अधिक संख्या में फिल्म बनाने का जुनून / जयप्रकाश चौकसे

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अधिक संख्या में फिल्म बनाने का जुनून
प्रकाशन तिथि :06 सितम्बर 2017

सत्य घटनाओं और इतिहास से प्रेरित फिल्में कथा फिल्मों के प्रारंभिक दशक से ही बनती रही हैं। परंतु इनका आधार तथ्यों से अधिक काल्पनिक रहा है। हमारी सफल फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' में प्रस्तुत अनारकली का इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है परंतु विचित्र बात यह है कि लाहौर में एक अनारकली बाजार है और अनारकली की कब्र भी है। आशुतोष गोवारीकर की फिल्म 'जोधा अकबर' की प्रेम कहानी भी काल्पनिक है, क्योंकि उस दौर में शादियां राजनीतिक एवं सामरिक शक्ति संतुलन की खातिर की जाती थीं। प्रेम तो विवाह नामक संस्था से पहले ही खारिज किया जा चुका था। बुजुर्गों का मशविरा रहा है कि पहले विवाह कर लो, फिर अपनी पत्नी से प्रेम कर लेना।

मारवाड़ी समाज में विवाह विशेषज्ञ होते हैं, जिनके पास कुंडलियों के साथ ही बैलेन्स शीट भी होती है और जोड़े जमाने पर कमीशन भी लिया जाता है। अन्य समूहों में भी इस तरह के विशेषज्ञ होते हैं। दहेज कानूनी तौर पर प्रतिबंधित है परंतु आज भी लिया और दिया जाता है।

औद्योगिक घराने भी इससे अछूते नहीं है। अनिल अंबानी और टीना मुनीम का विवाह औद्योगिक संसार के अकबर धीरूभाई अंबानी ने बड़े गरिमामय ढंग से संपन्न किया और एक गृहयुद्ध टल गया। टीना मुनीम का जन्म नाम निवृत्ति है और उनके व्यक्तित्व में आधुनिकता व परम्परा का संतुलन है। नई तारिकाओं को अवसर देने में प्रवीण थे देवआनंद और उन्होंने ही जीनत अमान और अनेक तारिकाओं को अवसर दिया है। देव आनंद ने 'माय फेयरलेडी' से प्रेरित 'मनपसंद' नामक फिल्म में टीना मुनीम को अवसर दिया था। उस समय देव आनंद के नज़दीकी मित्र और गीतकार थे अमित खन्ना, जिन्होंने 'मनपसंद' में विशुद्ध हिंदी में मनोरम गीत लिखे थे। ज्ञातव्य है कि 'माय फेयर लेडी' भी बर्नार्ड शॉ के नाटक 'पिग्मेलियन' से प्रेरित थी और यह फिल्म भी ऑपेरा शैली में रची गीत-संगीत प्रधान फिल्म थी। इसी ऑपेरा शैली में 'साउंड ऑफ म्यूज़िक' का भी निर्माण हुआ था, जिसकी प्रेरणा से गुलज़ार ने 'परिचय' नामक फिल्म बनाई थी। गुलज़ार हमेशा से ही 'प्रेरित' व्यक्ति रहे हैं। फिल्मकार एचएस रवैल की पत्नी ने गुलज़ार को 'गुड्‌डी' की कथा सुनाई थी परंतु उनके मौलिक विचार को स्वीकार नहीं किया गया। 'प्रेरित' गुलज़ार मूल रचना में इतने मौलिक परिवर्तन करते हैं कि उसके उद्‌गम को पहचान पाना कठिन होता है। उन्होंने शेक्सपीयर के नाटक 'कॉमेडी ऑफ एरर्स' से प्रेरित होकर संजीव कुमार अभिनीत 'अंगूर' बनाई, जिसके प्रारंभ में ही शेक्सपीयर की एक पेंटिंग दिखाई थी, जो आंख भी मारती है गोयाकि उन्होंने दिवंगत शेक्सपीयर से इज़ाजत ली थी। गुलज़ार एवं शेक्सपीयर की 'अंगूर' मेहमूद की 'पड़ोसन' और किशोर कुमार की 'चलती का नाम गाड़ी' की श्रेणी की अत्यंत मनोरंजक फिल्म है। दरअसल, साहित्य एवं सिनेमा में इस तरह प्रेरणा लेने की परम्परा रही है।

एक उबाऊ मौलिक फिल्म बनाने से बेहतर है कि किसी से प्रेरणा लेकर मनोरंजक फिल्म बनाई जाए। इस क्षेत्र में गुरु शिष्य परम्परा का श्रेष्ठ उदाहरण यह है कि गुलज़ार के मानस-पुत्र विशाल भारद्वाज ने भी शेक्सपीयर के 'मैकबेथ' से 'प्रेरित' फिल्म 'हैदर' बनाई है। वे इस कदर प्रेरित व्यक्ति हैं कि शेक्सपीयर के नाटक के प्रथम अक्षर से ही अपनी फिल्म के नाम का भी प्रथम अक्षर ग्रहण करते हैं। ये सब बड़े संस्कारी लोग हैं।

एक सत्य घटना पर लिखित सामग्री उपलब्ध है, जिसे 'बैटल ऑफ सारागढ़ी' कहते हैं। सदैव तत्पर फिल्मकार करण जौहर को इससे प्रेरित फिल्म बनाने के लिए सलमान खान ने मौखिक इजाजत भी दे दी। बाद में जैसे ही सलमान खान को ज्ञात हुआ कि उनके अभिन्न मित्र अजय देवगन और उनके लेखक इस विषय पर चार वर्षों से शोध कर रहे हैं तो उन्होंने इनकार कर दिया। सुना है कि अब करण जौहर अक्षय कुमार को लेने का प्रयास कर रहे हैं परंतु अजय देवगन का व्यवहार इतना अच्छा रहा है कि इस सिंघम से टकराव टालने का ही प्रयास रहता है।

करण जौहर को फिल्मकार बनने में प्रेरणा एवं सहायता काजोल ने की है परंतु करण जौहर को तो अधिक संख्या में फिल्म मैन्युफैक्चर करने का जुनन है। उन्हें हमेशा 'कुछ कुछ होता' रहता है, जिसे अवाम की रोजमर्रा की बातचीत में खुजली भी कहा जाता है। हम सब किसी न किसी प्रकार की खुजली से ग्रस्त है। कभी-कभी कोई नेता राष्ट्रीय खुजली का प्रतीक हो जाता है।