सेशन कर लूं, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है...कल दोपहर का समय रख लेते हैं।'
ख़ुश हो गई बेबी. उसने मुस्कुराते हुए कहा, -'कैमरा अब हो गया तुम्हारा। मैंने तुम्हें प्रेज़ेन्ट कर दिया। फ़िल्म वगै़रह जो लेनी है, तुम ले लेना। कितने पैसे दूं?'
-'फ़िल्म ख़रीदने के लिए पैसे हैं मेरे पास और रही बात कैमरे की तो इतना मंहगा कैमरा मैं ग़िफ्ट में नहीं ले सकता। तुम्हें पता है, क्या क़ीमत है इस पूरे किट की?'
-'प्रेज़ेन्टेशन की क़ीमत नहीं होती और वैसे भी मेरे लिए इस ताम-झाम की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं तो इसमें फ़िल्म तक नहीं भर सकती हूँ। क्या करूंगी इसे रख कर?'
-'जो भी हो, मैं इसे नहीं रख सकता। यहीं रहने दो। जब इच्छा होगी, तुम्हारा फ़ोटोे सेशन करके अपना शौक़़ पूरा करता रहूँगा।'
-'तुम इसे एक्सेप्ट करो या न करो। अब यह तुम्हारा है। दोस्ती में फ़ॉरमेलिटी नहीं होनी चाहिए और अब नो मोर डिसकसन। इसे रखो अपने पास।'
-'इसे ईश्यू नहीं बनाओ. मैं नहीं रख सकता। कल फ़ोटोे-सेशन करना है। मुझे इसी पर कन्सन्टेªट होने दो...मुझे जाने दो। भारती के साथ एक बार उसके वर्किंग प्लेस पर जाऊंगा, फिर मार्केट से फ़िल्म के साथ-साथ बाक़ी सामान लूंगा।'
-'क्या लेना है तुम्हें?'
-'कुछ रिफ्लेक्टर्स तैयार करूंगा।'
-'क्या होता है यह?'
-'अब इन चीज़ों में अपना दिमाग़ न लगाओ. देख लेना कल और अब मुझे मत रोको...भारती आ चुका होगा।' अपनी बात कहते ही रज्ज़ू उठ कर खड़ा हो गया।
बेबी भी मुस्कुराती हुई खड़ी हुई. धीरे से बुदबुदा कर उसने कहा, -'चलो आप से तुम पर तो आए. यही बहुत बड़ी बात है। ठीक है, जाओ तुम। मैं कल तक इंतजार करूंगी।' कह कर उसने हवा में अपना चुम्बन उछाल दिया।