अजय-काजोल प्रतिभाशाली जोड़ी / जयप्रकाश चौकसे

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अजय-काजोल प्रतिभाशाली जोड़ी
प्रकाशन तिथि : 02 सितम्बर 2014


अजय देवगन फिल्म परिवार की दूसरी पीढ़ी हैं, उनके पिता वीरू देवगन स्टार एक्शन मास्टर रहे हैं आैर काजोल फिल्म परिवार की तीसरी पीढ़ी है, उनकी माता तनूजा आैर उनकी नानी शोभना समर्थ संभवत: फिल्म उद्योग की पहली आधुनिका हैं, वह भी उस दौर की जब यह शब्द प्रचलित नहीं था। अत: अजय देवगन आैर काजोल की ग्यारह वर्षीय पुत्री का स्कूल प्रोजेक्ट के रूप में एक लघु फिल्म बनाना कोई आश्चर्य नहीं है। मछली के बच्चे जन्म से ही तैरने लगते हैं। आजकल स्कूलों में बच्चों को होमवर्क के रूप में अजीबोगरीब प्रोजेक्ट दिए जाते हैं तथा यह मान्यता है कि इनसे उनकी सृजन क्षमता बढ़ेगी। सृजन क्षमता बढ़ाने का कोई फॉर्मूला नहीं है। बच्चों की कल्पना शक्ति खेल-कूद से बढ़ती है। प्राय: इस तरह के 'प्रोजेक्ट' से माता-पिता का काम बढ़ जाता है, होमवर्क भी माता-पिता ही करते हैं। सच्ची शिक्षा परिवार के वातावरण आैर स्कूल की क्लास रूम में इस तरह होना चाहिए कि होमवर्क नामक भरम टूट जाए। शिक्षा के नाम पर बचपन बस्तों के बोझ से लादा जा रहा है।

बहरहाल अजय देवगन की अभिनय यात्रा 1991 में 'फूल आैर कांटे' से प्रारंभ हुई। निर्देशक थे कुक्कू कोहली आैर काजोल की यात्रा राहुल रवैल की बेखुदी से 1992 में शुरू हुई। इत्तफाक से दोनों की प्रथम फिल्मों के निर्देशक कभी राजकपूर के सहायक रहे थे। अजय देवगन ने एक्शन फिल्म से शुरू किया परंतु अपने अभिनेता स्वरूप को मांजने के लिए कम मेहनताने में प्रकाश झा आैर महेश भट्ट की फिल्में करते रहे आैर इसी कारण हैदराबाद में 'गुंडागर्दी' आैर 'हलचल' की शूटिंग में काजोल से मुलाकात हुई। यह कहना कठिन है कि वह प्रथम दृष्टि में प्रारंभ हुआ प्रेम था या यह प्रक्रिया अनीज बाज्मी निर्देशित 'प्यार तो होना ही था' के निर्माण के समय हुई। उनका विवाह 24 फरवरी 1999 को हुआ।

गौरतलब है कि अजय देवगन आैर काजोल अलग-अलग व्यक्तित्व हैं आैर एकमात्र समानता यह है कि वे भावना की गहरी तीव्रता से अभिनय भी करते हैं आैर जीवन भी जीते हैं। संभव इसी इंटेन्सिटी ने उन्हें एक दूसरे से भी जोड़ा। दरअसल दिल की बात दिल तक कैसे पहुंचती हैं- यह बताना कठिन है। बकौल निदा फाजली के "मैं रोया परदेश में, भीगा मां का प्यार, दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार'। बहरहाल अलग पारिवारिक परिवेश के बावजूद काजोल देवगन घराने में एक जहाज की सरलता से समाई आैर पारिवारिक पृष्ठ भूमियों के अंतर से उत्पन्न सारे विरोध ऐसे डूबे मानो थे ही नहीं।

अजय देवगन आैर काजोल के बीच इतनी गहरी समझ है कि जब अपने व्यवसाय के कारण अजय ने यश चोपड़ा फिल्म से नाराजी अभिव्यक्त की तब उस निर्माण संस्था की प्रिय नायिका काजोल अपने पति के साथ खड़ी रही क्योंकि उसे अजय का दृष्टिकोण सही लगा कि प्रदर्शन क्षेत्र में मोनोपॉली नहीं होना चाहिए। दोनों ही बहुत स्वतंत्र विचार रखने वाले मजबूत लोग हैं आैर अपने जीवन मूल्यों के लिए संघर्ष कर सकते हैं। अजय देवगन की प्रिय फिल्म 'राजू चाचा' की असफलता के कारण हुए कर्ज को अजय ने हास्य एक्शन फिल्मों में काम करके चुका दिया। काजोल की अभिनय प्रतिभा को उचित अवसर मिले इस इरादे से अजय शीघ्र ही एक फिल्म का निर्माण करने जा रहे हैं। अजय देवगन निर्देशन क्षेत्र में भी पुुन: प्रवेश करने जा रहे हैं।

यह गौरतलब है कि गोलमाल श्रृंखला आैर सिंघम श्रृंखला को बॉक्स ऑफिस पर अभूतपूर्व सफलता मिली हैं परंतु 'गंगाजल' आैर 'अपहरण' का अभिनेता आज गुम हो गया है। आज घोर व्यवसायिकता का दौर चल रहा है आैर सामाजिक सोद्देश्यता को भी सिंघम स्टाइल में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। इस दौर मे जमे रहने के लिए कुछ समझौते करना पड़ते हैं तथा इसी मुद्दे का दूसरी पक्ष यह है कि स्वयं प्रकाश झा, महेश भट्ट जैसे फिल्मकार भी बॉक्स ऑफिस को ही साध रहे हैं। इस दौर के युवा के मन में कोई आक्रोश नहीं है। वह जिंदगी से संतुष्ट है तथा अपने मोबाइल, फेसबुक आैर मल्टीप्लैक्स में पॉपकोर्न खाते हुई मगन है। उसने अपनी रुचियों के अनुरूप अपने साहित्यकार भी गढ़ लिए हैं जो लुगदी साहित्य लिखते हैं। पहली बार ऐसा हो रहा है कि युवा वय के पास 'विद्रोह' नहीं है। वह मुतमइन है कि सब ठीक चल रहा है आैर बकौल जेटली साहब अच्छे दिन चुके हैं। सामाजिक असंतोष सतह के नीचे दूर कही चला गया है।यह भी संभव है कि कुछ वर्ष बाद अजय काजोल रिचर्ड बर्टन आैर एलिजाबेथ टेलर की "हू इज अफ्ेड ऑफ वर्जीनिया वूल्फ' जैसी फिल्म बनाए। उम्र के हर दौर में सिंघम की तरह निडर नहीं रहा जा सकता। कभी कभी अपने भीतर छुपी वर्जीनिया वूल्फ से आप डर ही जाते हैं।