अगिनदेहा, खण्ड-8 / रंजन

Gadya Kosh से
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भारती के कमरे में रज्ज़ू जब पहुँचा तो वहाँ काजल अकेली थी। उसे देखते ही काजल मुस्कुराई-'बड़ी देर रुक गये बेबी के पास!'

-'क्या करता भाभी, आने ही नहीं दे रही थी।' रज्ज़ू ने भी मुस्कुरा कर कहा और वहीं रखी कुर्सी पर पसर गया।

काजल ने बनावटी गंभीरता से पूछा, -'अच्छा! कोई बेहद ज़रूरी मामला निपटाया जा रहा था क्या?' और कह कर वह खिलखिला पड़ी।

-'अब आप भी भाभी...!' रज्ज़ू शरमा गया और उसने बात अधूरी छोड़ दी।

-'ठीक है भाई...बात प्राईवेट है तो मैं नहीं पूछूंगी। यों भी मुुझे आप दोनों के बीच, मूसलचंद तो बनना नहीं है। वैसे एक बात कहूँगी...अपना ख़्याल रखिएगा।'

-'ख़्याल रखने से क्या मतलब है आपका?'

-'नहीं मैंने कुछ ग़लत कह दिया, मुझे आप दोनोें की फ़िक्र है। आपको बेबी का भी ख़्याल रखना है। बेहद भावुक लड़की है वह। ऊपर से भले चट्टान लगती हो, लेकिन उसके अंदर पवित्रा कोमल भावनाओं का सोता भरा है। आपसे एक ही बात कहना चाहती हूँ, ध्यान रखना है आपको उसका, उसकी कोमल भावनाओं का और मैं जानती हूँ, मैं क्या कह रही हूँ, क्या मांग रही हूँ आपसे। हो सकता है आपको अपनी इच्छा के विरूद्ध भी जाना पड़े, लेकिन मेरी बेबी के लिए।'

काजल का गला अवरुद्ध हो गया। उसकी आँखों भर आईं और वह कहते-कहते मौन हो गईं। आंचल से आँखों के कोर पोंछती वह इतना ही कह सकी, -'माफ़ कीजिए रज्ज़ू जी, मैं अपनी ही भावनाओं में बह गई थी। जाने क्या-क्या बकती रही मैं।'

-'भाभी सम्हालिए ख़ुद को और मेरी बात सुनिए. आपकी विनीता जी मुझसे सम्हलने वाली नहीं है। मैंने पहले भी स्वीकारा है, मेरे अंदर उनके लिए कमज़ोर भावनायें थीं...यहां तक कि मन ही मन अनजाने में, मैं उन्हें प्यार भी करने लगा था। लेकिन मेरी सारी भावनायें, उनसे मिलने के बाद, पूरी तरह बदल गयीं। उनका व्यवहार, बातें करने का उनका अंदाज़़ और सोचने का उनका ढंग...कुछ भी तो मुझसे मेल नहीं खाता।'

काजल की उत्सुक नज़रें रज्ज़ू के चेहरे पर स्थिर हो गयीं, फिर उसने पूछा, -

-'ऐसी क्या बात हो गई?'

-'अब आपसे क्या बताऊं और क्या छिपाऊं भाभी? समझ में नहीं आता।'

-'कुछ कहेंगे भी या पहेलियां ही बुझाएंगे?'

-'पहेली तो मेरी अपनी ज़िन्दगी ही बन गईं है। पहली बार मन में प्रेम का अंकुर भी उगा तो, किसके लिए? दिल धड़का भी तो विनीता श्रीवास्तव जैसी पूरी मिकेनिकल और अनोखी लड़की के लिए!'

-'मिकेनिकल?' , काजल चौंकी, -'मतलब क्या है आपका?'

-'अब आपसे क्या कहूँ, बस यूं समझ लीजिए कि विनीता जी बिजली का एक स्विच बोर्ड हैं। वे एक स्विच दाबती हैं और हँसने लगती है। रोने का दिल करे तो तुरंत दूसरा स्विच ऑन करेंगी और रोना शुरू। वे दूसरों से भी ऐसा ही चाहती हैं। उसपर तुर्रा यह कि स्विच बोर्ड उनके अपने पास रहेगा। वे हुक्म सुना देंगी-उठो, तो आप खड़े हो जायें। बैठने का स्विच अगर दबाया तो आप फ़ौरन बैठ जायें। सब कुछ यंत्रावत है उनके पास। कहीं कोई संवेदना नहीं, भावना नहीं और अगर है भी तो यांत्रिक! इसीलिए मैंने उनके विषय में कहा-मैकेनिकल!'

-'आप आर्टिस्ट लोग हैं...आपलोगों की आर्टिस्टिक बातें मेरी समझ में नहीं आतीं, फिर एक ही मुलाकात में आप बेबी को पूरी तरह समझ जायें, यह शायद सम्भव भी नहीं है। वर्षोें से साथ रही हूँ मैं और फिर भी, उसे आज तक समझ नहीं पायी। आपसे मेरी एक ही प्रार्थना है। बड़ी नाज़ुक है मेरी बेबी...उसका ख़्याल रखिएगा।'

अपनी बात कह कर काजल ने दीवाल घड़ी की तरफ़ नज़रें उठाकर कहा, -'दो बज गये और आपके दोस्त का अभी तक अता-पता नहीं है। आपका खाना लगा दूं?'

-'नहीं...अकेले तो मैं खाऊंगा नहीं। थोड़ी देर इंतजार कर लेता हूँ।'

-'चाय बनाऊं आपके लिए?'

-'नहीं भाभी, थोड़ी देर रुक जाइए, भारती आता ही होगा।' इसी समय भारती ने कमरे में प्रवेश किया। उसे देखते ही रज्ज़ू ने कहा, -'हजार साल की उम्र है तुम्हारी।'

-'क्यों भाई, ऐसी क्या बात है?'

-'अभी-अभी तुम्हारा नाम लिया और तुम हाज़िर हो गए.'

हँसते हुए भारती ने अपने लिए एक कुर्सी खींची और बैठते हुए उसने कहा, -'तुम आए नहीं?'

-'खाना खाओ पहले, कहानी लम्बी है?'

