अथ पुत्र-जन्म तथा एडमिशन कथा / कमलेश पाण्डेय
एस आर रामचंद्रन चौदह साल तक वन-विभाग में पनिश्मेंट पोस्टिंग काट कर अपने होम-कैडर कोसल लौट आए थे और उसकी बदली तस्वीर देखकर भौंचक थे।
उनका यह टेन्योर काफी घटनापूर्ण रहा था। जहाँ एक ओर इंडो-श्रीलंका-ब्रिज प्राज़ेक्ट जैसे महत्वपूर्ण असाइन्मेंट मिले, वहीं बाद के फेज़ में वाइफ का अपहरण और उधर की लोकल पुलिस और कमांडोज़ के साथ श्रीलंका तक जाकर उन्हें छुड़ा कर लाना काफ़ी परेशानी का सबब रहा। वो तो उधर कुछ फ्रेण्डली लोग मिल गए तो आसानी रही। अपहरणकर्ता रावणन के छोटे भाई के टिप पर ही इस लंका-बेस्ड आतंकवादी गिरोह के अड्डे का पता चला। आखिर एक एन्काउंटर में तमाम भाई-कज़िन समेत रावणन का पूरा गैंग मार दिया गया और ईनाम में उसके छोटे भाई को गैंग और एरिया दोनों सौंप कर रामचंद्रन वापस हिन्दुस्तान आ गए। इस आपरेशन के हेड सुग्रीवन को वे इलाके का कमिश्नर बनाने की अनुशंसा कर आए और उनके एक डिप्टी हनुमानन तो उन्हें इतने पसंद आए कि उन्हें अपने साथ ही डेपुटेशन पर अयोध्या लेते आए।
इन चौदह सालों मे कोसल ठीक-ठाक प्रगति कर ‘उत्तम प्रदेश’ कहलाने की दौड़ में शामिल हो गया था। राजधानी अयोध्या में कुछ राज-मार्गों और कई प्रजा-मार्गों का जाल बिछा था, जिनपर विविध् प्रकार के वाहनों का रेला चौबीसों घंटे लगा रहता था। चारों ओर बाज़ार बस गए थे, जिसमें मॉल-ओ-मल्टिप्लेक्स, स्कूल-कॉलेज़, सरकारी दफ्ऱतर, सेवा-घर, पुलिस-थाने आदि शामिल थे। एक रोज़ रामचंद्रन सपत्नीक अपनी गाड़ी में सैर को निकले तो चौदह चौराहों पर फ़ी लाल-बत्ती दस मिनट की दर से ढाई घंटे गँवा कर भी कहीं न पहुँच पाए। आगे एक जगह ट्रैफिक की प्रगति पूरी तरह रुक गई। तब घनघोर वायु-प्रदूषण के कारण दोनों को दम घुटने की शिकायत होने की वज़ह से वे सामने ही कतार में खड़े दर्ज़नों प्राइवेट अस्पतालों में से एक में घुस गए। वहाँ उनकी मिसेज़ को तुरंत भर्ती कर लिया गया और सात टेस्टों का बिल देने में जब रामचंद्रन की ज़ेब घबरा उठी तब हनुमानन ने ही अपना पर्स निकाल कर उन्हें उबारा।
वहीं एक गैर-ज़रूरी टेस्ट के नतीज़े में उन्हें मालूम पड़ा कि वे पिता बनने वाले हैं। इस ख़बर के बाद अयोध्या की प्रगति का जायज़ा लेने का काम स्थगित कर वे घर लौट आए। आगे प्रसन्नता के अतिरेक में उन्होंने हनुमानन को संतान-जन्म से सबंधित सारी जानकारी एकत्र करने का आदेश दिया।
