अच्छा घर / अशोक भाटिया
काफी समय से वे पुत्र के लिये अच्छे घर की तलाश में हैं। एक बार वे हमारे पड़ोस में भी एक घर में आये।
बात कुछ जँच गई, तो सुमन जी बोले- ‘‘सब अच्छा है, लड़की पढ़ी-लिखी है‘‘
‘‘जी यह तो आपकी सोच अच्छी है...बाकी और कोई डिमांड हो, तो अभी तय कर लेते हैं...‘‘
‘‘नहीं बस, जिसने लड़की दे दी, समझो सब-कुछ दे दिया...‘‘
यह सुनकर ओजसिंह के हाथ जुड़ गये। वक्त देखकर सुमन जी ने कहा- हाँ, एक वह रेडियो होता है न, जिसमें तस्वीरें आती है...वह दे देना।‘‘
ओज सिंह के हाथ जुड़े रह गये।
“एक बोतल ठंडी करने वाला बक्सा भी दे देना, बच्चों के काम आयेगा।”
ओजसिंह के हाथ खुलने लगे।
‘‘तेल से चलने वाली साइकिल तो दोगे ही‘‘ सुमन जी ने हँसते हुए कहा- “घूमने-फिरने के लिए ठीक रहती है।‘‘
ओजसिंह ने उठकर हाथ जोड़ते हुए कहा- ‘‘सुमन जी, हम इस कदर लायक नहीं हैं, आप कोई और घर देखिये।‘‘
थुलमुल सुमन जी तत्काल उठकर चले गये।
तभी बाहर से एक भिखारी ने गिड़गिड़ाकर भिक्षा-पात्र बढ़ाते हुए कहा- ‘‘कुछ दे दो, अंधा गरीब हूँ।‘‘
ओजसिंह ने कहा- ‘‘कोई और घर देखो।‘‘