अतीत / गोवर्धन यादव

Gadya Kosh से
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माँ अपनी बेटी के साथ लौट रही है, ट्रेन ने अब स्पीड पकड ली है, वह द्रुत गति से भागी जा रही है, मां को इस बात संतोष हो रहा है कि उसने एक बडी झंझट से मुक्ति पा ली है और अब वह भविष्य में अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे खाते-पीते घर में कर सकेगी, उसने बडॆ इत्मिनान से गहरी सांस ली और अब उसे नींद घेरने लगी थी, उसे याद नहीं आ रहा है कि उसने कभी इस बीच गहरी नींद ले पायी थी, कारण ही इतना संगीन था कि वह चाह कर भी नींद नहीं ले पायी थी, अब वह निश्चिंत होकर सो सकती है, लडकी गहरी उदासी में डूबी खिडकी से बाहर झांक रही है, पल-पल बदलते दृष्य देखकर और कम्पार्टमेंट के अन्दर उठते शोर से वह अविचलित है, वह कहीं और खोई हुए है, उसका डरावना अतीत बार-बार उसकी आंखों के सामने झूल जाता है, वह सोचने लगी थी-" पता नहीं वह कौनसा मनहूस दिन था, जब उसकी ज़िन्दगी में हरीश का आगमन हुआ था, आगमन अप्रत्याशित था, वह अपने लेपटाप में कुछ खोज रही थी, तभी चैटिंग के लिए वह आ उपस्थित हुआ, स्क्रीन पर उभरते अक्षरों के साथ वह रंगीन दुनिया में खोते चली गयी थी, बात यहाँ रुकी नहीं थी, मेलमुलाकातें भी होने लगी थी और एक अज्ञात युवक अचानक उसके दिल की धडकन बन गया था और एक दिन ऐसा भी आया कि सारी मर्यादाओं को तोडते हुए उसने उसके साथ शारीरिक सम्बंध भी बना लिए थे, दरअसल जिस खेल को वह अतिरेक आनन्द के साथ खेल रही थी, प्यार का ही अंग समझ रही थी, जब कि वह केवल वासना का गंदा खेल था, प्यार और वासना के बीच कितना फ़र्क होता है, वह उस समय समझ ही नहीं पाई थी, होश तो उसे तब आया, जब एक नया जीव उसके गर्भ में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका था, उसने कई बार हरीश को आगाह किया और शादी के बन्धन में बंध जाने की बात कही तो उसने दॊ टूक जवाब देते हुए कहा कि प्यार में ऐसा होना कोई नई बात नहीं है और अभी उसका मन शादी जैसे घटीया बंधन में बंध जाने का नहीं है,

हरीश की दलील सुनकर उसे लगा कि किसी ने हिमालय की-सी ऊँचाई से उसे नीचे ढकेल दिया है, अब सिवाय रोने के, पश्चाताप करने के अलावा कॊई विकल्प नहीं बचा था, उसका दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई थी, मन में आता कि छत से झलांग लगा कर आत्महत्या कर ले अथवा ज़हर पीकर इहलीला समाप्त कर ले,

मां की नजरों से यह बात ज़्यादा देर तक छुप नहीं सकी थी, एक अज्ञात भय ने पूरे परिवार को अपनी जकड में ले लिया था, अब एक और केवल एक ही रास्ता बचा था और वह था ऎबार्शन करवाने का, माँ ने अपने किसी रिश्तेदार की मदद से अच्छी खासी मोटी रक़म डाक्टर को देते हुए एक भयावह और नारकीय जीवन से छुटकारा पा लिया था,

मां अपनी सीट पर बैठी ख्रुर्राटे भर रही थी और वह अब तक जाग रही थी, पीछे छूट चुका अतीत अब भी भूत बनकर उसकी आंखों के सामने खडा अट्टहास कर रहा था।