अदालत में सिनेमाघर, सिनेमा अदालत में / जयप्रकाश चौकसे

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अदालत में सिनेमाघर, सिनेमा अदालत में
प्रकाशन तिथि :13 फरवरी 2018


प्रसिद्ध साहित्यकार और फिल्म पटकथा-संवाद लेखक राही मासूम रजा का 1975 में लिखा उपन्यास 'सीन 75' अब अंग्रेजी भाषा में अनुवादित होकर प्रकाशित हुआ है। सुश्री पूनम सक्सेना ने इसका अनुवाद किया है। साहिर लुधियानवी की तरह राही मासूम रजा भी फिल्मों में आने के पहले साहित्य क्षेत्र में नाम कमा चुके थे। राही साहब का 'आधा गांव' एक क्लासिक का दर्जा रखता है। उनका 'हिम्मत जौनपुरी' भी खूब सराहा गया था। साहिर और राही की तरह ही गुलशेर खान शानी भी साहित्य जगत में प्रसिद्ध होने के बाद फिल्म जगत में आए थे। शानी की 'कालाजल' भी एक क्लासिक है। 'कालाजल' पर धारावाहिक दूरदर्शन पर दिखाया गया था। मजेदार बात यह है कि राही साहब के एक उपन्यास का एक पात्र सगर्व अपनी व्यक्तिगत लाइब्रेरी लोगों को दिखाता है तो राही साहब का एक पात्र कहता है, जिस लाइब्रेरी में गुलसेर शानी की 'कालाजल' नहीं उसकी कोई अहमियत नहीं है।

ज्ञातव्य है कि इस्मत चुगताई के उपन्यास 'अजीब आदमी' में गुरुदत्त, गीतादत्त और वहीदा रहमान के रिश्तों पर प्रकाश डाला गया है। सआदत हसन मंटो ने भी फिल्म उद्योग में अपने अनुभवों पर किताब लिखी है। इसी तरह निदा फाज़ली ने अपनी जीवन यात्रा दो खंडों में लिखी है। 'दीवारों के बीच' और दूसरे खंड का नाम 'दीवार के बाहर' है जिसे वाणी प्रकाशन ने जारी किया है। इस दूसरे खंड में फिल्म उद्योग में अपने अनुभवों को उन्होंने सविस्तार लिखा है। कुछ दिन पूर्व ही फिल्मकार नीरज पांडे, खाकसार के साथ श्रीमती निदा फाज़ली के घर गए थे जहां उन्होंने एक रकम उन्हें दी थी। नीरज पांडे की फिल्म 'अय्यारी' में निदा फाज़ली की पंक्तियां एक संवाद के रूप में प्रयोग की गई है और प्राय: इसके लिए कोई धन नहीं देना पड़ता परन्तु नीरज पांडे का मन नहीं माना। निदा फाज़ली की पंक्तियां हैं- 'औरों जैसे होकर भी हम बाइज्जत हैं बस्ती में, कुछ तो लोगों का सीधापन है, कुछ है अपनी अय्यारी भी, जीवन जीना सहज न समझो, यह है बहुत बड़ी फनकारी भी'। निदा फाज़ली की फिल्म यात्रा 'शायद' के साथ शुरू हुई। 'हरजाई' के संगीतकार राहुल देव बर्मन नया गीतकार नहीं लेना चाहते थे। निर्माता के इसरार पर उन्होंने निदा को एक धुन सुनाई और निदा फाज़ली ने बहर पकड़कर उसी समय गीत लिख दिया।

इसके बाद बर्मन इतने प्रभावित हुए कि उनसे अनेक गीत लिखवाए। प्राय: गीतकार टेप रिकॉर्डर पर संगीतकार को टेप कर लेते हैं और फिर अगले दिन गीत लेकर आते हैं। निदा फाज़ली के पास टेप नहीं था। वे एक बार धुन सुनकर संगीतकार के सामने बैठकर गीत लिख देते थे।

बहरहाल राही साहब का एक पैर छोटा था और वे लंगड़ा कर चलते थे। उन्होंने प्रेम विवाह किया था और दोनों परिवार रजामंद नहीं थे। उनके हास्य का यह माद्दा था कि उन्होंने कहा कि प्रेमिका को लेकर वे भागे थे और उसी समय प्रेमिका के रिश्तेदार ने पत्थर फेंक कर मारा, तब से ही वे लंगड़ा कर चलते हैं। सच तो यह है कि यह पूरा घटनाक्रम काल्पनिक है। अपने पर हंसने के लिए ही उन्होंने यह घटनाक्रम रचा है। राही साहब को पान खाने का शौक था और वे स्वयं ही पान बनाते थे। चूना, कथ्था, सुपारी इत्यादि रखने का उनके पास एक खूबसूरत पानदान था। वे सभी मिलने वालों को पान की पेशकश करते थे परन्तु जो पान नहीं खाते, उनसे मन ही मन वे प्रसन्न होते थे क्योंकि अपना पान वे किसी को देना ही नहीं चाहते थे। दूध की मलाई में उनका कथ्था घोंटा जाता था, सारा उपक्रम मेहनत व मोहब्बत से किया जाता था।

बलदेवराज चोपड़ा प्रतिदिन अपने लेखकों की टीम के साथ सुबह ग्यारह बजे से लंच तक विचार-विमर्श करते थे। इस तरह का कथा विभाग और बैठकें राकेश रोशन भी करते हैं। राही मासूम रजा ने ही बलदेवराज चोपड़ा की 'महाभारत' लिखी थी जिसे दूरदर्शन पर दिखाया गया था। सोनी टेलीविजन पर दूसरी बार प्रस्तुत महाभारत तिवारी ने स्वास्तिक निर्माण संस्था के तहत बनाई परन्तु जो गुणवत्ता और विश्वसनीयता राही साहब ने रची थी, वह बात दूसरे प्रयास में नहीं थी। आज के संकीर्णता के वातावरण में तो किसी इस्लाम मानने वाले को महाभारत लिखना असंभव किया जा सकता है। आज प्रसारित सीरियलों पर कॉपीराइट अधिकार निर्माण कंपनी का होता है। वे इस तरह का अनुबंध बनाते हैं परन्तु उस दौर के दूरदर्शन ने ऐसा नहीं किया और कॉपीराट निर्माता के पास ही हैं। दरअसल दूरदर्शन ने एक दौर में रामायण, महाभारत, हमलोग, बुनियाद इत्यादि अनेक श्रेष्ठ कार्यक्रम प्रसारित किए। प्रायवेट चैनलों के पास असीमित पूंजी और साधन हैं परन्तु वे उस दौर के दूरदर्शन की तरह हमेशा याद किए जाने वाले कार्यक्रम नहीं रच पाते।

गोविंद निहलानी की 'तमस' के खिलाफ शिकायतें दर्ज थीं परन्तु जस्टिस लेन्टिन ने इतवार के दिन अदालत में चार घंटे की 'तमस' देखी और उसके प्रदर्शन की आज्ञा जारी की। भीष्म साहनी के लिखे उपन्यास 'तमस' से प्रेरित होकर ही गोविंद निहलानी ने इसका निर्माण किया था। सुना है कि फिल्म 'मणिकर्णिका' का विरोध भी 'पद्‌मावत' की तरह किया जा रहा है। अभी आग पूरी तरह सुलगी नहीं है। आज के हालात देखकर लगता है कि न्यायालय में भी फिल्म देखने के उपकरण लगाना होंगे।