अजगर / रूपसिह चंदेल

Gadya Kosh से
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सांय-सांय करती हवा रातभर दरवाजे से टकराती रही. दरवाजे के छेदों में उसने कपड़े ठूंस रखे थे, लेकिन कपड़े बौखलाये भेड़िये के सामने निहत्थे बच्चे की तरह कमजोर साबित हुए थे. हवा उन्हें भेदकर कोठरी में चारों ओर दौड़ती रही थी.

पुआल पर लेटा मन्ना ठण्ड से जूझता रातभर सोने की असफल कोशिश करता रहा . आधी रात के बाद कुछ देर के लिए झपकी लगी भी, लेकिन तभी पसली के दर्द ने उसे दोहरा कर दिया. उसके बाद वह सो नहीं सका. रह-रहकर दर्द उठता रहा और वह करवटें बदलता रहा.

मुर्गे ने बांग दी तो उसने कथरी से सिर बाहर निकाला. अंधेरे में आंखें गड़ाकर इधर-उधर देखा. कुछ नहीं सूझा. वह उठ बैठा. जेब में पड़ी एक मात्र बीड़ी सुलगाई और तीली की रोशनी में देखा, पत्नी और बेटी सावित्तरी एक-दूसरे से गुड़ीमुड़ी हुई लेटी हैं. तीली के बुझने तक वह उन्हें देखता रहा.

इन दिनों उसकी सबसे अधिक चिन्ता का विषय सावित्तरी है.एक साल से वह उसकी शादी के लिए परेशान है. कई गांव भटकने के बाद सरपतखेड़ा के बिपता पासी का लड़का वह ठीक कर पाया है . लड़का उतना पसन्द नहीं उसे, जितनी पसन्द आयी थी बिपता की दहेज की मांग. बिपता ने केवल एक हजार नकद तिलक मांगा था, जबकि दूसरे चार-पांच हजार से नीचे बात भी नहीं करते थे. वह अमिताभ सिंह से एक हजार लेकर तिलक कर आया था---- छः महीने से ऊपर हो चुके तिलक किए---- वह शादी को आगे बढ़ाता जा रहा है---- क्योंकि कुछ तो देना ही पड़ेगा शादी में---- बिरादरी इकट्ठी होगी---- उसका खाना-पीना---- कहां से लाए वह इतनी रकम---- एक हजार के ब्याज के बदले में वह छः महीने से अमिताभ सिंह का गोबर ढो रहा है---- और अधिक कर्ज लेने का मतलब जिन्दगी भर के लिए----.

बीड़ी खत्म हो गयी तो जमीन पर रगड़कर उसे फेंक दिया और सोचने लगा, 'समय की अंधी दौड़ ने उसकी बिरादरी को भी गुमराह कर दिया है. आज भी जिस बिरादरी के ज्यादातर लोग मजूरी करके मुश्किल से अपना गुजारा कर रहे हैं---- अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की बजाय मजूर बनाना बेहतर समझते हैं, वही अपने मजूर बेटों के लिए मोटा दहेज मांगते हैं---- यह जानकर भी कि लड़कीवाला उन्हीं की तरह एक मजूर है----- दूसरों के यहां काम करके अपना घर चलाने वाला---- मुश्किल से दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाने वाला.'

वह जब भी इस विषय में सोचने लगता है, पसली का दर्द और तेज हो जाता है. छः महीनों में कम से कम छः सन्देश उसे मिल चुके हैं बिपता के----- शादी करो या जवाब दो....' जवाब देने का अर्थ वह समझता है. शादी के लिए इंकार करवाकर बिपता अब एक हजार की रकम डकार जाना चाहता है.

मुर्गे ने फिर बांग दी. उसने कथरी अपने चारों ओर लपेट ली. तीन साल से वह इसी कथरी से जाड़ा काटता आ रहा है. पुराने कुर्ते और फटी जर्सी को भेदकर हड्डियों में नश्तर चुभाने से ठण्ड को रोकने में कथरी उसकी काफी मदद करती है. दिन में वह उसे लपेटे रहता है और रात में उसी को ओढ़ता भी है.

पैसों की किल्लत के कारण वह दूसरी रजाई नहीं बनवा पा रहा. एक---- तकरीबन दस साल पुरानी रजाई है, जिसे सावित्तरी और उसकी मां ओढ़ती हैं. उसकी रजाई दो साल पहले जार-जार हो चुकी थी. उसके पाल्हे के कुछ अच्छे टुकड़ों को पुराने चादर और धोती के बीच दबवाकर उसने अपने लिए यह कथरी सिलवा ली थी.