भारती फिर हँसा, -'वह तो मैं समझ ही गया था। बेबी खींच कर अपने साथ ले गई थी। कहानी तो लम्बी होगी ही।'

रज्ज़ू से कह कर भारती ने काजल से कहा, -'खाना लगाओ, ज़ोरों की भूख लगी है।'

-'फ्रे़श हो जाओ,' काजल ने कहा, 'खाना तैयार है। तुरंत लगा देती हूँ।' कहती हुई वह किचन में चली गई.

-'हां तो सर! अब आप अपनी रामकहानी बताइये। कैसी गुज़री, जब मिल बैठे दीवाने दो।'

भारती अब मज़ाक के मूड में आ चुका था। रज्ज़ू से सवाल करता वह उठ खड़ा हुआ। दीवार से लगे बेसिन का नल खोलते हुए उसने फिर कहा, 'बताओ भाई, ज़बर्दस्त उत्सुकता है जानने की।'

रज्ज़ू शांत बैठा रहा। भारती ने कुल्ला किया, चेहरे पर पानी के छींटे मारे और हैंगर से तौलिया निकाल कर चेहरे पर रगड़ा। हाथ पोंछे और बालों में कंघी फेरी। कंघी फेरते हुए ही उसने बेसिन के शीशे में रज्ज़ू को देखते हुए कहा, -'क्या बात है, चुप क्यों हो?'

तभी खाने की थालियाँ लिए काजल आई. -'झट-पट खाना खा लो पहले फिर गप्पें मारना।' काजल ने टेबल पर दोनों की थाली सजा दी।

-'देखो भाई, अब मौनी बाबा बन कर तो खाना खाऊंगा नहीं,' भारती ने काजल से कहा तो उसने तुरंत पलटवार किया, 'फिर भाई! मैं तुम्हारी बीबी हूँ।'

खुल कर हँस पड़ा भारती और फिर खाना शुरू करते हुए उसने रज्ज़ू से बातें शुरू कर दीं।

-'तो सर! नतीजा क्या निकला आख़िर?'

-'कल दोपहर, मैं फ़ोटोे-सेशन कर रहा हूँ विनीता जी का।'

रज्ज़ू की बात पर चौंका भारती। हाथ का निवाला मुँह के रास्ते में रूक गया और उसकी आँखों आश्चर्य से फैल र्गईं।

-'यह फ़रमाइश है किसकी?' आख़िर उसने पूछा।

-'विनीता जी की।'

-'और कैमरा? ...कहां से लाओगे तुम?'

-'है न, उनके पास। निकोन का एफ फ़ाईव। नार्मल के साथ-साथ निकोन का शौर्ट-ज़ुम भी है। पूरी किट ही है निकोन की। निकोन का ही डेडीकेटेड फ़्लैश और कोकीन के फ़िल्टरों का पूरा सेट। मुझे तो पूछो मत...किट देख कर ही नशा छा गया। विनीता जी ने बताया, उनके डैडी इंग्लैण्ड से अपने साथ लेकर आए थे।'

-'एफ़-फ़ाईव! ...यार मैं भी एक बार उसको छूना चाहता हूँ। मुझे तो पता ही नहीं था, बेबी के पास एफ़-फ़ाईव का फ़ुल किट है। आश्चर्य की बात है, क्या क़ीमत होगी इस पूरे किट की?'

-'दो से ढाई लाख!' रज्ज़ू ने बताया तो भारती का सर भी सहमति में हिला।

-'फिर तो यार मज़ा आ जायेगा तुम्हें। कल दोपहर का समय क्यों रखा है? मैं तो रहूँगा नहीं। लंच के बाद करो तो मैं भी।'

हाथों में पानी का जग लिए काजल आ चुकी थी। उसने भारती की बात काटी, -'कोई नहीं रहेगा इनके फ़ोटोे-सेशन में।'

-'क्यों भाई, ऐसी क्या बात है?'

-'फिर भाई!'

-'अरे छोड़ो यार, तुम भी तो बस हाथ धोकर पड़ जाती हो शब्दों के पीछे। मैं रहूँगा तो रज्ज़ू को आराम ही होगा। एसिस्ट करूंगा इसे और तुम्हें पता नहीं है, निकोन एफ़-फ़ाईव से होगा यह सेशन। तुम्हें तो पता भी नहीं है, यह एफ-फाईव आख़िर किस चिड़िया का नाम है।'

-'तुम्हारे एफ़-फ़ाईव-फोर से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। मैंने सिर्फ़ इतना कहा है कि तुम्हें या किसी और को इस सेशन में नहीं रहना है बस।'

रज्ज़ू अभी तक शांत था और मुस्कुराते हुए दोनों की कच-कच का आनंद ले रहा था। खाना उसने खा लिया था। वह उठा। बेसिन पर हाथ धोये। तौलिये से मुँह-हाथ पोंछा और वापस आकर बैठते हुए उसने काजल से कहा, -'ऐसी क्या बात है भाभी? इसकी इच्छा है तो यह रहेगा। आपको क्या आपत्ति है?'

काजल ने नज़रें उठा कर रज्ज़ू को घूरा। कैसा मूर्ख है यह, उसने सोचा फिर नज़रें झुका लीं। हौले से उसने कहा, -'बेबी से पूछ लीजियेगा। क्या वह चाहती है कि उसका फ़ोटोे सेशन पूरी भीड़ के बीच हो।'

-'भारती के रहने से भीड़ हो जाएगी भाभी?'

