अदालती फैसला और फिल्म 'अमर' / जयप्रकाश चौकसे

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अदालती फैसला और फिल्म 'अमर'
प्रकाशन तिथि :04 जुलाई 2015


मध्यप्रदेश और तामिलनाडु उच्च न्यायालयों के फैसले को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है। दुष्कर्मी के पीड़ित से विवाह के समझौतावादी फैसलों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय ने दुष्कर्मी को कठोर दंड देने की बात कही है और वेदप्रताप वैदिक ने टिप्पणी की है कि उच्च न्यायालय का फैसला दुष्कर्मी को पुरस्कार और प्रोत्साहन देने की तरह देखा जा सकता है, अत: उच्चतम न्यायालय के फैसले की उन्होंने अनुशंसा की है और यही उचित भी है। 19 51 और 54 के मध्य कभी बनाई गई मेहबूब खान की फिल्म 'अमर' इसी विषय पर है। ज्ञातव्य है कि मेहबूब खान के लेखकों ने एक फ्रेंच कृति से प्रेरित होकर 'अमर' की पटकथा लिखी परंतु मूल का क्लाइमैक्स उन्होंने बदल दिया। उस फ्रेंच कृति की जानकारी मुझे आर.के. नैयर ने दी थी।

बहरहाल, दिलीप कुमार मधुबाला और निम्मी अभिनीत 'अमर' का कथासार कुछ इस तरह था कि दिलीप लंदन से कानून की शिक्षा लेकर लौटे हैं और उनके शहर में नगरसेठ की कन्या मधुबाला एक सोशल एक्टिविस्ट है, वह गरीबों को न्याय दिलाने की चेष्टा करती है। इसी प्रयास में गुंडे जयंत का केस वह दिलीप के पास ले जाती है और हिंसक जयंत दंडित होता है। दिलीप मधुवाला के बीच प्रेम होता है और मधुबाला के पिता दिलीप के पिता के मित्र है, अत: उनकी शादी में कोई बाधा नहीं है। फिल्म का प्रारंभ निम्मी से किया गया है जो भैंसों से बातचीत करती है और उसने मवेशियों के नाम भी रखे हैं। प्राय: वह गोबर में सनी होती है। बस्ती का दादा जयंत उस पर फिदा है। निम्मी की सौतेली मां उसे प्राय: पीटती रहती है। एक रात वह जलती लकड़ी से पिटाई करती है और निम्मी भागकर दिलीप के बंगले में प्रश्रय पाती है। इस घटना के पहले एक-दो बार निम्मी के पास से गुजरते हुए दिलीप कहते है, 'कम्बख्त कभी नहा लिया कर तू गंधाती है।' उस बरसात की रात डरी हुई निम्मी दिलीप से चिपट जाती है। वह भय से कांप रही है। फिल्मकार संकेत देता है कि उस रात दिलीप निम्मी हमबिस्तर हुए। बहरहाल, कुछ दिनों बाद निम्मी गर्भवती हो जाती है और लाख सवाल करने पर भी गर्भस्थ बच्चे के पिता या कहें दुष्कर्मी का नाम नहीं बताती। जेल से छुटा जयंत सौतेली मां को धन देकर निम्मी से विवाह करना चाहता है और गर्भवती निम्मी से उस आदमी का नाम जानना चाहता है। न्याय के लिए लड़ने वाली मधुबाला 'अपराधी' का पता मालूम करने का बीड़ा उठाती है इस बीच, मधुबाला और दिलीप की शादी की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। संवेदनशील वकील साहब अपराध बोध से छटपटा रहे हैं और इन दृश्यों में दिलीप कुमार ने कमाल का अभिनय किया है। वे मधुबाला के नाम इकरार-ए-जुर्म का खत भी लिखते हैं परंतु घटनाक्रम ऐसा चलता है कि दे नहीं पाते। एक मार्मिक दृश्य में दिलीप अपने मुनीम से कहते हैं कि इस पूरे बंगले को तोड़ दो और नया मकान बना दो। अपराध बोध ही उनसे यह सब करा रहा है। घटनास्थल को जला देने से भी यादों में गुदा वह कार्य मिट नहीं सकता।

बहरहाल, रोचक घटनाक्रम के अंत में मधुबाला दिलीप की शादी निम्मी से करा देती है। यह बात कुछ हद तक रद्‌द फैसले के तहत आती है। मूल कृति में वकील नायक अदालत में अपना गुनाह कबूल करता है और कहता है कि शादी के समझौते से वह स्वयं को बचा सकता था परंतु ताउम्र ऐसी स्त्री के साथ रहना, जिसे वह पसंद नहीं करता, उम्र कैद की तरह होती। वह तीन वर्ष का सशक्त कारावास स्वीकार करता है। मूल कृति और 'अमर' दोनों ही प्रकरण दुष्कर्म के नहीं हैं परंतु हमबिस्तर होने के हैं और दुष्कर्म के मुकदमों में वकील सफाई देकर प्राय: अत्यंत अभद्र ढंग से यह सिद्ध करते हैं कि हमबिस्तर होने में कन्या की रजामंदी शामिल है। अदालत की इसी घिनौनी प्रक्रिया जिसमें वार्ता के स्तर पर पीड़ित का भरी अदालत में दोबारा सरेआम दुष्कर्म होता है। इसी कारण दुष्कर्म की अधिकांश घटनाएं अदालत तक तो क्या पुलिस थाने में भी नहीं जाती, क्योंकि दरोगा भी अभद्र प्रश्नों की प्रक्रिया में एक और दुष्कर्म शाब्दिक स्तर पर करता है। दुष्कर्मभारत में अधिक होते हैं परंतु इससे कोई देश अछूता नहीं है। दुष्कर्म की जड़ में बदला, लम्पटता इत्यादि अनेक बाते हैं परंतु प्रकृति ने स्त्री को पुरूष से बेहतर रचा है और अपनी पैदाइशी कमतरी को छुपाने के लिए पुरुष ने औरत के खिलाफ साजिश रची है, जिसका एक लक्षण दुष्कर्म के रूप में उभरा है।