हनुमानन ने अपने अति-उत्साह के आधीन अयोध्या के सर्वोत्तम मैटर्निटी-होमों की सूची बनाकर, उनमें जाँच-परीक्षण और प्रसूति के दौरान भर्ती आदि के खर्चों का तुलनात्मक अध्ययन किया। थोड़ा दूरदर्शी होने के नाते उन्होंने डिब्बे के दूध, नैपी-पैड, प्रैम, झूले वाले पालने और पोतड़े-तौलियों पर आने वाले खर्च का भी ब्यौरा बनाया। फिर अपने आजीवन ब्रह्मचर्य को ध्यान में रखकर बॉस से मिले इस आदेश को ही संतान-धर्म के पालन का अंतिम अवसर मानते हुए उन्होंने आने वाले बालक/बालिका के बड़े होने पर प्ले-स्कूल, नर्सरी में दाखिले का डोनेशन, स्कूल की फ़ीस-यूनिफार्म आदि के खर्च तथा आगे चलकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, कोचिंग और फिर भी अच्छे कालेज में एडमिशन न मिलने पर प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में भर्ती के खर्च का ब्यौरा भी बना डाला।
अपोलाश्रम से मैडम का चेक-अप करवाते हुए भी हनुमानन ने, ‘साब खुश होगा करके’ लगे हाथों एक प्रतिबंधित परीक्षण भी करवा लिया। जुड़वाँ बेटों के जन्म की रिपोर्ट लेकर वे कूदते-फाँदते रामचंद्रन के यहाँ पहुँचे और उसे अपने उपरोक्त पालन-पोषण-संबंधी बज़ट-ब्यौरे के साथ ही उनके सामने रख कर पीठ थपथपवाने वाले भाव से खड़े हो गए।
एक ही प्रयास में दो पुत्रों का पिता कहलाने की संभावना से पुलकित हो रहे रामचंद्रन की दृष्टि ज्यों ही हनुमानन की दूसरी रिपोर्ट पर पड़ी, वे काँप उठे। जो अनुमानित राशि हनुमानन ने उनके पुत्रों के भरण-पोषण और शिक्षा-दीक्षा के मद में दिखाई थी, वह पूरे लंका-पुल-प्रोज़ेक्ट के खर्च से भी अधिक थी।
आगे रामचंद्रन -हनुमानन संवाद यों हुआ-
“हे हनुमानन! संतान के लालन-पालन में इतना खर्च? यों तो एक ही संतान को बड़ा करने में मेरी और पूर्वजों की पूरी कमाई स्वाहा हो जाएगी। तुम तो जुड़वाँ बच्चों के जन्म की खबर भी साथ लाए हो। क्या तुम्हें याद नहीं कि मुझे एक अटैक आ चुका है।“
“सर! मैंने तो सिर्फ आदेश का पालन किया- आपने एस्टिमेट्स बोला, वो बना के लाया।“
“हे मारुति-वाहक, हम चारों भाईयों ने तो घर पर ही जन्म लिया और मज़े में पले। माताओं को प्रसव-पीड़ा जरूर हुई होगी, परन्तु पिता को तो कोई कष्ट न हुआ। यहाँ तो इन एस्टिमेट्स को देख अभी से पीड़ा शुरु हुई जाती है। जन्म से लेकर स्कूल जाने तक ही पालन-पोषण का खर्च बीस-लाख?”
“आया या गवर्नेस रखेंगे तो उसका अलग से ...।“
“और यह स्कूल से पहले ही कौन-सा स्कूल है, जो प्रति-वर्ष दो-तीन लाख धरवा लेता है?
“हे अन्ना, इसको प्ले-स्कूल बोलते। बच्चा जैसे ही चलने-बोलने के काबिल होता, लोग-बाग उनको इन प्ले या प्रीप्रेट्री स्कूलों में डाल देते। ये स्कूल बच्चे को अगले स्कूल के लिए तैयार करते। क्या है कि आजकल स्कूलों में एडमीशन बहुत कठिन। कोई लंका-युद्ध तो है नहीं कि कमांडोज़ लेके गए और सबका एन्काउंटर कर दिया।“
“...उफ़! तो ऐसी क्या मुसीबतें आती हैं एडमीशन में?”