-'हां, हो जाएगी। आपने सुना नहीं है? मशहूर डायलॉग है यह। एक अकेला होता है, दो की जोड़ी होती है और तीन की भीड़।'

इस बार रज्ज़ू के साथ भारती भी हँस पड़ा। हँसते हुए ही उसने रज्ज़ू से कहा-'यह किसी फ़िल्म का ही डायलॉग होगा। तुम्हारी भाभी को फ़िल्मी डायलॉग बहुत याद रहता है। मुग़ले-आज़म का पूछ कर देख लो। एक-एक डायलॉग इसने आज तक याद रखा है।'

इस बार काजल भी हँस पड़ी और हँसते हुए ही उसने टेबल साफ़ करना शुरू कर दिया।

-'ठीक है भाई,' भारती ने रज्ज़ू से कहा, -' अपनी क़िस्मत में तुम्हारा फ़ोटोे-सेशन नहीं है। चलो कोई बात नहीं मुबारक हो तुम्हें, तुम्हारा फ़ोटोे-सेशन। सिर्फ़ एक काम करना। बाद में ही सही, एफ़-फ़ाईव के दर्शन करा देना मुझे, कह कर फिर से हँस पड़ा वह।

टैरेस गार्डेन में प्रवेश करते ही रज्ज़ू चमत्कृत हो गया। उसके मुँह से अचानक निकला-'वाह! यह तो परी-लोक है... बिल्क़ुल फ़िल्म सिटी।'

खिलखिला पड़ी बेबी, फिर उसने पूछा-'पसंद आया?'

-'क्या कहती हो! इस जगह पर आकर तो कोई ख़ुद को रोक ही नहीं सकता। कमाल की जगह है यह तो। इसे इस ख़ूबसूरती से कौन सम्हालता है?'

-'अपना माली है निरंजन, वही इसकी देखभाल करता है।' कह कर बेबी ने कैमरे का किट वहीं किचनेट में रखा। इस समय उसने ब्लू-फे़डेड जीन्स पर चमकती हुई, सफे़द इज़िप्सियन कॉटन की क़मीज पहनी थी। अपने बॉब-कट बालों को शैम्पू से उसने धोया था और आई-ब्रो ठीक कर, बेहद सादा मेक-अप किया था।

होठों पर उसने लिपिस्टिक की जगह केवल ग्लेसियर लगाया था जो इस

धूप में लरज़ते हुए चमक रहा था।

लेकिन उसकी ख़ूबसूरती पर रज्ज़ू की नज़र कहाँ थी। वह तो अपने फ़ोटोे-ग्राफिक लोकेशन में ही खोया था।

मैक्सिकन-ग्रास कार्पेट के मध्य इटैलियन सफे़द मार्बल का चमकता वृत्त उसे आकर्षित कर रहा था। इसी स्पॉट पर वह बेबी का फ़ोटोे सेशन करेगा। उसने तय कर लिया। उसने किट खोला, कैमरा निकाला, स्टैण्ड पर उसे फ़िक्स किया। कैमरे की बॉडी में शौर्ट-ज़ूम लगाया और ज़ूम पर निकोन का विशाल लेंसहुड फिक्स कर दिया। दोनों रिफ़लेक्टर जो वह ख़ुद अपने साथ ले कर आया था, मार्बल के

गोलार्ध के किनारे खड़ा कर दिया। दोपहर के एक बजे का समय था। सूरज सर पर नव्बे डिग्री के कोण पर चमक रहा था। रज्ज़ू ने कैमरे के ब्यू-फ़ाईंडर में

गोलार्ध को कम्पोज किया और व्यू-फ़ाईंडर से चेहरा हटा कर गार्डन का निरीक्षण शुरू कर दिया।

-'क्या हुआ?' बेबी ने पूछा।

-'इस मार्बल के पीछे का कैक्टस मुझे जम नहीं रहा है।'

-'तो चाहते क्या हो?'

-'टॉप एंगल से एक्सपोजिंग करूंगा।'

-'फायदा?'

-'अरे बैकग्राऊण्ड ही चेंज़ हो जायेगा बाबा! तुम्हारा यह मार्बल का ग्राउण्ड ही बैकग्राउण्ड बन जायेगा।' कहते-कहते ही रज्ज़ू मुस्कुराया। रौक-गार्डेन के बायें बनी पानी की टंकी पर उसकी नज़र जम गई.

-'इस टंकी पर चढ़ने की सीढ़ी है?'

-'हां, इसी के पीछे लोहे की सीढ़ी लगी है।'

-'गुड...मैं इस पर चढ़ कर देखता हूँ।' कह कर वह टंकी के पास पहुंचा। पीछे सीढ़ियाँ लगी थीं। कैमरे के साथ ही वह टंकी पर जा पहुंचा। ब्यू-फ़ाईंडर में उसने मार्बल के गोलार्ध को देखा, मुस्कुराया।

यह फ़ोटोेग्राफ़ी करने आया है या एक्सरसाईज करने। सोचती-बड़बड़ाती और मुस्कुराती हुई वह इटैलियन मार्बल के वृत पर आकर खड़ी हो गई.

-'लेट जाओ इसपर।'

बेबी उलझन में पड़ गई-'गर्म है यार!'

-'ओ...के...आता हूँ मैं।' कह कर रज्ज़ू नीचे उतरा। बेबी के पास आकर उसने पूछा-'इस पर पानी के छींटे डाल दूं? किचनेट में तो पानी का कनेक्शन है न?'

-'किचनेट जाने की ज़रूरत नहीं है। रुको, मैं ग्रास-स्प्रेयर चलाती हूँ।' बेबी ने झरने का मोटर ऑन कर दिया। पानी का फ़व्वारा फूट पड़ा। बेबी ने मोटर बंद करके कहा, -'मैं स्प्रेयर क़रीब कर देती हूँ।'

कह कर उसने स्प्रेयर उठा कर मार्बल के किनारे रख दिया और दुबारा मोटर ऑन किया।

-'वन्डरफ़ुल...इसे बंद न करना,' रज्ज़ू ने कहा, -'मैं टंकी पर जा रहा हूँ।'

बेबी मार्बल के गोलार्ध से दूर खड़ी थी। रज्ज़ू ने टंकी पर चढ़ कर ब्यू-फ़ाईंडर में फिर से उसी फ्ऱेम को देखा।

-'आ जाओ बेबी...यहां लेट जाओ.'

-'पानी में? ...भींगना है क्या?'

-'भींग जाना...नो प्राब्लम, आ जाओ.'

-'ठीक है बाबा, अब जैसे नचाओ...नाचूंगी!'

