अछूत कन्या से सद्गति तक यात्रा / जयप्रकाश चौकसे

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अछूत कन्या से सद्गति तक यात्रा
प्रकाशन तिथि : 13 नवम्बर 2019


महात्मा गांधी के प्रभाव से फिल्मकारों ने सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में बनाईं। विगत सदी के चौथे दशक में अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत 'अछूत कन्या' का प्रदर्शन हुआ। फिल्म में एक ब्राह्मण और एक अछूत कन्या बचपन से ही मित्र रहे और युवावस्था में उन्हें प्रेम हो गया। जाति-प्रथा के हिमायती लोगों ने हंगामा बरपा दिया। अनेक दशक बाद सत्यजीत राय ने मुुंशी प्रेमचंद की कहानी से प्रेरित ओमपुरी अभिनीत फिल्म 'सद्गति' बनाई। 'कंचनजंघा' सत्यजीत राय की एकमात्र फिल्म है जो साहित्य से प्रेरित नहीं है। उन्होंने हिंदी में मुंशी प्रेमचंद की कहानी से प्रेरित 'शतरंज के खिलाड़ी' बनाई। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' में भी ओमपुरी ने अछूत की भूमिका अभिनीत की थी। बिमल राय की नूतन अभिनीत 'सुजाता' में भी अछूत कन्या और ऊंची जाति के ब्राह्मण युवा की प्रेमकथा प्रस्तुत की गई थी। फिल्म के एक दृश्य में नायिका अात्महत्या के लिए नदी की ओर जाती है। महात्मा गांधी की मूर्ति के नीचे अंकित उनके एक वाक्य से वह आत्महत्या का विचार त्याग देती है।

'सद्गति' में एक अछूत एक ब्राह्मण के घर अपनी बेटी के विवाह का मुुहूर्त निकलवाने के लिए जाता है। ब्राह्मण अपने आंगन में पड़े एक सूखे हुए वृक्ष के टुकड़े करने की आज्ञा देता है। जब भूखा-प्यासा अछूत जानलेवा परिश्रम करता है तब ब्राह्मण को मात्र यह चिंता रहती है कि अगर यह मर गया तो उसे शव को अपने आंगन से बाहर फेंकना होगा। उसे हाथ लगाते ही उसका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। वह इतना हृदयहीन है कि उस व्यक्ति को काम करने से रोकता नहीं है। गिरीश कर्नाड की फिल्म 'संस्कार' में दो ब्राह्मणों की कथा प्रस्तुत की गई है जो बचपन के मित्र हैं। एक ब्राह्मण को नीची जाति की स्त्री से प्रेम हो जाता है और वह उसी के घर रहने लगता है। कुछ वर्षों बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। उसकी प्रेमिका उसके बाल सखा रहे ब्राह्मण से पूछने जाती है कि उसका दाह-संस्कार किस ढंग के किया जाए? वह जन्म से ब्राह्मण था, परंतु अछूत के साथ प्रेमपूर्वक सानंद जीवन जी रहा था। अगर आप उसका अंतिम संस्कार नहीं करेंगे तो शूद्र रीति के अनुसार उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। इस समस्या के निदान के लिए वह समय मांगता है। इस दुविधा में फंसा पारंपरिक शास्त्रीय जीवन जीने वाला व्यक्ति एक पहर बाद स्नान के लिए जाता है। वहीं से अछूत विधवा स्नान करके निकलती तो उसकी देह के सौंदर्य से मंत्रमुुग्ध पारंपरिक व्यक्ति भी उससे अंतरंगता स्थापित करना चाहता है। इसके बाद वह फैसला देता है कि अंतिम संस्कार ब्राह्मण रीति-रिवाज से, मंत्रोच्चार के साथ किया जाएगा। क्या मौजूदा दौर में 'अछूत कन्या' सद्गति व संस्कार जैसी फिल्मों का प्रदर्शन हुड़दंगी होने देंगे?

उदयपुर में रहने वाले त्रिभुवन ने लगभग सौ पृष्ठ का काव्य 'शूद्र' रचा है, जिसे अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद ने जारी किया है। पुस्तक के अंत में तेरह पृष्ठ के नोट्स हैं, जिनमें उन्होंने तमाम संदर्भ ग्रंथों का हवाला दिया है। संदर्भ में शामिल हैं ऋग्वेद और अथर्ववेद! पंडित रामशरण शर्मा ने 'शूद्रों का प्राचीन इतिहास' नामक ग्रंथ रचा है। उनके लिखे अनुसार कीकर जाति के लोग आज भी गाय नहीं पाल सकते, क्योंकि यह माना जाता है कि वे यज्ञ में गव्य का प्रयोग नहीं करते। जेपी दत्ता की एक फिल्म का दृश्य है- एक शूद्र की बारात घोड़े पर निकल रही थी तो उसे रोक दिया जाता है। उसके नहीं रुकने पर उसकी हत्या कर दी जाती है। ख्वाजा अहमद अब्बास की बहुसितारा फिल्म 'चार दिल चार राहें' में चावली का दूल्हा अकेले ही ढोल बजाता हुआ विवाह करने के लिए आता है, क्योंकि बस्ती का कोई व्यक्ति इस विवाह में शामिल नहीं होना चाहता। ऋग्वेद 10.90.12 में लिखा है कि ब्राह्मण की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रियों की उत्पत्ति भुजाओं से, वैश्य की जंघाओं से और शूद्रों की पैरों से हुई है। पैर से ही सही, परंतु शूद्रों का जन्म ब्रह्मा से ही तो हुआ है। यह एक शरारतपूर्ण व्याख्या है। दरअसल, सारी गड़बड़ अनुवाद के कारण हुई है। ऋग्वेद में प्रमाण प्रस्तुत हैं कि दास और दस्यु दोनों ही आर्येतर भाषा बोलने वाले लोग थे। पंडित रामशरण शर्मा ने लिखा है कि शूद्रों के श्रम और कौशल से होने वाले अतिरिक्त उत्पादन भारतीय समाज के विकास के भौतिक आधार थे।

ज्ञातव्य है कि त्रिभुवन ज्ञानरंजन की 'पहल' में लेख लिखते रहे हैं। अत: गद्य और पद्य दोनों पर ही उनका समान अधिकार है। उनके काव्य से कुछ पंक्तियां यहां दी जा रही हैं- कलुषित कथा मेहरानगढ़ की, पहली मई 1459 की घड़ी थी, नभ से फूटी रक्त की झड़ी थी। प्रश्न कहां थम रहे थे, आंखों में पीड़ाओं के कण रम रहे थे, मां क्या सब किले हत्यारों ने बनाए? क्या सब किलों में शूद्र दबाए? क्या सब शासकों ने नरसंहार रचाए? सुना है कि टेलीविजन पर बाबा साहेब आंबेडकर का बायोपिक दिखाया जाने वाला है। बहरहाल त्रिभुवन को सलाम।