"सावित्तरी की अम्मा----." उसने पत्नी को आवाज दी.

"सो जाव----अबै बहुत राति है." पत्नी रजाई के अंदर से ही बोली.

"अरे बावली---- दरवाजा खोल---- भिनसार होइगा---- अल्लारखा चाचा का मुर्गा दुई बार बोलि चुका है...."

"उंs ---- हूं--- तुमहूं ---कौउनौ दिन देर ते----."

"उठ---उठ ----तू भी कुछ देख---- आज तोहका लैन पार वाले खेतन मा निराई करैं जायं का है न---- कल अमिताभ सिंह कहे रहैं---- उठ." उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी. दरवाजा खुलते ही हवा ने उस पर तेज आक्रमण किया. सारा शरीर हिल उठा. मन हुआ वह न जाये. उसने फिर दरवाजा भेड़ दिया और पैर की ओट लगाकर खड़ा हो गया.

"नहीं जांयका ?" पत्नी दरवाजा बन्द करने के लिए खड़ी थी.

पसली का दर्द और तेज हो गया था. पत्नी को कोई उत्तर न देकर वह पसली को सहलाता रहा.

"दर्द होई रहा है---- त न जाव."

वह कुछ नहीं बोला. थोड़ी देर तक पसली पर हाथ फेरता रहा, फिर दरवाजा खोलकर बाहर निक्ल गया.

♦♦ • ♦♦

अमितभ सिंह के घेर में पहुंचने पर उसने देख रघुआ कोरी और भजना लोध पहले से ही आये हुए हैं और कर्बी(ज्वार) के बोझ संभाल रहे हैं. दोनों मिलकर सुबह होने तक छः बोझ कर्बी मशीन से भुधर डालते हैं . दोनों जाड़े भर अमिताभ सिंह के जानवरों के लिए कुट्टी काटते हैं, जिससे दोनों के कर्ज की रकम का ब्याज ही चुकता होता है. मूलधन ज्यों का त्यों बना रहता है.

रघुआ का लड़का दुधाई करता था---- गांव का दूध शहर ले जाकर बेचता था. अमिताभ सिंह की भैंसों का दूध भी वही लेता था. एक दिन उन्हीं के घेर में जुआ हो रहा था. अमिताभ सिंह ने उसे भी खेलने के लिए उकसाया. लड़का जुआ में दूध के बेच की सारी रकम हार गया. दूसरे दिन अमिताभ सिंह उससे अपने दूध के पैसे मांगने लगे---- पांच सौ रुपये. रघुआ के लड़के ने जब असमर्थता जाहिर की---- उन्होंने लात-घूंसों से उसे पीटा---- दूध भरे डिब्बे फेंक दिए---- मग तोड़ दिया. लड़का उसी दिन से कहीं भाग गया. दो साल हो गये---- गांव नहीं आया---- और रघुआ न पांच सौ रुपये चुकता कर पा रहा है और न कुट्टी काटने से उसे मुक्ति मिल पा रही है. भजना लोध ने भी दो साल पहले उनसे कुछ रुपये उधार लिए थे और अब वह भी रघुआ के साथ मशीन खींचता है.

"राम--राम--मन्ना." उसे देख दोनों एक साथ बोले.

"राम--राम भइया --- तनिक एक बीड़ी त देव---- यो दरद लागत है जान लैकेई छोड़ी." मन्ना ने कांखते हुए कहा.

"बीड़ी----." रघुआ और भजना ने टिमटिमाती ढिबरी की रोशनी में एक दूसरे की ओर देखा और बोले, "बीड़ी त न है."

"ओह---." मन्ना बैठ गया पसली दबाकर.

"दरद ज्यादा है ?" रघुआ ने पूछा.

मन्ना कुछ नहीं बोला. पसली दबाता रहा. दोनों उसके पास आए. भजना ने कहा, "पैरा(पुआल) जलाकर कुछ देर सेक ले ."

"न ओहते कुछ फाइदा न होई----बीड़ी मिल जाति त---- कउनौ बात नही----." मन्ना पसली दबाए बोला, "जाव तुम दोनों मशीन चलाव ---- नहीं त सुबो ठकुर की आंखें लाल-पीली मिलिहैं."

रघुआ और भजना अपने काम में लग गए. वह भी उठा और झौआ (बड़ा टोकरा) लेकर गोबर समेटने लगा.

