अजन्मे शिशु की व्यथा-कथा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 21 दिसम्बर 2021
गौरतलब है कि कोलकाता में दुर्गा पूजा के इतिहास पर कुछ किताबें प्रकाशित हुई हैं। विश्व संस्था यूनेस्को में भी दुर्गा पूजा को एक सांस्कृतिक पर्व माना गया है। देश के अनेक भागों में दुर्गा उत्सव मनाया जाता है। उत्सव मनाना अखिल भारतीय सांस्कृतिक अनुष्ठान है। कोलकाता में पूजा के दिनों में नई किताबों का प्रकाशन किया जाता है और नई फिल्में भी प्रदर्शित होती हैं। ज्ञातव्य है कि दादा साहब फाल्के ने कथा फिल्म बनाना 1913 में शुरू किया और भारत की पहली फिल्म कॉर्पोरेट संस्था ‘न्यू थिएटर्स’ कलकत्ता ने भी कथा फिल्में बनाना शुरू कीं। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर इस संस्था के सलाहकार रहे।
जब न्यू थिएटर्स कंपनी द्वारा बनाई गईं पहली कुछ फिल्में दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाईं तो टैगोर की देख-रेख में उनकी कथा से प्रेरित फिल्म ‘नाटिर पूजा’ बनाई गई परंतु दर्शक रूठे ही रहे। उनके परामर्श पर ही शिशिर भादुड़ी के नाटक सीता से प्रेरित फिल्म बनाई गई, जिसमें राम की भूमिका पृथ्वीराज कपूर ने अभिनीत की तथा सीता की भूमिका दुर्गा खोटे ने की। उन दिनों पृथ्वीराज कपूर एंडरसन नाटक कंपनी के नाटक अभिनीत करते थे। संभवत: टैगोर ने इसी कंपनी के नाटक में पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे को अभिनय करते देखा था। दशकों बाद पृथ्वीराज और दुर्गा खोटे ने के. आसिफ की फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में काम किया। अकबर की भूमिका पृथ्वी ने और जोधाबाई की भूमिका दुर्गा खोटे ने अभिनीत की। ज्ञातव्य है कि हीरालाल सेन व उनके साथी ने बंगाल में कई सिनेमाघरों का निर्माण किया। पक्के सिनेमाघर बनाने के पहले तंबू में फिल्म दिखाई जाती थी। रात को 8 बजे शो शुरू होता था।
बहरहाल, न्यू थिएटर कॉर्पोरेट कंपनी की फिल्म ‘चंडीदास’ में एक नया प्रयोग किया गया। नदी के तट पर ‘चंडीदास’ एक उच्च वर्ण में जन्मी कन्या को देखता है। नदी के स्थिर जल में दोनों की छवि एक-दूसरे से मिलती हैं और उनमें प्रेम हो जाता है। दूर कहीं कोई शरारती बच्चा नदी के जल में एक कंकड़ फेंकता है, जिस कारण छवियां एक-दूसरे में विलीन हो जाती हैं। प्रेम के वृहद आकाश में एक आलिंगन होता है। क्या आज हम कल्पना कर सकते हैं कि ‘चंडीदास’ को प्रेम हो सकता है या प्रेम की नगरी पर उसका भी हक है? क्या हुड़दंग यह संभव होने देगा।
लंदन में हिमांशु राय और देविका रानी व निरंजन पॉल की मुलाकात हुई। गौरतलब है कि परिवार ने निरंजन पॉल को क्रांतिकारी बनने से रोकने के लिए लंदन भेजा था। निरंजन पॉल के लिखे नाटक, लंदन के व्यावसायिक मंच पर खेले जाते थे। हिमांशु राय, देविका रानी और निरंजन पॉल ने निश्चय किया कि स्वदेश जाकर बॉम्बे टॉकीज नामक फिल्म निर्माण संस्था रचेंगे। मुंबई के मलाड क्षेत्र में जमीन खरीदी गई, स्टूडियो बनाया गया और प्रोसेसिंग लैब की स्थापना की गई। मुंबई टॉकीज भी न्यू थिएटर्स कलकत्ता की तरह सामाजिक प्रतिबद्धता की फिल्में बनाने लगा। अशोक कुमार अभिनीत ‘अछूत कन्या’ भी वैसा ही प्रगतिवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जो न्यू थिएटर्स की ‘चंडीदास’ करती है। आज ‘अछूत कन्या’ और ‘चंडीदास’ जैसी फिल्में हुड़दंग का शिकार हो सकती हैं। ये हमारे समाज और आम आदमी की कैसी विकास अवधारणा है कि प्रेम गुनाह हो चुका है ! इस तरह के प्रेमियों की हत्या कर दी जाती है।
मराठी भाषा में बनी एक फिल्म इसी तथ्य को रेखांकित करती है। वर्तमान में भी हत्याएं हो रही हैं। विद्या बालन अभिनीत फिल्म ‘कहानी’ की पटकथा बड़े रोचक ढंग से रची गई है। फिल्म में विद्या अभिनीत पात्र गर्भवती का नाटक करते हुए खलनायकों को मारती है। फिल्म के अंत में बहू अपने ससुर से कहती है कि गर्भवती का नाटक करते हुए उसका मातृत्व जाग गया है। वह उस अजन्मे शिशु की याद में रोती है। फिल्म में कॉन्ट्रैक्ट किलर का पात्र बॉब विस्वास है। लेकिन हाल ही में बॉब विस्वास पात्र से प्रेरित फिल्म कोई प्रभाव पैदा नहीं कर पाई है।