अच्छे व्यंग्य का एक अच्छा प्रयासः खूँटी पर टँगी आत्मा / सुभाष नीरव

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समाज की विकृतियों विद्रूपताओं पर सटीक और गहरी चोट व्यंग्य के माध्यम से ही हो सकती है_ लेकिन, वीभत्स को सामने लाना मात्र व्यंग्य का ध्येय नहीं होता और केवल विद्रूप स्थितियों को उभारकर मात्र गुदगुदाहट या हँसी पैदा करना भी व्यंग्य का अभीष्ट नहीं है। जीवन में व्याप्त रोजमर्रा कि छोटी-छोटी स्थितियों से लेकर गहन सामाजिक, राजनीतिक विसंगतियों पर भरपूर चोट करने में व्यंग्य अत्यन्त सफल रहा है। व्यंग्य को उनकी सही पहचान दिलाने, स्थापित करने तथा उसे लोकप्रिय बनाने में अग्रणी व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी, रवीन्द्र नाथ त्यागी आदि के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। नए व्यंग्यकारों में डॉ.शंकर पुणतांवेकर, प्रेम जनमेजय, ज्ञान चतुर्वेदी, प्रदीप पंत और हरीश नवल आदि द्वारा भी इसके फलने-फूलने में दिया गया योगदान सराहनीय रहा है। आज व्यंग्य खूब पढ़ा जाता है और खूब छपता भी है। छोटी से छोटी पत्र-पत्रिका से लेकर बड़ी रंगीन पत्रिकाओं में भी व्यंग्य ने अपने पृष्ट सुरक्षित करा लिये हैं। दैनिक, साप्ताहिक अखबारों में भी इसकी काफी माँग रहती है।

'खूँटी पर टँगी आत्मा' रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का पहला व्यंग्य-संग्रह है। व्यंग्य के अतिरिक्त ये लघुकथाओं के भी चर्चित हस्ताक्षर हैं। इस संग्रह में उनकी बीस व्यंग्य रचनाएँ संगृहीत हैं। संग्रह की भूमिका प्रतिष्ठित व्यंग्य लेखक डॉ-शंकर पुणतांबेकर जी ने लिखी है। अपनी भूमिका में पुणतावेकर जी ने रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के व्यंग्य को अच्छे व्यंग्य का एक अच्छा प्रयास कहा है, जो कि संग्रह की रचनाएँ पढ़कर सही प्रतीत होता है। व्यंग्य के क्षेत्र में रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' बिल्कुल नया नाम है; लेकिन अपने प्रथम व्यंग्य-संग्रह से ही, वह अपने में एक अच्छे व्यंग्यकार बनने की सभी संभावनाएँ लिये हुए हमारे समक्ष प्रस्तुत हुए हैं। न केवल पैनी दृष्टि; अपितु एक पैनी भाषा, जो एक व्यंग्यकार में होनी ही चाहिए, रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' में दृष्टिगोचर होती है। राजनीति, शिक्षा साहित्य ही नहीं, समाज में दैंनदिन क्रियाकलाप व प्रसंग भी इनसे अछूते नहीं रहे हैं। कुछेक रचनाओं को यदि छोड़ दें तो लेखक की रचनाओं में ताजगी, नवीनता और मौलिकता परिलक्षित होती है।

अच्छी व्यंग्य रचनाओं में 'श्याम लाल जी का अभिनंदन' , 'कहानी फाइल की' , 'गोष्ठी से गौशाला तक' , 'पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ' , 'शिक्षा, कुछ साक्षात्कार' , 'आम आदमी' , 'कुत्ते से सावधान' , 'समीक्षक जी' आदि है।

फ़ाइलों के माध्यम से आज के दफ्ऱतरों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्यकार 'कहानी प़फ़ाइलं की' रचना के माध्यम से जबरदस्त व्यंग्य करता है। 'पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ' की ये पंक्तियाँ द्रष्टव्य है-' आज तो साहित्यकार भी पुस्तकों के मामलों में बहुत सावधान हैं। ये साहित्य की लीद करने में भले ही दिन-रात लगे रहें, लेकिन पढ़ने के संक्रामक रोग से अपने को बचाए रखते हैं।

'शिक्षाः कुछ साक्षात्कार' के माध्यम से लेखक शिक्षा, जगत् की पोल बखूबी खोलने में सफल रहा है। निःसंदेह यह व्यंग्य, संग्रह की सशक्त व्यंग्य रचना है।

'कुत्ते के सावधान' के द्वारा धनाढ्य लोगों में पनपी हुई कुत्ता संस्कृति पर करारा व्यंग्य किया गया है। 'समीक्षक जी' एक ऐसी व्यंग्य रचना है जो साहित्य के क्षेत्र में कुंठित लेखकों / कवियों पर अच्छा कटाक्ष करती है।

हास्य और व्यंग्य लेखन में जो फ़र्क है, उसे यहाँ स्पष्ट करने की आवश्यकता है। संग्रह की कुछेक रचनाएँ हल्के व्यंग्य की श्रेणी से ऊपर नहीं उठ पाई हैं। जैसे 'बुरे फँसे डींग हाँककर' , 'काश, हम भी कुँवारे होते' और 'मकान की तलाश' आदि। फिर भी, कुल मिलाकर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का पहला संग्रह ही उनके, लेखन के प्रति हमें आश्वस्त करता है।

(विजन टुडे, मई 1992)