पानी की फुहारों के बीच आते ही उसने आँखों बंद कर लीं। हथेलियों से चेहरे को झांपा और भींगती हुई खड़ी रही।

निकोन एफ़-फ़ाईव के शटर की आवाज़ पर बेबी ने चेहरा उठा कर रज्ज़ू को देखा तो उसने फिर से कैमरे का शटर क्लिक कर दिया।

-'चलो अब तो भींग ही चुकी हो...लेट जाओ प्लीज़।'

और बेबी लेट गई. अपनी दोनों हथेलियों को मोड़ कर उसने तकिया बना लिया और सीधे रज्ज़ू की आँखों में आँखों डाल कर हँसने लगी। निकोन का शटर तीव्रता से चलने लगा।

-'अब आँखों बंद कर लो।' रज्ज़ू ने बेबी को निर्देश देकर, निकोन के शटर की गति बढ़ा कर चार हजार पर सेट कर दी। तद्नुसार अपरचर और भी बड़ा हो गया। अब एक्सपोज़ड फ्ऱेमों में पानी की प्रत्येक बूंदों का स्थिर होना तय था। रज्ज़ू के याशिका-फ़्लैक्स कैमरे में यह सम्भव न था। उसके शटर की अधिकतम गति थी पांच सौ। यानी एक सेकेण्ड का पाँच सौवां हिस्सा।

टंकी पर बैठ कर रज्ज़ू ने पूरी संतुष्टि से कई फ्ऱेम एक्सपोज़ कर लिए और फिर वह टंकी की सीढ़ियों से नीचे उतर आया। पानी के फ़व्वारे अभी भी चल रहे थे लेकिन गर्म धूप में शीतल जल की फुहार, बेबी के तन-बदन को शीतल करने की जगह और भी गर्म कर रही थी। रज्ज़ू तो अपनी रचनात्मकता की धुन में खोया, कैमरे के साथ व्यस्त था, लेकिन बेबी! उसे तो केवल इतना पता था कि वह रज्ज़ू के समक्ष पानी में भींगती हुई लेटी है और उसका दोस्त उसमें दिलचस्पी लेने की जगह अपने कैमरे में ही खोया है। कैसा इंसान है यह? उसे याद आया, टैरेस पर खड़ी होकर जब वह सड़क के पार खड़े लड़कों को देखती थी, तो उनमें कैसी उत्तेजना भर जाती थी और यहां।

मैक्सिकन-ग्रास-कार्पेट पर रज्ज़ू ने स्टैण्ड पर कैमरा खड़ा किया। पानी के झरने को बंद कर वह वापस कैमरे के पास आया। बेबी उठकर बैठ चुकी थी। भींगे बालों से पानी की बूंदें उसके चेहरे पर टपक रही थीं। क़मीज पूरी तरह भींग कर बदन से चिपक गई थी। रज्ज़ू व्यू-फ़ाइंडर से बेबी की फ्ऱेमिंग कर रहा था। उसने शार्ट-ज़ूम का फ़ोकल-लेंथ बढ़ाया और बेबी को उसने कमर तक कम्पोज़ कर लिया। तभी बेबी के हाथ उठे। उसने अपनी क़मीज के एक बटन और खोल कर दोनों कालरों को थोड़ा फैला दिया। उभरे वक्ष की बारीक रेखा उभर आई. रज्ज़ू ने व्यूफ़ाईंडर में देखा, बेबी की निग़ाहें लेंस को घूरने लगीं। उसके होंठ फैले, धवल दंत-पंक्ति खुलने लगी।

रज्ज़ू ने ब्यू-फ़ाईंडर से निग़ाह हटाई. इस बार उसने शटर में केबुल-रिलीज लगा दिया था। अब उसे ब्यू-फ़ाईंडर में झांकते हुए शटर नहीं दबाना था। दाहिने हाथ में केबुल-रिलीज का सिरा थामे, उसने बेबी को निर्देश दिया, -'सोचो, तुम्हारे हाथ में चाय की एक प्याली है। पकड़ो उसे।'

बेबी ने अपने दाहिने हाथ में काल्पनिक प्याली पकड़ ली।

-'अब चाय की प्याली को होठों से थोड़ी दूर तक उठाओ.'

बेबी के हाथ उसी मुद्रा में उठ कर होठों के क़रीब आये।

-'वेरी गुड! अब अपने हाथ वहीं रहने दो और सोचो, चाय की चुस्की लेनी है तुम्हें। चुस्की लोे।'

बेबी के दोनों होंठ खुले और गोल हो गये। रज्ज़ू ने केबुल-रिलीज का बटन दबाया। खि...च्...च्च की ध्वनि से शटर खुल कर बंद हो गया।

रज्ज़ू संतुष्टी में मुस्कुराया-'वेरी गुड!'

लेकिन बेबी झुंझला गई, -' नाउ स्टॉप दिस नान-सेंस। तुम्हें पता है?

आधे घंटे से मैं भींगी पड़ी हूँ और तुम हो कि। '

-'ओ...के...ओ...के...माई डियर, आई एम सॉरी। चलो एक ब्रेक लेते हैं। तुम चेंज कर लो।' रज्ज़ू ने अपने दोनों हाथ उठा कर समर्पण कर दिया।

बेबी उठ कर खड़ी हो गई और फिर उसने मुस्कुराते हुए एक ज़ोरदा अंगड़ाई ली। उसे पता था कि इस नजारे को उसका दोस्त हर्गिज बर्दाश्त नहीं कर सकेगा। लेकिन उल्टा हो गया। रज्ज़ू ने हड़बड़ा कर स्टैण्ड से कैमरा अलग करते हुए कहा, -'ऐसे ही खड़ी रहना।'

फिर हाथों में कैमरा थाम कर क्लिक करना शुरू कर दिया।

-'नाउ यू कैन चेंज योर ड्रेस।'

-'बुद्धू।' बेबी बुदबुदाई और बुरा-सा मुंह बना कर मार्बल स्टेप्स पर क़दम रखती, किचनेट में आ गई.

