अजीब दास्तां, कहां शुरू, कहां खत्म / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :16 जून 2016
अत्यंत सफल निर्देशक रोहित शेट्टी ने सुभाष घई की 'राम-लखन' को नए ढंग से लिखकर फिल्म बनाने के अपने प्रयास को मंगलवार को ही निरस्त कर दिया है। 'राम-लखन' पर उन्होंने कुछ महीने दिमागी कसरत की और कोई संतोषप्रद नतीजे पर नहीं पहुंच पाए। ज्ञातव्य है कि दशकों पूर्व सुभाष घई ने अमिताभ बच्चन अभिनीत 'देवा' फिल्म की तैयारी में महीनों लगाए और लगभग 27 लाख का खर्च हुआ, जिसमें पोशाक निर्माण भी शामिल था। उसका मुहूर्त बहुत धूमधाम से हुआ था, जिसमें दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद भी खास मेहमान थे। उस मुहूर्त की दावत में रणधीर कपूर ने कहा कि यह फिल्म नहीं बनेगी, क्योंकि अमिताभ बच्चन व सुभाष घई के मिज़ाज अलग हैं और इनके अहंकार टकरा जाएंगे। राज कपूर ने अपने ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर को डांट लगाई कि किसी भी फिल्म के बारे में ऐसे नकारात्मक विचार नहीं रखने चाहिए। कालांतर में 'देवा' निरस्त हो गई अौर 27 लाख के घाटे को सहते हुए सुभाष घई ने वर्ष भर में ही 'राम-लखन' बना दी। उस दौर में अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ उभरते सितारे थे। फिल्म की सफलता ने 27 लाख का घाटा पूरा कर दिया। आज फिल्मों में करोड़ों की बात होती है, उस जमाने में बात लाखों की थी।
इस घटना के पूर्व कमाल अमरोही ने राजेश खन्ना और राखी अभिनीत 'मजनून' का मुहूर्त बहुत बड़े पैमाने पर किया था। यहां तक कि जगह-जगह पोस्टर लगाए थे कि आज सारे रास्ते मेहबूब स्टूडियो की ओर जाएंगे, क्योंकि सदी की सबसे भव्य फिल्म 'मजनून' का मुहूर्त है। यह फिल्म भी नहीं बनी। फिल्म उद्योग में प्रतिवर्ष बनने वाली फिल्मों से उन फिल्मों की संख्या अधिक है, जिसकी घोषणा हुई, कुछ शूटिंग भी हुई परंतु फिल्में नहीं बन पाई। जेपी दत्ता ने अपनी फिल्म 'बॉर्डर' की सफलता के बाद बड़े धूमधाम से 'अाखिरी मुगल' की घोषणा की थी, जिसमें अमिताभ और उनके पुत्र अभिषेक बच्चन काम करने वाले थे। जेपी दत्ता के घनिष्ठ मित्र कमाल अमरोही के सुपुत्र थे, जिन्होंने उन्हें अपने पिता की महत्वाकांक्षी फिल्म 'आखिरी मुगल' का विचार दिया था अौर उस पटकथा को अपने पिता के कागजों और किताबों में खोजने का वचन भी दिया था परंतु कुछ नहीं मिला। इसी घटना के बाद जेपी दत्ता ने अभिषेक बच्चन और करीना कपूर के साथ 'रेफ्यूजी' नामक फिल्म बनाई, जिसमें अनु मलिक और जावेद अख्तर का गीत-संगीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ परंतु फिल्म नहीं चली। इसी फिल्म में अलका याज्ञनिक गायकी में लता मंगेशकर को छूती हुई ध्वनित होती हैं। प्रतिभाशाली होते हुए भी अनु मलिक को वह कामयाबी नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे और यही उनके पिता संगीतकार सरदार मलिक के साथ भी हुआ था। क्या चंचल व छलमयी सफलता या असफलता भी जीन्स में होती है। सब प्रभाव जन्मना नहीं है और ऐसा न मानने का अर्थ व्यक्तिगत प्रतिभा का अपमान होगा।
राज कपूर ने 'राम तेरी गंगा मैली' के बाद 'हिना', 'घूंघट के पट खोल' और 'रिश्वत' नामक तीन विषयों पर सोचना शुरू किया। जब राज कपूर सुभाष घई की 'छलिया' में अभिनय कर रहे थे तब उन्होंने 'छलिया' के सेट पर ही अखबार में खबर पढ़ी कि यूएनओ की फौज की एक जीप नदी में गिरी और जीप चालक बेहोशी की हालत मंे नदी में बहते हुए पाकिस्तान जा पहुंचा। वहां के खानाबदोश काफिले ने उसकी सेवा की और तंदुरुस्त होते ही उसे भारत भेजने का उपक्रम किया। राज कपूर ने सुभाष घई को यह खबर सुनाई और पूछा कि क्या वे इस पर फिल्म बनाना चाहते हैं। सुभाष घई उस छोटी-सी खबर में एक पूरी फिल्म का आकल्पन नहीं कर पाए। राज कपूर ने इस पर काम शुरू किया और पाकिस्तान में टेलीविजन के लिए लिखने वाली हसीना मोइन को भारत आमंत्रित किया। उन मुलाकातों में बात नहीं बनी। दरअसल, 'छलिया' शूटिंग में पढ़ी हुई खबर वे अपने प्रिय लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास को भी सुना चुके थे। उनकी मृत्यु के समय अब्बास साहब, हसीना मोइन से उनकी बातचीत इत्यादि के साथ फिल्म के आधा दर्जन आकल्पन थे परंतु कोई भी मुकम्मल नहीं था। सारे काम आधे-अधूरे से थे। राज कपूर ने अपने जीवन काल में ही फरीदा जलाल के भाई खालिद समी को अपा सहायक नियुक्त किया था और खालिद ने रणधीर कपूर के साथ बैठकर 'हिना' की पटकथा लिखी, जिस पर फिल्म बनी।
संभवत: इंसानों की तरह ही कथाओं की कुंडली होती है, उनकी यात्रा होती है, उनके संयोग होते हैं, मेल-मुलाकात और बिछुड़ना होता है। दिल अपना प्रीत पराई का गीत याद आता है, 'अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खतम, ये मंजिल है कौन-सी, न वो समझ सके न हम।'