अच्छे पड़ोसी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हरिया का साल–भर का लड़का अचानक बीमार हो गया। उसकी पत्नी इन्द्रो भी परेशान हो उठी। बच्चे के तुतलाते हुए स्वर ने और परेशान कर दिया–"मां, दलद"–बच्चे ने अपनी छाती पर हाथ रखकर इशारा किया।
रात के ग्यारह बजे होंगे। ठण्डी हवा चाकू की तरह चीर रही थी। सारा गाँव गहरी नींद में सोया था। इस गाँव में केाई वैद्य–हकीम भी नहीं है। हरिया क्या करे? उसका स्वभाव इतना रूखा है कि किसी से सीधे मुँह बात तक नहीं करता। इन्द्रो भी उससे उन्नीस नहीं है। गली–मुहल्ले में रोज–रोज गुलगुपाड़ा मचाती रहती है। यही कारण है कि कोई उसके मुँह नहीं लगना चाहती।
दर्द के मारे लड़का रोने लगा। रुलाई सुनकर पार्वती चाची आंगन में आ गई. उसने इन्द्रो को आवाज़ लगाई–"क्या बात है बहू? लल्ला क्यों रो रहा है?"
"इन्द्रो चौंकी–पार्वती चाची के साथ आज ही तो छोटी–सी बात पर लड़ाई की थी। बहुत बुरा–भला भी कहा था। वह बोली–" सांझ हल्का–सा बुखार था। अब तेज हो गया है। "
"तुम लोगों को बच्चों की फिकर कहाँ रहती है।" चाची ने एक मीठी झिड़की दी। इन्द्रो ने प्रतिवाद नहीं किया।
आवाज़ सुनकर अमरनाथ चाचा भी आ गए. हरिया से बोले–"सुनो हरिया, मैं बैदजी के गाँव जा रहा हूँ। दवाई लेकर फौरन आता हूँ।"
"इतनी ठण्ड में कहाँ जाओगे चाचा? रास्ता भी ठीक नहीं है। रोज–रोज राहजनी होती रहती है। बिना पैसा लिए वैद जी दवाई नहीं देंगे और मेरे पास फूटी कौड़ी..."
"वो सब मैं देख लूँगा–" चाचा ने बात काटी..."तुझे क्या फिकर है! इस चाचा के पास तो पैसा है। आखिर किस दिन काम आएगा?" कहकर चाचा चले गए.