रज्ज़ू ने भी कैमरे का स्ट्रिप गले में डाला। हाथों में स्टैण्ड पकड़ा और बेबी के पास जा पहुंचा।

-'तुमने पहले कहा होता, तो मैं अपने और भी कपड़े साथ लेकर आती।' बेबी ने रज्ज़ू के पहुंचते ही शिकायत की।

-'अब मुझे क्या पता था, यहाँ ऐसे-ऐसे एरेंज़मेंट्स हैं।'

-'क्या प्लान है अब? चेंज करने के लिए तो मुझे नीचे जाना होगा और ऐसी दशा में।'

उसने अपनी बात अधूरी छोड़ कर रज्ज़ू को देखा।

-'सॉरी! यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। एक काम करता हूँ। काजल भाभी के कपड़े लेकर आता हूँ मैं, तुम यहीं रुको।'

-'तुम दिखते तो नहीें, लेकिन हो बेवकूफ। मैं क्या उनकी साड़ी लपेट कर नीचे जाऊंगी? तमाशा बनाओगे मेरा?' झुंझला गई वह।

ग़लती तो हो गई थी। रज्ज़ू ने भी माना और अब इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प न था कि टैरेस गार्डेन की तपती धूप में ही कुछ वक़्त गुजार कर कपड़े सुखा लिए जाँय।

रज्ज़ू की नज़र, गार्डेन में खड़े दो विशाल पैडस्टल पंखों पर पड़ी।

-'इन पंखों के स्विच कहाँ हैं?' उसने बेबी से पूछा।

-'क्यों इनका क्या करोगे?'

-'इन्हें ऑन करो।' जवाब न देकर रज्ज़ू ने कहा।

किचनेट के स्विच बोर्ड में लगे दो स्विचों को बेबी ने ऑन किया। दोनों विशाल पैडस्टल चालू हो गये।

गले में कैमरा लटकाए रज्ज़ू ने कहा-'आओ मेरे साथ।' और किचनेट में रखे लकड़ी के गोल टूल को उसने हाथ में उठा कर कहा-'इस दाहिने वाले को बंद कर दो।'

बायीं ओर का पैडस्टल मार्बल के करीब था। उसकी ज़द में पहुंचते ही उसकी तूफानी हवा के जोर ने रज्ज़ू के कपड़े फड़फड़ा दिये। रज्ज़ू ने वहीं टूल रख कर बेबी को बैठाया। सूरज थोड़ा नीचे उतर कर पचहत्तर डिग्री के कोण पर आ चुका था। रज्ज़ू ने उसी कोण पर दोनों रिफ़्लेक्टर खड़े किये। धूप अपनी पूरी तीव्रता से बेबी के कंधों पर पसरी थी। सामने लगे रिफ़्लेक्टर बेबी के चेहरे को प्रकाशित कर रहे थे और विशाल पैडस्टल पंखें के दोनों ब्लेड बेबी के बालों को उड़ा रहे थे।

हवा की ज़द के बाहर रज्ज़ू ने स्टैण्ड पर कैमरे को माउंट किया। उसने रीडिंग ली तो बाइस अपरचर पर भी ओवर रीडिंग आई. उसे बेबी का क्लोज़-अप चाहिए था। उसने ज़ूम करके फ़ोकल लेंथ सत्तर पर सेट कर दिया। उसने कोकीन फ़िल्टरों का इस्तेमाल अभी तक इस सेशन में न किया था। किट से उसने कोकीन का बॉक्स निकाला। लेंस-हूड पर फ़िल्टर-एडाप्टर लगाया और एडाप्टर में उसने एक एन. डी. (न्यूट्रल डेनसिटी) और एक सौफ़्ट फ़ोकस फिल्टर डाला। अब अपरचर बाइस से ग्यारह हो गया। उसे नेपथ्य बिल्क़ुल धुआँ कर देना था और इसीलिए ज़रूरी था कि अपरचर और भी बड़ा हो जाये। उसने शटर स्पीड बढ़ा कर पूरा अपरचर खोल दिया। फिर डेफ़्थ-ऑफ़-फ़ील्ड बटन दबा कर उसने व्यूफ़ाइंडर में पूरे फ्ऱेम की जांच की। अब वह संतुष्ट था।

धूप की तपिश में बैठी बेबी बोर हो रही थी। उकता कर उसने कहा-' कर क्या रहे हो यार?

-'बस हो गया...चलो, अब अपनी शक्ल बदलो और मुस्कुरा दो प्लीज़!' और इसके बाद फ्ऱेम-दर-फ्ऱेम एक्सपोज़िंग शुरू हो गयी। निकोन के शटर की प्यारी आवाज़ें गूंजती रहीं और बेबी कभी कुनमुनाती-कभी मुस्कुराती रही।

अपने वार्डरोब से एक गाऊन निकाल कर बेबी ने रज्ज़ू से कहा-'मैं तुरंत चेंज करके आती हूँ।'

रज्ज़ू ने कुछ नहीं कहा। वह बेबी के कमरे में बैठा, कैमरे से फ़िल्म निकालने लगा। फ़िल्म निकाल कर उसने बाक़ी एक्सपोज़ड फ़िल्मों को अलग टेबल पर जमा किया। कैमरे से केबुल-रिलीज़ और शार्ट-ज़ूम को अलग कर उसने बॉडी कैप लगा दिया। ज़ूम की भी कैपिंग कर दी और किट में सारे सामान व्यवस्थित करने लगा।

-'मुझे पता होता कि तुम्हारा फ़ोटोे-सेशन ऐसा होगा तो मैं कभी प्रपोज़ नहीं करती।' बेबी ने आते ही कहा।

-'क्यों ऐसी क्या बात हो गई?' रज्ज़ू मुस्कुराया।

-'छोड़ो इस बात को...भूख लगी है?'

-'हाँ लगी तो है और अब जाऊंगा भी। तुम्हारा किट रेडी है। इसे रख लो। एक्सपोज़ड फ़िल्में मैं रख लेता हूँ। भारती आ ही चुका होगा। मैं खा लूंगा वहीं।'

अपनी बात कह कर वह खड़ा हो गया तो बेबी उसके समीप आ गई. इतना समीप कि रज्ज़ू बौखला गया। बेबी बुदबुदाई-'कैसे इंसान हो तुम?'

-'अब यह क्या बात हो गई?'

बेबी ने अपनी ऊंगलियों से उसकी छाती ठोंकी और पूछा-'इसके अंदर की मशीन तो चल रही है न? ...या बंद पड़ी है? ब्लड तो सरकुलेट कर ही रहा है, या वह भी बंद है?' बेबी की आवाज़ भारी हो गई. उसकी आँखों में अजीब-सा ख़ुमार भर गया।

रज्ज़ू की समझ में न आया, वह क्या करे-'चाहती क्या हो तुम?'

