अजमेर में साहित्य सम्मेलन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 सितम्बर 2015
विश्व हिंदी दिवस एवं साहित्य सम्मेलन कई शहरों में हुए हैं और हो रहे हैं परंतु इन्हें सरकारें अपने प्रचार-तंत्र के लिए इस्तेमाल कर रही हैं और ऐसे में अजमेर में हुआ साहित्य सम्मेलन इस मायने में अलग है कि इसमें साहित्यकार ही निमंत्रित है और नौसिखियों का रंगमंच का प्रयोग तथा कथक भी शामिल रहा है। गांधी पर विचार गोष्ठी की सदारत कमिश्नर डॉ. धर्मेंद्र भटनागर ने की और वे मात्र कमिश्नर होने के नाते नहीं वरन् गांधी पर शोध करके डाक्टरेट हासिल करने वाले बुद्धिजीवी के रूप में आमंत्रित थे। गांधी और गोडसे के काल्पनिक वार्तालाप से प्रेरित एक नाटक भी मंचित किया गया, जिसमें महात्मा गांधी हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर उन्हें मारने के गोडसे के दृढ़ निश्चय को हिंदू धर्म की गीता के द्वारे उसे समझाने का प्रयत्न करते हैं। गोडसे वाद-विवाद में पिछड़ जाता है परंतु उसके भीतर हिंसा और पूर्वग्रह कूट-कूटकर भरे हैं और यह महसूस भी करता है कि वह गलत हाथों का खिलौना बन गया है। परंतु उसके अवचेतन में इतनी हिंसा भर दी गई है कि वह बदलना चाहकर भी नहीं बदल पा रहा है। कोई नहीं जानता कि किस हाथ में पिस्तौल है और किसकी उंगलियां ट्रिगर दबाती हैं।
अजमेर साहित्य परिषद के सदस्य डॉक्टर हैं, प्रोफेसर हैं और सभी कहीं न कहीं काम कर रहे हैं और इनका नेतृत्व कवि रासबिहारी गौड़ कर रहे हैं। इस दल ने अपने साधनों से आयोजन किया है और सरकारी अनुदान की बैसाखी का सहारा नहीं लिया। यह इस सम्मेलन का दूसरा वर्ष है, अत: प्रबंधन में त्रुटियों का बुनियादी कारण उनका अति महत्वाकांक्षी होना और कम समय में अधिक आयोजन का रहा है। इस छोटे से परंतु ऐतिहासिक एवं अाध्यात्मिक महत्व के शहर अजमेर में 1120 में बनी ख्वाजा चिश्ती की दरगाह में हर धर्म के लोग इबादत करने आते हैं और यह धर्मनिरपेक्ष स्थान है। वहां के खिदमतगार पूरी निष्ठा से हर आने वाले का ध्यान रखते हैं। यह वह पवित्र स्थान है, जहां बादशाह अकबर से लेकर आम आदमी तक सभी एक ही पंक्ति में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते रहे हैं। के. आसिफ की 'मुगल-ए-आजम' में अकबर की भूमिका करने वाले पृथ्वीराज कपूर से लेकर कटरीना कैफ तक यहां आते रहे हैं। संगीतकार रहमान ने तो दरगाह के पास ही एक घर खरीदा है और वे साल में कई बार आते हैं। रहमान साधारण आम आदमी की तरह वहां इबादत करते हैं। अपने सारे पुरस्कारों और वीआईपी हैसियत को तिलांजलि देकर रहमान आम आदमी की तरह घंटों बैठकर इबादत करते हैं और कभी-कभी सूफी कलाम गाते भी हैं परंतु किसी का ध्यान आकर्षित करने के लिए नहीं, क्योंकि उस वक्त तो उन्हें अपनी ही खबर नहीं होती। राज कपूर और कृष्णा कपूर वहां आएं हैं और आज भी कृष्णा कपूर वहां नियमित नज़राना भेजती हैं और यही काम वे शिर्डी मंे भी करती हैं।
मुझे बेइंतहा खुशी हुई कि वहां के कई युवा मुस्लिम खिदमतगार यह अखबार नियमित पढ़ते हैं। वे हिंदी की किताबें भी पढ़ते हैं। साहित्य परिषद में इरशाद कामिल भी आए थे और एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने अपना व्यक्तिगत दु:ख जाहिर किया कि एक ही फिल्म के सात गानों में वे कई पंक्तियां गहरे अर्थ की रखते हैं परंतु अवाम उन सात में से एक हल्के चलताऊ गीत को सबसे अधिक लोकप्रिय बनाकर गहराई वाली पंक्तियों को नज़रअंदाज कर देता है। एक दौर में शैलेंद्र, साहिर, प्रदीप व मजरूह सराहे गए। दरअसल, इरशाद कामिल जानते नहीं कि लोकप्रियता पूरी तरह प्रायोजित है और खोटे सिक्कों को बाजार में चलाने वाले विशेषज्ञों को इस काल खंड में बहुत नवाज़ा जाता है। वे सत्ता पर भी काबिज हैं।
अजमेर जाना ही ज़ियारत है परंतु इस बार प्रियंका जोधावत व उनके माता-पिता, भाई-भाभी और परिवार के बच्चों से मुलाकात और उनकी बहनों से बातचीत भी किसी ज़ियारत से कम नहीं थी। वे सब प्रेमल हृदय के सरल, सच्चे लोग हैं। पूरा परिवार मेहनत व निष्ठा से अपना काम करता है। सच तो यह है कि विगत लंबे समय से मैं अपने समाज और देश को लेकर अनेक चिंताओं से ग्रस्त रहा हूं और व्यक्तिगत चिंताएं भी रही हैं परंतु इस यात्रा में सरल-सीधे लोगों से मिलकर मैं एक बेहतर इंसान हो गया हूं और यही हमारी सूर्य स्तुती का पहला श्लोक भी है कि हे सूर्यदेवता मेरा नमन है और कल बेहतर होने का वचन है गोयाकि अजमेर शरीफ की यह ज़ियारत नए सवेरे की तरह रही है। अब नैराश्य का कोई स्थान नहीं है। इसी यात्रा मेंओपी गोयल ने बताया कि 'मन मोहना' गीत में तबले का जिस तरह प्रयोग किया, वैसा स्वयं शंकर-जयकिशन ने दोबारा नहीं किया। हर यात्रा एक मंथन है। कहीं कोई मंजिल नहीं, यात्रा ही जीवन है। वही साध्य और साधन है।