अनपढ़ मछुआरा / एक्वेरियम / ममता व्यास
समन्दर किनारे रेत पर तड़पती मछली को देख-देख कर कई लोग हंस रह थे। कोई कहता-"किसने कहा था कि बाहर कूदो।" कोई कह रहा था-"क्या इसने वह नर्सरी क्लास की कविता नहीं पढ़ी, मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है, बाहर निकालो मर जाएगी।"
एक व्यक्ति जो खुद को ज्ञानी समझता था, कहने लगा-"अरे ज़रूर इसने चंद किताबें पढ़ लीं होंगी प्रेम पर और चंद उर्दू शायरों की शायरी ने दिमाग खराब किया होगा, इसलिए कूदी।"
किनारे पर घूमते तमाशबीनों ने उसे पत्थर मारे, वह लहूलुहान होती रही। कुछ प्यारे बच्चे फिर उसे पानी की तरफ धकेलने की बरबस कोशिश कर रहे थे।
कुछ दार्शनिक टाइप के लेखक लोग जो अपनी छुट्टियाँ बिताने आये थे, वह तो यही बहस करने लगे कि "प्यास और प्यार में भेद नहीं कर पातीं ये मछलियाँ, इसलिए बाहर आ जाती हैं मरने। चलो इसकी हालत देख इस पर कोई उपन्यास, कोई कविता, कोई कहानी लिखने का विचार तो आया।" ...और वह सब अपने साहित्य के कारोबार में जुट गए.
तभी एक अनपढ़ मछुआरा आया वह बड़ी देर से उन ज्ञानियों की बहस सुन रहा था। उसने बड़े प्यार से मछली को उठा कर उसके घाव को सहलाया और फिर पानी में छोड़ दिया। मछली पहली बार मुस्काई और बोली-"क्यों रे मछुआरे तुम तो मुझे फांसने के लिए रोज ही जाल बिछाते हो और घंटों मेरे फंस जाने की प्रतीक्षा करते हो और आज जो हाथ आई तो वापस पानी में क्यों भेज रहे हो। अपने घर ले चलो मुझे काट कर बेच दो।"
मछुआरा भोला था। उसे कविता, कहानी और कहावतें नहीं आती थीं। उसने कहा-"कमाल है लोग तो पानी में कूद के मरना चाहते हैं, तू मरने के लिए पानी से बाहर कूद गयी।"
सुनकर मछली हंसी और बोली-" अरे नहीं रे मछुआरे! मैं तो ये देखने गयी थी कि प्यार और प्यास पर बड़े-बड़े आख्यान लिखने वाले नज़्म और $गज़ल लिखने वाले, उपन्यास रचने वाले खुद कितने भ्रम में हैं। मुझ पर हंसते हैं मेरी प्यास पर कवितायें रचते हैं। कोई इनसे पूछे कि क्यों नहीं हो जाते ये सब मेरे जैसे। अगर इनके पास प्यास नहीं है तो क्यों भटकते हैं? क्यों हजारों लोग मेरे नीले समन्दर में कूद कर अपनी जान देते हैं? हम तो इनके मरने पर कभी नहीं हंसतीं। इनके पास अगर कोई प्यास नहीं है, तो ये क्यों आते हैं हमारे किनारों पर? क्या ये इतने ज्ञानी हैं कि प्रेम के गहरे रहस्य को समझ गए हैं। क्या ये इतने विद्वान हैं कि प्यास के कारण खोज लिए हैं इन्होंने या ये अपने अवसाद, अपराधबोध, निराशाओं और कुंठाओं के ज़हर से बहुत पहले ही मर चुके हैं।
ये सब अपनी-अपनी कैदों में मर रहे हैं। उन कैदों को इन्होंने प्यार, सुख, जीवन जैसे नाम दिए हैं। मैं अपनी कैद से (इस पानी की कैद से) आजाद होना चाहती हूँ। अपनी प्यास के साथ में खुद से रिहा होना चाहती हूँ। तुम हैरान मत हो मेरे अनपढ़ मछुआरे। मेरे लिए जीवन और मरण एक जैसे हैं। जो पानी आपकी प्यास नहीं बुझा सके उसके भीतर जीवित रहना मरण के समान ही है। हम सभी अपनी प्यास से अनजान हैं, इसलिए परेशान हैं। मैं मुक्त होना चाहती हूँ इस तड़प से।
बोलो तुम चलते हो मेरे साथ? आना हो तो आओ, ना आओ तो भी कोई बात नहीं। "
मछली की बात सुन कर मछुआरा पानी में कूद गया। ज्ञानी अभी भी कहानी लिख रहे थे।