अतीत में खोई हुई वर्तमान की चिट्ठियाँ / सुषमा गुप्ता

Gadya Kosh से
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चार साल की बच्ची का मन मासूम था। अपने घर की खिड़की से अक्सर वह सामने वाले घर की बालकनी में कुछ खेल होते देखती थी। एक रोज़ उसने सामने वाली दीदी से पूछा-"आपने सामने क्या फेंका?"

दीदी के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं। कुछ सोचकर उन्होंने कहा-"वह सामने वाले घर में मेरा दोस्त रहता है। कभी मैं उसे कुछ कहना भूल जाती हूँ, तो इस तरह लिख कर संदेश दे देती हूँ। दोस्तों में ऐसे संदेश देना चलता रहता है।"

उस नन्ही बच्ची को यह बात बहुत सुंदर लगी। उसने नया-नया अक्षर-ज्ञान लेना शुरू किया था। उसका एक ही दोस्त था, साथ वाले घर में रहने वाला दो साल का नन्हा बंटी। वह सोचने लगी उसको संदेश भेजती हूँ, पर यह सोचकर उदास हो गई कि उसको अभी पढ़ना नहीं आएगा। अगले ही पल यह सोचकर मुस्कुरा दी कि तो क्या हुआ, मैं ही पढ़कर सुना दूँगी।

उसने एक कागज़ पर जितने अक्षर सीखे थे, सब लिख दिए और अपने आँगन से उसके आँगन में फेंक दिया, फिर अपने गेट से निकलकर तेज़ी से उसके घर की तरफ़ गई। उसके आँगन में पड़ी अपनी चिट्ठी को देख, खुशी से चहकती हुई, उसके घर के अंदर गई।

वह टीवी के सामने बैठा कार्टून देख रहा था। लड़की ने उसका हाथ थामकर कहा-"तेरे लिए कुछ है।"

नन्हे बंटी ने बाल-सुलभ जिज्ञासा से तुतलाहट भरी आवाज़ में पूछा "त्या?"

लड़की हाथ पकड़के उसको बाहर की तरफ़ खींचने लगी, "आ दिखाती हूँ।"

छोटे-छोटे दो कंगारू फुदकते हुए बाहर आँगन की तरफ़ बढ़ गए। आँगन में शहतूत का पेड़ भी था, काले शहतूत का पेड़। चिट्ठी उड़कर उस पेड़ के नीचे जा गिरी थी।

हवा तेज़ थी। अनगिनत पके शहतूत, पेड़ के नीचे पड़े थे। काले धब्बों से ज़मीन पटी हुई थी। चिठ्ठी उड़कर उन काले शहतूतों से लिपट गई थी। लड़की ने आहिस्ता से उसको उठाकर देखा। शहतूत के धब्बों से कागज़ जामुनी हो गया था और बहुत से अक्षर उस रंग में घुलकर काले हो, लुप्त हो चुके थे। बच्ची का मन बुझ गया। इतने मन से उसने वह चिट्ठी लिखी थी हालाँकि उसको याद था कि उसने उसमें क्या लिखा है पर...

इतनी छोटी उम्र में भी उसको यह तो पता था कि नन्हा बंटी उस चिट्ठी को पढ़ नहीं पाएगा, चिट्ठी उसी को पढ़कर सुनानी थी। उसके बावजूद खो गए शब्द उसके लिए किसी खोई हुई अपनी सबसे सुंदर गुड़िया से कम नहीं थे, जिसका दु: ख बहुत बड़ा था।

लड़की की नन्ही-नन्ही हिरनी-जैसी आँखों में बड़े-बड़े आँसू तैर गए। छोटा लड़का तो कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। वह टुकुर-टुकुर बस देख रहा था। जब छोटी लड़की रोने लगी, तो उस छोटे लड़के के दिल में भी कुछ हलचल हुई। उसने धीरे से उसको हिलाकर अपनी मीठी तोतली ज़ुबान में पूछा-"त्या हुआ!"

काले जामुनी धब्बों से भरी हुई चिट्ठी जो उस लड़की की नन्ही हथेली में रखी थी, उसने लड़के के आगे कर दी। लड़के को तब भी समझ ना आया कि हुआ क्या है। उसने फिर पूछा-"त्या हुआ?"

लड़की ने मुट्ठी बंद की और अपने घर की तरफ़ दौड़ गई। सीधे अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर फूट-फूट कर रोने लगी।

शब्दों के गुम जाने के बाद दिल टूटने की यह उसकी ज़िंदगी की पहली घटना थी।

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