अतीत / गिरिराजशरण अग्रवाल
'जनरल वार्ड के बैड नंबर पाँच पर वह जो एक मरीज था, पिछले महीने, पंकज श्रीवास्तव, क्या तुम्हें उसकी याद है, सविता सिस्टर?' मैरीना स्मिथ ने अपनी साथी नर्स से कुछ शर्मीले भाव से पूछा।
दोनों नर्सें डॉक्टर के साथ राउंड लेकर लौटी थीं और साइड में बने छोटे-से केबिन में अवकाश के क्षण बिताने के लिए वार्तालाप कर रही थीं। ग्यारह बजे थे। बराबर-बराबर और आमने-सामने बिछे हुए बिस्तर विचित्र-सा उदास करनेवाला दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। सभी रोगी अपने-अपने बिस्तरों पर चुप थे। कभी-कभी किसी मरीज के खांसने की आवाज वातावरण की निस्तब्धता को तोड़ जाती थी। प्रत्येक बैड के सिरहाने लगा हुआ चार्ट उस पर लेटे मरीज की कहानी कह रहा था। अस्पताल की दुनिया उस दुनिया से अलग थी, जहाँ दुख और बीमारियाँ पलती हैं और जहाँ मृत्यु जीवन के गले में बाँहें डाले हर समय हँसती हुई दिखाई देती है।
मैरी की बात सुनकर सविता ने आश्चर्य-भरी निगाहों से उसकी ओर देखा और कहा, 'तुम किस पंकज की बात कर रही हो मैरी! क्या वही पंकज जो कुछ दिन पहले गैस्टिक अलसर से पीड़ित होकर यहाँ भरती हुआ था!'
'हाँ सिस्टर वही।' मैरी ने तनिक झेंपते हुए उत्तर दिया, 'मुझे आशा थी, वह फिर आएगा, कितु आया नहीं।'
'तुम्हें उसके आने की आशा क्यों थी? क्यों मैरी?'
सविता के इस सवाल से मैरी को लगा जैसे वह चोरी करते रँगे-हाथों पकड़ ली गई हो। उसे तत्काल इस प्रश्न का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं सूझा। इसलिए बोली, 'वह तो आप जानती हैं ना सिस्टर, गैस्टिक अलसर मरीज को बार-बार डॉक्टर के पास आने के लिए विवश करता है। ऐसा मरीज निश्चित होकर नहीं बैठ सकता।'
'पर मैरी, मुझे तो दाल में कुछ काला-सा दिखाई देता है। धरती चिकनी हो तो तुम जैसी लड़कियाँ आसानी से फिसल जाती हैं। मैं भी इस उम्र में एक बार फिसली थी।'
'कहाँ फिसली थीं?' मैरी ने जिज्ञासापूर्वक पूछा।
'पर पहले तुम यह बताओ मैरी, पंकज ने तुम्हें कब और कैसे मोहित कर लिया था कि इतने दिनों बाद भी तुम उसे याद कर रही हो?'
'मोहित उसने नहीं किया था, मैं स्वयं ही हो गई थी।' मैरी ने अपने मन के भेद को अधिक देर छिपाए नहीं रखा। मानो वह अपनी बात बताने को स्वयं उतावली हो रही हो। काँटा चुभता है तो उसकी पीड़ा से सिसकी अधरों पर आ ही जाती है और फिर युवक-युवतियाँ तो यों भी जब दर्द पालते हैं, तो दर्द बँटानेवाला भी ढूँढ लेते हैं। स्वाभाविक विवशता है यह उनकी।
केबिन के सामनेवाले रोगी को अचानक तेज खाँसी उठी तो सविता दौड़कर उसके पास गई. कुछ देर मरीज की छाती को सहलाया, दवा पिलायी और फिर अपनी कुर्सी पर आ बैठी। मैरी अब भी उदास और चुप थी। सविता ने फिर उसके भीतर टटोलने का प्रयास किया, 'हाँ तो मैरी, तुम्हारा प्रेम-प्रसंग कहाँ तक पहुँचा था?'
'कहीं तक भी नहीं सिस्टर, बस मेरी हद तक।'
'तुम्हारी हद तक? क्या मतलब? क्या उसकी तरफ़ से कोई रिस्पांस नहीं मिला तुम्हें?'
