अधूरी फिल्मों की पूरी दास्तां / जयप्रकाश चौकसे

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अधूरी फिल्मों की पूरी दास्तां
प्रकाशन तिथि :27 फरवरी 2016


हिंदुस्तानी सिनेमा में अनेक प्रतिभाशाली फिल्मकारों ने कुछ साहसी फिल्मों का विचार किया परंतु अज्ञात कारणों से वे फिल्में नहीं बनीं या पूरी नहीं हो पाईं। विगत दो दशकों से शेखर कपूर अपनी 'पानी' नामक फिल्म नहीं बना पा रहे हैं। कुछ समय पूर्व खबर थी कि आज के सबसे सक्षम फिल्मकार आदित्य चोपड़ा शेखर कपूर की 'पानी' का निर्माण करेंगे परंतु फिल्म नहीं बनी। कुछ वर्ष पूर्व मनमोहन शेट्‌टी शेखर कपूर की 'पानी' का निर्माण करना चाहते थे परंतु फिल्म नहीं बनी। शेखर कपूर ने 'मासूम' नामक फिल्म बनाई थी और बाद में 'बैंडिट क्वीन' भी अत्यंत सराही गई थी और एेसा विश्वास बना था कि शेखर कपूर कमाल करेंगे। उनकी 'मासूम', अंग्रेजी उपन्यास 'मैन, वीमैन एंड चाइल्ड' से प्रेरित थी। अनेक विद्वानों का मानना है कि आने वाले दौर में 'पानी' पर एकाधिकार के लिए विश्व युद्ध होगा। आज पेट्रोल की जो अहमियत है, वही आने वाले समय में पानी की होगी। इसमें विरोधाभास यह है कि धरती के अधिकतम भाग में समुद्र है परंतु पीने का पानी भयावह समस्या बनकर आएगा।

कमाल अमरोही की 'पाकीज़ा' की सफलता के बाद उन्होंने 'मजनून' की घोषणा की थी और इस बहुसितारा फिल्म का भव्य मुहूर्त मेहबूब स्टुडियो में हुआ था परंतु राजेश खन्ना के लाख प्रयास के बाद भी फिल्म नहीं बनी। इसी तरह गुरु दत्त ने किसी जमाने में पत्नी गीता दत्त के साथ 'गौरी' की घोषणा की थी, जिसके लिए आरडी बर्मन ने एक मधुर गीत रिकॉर्ड किया था। उस दौर में कहा जा रहा था कि 'गौरी' केदार शर्मा की पुरानी फिल्म का नया संस्करण है। कथा का सारांश कुछ इस तरह था कि एक खिलौने बेचने वाला मेले की नौटंकी में काम करने वाली कलाकार से प्रेम करता है और विवाह करके अपने गांव लौटता है, जहां उसकी पत्नी के सदाचार से पूरा गांव प्रभावित है परंतु कालांतर में जब उन्हें यह ज्ञात होता है कि यह सद्‌ग्रहणी कभी नौटंकी की बाई थी, उनका विरोध शुरू होता है और अपने पति को सामाजिक असहयोग के कारण उसकी पत्नी बिना किसी को कुछ कहे गांव छोड़ देती है परंतु उसका पति उसकी याद में पागल हो जाता है।

'मदर इंडिया' के लिए प्रसिद्ध मेहबूब खान कश्मीर की कवयित्री 'हब्बा खातून' के जीवन पर फिल्म बनाना चाहते थे। जिस दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ, उस दिन वे हब्बा खातून की पटकथा पढ़ रहे थे और नेहरू की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका सिर खुली हुई पटकथा पर जा टिका। कई वर्ष बाद 'उमराव जान अदा' के लिए प्रसिद्ध मुजफ्फर अली ने हब्बा खातून के जीवन पर 'जूनी' फिल्म की घोषणा की और तत्कालीन कश्मीर सरकार ने पूरा सहयोग देने की घोषणा की परंतु फिल्म नहीं बनी। कुछ वर्ष पूर्व मनमोहन शेट्‌टी की सुपुत्रियों पूजा एवं आरती ने लाखों रुपए खर्च करके 'ध्यानचंद' बायोपिक की तैयारी की परंतु फिल्म नहीं बन पाई।

के. आसिफ ने 'मुगल-ए-आज़म' की सफलता के बाद 'लैला-मजनू' नामक फिल्म शुरू की परंतु कुछ दिनों की शूटिंग के बाद फिल्म के नायक गुरु दत्त की मृत्यु हो गई। कालांतर में यही फिल्म संजीव कुमार की मृत्यु के कारण रुक गई। बाद में उस आधी-अधूरी फिल्म को येन केन प्रकारेण केसी बोकाड़िया ने पूरा किया परंतु फिल्म असफल रही। के आसिफ ने 'सस्ता खून, महंगा पानी,' फिल्म की कुछ रीलें बनाई परंतु उनकी मृत्यु के बाद वह फिल्म नहीं बन पाई। राज कपूर ने 'रिश्वत' की परिकल्पना अपनी 'हीना' बनाई परंतु 'रिश्वत' आज भी उनके अधूरे ख्वाब की तरह है, जबकि आज के दौर में 'रिश्वत' का राष्ट्रीय महत्व है, क्योंकि इसी सामाजिक बुराई के कारण भारत का बहुत अहित हुआ है परंतु आज भी रिश्वत का दौर जारी है।

एक दौर में मुंबई की प्रसिद्ध फिल्म लेबोरेटरी ने घोषणा की थी कि उनके गोडाउन में अनेक अधूरी फिल्म पड़ी हैं और समय रहते किसी ने उस पर दावा नहीं किया तो वे ये अधूरी फिल्में नष्ट कर देंगे, क्योंकि वे महंगी जगह को घेरे बैठी हैं और नियत समय के बाद उन अधूरे सपनों को नष्ट कर दिया गया। अधूे सपने केवल फिल्म उद्योग की बात नहीं है परंतु अगिनत आम आदमियों के अधूरे सपने उनकी चिता के साथ जल जाते हैं।