अच्छा किया / पवित्रा अग्रवाल
बहुत दिनो बाद एक अच्छी काम वाली पा कर मैं अब तनाव मुक्त हो गइ थी। पर रोज़ सुबह आठ बजे तक आ जाने वाली लक्ष्मी दस बजे तक नहीं आइ थी...मैने बर्तन मॉजना शुरू ही किया था कि सिर पर पट्टी बाँधे वह सामने खड़ी थी-" हटो अम्मा हम साफ़ करते '
" अरे ये क्या हुआ... कहीं गिर गई क्या? '
" नही अम्मा ... रात में वह बच्चियो का नाना (बाप) गाँव से आया, वोइच झगड़ा किया। '
" उसी ने मारा? '
" हौ अम्मा'
" क्यों मारा? '
"अब क्या बोलूं अम्मा। एक छोटी-सी कोठरी में हम लोगाँ रहते, बाजू में दो जवान बेटियाँ सोतीं। उसको नज़दीक नहीं आने दी ... तो बोत गुस्से में आ गिया...बच्चियों की भी शरम नहीं किया बोला-" बहनो के मरद से काम चल जाता हुँगा अब अपने मरद की क्या ज़रूरत...दिल तो किया अम्मा कि उसका मुँह नोच लूँ पर बच्चियो के कारण मुँह सिल ली। '
" लक्ष्मी तेरा मरद है, तुझ से शादी की है उसने... तेरे पास नहीं आयेगा तो किस के पास जायेगा? '
" अरे अम्मा उसका चरित्तर आप को नहीं मालुम, सारे ऐब हैं उसमें फिर शादी का मतलब बस यहीच होता अम्मा...जोरू और बच्चो के लिये उसका कोइ फरज नहीं? उसके लक्षन अच्छे होते तो हम गॉव से इस अनजान सहर में काहे को आते...दो कोठरी का घर था उसे भी बेच के खा गया। अम्मा दो औरत बच्ची हैं इनका भी तो घर बसाना न। '
" हाँ सो तो है...फिर क्या हुआ? '
सुबह होतेइच मेरे कू खीच के हमारी अक्का (बहन) के घर को लेके गया ...अक्का और उसके मरद को गलीच-गलीच बाताँ बोला और मेरे कू वहींच मारना चालू किया फिर हम और अक्का मिल के उसको चप्पल से मारे। ...अम्मा पहली बार हम उस पर हाथ उठाये...पर क्या करते...?
तभी उसकी बेटी आगयी-" अम्मा यह काम तो तुझ कु बोत पहले करना था...आज तक वह हमारे या तेरे वास्ते क्या किया? हम लोगाँ मेहनत से कमाते और वह जब भी आता मार पीट के पैसे छीन के ले जाता '