बड़ी मुश्किल से वह इतना ही कह सका था कि बेबी ने उसके दोनों

कंधे पकड़ कर कहा, -'नहीं जानते?' बेबी ने अपनी दायीं हथेली रज्ज़ू के बांयें कंधे से हटा कर उसकी गर्दन पर रख लिया और हथेली का दबाब बढ़ा कर रज्ज़ू के चेहरे को अपनी ओर झुकाने लगी।

रज्ज़ू चेतना-शून्य होने लगा। दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया। पूरा कमरा-पूरा वातावरण उसकी अपनी शब्दावली में आऊट-ऑफ़-फ़ोकस होकर डिजाल्व हो गया। फोकस में रह गया केवल बेबी का चेहरा, उसकी स्वपनिल आँखों और उसके लरज़ते होंठ। इसके बाद चेहरे का कम्पोज़िशन बदलता गया। ज़ूम होकर उसकी चेतना में, केवल बेबी के लरज़ते थरथराते अधर भर रह गये। बेबी ने रज्ज़ू को अपनी सम्पूर्ण शक्ति से जकड़ लिया।

जीवन की इस प्रथम अनुभूति से अभिभूत रज्ज़ू की बांह पकड़ कर बेबी ने उसे आराम कुर्सी पर बैठा कर कहा-'थैंक यू दोस्त।'

और इस धन्यवाद ज्ञापन के बाद उसने पास रखा इन्टरकॉम उठा कर दोनों के लिए लंच का निर्देश दे दिया।

इन्टरकॉम का चोंगा रख कर वह फ्रि़ज के पास गई और एपल जूस के दो टीन निकाल कर वापस आई.

-'खाना मैंने यहीं मंगाया है। तब तक इसे लो,' कहकर बेबी रज्ज़ू को ग़ौर से देखने लगी, -'क्या हुआ? अचानक मौनी बाबा क्यों बन गये?'

रज्ज़ू फिर भी मौन ही रहा। उसकी शिराओं में रक्त का प्रवाह तीव्र हो चुका था और दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। उसकी स्थिति, उसकी शक्ल पर पूरी तरह चस्पां थी। बेबी उसे देख कर क्षण भर ख़ामोश रही फिर मुस्कुराई और अचानक पूछ बैठी-'तुम किसी गिल्ट कान्सेस में तो नहीं फंस गये?'

रज्ज़ू चौंका। अनायास उसने इंकार करते हुए कहा-'नहीं तो! तुमने ऐसी बात क्यों की?'

बेबी ने जवाब न देकर दूसरी बात कह दी-'तुमने कभी प्रेम किया है?'

रज्ज़ू तुरंत जवाब न दे सका। चुप रह गया और फिर कहा, 'किया है।'

-'लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम सच कह रहे हो।' अपनी बात कहकर वह मुस्कुराई फिर कहा, -'अभी-अभी तुमने मुझे प्यार किया है और प्यार करके तुम पूरी तरह असहज हो गये हो, जबकि किसी भी ह्यूमेन-बियिंग के लिए जो सबसे सहज काम है, वह है प्यार करना। प्यार कोई बोझ नहीं है जिसे तुम इस तरह ढो रहे हो। शक्ल देखो अपनी और मुझे बताओ, इस क़दर सीरियस क्यों हो गये तुम?'

-'एक बात कहूँ बेबी?' रज्ज़ू ने हौले से पूछा और बगै़र बेबी को मौक़ा दिए ख़ुद ही कहने लगा, -'मैं ख़ुद उलझ गया हूँ...मुझे लग रहा है, हमारे बीच प्यार जैसी कोई चीज़ है ही नहीं, बस आकर्षण है दो शरीरों का।'

-'इमफै़चूएशन!' बेबी ने कहा, -'यही कहना चाहते हो न तुम? और अगर तुम्हारी बात मान भी लूं तो तुम कहना चाहते हो, वी आर नाट इन लव। चलो कन्सीडर कर लिया, तो? हम इसके एनलाइसिस करने के चक्कर में आख़िर पड़ें ही क्यों? क्या इतना काफ़ी नहीं है कि वी बोथ लाईक ईच अदर? क्या इससे इनकार है तुम्हें?'

-'नहीं, इस बात से तो मुझे इनकार नहीं है कि हम दोनों, एक दूसरे को पसंद करते हैं लेकिन।'

-'फिर लेकिन क्या? तुम आर्टिस्टिक टाइप लोगों का यही प्रॉब्लम है। फीलिंग्स को भी अगर इस तरह डिफ़ाइन करोगे तो फ़ील क्या करोगे? ... मैं एक बात और तुम्हें क्लीयर कर दूं। देयर आर टू टाईप्स ऑफ़ अवर नीड्स, वन इज मेन्टल जिसे तुम इमोशनल नीड कह सकते हो एण्ड दी अदर इज़ फ़िज़िकल, जिसके लिए एक ही शब्द प्रचलित है-सेक्स! इस सेक्स को हमने, हमारी सोसाइटी ने इस क़दर गंदी नज़रों से देखा है कि इसकी कम्पलीट डिगनिटी ही समाप्त हो गई है, जबकि मेरा मानना है कि जीवन में जो सबसे सुन्दर है, सबसे अनमोल... और इनफै़क्ट बेस ऑफ़ अवर बाइलॉजिकल लाईफ़, वह है सेक्स।'

बेबी पूरे भावावेश में आ गई थी। बोलते हुए उसके अधर थरथराने लगे थे और रज्ज़ू मंत्रामुग्ध-सा उसे देख रहा था।

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उसने कहा, -'सेक्स को हमने मैरेज के साथ जोड़ दिया है। पहला इम्पॉटेंस दिया मैरेज को। शादी कर ली। लो फिर, जो करना है करते रहो। आपस में प्यार हो ना हो, दो लोगों की फ़ीलिंग्स टैली करे, ना करे। मेंटल लेवल चाहे दोनों का डिफ़रेंट ही क्यों न हो, शादी हो गई तो सारी ज़िन्दगी ढोते रहो इस बोझ को। ...रबिश...यह भी कोई बात हुई? मैं ऐसे ढकोसलों को नहीं मानती। ज़िन्दगी जीने की चीज़ है-ढोने की नहीं और जैविक सेक्स पर इस तरह की अननैचुरल बाईंडिंग के, मैं सख़्त ख़िलाफ़ हूँ।'

अपनी बात धाराप्रवाह कह कर बेबी कुछ क्षणों के लिए मौन हो गई. रज्ज़ू अपलक उसे देखता रहा। अंत में बेबी ने प्रश्न किया-'क्या कहते हो तुम? जब बातें खुल ही गई हैं तो मुझे बताओ, क्या इस सहज-स्वाभाविक सेक्स को तुम भी, सोसायटी के बनाए रूल्स पर एक्सेप्ट करते हो या मेरी तरह टेक इट ईज़ी लेते हो?'