“क्या है कि, एक डज़न स्कूलों का फ़ार्म खरीद के भरना, फिर कॉल आने पर बच्चा लोग का रिटन-टेस्ट, वो पास हुआ तो इंटर्व्यू ... उसमें पास हुआ तो माँ-बाप का रिटन-टेस्ट और इंटर्व्यू। सब-लोग सब टेस्टों में पास हो जाते तब जाके एडमिशन होता। किंतु सर, सबसे पहले आपकी ज़ेब का पास होना जरूरी ...।“
“परन्तु मात्रा चौदह वर्षों में ऐसा क्या हो गया, हमारे वक्त में तो हमारे पिता को तो कोई टेस्ट नहीं देना पड़ा था। मुनि वशिष्ठ राजकीय उ.मा. विद्यालय से निकले और अंकों के आधार पर सीधे इंजीनियरिंग कालेज में।
“हे करूणानिधान! तब का ज़माना दूसरा। अब अयोध्या की गली-गली में इंगलिश स्कूल खुला। हर किसी को यही मीडियम होना- कारण कि इस मीडियम में बोलने-लिखने से सरलता से सफलता मिलती। हमारे साउथ में तो बहुत सालों पहले से ही ये सिस्टम चालू।
“मीडियम तो समझा। हमारी आगे की पढ़ाई इसी माध्यम में हुई थी। पर इतना मंहगा क्यों?”
“क्या है कि, आजकल कंपटीशन का ज़माना, ढ़ेर सारे स्कूल, इसलिए क़ीमत ज्यादा।“
“पर यह तो उलटी बात है- ज्यादा सप्लाई से तो कीमत घटनी चाहिए।“
“सर, इधर का मामला तो सब उल्टा-पुलटा। क्या है कि आपका बैच निकालने के बाद ही वशिष्ठ जी ने डोनेशंस की मदद से कोसल में पहली बार एक खूब बड़ा स्कूल खोला और उसमें हाई लेवल का एजूकेशन चालू किया। इस स्कूल से निकलकर बहुत सारा बच्चा लोग बड़ा-बड़ा अफ़सर, नेता, बिज़नेसमैन वगैरा बन गया। तब से सारा आश्रम इसी का पैटर्न पे चलता। अब तो भाई लोग दो कमरे के मकान में भी ‘इंग्लिश मीडियम स्कूल’ का बोर्ड लगा कर शुरु हो जाता है। हे सरजी! शिक्षा के मार्केट का मंत्र उल्टा है- जितना बड़ा फ़ीस, उतना बढ़िया स्कूल और उतना ही एडमिशन के वास्ते मारा-मारी।
“चलो फ़ीस तो समझ में आई! मगर शिक्षा के मंदिरों में यह डोनेशन क्यों।“
“मंदिर है इसी वास्ते तो डोनेशन। जैसे सारे मंदिर डोनेशन से बनते और चलते, वैसे ही स्कूल वाले छोटे बच्चों को भर्ती करते वक़्त माँ-बाप से बिल्डिंग-फंड, पार्क- फंड, लाइब्रेरी- फंड, ये फंड, वो फंड बोल के कई हज़ार रखवा लेते। क्या है कि, बिल्डिंग, प्ले ग्राउंड, लाइब्रेरी वग़ैरह स्कूल में पहले से होता ही नहीं, नहीं लेंगे तो बनाएंगे कैसे।
“और ये दस साल की स्कूली शिक्षा में दस लाख का मिस्लेनियस खर्च क्या है?”
“हे भगवान! आप सचमुच जंगल से लौटा है। ये भी मालूम नहीं कि अब स्कूलों में पढ़ाई के सिवा और भी बहुत कुछ होता रहता- साल के दस-बीस हज़ार उसका रखवा लेते। फिर आपका बच्चा आर्ट एंड क्राफ्ट, म्युज़िक-ड्रामा, स्वीमिंग-हार्स राइडिंग, एक्स्कर्सन ट्रिप - ये सब भी तो करेंगा। मैं सबका हिसाब जोड़ा- एवरेज़ इतना ही बैठेगा।
“पर क्या ये सब करने से सचमुच मेरे बेटे पढ़ाई में अव्वल आएंगे?”
“यह तो आपके बेटों पर डिपेन्ड करता। इंटेलिजेंट होंगे तो जरूर पास हो जाएंगे।“
“और यह स्कूलोपरांत कोचिंग का खर्च क्या है?”