पन्द्रह जानवरों का गोबर समेटते-समेटते वह हांफ उठा. थोड़ी देर बैठकर उसने हफन दूर की, फिर झौआ में गोबर भरने लगा. भर चुकने के बाद उसने रघुआ को आवाज दी कि वह झौआ सिर पर रखवा दे. अंगौछे को सिर पर लपेटकर उसने रघुआ की मदद से झौआ सिर पर रख लिया और फटे जूतों को सटकारता घूरे की ओर चल पड़ा. घूरा गांव से बाहर था---- घेर से लगभग एक फर्लांग दूर. घूरे तक पहुंचना उसके लिए कठिन हो गया. दर्द चलने नहीं दे रहा था. किसी प्रकार गोबर फेंककर वह लौटकर घेर तक आ पाया. दूसरा जौआ भरने का सहस उसमें न था. वह बैठकर पसली दबाने लगा.

रघुआ और भजना मशीन से जूझ रहे थे. दोनों में से एक बारी-बारी से कर्बी मशीन में ठूंस देता, फिर आकर मशीन चलाने लगता.

थोड़ी देर बाद वह उठा. उसने फिर झौआ भरा और रघुआ को आवाज देकर उसे सिर पर रखवा लिया. इस प्रकार कुछ देर आराम कर-करके वह तीन झौवे गोबर फेंक आया. अभी कम-से कम चार-पांच झौआ गोबर शेष था. चौथा झौआ भरते-भरते उसका साहस जवाब दे गया. दर्द के कारण वह दोहरा हो गया. दोनों हाथ से पसली दबाकर वह वहीं बैठ गया. बैठा रहा बहुत देर तक. लेकिन 'कब तक इस तरह बैठा रहेगा' सोच वह उठा और रघुआ की मदद से झौआ सिर पर रख लिया. वह दो कदम ही आगे बढ़ा था कि लड़खड़ा कर गिर गया. गोबर छितरा गया. उसने उठने की कोशिश की, लेकिन उठ न सका.

रघुआ और भजना ने सहारा देकर उसे बैठाया.

"मन्ना तुम घर जाव---- तबीयत ठीक न है तुम्हार--- ठाकुर साब पुछिहैं त हम बता देव." भजना ने सलाह दी.

वह उनकी ओर देखता रहा क्षण-भर तक, फिर अटक-अटक कर बोला, "ई गोबर--- ."

"ई का हम दोनों मिलिकै फेंक देव ---- जब तबीयत ठीक न है---- त तू कैसे फेंकबे."

मन्ना उनकी ओर देखता रहा और दाहिने हाथ से पसली सहलाता रहा.

♦♦ • ♦♦

तीन दिन तक वह अमिताभ सिंह के यहां नहीं गया. चौथे दिन तबीयत कुछ ठीक हुई. वह घर के बाहर बैठा धूप सेक रहा था. तभी उसकी नजर बिपता पर पड़ी. उसके मस्तिष्क में आशंकाओं का सांप लहराने लगा. और आशंका निर्मूल न थी. आते ही बिपता ने शादी की बात छेड़ दी. मन्ना घुमा-फिराकर टालने की कोशिश करता रहा. लेकिन जब उसने देखा बिपता एक महीने के अन्दर शादी कर लेने की जिद कर रहा है तब हाथ जोड़कर बोला, "भइया एक महीना का टैम त बहुत कम है---- जुगत बन न पा रही ---- छः महीना की मोहलत दै देते तो---."

बिपता भड़क उठा, "टालते-टालते छः महीना गुजरि गए मन्ना----- अब एक महीना से अधिक टैम न देब---- करौ न करौ ---- वर्ना जवाब देव---- तुम्हारी बेटेवा खातिर अपुन लरिका कुंवारा न बैठारि राखब."

सुनकर मन्ना भौंचक उसे ताकता रहा, उसे लगा वह एक ऎसी जगह पहुंच गया है, जहां अंधेरा ही अंधेरा है---- घुप अंधेरा. वह उस अंधेरे से निकलना चाह रहा है, लेकिन अंधेरे का अन्त नहीं है. अंधेरे में वह अजगरों के बीच फंसा पाता है अपने को. वह कांपकर आंखें बन्द कर लेता है. थोड़ी देर बाद खोलता है तो पाता है कि वे अजगर उसे निगलने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. वह फिर आंखें भींच लेता है. लेकिन जल्दी ही उसे घुटन-सी महसूस होने लगती है. वह आंखें खोल देता है. देखता है अजगर गायब है---- उनके स्थान पर उसे अमिताभ सिंह और बिपता दिखाई देते हैं---- दोनों ही अट्टहास करते हुए--.

"तुमने कुछ जवाब नहीं दिया मन्ना."

वह बिपता की आवाज से चौंक उठा. बिपता लाठी टेक उठ खड़ा हुआ.

