अच्छा दोस्त कौन / मनोहर चमोली 'मनु'
नन्ही गिलहरी का आज स्कूल में पहला दिन था। वह खुशी-खुशी स्कूल आई थी। उसकी बगल की सीट में चूहा बैठा हुआ था। वह बार-बार गिलहरी को ही देख रहा था। उसकी आगे वाली सीट पर इठलाती हुई तितली बैठी हुई थी। तितली बार-बार अपने पंख खोलती, जिसके कारण गिलहरी को ठंडी-ठंडी हवा मिल रही थी। वह बड़ी खुश थी। हाथी दादा को टीचर के रूप में देखकर वह बड़ी खुश थी।
इंटरवल हुआ। गिलहरी ने चूहे से कहा,”चलो। मैदान में खेलते हैं।” चूहा रोने लगा। रोते हुए बोला,”मैं ठीक से चल नहीं सकता। मुझे साफ सुनाई भी नहीं देता। स्कूल में मेरा कोई दोस्त नहीं है। सब मुझे चिढ़ाते रहते हैं। तभी तो मैं हर समय कक्षा में ही बैठा रहता हूँ।”
यह सुनकर गिलहरी चुप हो गई। उसे चूहे का स्वभाव अच्छा लगा था। उसने मन ही मन में कहा-”चूहा तो अच्छा दोस्त है। मेरे साथ ही बैठता है। मेरी ही कक्षा में पढ़ता है। मुझे तो इसकी मदद करनी चाहिए।”
एक दिन की बात है। चूहा स्कूल नहीं आया। गिलहरी चूहे के घर जा पहुंची। चूहा सुबकते हुए बोला-”आज की पढ़ाई छूट गई मुझसे। मैं आज स्कूल नहीं आ पाया।”
गिलहरी ने चूहे को स्कूल में पढ़ाये हुए विषयों की जानकारी दी। उसने चूहे को यह भी बताया कि आने वाले सोमवार को मासिक परीक्षा ली जाएगी।
दोनों मिलकर तैयारी करने लगे। मासिक परीक्षा में चूहे के अच्छे अंक आए। चूहे का हस्तलेख अच्छा नहीं था। हाथी दादा उसे बार-बार डांटते।
एक दिन की बात है। इंटरवल हुआ तो गिलहरी और चूहा स्कूल के बागीचे में गए। पेड़ की एक डाल पर चिड़िया का घोंसला था। चिड़िया का एक नन्हा बच्चा घोंसले से नीचे गिर गया। वह उड़ने की कोशिश कर रहा था। लेकिन हर बार उड़ने की कोशिश में वह बार-बार नीचे ही गिर रहा था।
चूहा बोला,”ये बच्चा उड़ नहीं पाएगा। बार-बार गिरने से तो ये मर भी सकता है।” गिलहरी ने कहा,”लेकिन अभ्यास से ही सफलता मिलती है। देखना। वह बार-बार गिरकर भी उड़ ही जाएगा। बस और लगन से वह इसी तरह कोशिश करता रहा तो। फिर देखना यह जरूर उड़ सकेगा।”
गिलहरी के साथ-साथ चूहा उस नन्हे बच्चे को देखते रहे। चिड़िया का नन्हा बच्चा बार-बार गिरकर उड़ने की कोशिश में लगा रहा।
आखिरकार फिर उसने पंख फैला ही दिए। फिर एक लंबी उड़ान भरी और पल भर में ही वह घोंसले में जा पंहुचा।
गिलहरी ताली बजाने लगी। चूहा भी खुश हो गया। बोला,”गिलहरी। तुमने ठीक कहा था। नन्हा बच्चा थका नहीं। हारा नहीं। यही वजह है कि वह अब अपने घोंसले में आराम से बैठा हुआ है। एक मैं हूं कि बेवजह परेशान हो जाता हूँ। अब तक मैं सोचता था कि मैं कुछ नहीं कर सकता। मगर अब मुझे लगता है कि मैं भी बहुत कुछ कर सकता हूँ। अब मैं अभ्यास से अपने हस्तलेख में सुधार करूंगा।”
गिलहरी ने चूहे से हाथ मिलाते हुए कहा,”मैं हर अच्छे काम में तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हारा सहयोग करूंगी। मगर तुम्हें अपने मन में हौसला और विश्वास बनाए रखना है। निराशा को मन से हमेशा के लिए निकाल फेंकना है। याद रखना। किसी को लाचार समझकर दया मत दिखाना।”
चूहे ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा,”दोस्त वही है जो सहयोग और मदद करता है। मुझे खुशी है कि तुम मेरे लिए अच्छी दोस्त साबित हुई हो।”
गिलहरी ने भी झट से अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। तभी इंटरवल खत्म होने की घंटी बजी। दोनों कक्षा की ओर चल पड़े।