सविता के इस सवाल का मैरीना स्मिथ के पास शायद कोई उत्तर नहीं था। वह चुप रही।
सविता उसे कुरेदती रही, 'मैं देखती तो थी कि तुम पंकज में ज़रूरत से ज़्यादा दिलचस्पी ले रही हो। समय-असमय उसी के बैड के आस-पास मँडराती दिखाई देती थीं। सिर दबातीं, मालिश करतीं, यानी वह सब भी करती थीं, जो एक नर्स की ड्यूटी में शामिल नहीं है।'
'हाँ सिस्टर, मुझे भी डर लगा रहता था कि कहीं कोई मेरे इस व्यवहार को ग़लत मायने न देने लगे।'
'ग़लत क्यों, सही मायने कहो। क्योंकि जो कुछ तुम कर रही थीं, उसे देखकर कोई भी तुम्हारे मनोभाव तक आसानी से पहुँच सकता था।' सविता ने उसके मन का चोर पकड़ ही लिया।
'हाँ सिस्टर, यह सच है। मुझे वह युवक अच्छा लगने लगा था। पहली बार कोई मुझे इतना अच्छा लगा था।'
'यह तो ठीक है। लेकिन मैरी, तुमने कभी अपने मन की बात भी कही उससे?' सविता ने पूछा।
'हाँ सिस्टर' , मैरी ने उत्तर दिया, 'शब्दों में नहीं, अपने भाव और व्यवहार में, अपने चेहरे की प्यास और आँखों के बुलावे में।'
'तब तो तुम भी कुछ पागल कम नहीं हो मैरी।' सविता ने झिड़की जैसे अंदाज में उससे कहा, 'तुम नहीं जानतीं मैरी। युवक आँखों की नहीं, शब्दों की भाषा ही समझते हैं। यहाँ महसूस करना ही काफ़ी नहीं होता, दिखाना भी ज़रूरी होता है। क्या तुमने कभी कुछ लिखकर नहीं दिया पंकज श्रीवास्तव को!'
सविता ने एक ही साँस में अनेक बातें एक साथ कह दीं। मैरी स्मिथ सटपटाकर रह गई.
'नहीं सिस्टर, मैंने कभी उसे कुछ लिखकर नहीं दिया। कोई प्रेम-पत्र नहीं लिखा, कितु मुझे विश्वास है कि वह मेरी आँखों से झाँकनेवाली भावनाओं और मेरे कँपकँपाते अधरों से सब-कुछ जान गया होगा। मुझे विश्वास था, यहाँ से जाकर वह मुझे पत्र लिखेगा, वह फिर यहाँ आएगा, मेरा आभार व्यक्त करेगा, उन लंबी रातों को दोहराएगा, जो मैंने उसके लिए जागकर काटी थीं।'
सविता के होंठों पर अनायास एक कृत्रिम हँसी नाच गई. वह बोली, 'पगली! ऐसा नहीं होता है, इस व्यावसायिक दुनिया में। कुछ लोग होते हैं, जो एकपक्षीय प्रीत किए जाते हैं और दूसरे पक्ष को इसका आभास ही नहीं होता है, जीवन-भर। शायद तुम भी ऐसे ही लोगों में से एक हो। मैं भी कभी ऐसी ही थी मैरी। हाँ मैरीना, मेरी कहानी तो तुमसे भी ज़्यादा रोमांचक है।' सविता ने भूली-बिसरी यादों की राख कुरेदी।
मैरी ने पूछा, 'तुम पर क्या गुजरी थी सिस्टर, मुझे बताओ.' सविता पलक झपकते ही अतीत की ओर लौटी गई.
'ट्रेनिग के दौरान मैंने कृष्ण को चाहा। कृष्णमोहन! यह नाम कितना सुंदर, कितना मनमोहक लगता था उन दिनों। मैं रात-रात भर इस नाम के राजकुमार की कल्पना में खोयी रहती। घंटों बैठकर उसे प्यार-भरे पत्र लिखा करती। ये पत्र कभी पोस्ट नहीं हो सके मैरी।'
मैरीना स्मिथ ध्यान से उसकी बात सुनती रही। वह आश्चर्यचकित थी।
'क्या सिस्टर, वह कभी आपसे मिलने नहीं आया। क्या कभी अकेले में प्यार-भरी बातें नहीं कीं, तुम दोनों ने?' मैरी ने गुत्थी सुलझाने का प्रयास किया।
'नहीं मैरी, ऐसा कुछ नहीं हुआ।' सविता ने हलकी हँसी हँसते हुए अपनी प्रेम-कथा को आगे बढ़ाया।
'तुम आश्चर्य करोगी मैरी, मैंने एक हजार से भी ज़्यादा पत्र लिखे होंगे उसके नाम।' सविता ने बताया, 'उन पत्रें के एक-एक शब्द में मेरे मन की पीड़ा व्यक्त होती थी। उनमें मेरी प्यासी भावनाओं को अंकित किया गया था, वे भावनाएँ, जो मुझे किसी समय चैन नहीं लेने देती थीं।'
'क्या सिस्टर, उस युवक ने आपके किसी पत्र का उत्तर नहीं दिया, कभी?' मैरीना स्मिथ ने आश्चर्य से पूछा।
'नहीं मैरी। वे ख़त उस तक कभी पहुँचे ही नहीं। मैं तो केवल ख़त लिखती थी और उस चित्र को पूजती रहती थी, जो मेरी राय में उस युवक का था, जिसे मैं चाहती थी।'
'एक और कठिनाई भी थी उन दिनों मेरे साथ। मैं इन पत्रें को बहुत सावधानी से छिपाकर रखती थी, अपने बक्स की निचली तह में। तस्वीर भी उन्हीं के साथ रहती थी। बक्स में हर समय ताला लगाए रखती। जब कभी बहुत उदास हो जाती तो अकेले में अपने पत्रें को पढ़-पढ़कर मन को धीरज बँधाती। उन दिनों मेरे साथ ट्रेनिग में एक और लड़की थी सीमा राजवंशी। वह मेरे प्रेम-प्रसंग से परिचित थी। मन बहुत बोझिल हो जाता तो मैं उससे बह सब-कुछ बता देती, जो मैं महसूस कर रही थी।'
'आश्चर्य है सिस्टर! कृष्णमोहन ने कभी आपके पत्रें का उत्तर नहीं दिया, कभी आपसे मिलने नहीं आया, कभी एकांत में उसने आपके कोमल हाथ को अपने हाथ में लेकर साथ जीने-मरने का वादा नहीं किया, फिर?'