"तनिक बैइठो भइया----." दीर्घ निश्वास ले उसने बेटी को आवाज दी, "सावित्तरी ---- ओ---- सावित्तरी --- महमान आए हैं बेटा---- कुछ पानी -वानी----."

"न मन्ना अब न रुकब---- कुछ जरूरी चीजैं खरीदैं का है बाजार से----."

"तनिक तौ रुकौ---."

"रुकन का---- तुम कुछ जवाब तौ दीन्ह्यों नहीं---- का हम समझी तुम शादी न करिहौ."

"न भइया---- न --- ऎसा न कहौ---- कुछ मोहलत चाहत हौं---- पन आप तौ जिद करि रहे हौ---- फिर देखब ----जैसे-तैसे ---करज लेई लिवाई कै----."

"तौ ठीक है---- राम-राम."

वह बिपता को जाता देखता रहा. सड़क के मोड़ पर उसके ओझल होते ही मन्ना उठा और डंडा टेकता धीरे-धीरे लड़खड़ाता चल पड़ा अमिताभ सिंह के घर की ओर. अमिताभ सिंह घर के बाहर बने पक्के चबूतरे पर पड़े पलंग पर लेटे थे---- धूप में. मन्ना को देखते ही तकिया पर दोनों कुहनी टेककर उठंग हो गये और बोले, "इधर कैसे भटक गए----सरकार ?"

मन्ना उनके व्यंग्य को समझ गया. क्षण भर तक कहने के लिए शब्द तलाशता रहा, फिर हाथ जोड़कर बोला, "पसली के दरद ने ट्यूनभर करि दिया ठाकुर साब----- मेरे कारन आपको जो तकलीफ हुई रही है ओहके खातिर----."

"तू बोल--- इस समय किसलिए आया है---- ज्यादा वक्त नहीं है तेरी बकवास सुनने के लिए."

मन्ना हत्प्रभ, कुछ समझ नहीं पा रहा था क्या कहे! वह तो सोचकर आया था कि डेढ़ हजार रुपये और मांगेगा करज उनसे, जिससे बेटी की नैया पार लगा सके, लेकिन अब कुछ कहने का साहस नही जुटा पा रहा था वह.

"रुपये लाया है....?"

"रुपिया----ठाकुर साब----मैं----."

"मैं कुछ नहीं जानता---- काम पर नहीं आना तो रुपये तो देने ही होंगे---- और दो सौ रुपये ब्याज भी---- पूरे बारह सौ----."

"ठाकुर साब ---मैं----मैं तो----." उसे लगा जैसे गले में कुछ फंस गया है.

"स्साले साफ-साफ क्यों नही बोलता---जुबान कट गई है?"

मन्ना ने उनके पैर पकड़ लिये.

पैर सिकोड़ते हुए कुछ नर्म आवाज में अमिताभ सिंह बोले, "बोल क्या बात है?"

शुरू से अन्त तक बताकर मन्ना बोला, 'डेढ़ हजार का और खरच है---- आप मेहरबानी करि देव तौ हम जिनगानी भरि गुलामी करब आपकी ठाकुर साब."

"पैसा डालों में नही फलता मन्ना---- जब देखो मुंह उठाये चले आते हो---- कल एक हजार---- आज डेढ़ हजार----."

"ठाकुर साब आपै का....." हाथ जोड़कर वह फिर गिड़गिड़ा उठा.

अमिताभ सिंह उसे देखते रहे एकटक, बोले कुछ नहीं. मन्ना उसी तरह खड़ा रहा उनके पलंग के पास नजरें नीचे झुकाए.

"तू एक काम करेगा....?" अमिताभ सिंह ने उसके चेहरे पर आंखें गड़ाकर पूछा.

"हुकुम करैं ठाकुर साब."

"रुपये दूंगा पूरे---- लेकिन अभी नहीं हैं---- शाम तक इंतजाम हो सकेगा."

"आप जब कहैं---- आ जाई----." उसके चेहरे पर खुशी की झलक थी.

"तू बीमार है---- तू क्या करेगा आकर."

"आप काहे का तकलीफ करिहौ मेरे घर तलक आवैं का मालिक....."

"मैं क्यों आने लगा....!"

"फिर....?"

"तेरी बेटी सावित्तरी है न---- उसको कहना रात में आ जाये----सुबह--- उसी को दे दूंगा ---- रुपये ---पूरे---- बल्कि ----दस-बीस----."

"ठाकुर साब--S-----S-----." मन्ना चीख उठा. शरीर कांपने लगा उसका. डंडे पर हाथों की पकड़ मजबूत हो गयी और जब तक अमिताभ सिंह संभलते डंडे का भरपूर प्रहार उनके सिर पर वह कर चुका था.