रज्ज़ू अपनी बात कह पाता कि तभी डोर बेल बजने लगी। दोनों का लंच आ गया था।

सारे पर्दे खोल कर कक्ष में अँधेरा कर दिया गया था और खाना खाने वाले टेबल पर, बेहद मोटी मोमबत्ती, स्टैण्ड पर जला दी गई थी। दिन में ही 'कैण्डल लाईट लंच' !

कक्ष के सारे एयरकन्डीशनर, अपनी पूरी क्षमता से, शीतल हवा के बयार उत्पन्न कर रहे थे। जैसमिन की सुगंध वाला एयर-फ्ऱेशनर कक्ष को सुगंधित कर रहा था और म्यूज़िक-डेक में लगा कम्पैक्ट-डिस्क, शंकर-जयकिशन के स्वर-बद्ध गीतों की स्वरलहरी...वातावरण में आह्नलाद का नशा घोल रही थी।

भोजन को उत्सव में परिणत किया जा सकता है, इसे रज्ज़ू ने पहली बार जाना। जानने को तो और भी कई बातें थीं। मसलन उसे पहली बार पता चला कि बड़े लोग भोजन को भी हिस्सों में बांट देते हैं। बेबी ने ही बताया उसे कि दिन और रात का भोजन, तीन से तेरह कोर्स तक के होते हैं।

अभी-अभी जो खाया गया, उसके तीन कोर्स थे। पहले कोर्स में सूप पी गई, दूसरे में मुख्य भोजन और तीसरे मेें डेजर्ट।

अपने घर में वह जब दोपहर का भोजन करता था तो थाली में एक तरफ़ थोपा हुआ भात होता, दूसरी तरफ़ तरकारी और कटोरी में अरहर की दाल। वह हाथों से भात में दाल मिलाता और तरकारी के संग खाता। बहुत हुआ तो खाने के बाद थोड़ा दही-चीनी खा लेता। रात में भात और दाल की जगह, वह रोटी और तरकारी खाता और साथ में एक पेड़ा या अन्य कोई मिठाई.

खाने के बाद पानी से हाथ घोता, कुल्ला करता और भींगे हाथों को पोछने के लिए जो कुछ मिलता-उससे हाथों को पोंछ लेता।

भोजन की उसकी प्रक्रिया, हलांकि कोई बेगार निपटाने जैसा काम, न थी, उसे भोजन में आनंद भी आता था और संतुष्टि भी मिलती थी लेकिन वह अन्य आवश्यक दैनिक कार्यों का एक हिस्सा मात्रा थी, कोई उत्सव नहीं।

गर्मियों में, पसीना बहता रहता और वह छत से लटके पंखे की गर्म हवा में पसीना सुखाता, खाना खाता रहता। जब कभी बिजली नहीं रहती, वह अपने एक हाथ से ताड़ के पंखे से ख़ुद को हवा करता, दूसरे हाथ से खाना खाता।

विभिन्न वर्गों की जीवन शैली कितनी अलग-अलग होती है। रज्ज़ू को पता है, निम्न वर्ग के घरों में बदबू-गंदगी और अभाव में कितने गंदे तरीक़े से खाना खाया जाता है। उंगलियां चाट-चाट कर साफ़ की जाती हैं। खाते वक़्त कितने गंदे तरीक़े से जानवरों की तरह जुगाली करते हुए चपर-चपर कर खाते हैं। यहाँ तक कि चाय तक को पिया नहीं, सुड़का जाता है।

और आज बेबी का लंच। टमाटर, खीरा और प्याज़ के सलाद को भी किस तरह सजा कर रखा गया था। शीशे के एक बेहद खूबसूरत बॉल में छोटे-छोटे छीले हुए साबुत लाल प्याज़ और वेनेगर में डूबी मिर्च।

बेंत की सुंदर-सी छोटी टोकरी में फूल बनी नैपकिनें और तमाम छोटे-बड़े अन्य अनेक ताम-झाम, ऊपर से आहलादकारी सुखद और शीतल कक्ष जिसकी हवाओं में जैसमिन की भीनी सुगंध और दिल की गहराइयों में उतरता शंकर-जयकिशन का संगीत।

जीने का अगर अंदाज़़ आ जाये तो कितनी हसीं है यह ज़िन्दगी। जीना भी एक कला है। खाना खाते समय जब वह गर्मी से बेचैन रहता, जैसे-तैसे खाने को निपटा देता तो उसके पिता कहते-यह जीवन का प्रसाद है। इसे प्रसाद की तरह, प्रणाम कर आनंद से ग्रहण करो। उसे आश्चर्य होता, पसीने में तर-बतर और गर्मी-उमस से बेहाल कोई व्यक्ति भोजन में कैसे आनंद मना सकता है?

लेकिन इस कला का सम्बंध तो सम्पन्नता से है। उसने सोचा, निर्धन के पास यह कला कहाँ से आयेगी? कितना फ़र्क़ है उसके और बेबी के जीवन स्तर में? और वह ख़ुद किस क़दर मिस-फ़िट है इन सम्बन्धों में। वह बेबी का पति बन कर रह तो सकता है, लेकिन क्या बेबी उसकी पत्नी बन कर रह सकती है?