'नहीं मैरी, ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिन दिनों की यह बात है, उन दिनां मेरी उम्र बाईस वर्ष थी। यह ऐसी उम्र होती है मैरी, जब युवक-युवतियाँ अपने भीतर एक ख़ालीपन-सा अनुभव करने लगती हैं और उस ख़ालीपन को भरने के लिए कभी-कभी ऐसे प्रयास करते हैं कि बाद में उनके बारे में सोचकर अपने आप पर हँसी आने लगती है।'
'तो क्या सिस्टर अपने प्रेम-जीवन पर कभी हँसी आती है आपको, अब?'
'हाँ मैरी।' सविता ने लापरवाही से उत्तर दिया।
'वह युवक आपको याद भी नहीं आता, अब?' मैरी ने आश्चर्य से पूछा।
'नहीं।' सविता ने फिर उसी लापरवाही से उत्तर दिया, 'मैं अब सब-कुछ भूल चुकी हूँ, मैरी। विवाह से कुछ दिन पहले मैंने वे सब पत्र जला डाले थे, जो मैंने कृष्णमोहन के नाम लिखे थे। वह चित्र भी आग की भेंट चढ़ा दिया था, जिसकी मैंने लंबे समय तक पूजा की थी।'
'पर सिस्टर, यह कैसे संभव हुआ। यह कैसे संभव हुआ आपसे? लगता है आप बहुत निष्ठुर हैं।' मैरी स्मिथ का भाव कुछ ऐसा था जैसे वह सविता की बात पर विश्वास न कर रही हो।
'नहीं मैरी, मैं निष्ठुर नहीं हूँ। ये सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि सारा प्रेम-प्रसंग कल्पना-मात्र था। तुम्हारे पास तो एक पात्र भी है, चलता-फिरता, जीवित, पंकज श्रीवास्तव के रूप में। मेरे पास तो यह भी नहीं था। मैंने तो एक सुंदर-से युवक को अपनी कल्पना में अंकित कर लिया था। एक काल्पनिक चित्र बना लिया था उसका, एक फर्जी नाम रखकर प्रेमपत्र लिखती रही थी, उसे।'
'लेकिन सिस्टर, आपने ऐसा क्यों किया?' मैरी स्मिथ ने वास्तविकता तक पहुँचने का प्रयास करते हुए पूछा।
'जानबूझकर नहीं किया था, मैरी। ये सब नाटक आप-ही-आप होता गया। अब सोचती हूँ तो हँसी आती है। दरअसल, युवावस्था में एक भूख-सी जाग जाती है मन के भीतर। एक ख़ालीपन-सा उत्पन्न हो जाता है और इस ख़ालीपन को भरने के लिए तुम जैसी युवतियाँ एकपक्षीय प्रेम करने लगती हैं किसी पंकज श्रीवास्तव से और मुझ जैसी लड़कियाँ अपनी कल्पनाओं में एक चित्र ढाल लेती हैं किसी सुंदर राजकुमार का और जब वह ख़ालीपन नहीं रहता तो उन सब घटनाओं को भूल जाती हैं, जो अतीत में गुजरी थीं, जैसे विवाह के बाद मैं भूल गई.'
मैरी ने ख़ाली-ख़ाली दृष्टि से सविता की ओर देखा। उसे लगा उसके होंठ शब्दों से वंचित हो गए हैं।
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