अदला-बदली / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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एक गरीब कवि की एक बार शहर के एक चौराहे पर एक धनी मूर्ख से मुलाकात हो गई। उन्होंने बहुत-सी बातें कीं लेकिन सबकी सब बेमतलब।

तभी उस सड़क का फरिश्ता उधर से गुजरा। उसने उन दोनों के कन्धों पर अपने हाथ रखे। एक चमत्कार हुआ : दोनों के विचार आपस में बदल गए।

इसके बाद वे अपने-अपने रास्ते चले गए।

चमत्कार हुआ।

कवि ने रेत देखी। उसे मुठ्ठी में उठाया और धार बनकर उसमें से उसे रिसते देखता रहा।

और मूर्ख! अपनी आँखें बन्दकर बैठ गया; लेकिन अनुभव कुछ न कर सका हृदय में घुमड़ते बादलों के सिवा।