“हे राघवन! आजकल मेडिकल और इंजीनियरींग की पढ़ाई के लिए दो-चार सौ सीटों के ऊपर आठ-दस लाख केंडिडेट होते। इस वास्ते कंपटीशन एक्ज़ाम होते। कोचिंग वाले दो-तीन लाख में स्पेशल पढ़ाई करवा के कंपटीशन पास करवा देते। कुछ कोचिंग वाले तो गारंटी भी देते क्योंकि उनके पास पेपर-लीक करवाने का टेक्नालॉजी होता। हे सर! आपके बेटे बड़े होकर अगर ज़ीनियस भी निकलें तो भी रिस्क नहीं लेने का। कोचिंग जरूर कराने का। इस वास्ते मैं ये आइटम भी बज़ट में जोड़ा।“
“मान लो एडमीशन हो गया। फिर उसके आगे इतना खर्च क्यों।“
“ आप भी न सर! कमाल करते! आजकल हायर एडुकेशन बहुत महंगा। अगर किसी प्राइवेट इंज़ीनियरींग कालेज में भर्ती होना पड़ा तो बज़ट करोड़ों में पहुँचेगा। इनका तो डोनेशन ही पचास लाख से शुरु होता।“
“तुम कैसे भत्तफ हो हनुमानन! ऐसी भयावह आशंकाओं से लगातार मेरा बीपी बढ़ा रहे हो।“
संवाद के इस बिंदु पर पसीना पोंछते हुए रामचंद्रन ने बिसलेरी की पूरी बोतल हलक में उड़ेल ली। फिर कुछ चिंतन-सा करते हुए ड्राइंग-रूम के एक छोर से दूसरे छोर तक टहलते भए। अचानक रुक कर दीवार पर लटके मैडम के फ्रेमित चेहरे को घूर कर देखा। कुछ याद करते हुए पुनः उवाचे
“अरे हाँ! कल उस चैनल पर वह टॉक-शो क्या आ रहा था, अपहृत महिलाओं के घर लौटने पर....”
“सर! उसमें पब्लिक से ये पूछा जा रहा था कि अगर उनके घर से किसी महिला का अपहरण हो जाए तो क्या वे उसको लौटने पर अपना लेंगे। एक लौन्ड्री-वाले ने मैडम का एक्ज़ाम्पल देके बोला कि ऐसी बीवी को वो कभ्भी वापस घर में नहीं लाता। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछते। आपने तो मैडम का ‘थारो मेडिकल टेस्ट’ करवा लिया था - फ़ायर टेस्ट भी नहीं छोड़ा था।
“लगता है आज तुम दूसरा अटैक करवा के ही छोड़ोगे। अरे कोई उपाय भी बताओ, या बस दिल बैठाने वाले किस्से ही सुनाते रहोगे!”
“अभी-अभी आपने टाक-शो बोला तो एक आईडिया आया। पर थोड़ा काम्प्लेक्स है। एक बार फिर से आपको बैचलर होना पड़ेगा। पर इतना फ़ुल-प्रूफ आइडिया है कि दोनों बाबा लोग का पालन-पोषण भी फ्री, शिक्षा-दीक्षा भी।
“अब बोलो भी।“
“आप फ़ादर वाल्मीकि- कान्वेंट जानते? वही जो पहले फेमस बैंडिट होते थे। आर्म्स-समर्पण के बाद उसी जंगल में उन्होंने एक बड़ा रेज़िडेंशियल स्कूल बनाया। कमज़ोर और तलाकशुदा नारियों को ख़ास तौर पर शरण देते और उनके बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते। आप ऐसा करो, लक्ष्मणन सर को बोलो कि किसी बहाने मैडम को उनके कैंपस के बाहर छोड़ के आ जाए। वो फ़ादर एक प्रेग्नेंट लेडी को जरूर हेल्प करेंगा। वहां एक नर्सिंग होम भी है जिसमें बाबा लोग आराम से पैदा होगा, अच्छा केयर पाएगा और आगे कान्वेंट में मुफ्त पढ़ाई-लिखाई भी हो जाएगा. सबसे बड़ा बात ये कि पूरा एजुकेशन हंड्रेड-पर्सेंट इंगलिश मीडियम। बाबा लोग का कैरियर बन जाएगा।
रामचंद्रन कुछ देर मौन सोचते रहे। फिर ज़ेब से मोबाईल निकाल कर छोटे भाई लक्ष्मणन का नंबर डायल करने लगे।