खाना समाप्त हुआ तो बेबी के इशारे पर तुरंत 'फ़िंगर बॉल' (उंगलियां साफ़ करने की कटोरी) आ गई. रज्ज़ू ने देखा, बेबी ने उसके पानी में काग़ज़ी नींबू का रस निचोड़ा और अपनी उंगलियां डूबो दीें। रज्ज़ू ने भी नक़ल की। पानी गुनगुना था। उसने भी उसमें नींबू निचोड़ा और अपनी उंगलियां डुबो दीं।

उसे याद आया, लोग-बाग भोजन के बाद अपनी थाली में ही हाथ धोते थे और भींगी अंगलियों को हवा में झाड़ कर पानी की बूंदे उड़ाते थे। उसे घिन आती लेकिन वह चुप रहता था।

उसे लगा सम्पन्नता से सलीके का कोई सीधा नाता-रिश्ता नहीं होता। कई लोग बेहद सम्पन्न होते हुए भी फूहड़ होते हैं और कई गरीब भी सलीक़ेदार। पैसा और सम्पन्नता जीवन में वैभव और ऐश्वर्य उत्पन्न करते हैं, शालीनता नहीं। शालीनता और शिष्टाचार तो संस्कारों से आते हैं।

बेबी के साथ भोजन करते हुए वह इन्हीं विचारों में खो जाता, कभी संगीत में और कभी व्यंजनों के स्वाद में।

नौकरों की उपस्थिति में लगभग मौन में ही भोजन का समापन हुआ। जूठे बर्त्तन समेट कर टेबल पर बिछाए गए सफे़द कपड़े और अन्य वस्तुओं को ट्राली पर रख कर, उसके नौकर जाने लगे तो बेबी ने रज्ज़ू से पूछा-'कॉफ़ी पीयोगे?'

-'अब कुछ नहीं लूंगा।'

बेबी के इशारे पर नौकर ट्राली को ठेलते कक्ष से बाहर चला गया तो बेबी ने मुस्कुरा कर कहा,

-'हां तो रज्ज़ू बाबू, अब कहिए और क्या इरादा है?'

-'अब बाक़ी क्या रहा? इस शानदार लंच और तुम्हारे साथ को मैं हमेशा याद रखूंगा।'

शरारत से इस बार बेबी फिर मुस्कुराई और उसने कहा-'हमारे साथ को यादगार बनाने के लिए अभी तक तो तुमने कुछ किया नहीं है!'

बेबी की बात का अर्थ वह समझ गया और समझ कर मुस्कुराते हुए जवाब दिया-'तुम्हें हर बात की इतनी जल्दी क्यों है बेबी? ...और फिर तुम चाहती क्या हो? हम अपनी नज़रों से ख़ुद गिर जायें?'

बेबी गंभीर हो गई. उसने कहा, -'एक बात जानते हो रज्ज़ू? तुम्हारा प्राब्लम क्या है? तुम जीवन की हर छोटी-छोटी चीज़ों को पाप और पुण्य के उस नज़रिए से देखते हो, जिसे हमारी सोसाइटी ने बना दिया है...तुम्हें पता है, यह पाप क्या होता है?'

-'तुम्ही बता दो।' रज्ज़ू ने व्यंग से कहा।

-' दिल तोड़ना पाप है, किसी को हर्ट करना, इमोशन्स से खेलना पाप है।

रज्ज़ू हँसा, फिर उसने बेबी से कहा, -'अच्छा! तो लगे हाथ पुण्य को भी डिफाईन कर दो, यह पुण्य क्या है?'

-'सुख देना पुण्य है...द डिस्ट्रीव्यूशन ऑफ़ प्लेज़र, विदाऊट हटिंग अदर्स। हमने आज की सोसाइटी में इतने कम्पलीकेटेड रूल्स बना दिए हैं कि हमारे जीवन से प्लेज़र ख़त्म हो गया है। अब इस सेक्स की बात करें तो।'

रज्ज़ू समझ गया। कहीं से भी बात शुरू करो, बेबी उसे अपने एजेण्डा पर ला कर पटक देगी और इसका सिंगल प्वाइंट एजेण्डा है 'सेक्स' । क्या करे वह? उसने सोच लिया, अब मामले को और ज़्यादा उलझाना व्यर्थ है इसीलिए उसने बेबी को रोकते हुए, उसकी बात काटी और कहा, -'नाउ स्टॉप दिस सेक्स टॉपिक। कोई और बात करो। मैं इस मामले में ज़रा गंभीर हूँ। मशीन की तरह तुमसे लिपट कर तुम्हें प्यार करूं, तुम्हारे साथ हमबिस्तर हो जाऊँ और फिर तुमसे टा-टा, बाई-बाई करके अपनी टेªन पकड़ लूँ...क्या यही चाहती हो तुम?'

-'अब मारूंगी तुम्हें।' उसने हँसते हुए रज्ज़ू को मुक्का दिखाया, -'हर जगह हर चीज़ का निगेटिव देखने की हैविट तुममें डेवलप हो चुकी है।'

-'ओ. के...ओ. के...' रज्ज़ू ने हाथ उठा कर कहा-'हुक्म दो क्या करना है? तुम्हारे साथ लेट जाऊँ?'

-'येस...ऑफ़कोर्स।'

-'और कुछ ऐसा-वैसा हो गया तो?'

-'तुम क्या चाहते हो...ऐसा-वैसा कुछ न हो?' फिर लेटोगे ही क्यों? ' और कहकर वह खिलखिला कर हँस पड़ी।

-'मेरा मतलब है, हमारे ऐसे-वैसे में और भी कुछ हो गया तो क्या होगा?'

-'डोंट बी सिली...और क्या होगा?' ...कुछ क्षण रूक कर वह मुस्कुराई और कहा, -'कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते हो कि मैं कन्सीव कर जाऊँगी।'

-'अब समझी तुम।'

बेबी फिर जोर-जोर से हँसने लगी। उसकी हँसी थमी तो उसने कहा, -' ईडियट! ऐसा थोड़े न होता है!

बेबी ने उठकर अपने वॉल-युनिट से एक डायरी और पेन निकाला और रज्ज़ू के सामने आकर बैठ गई.

-'देखो, तुम्हें बताती हूँ...लड़की कन्सीव कैसे करती है।'