अनमोल / विजयानंद सिंह

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विजयानंद विजय »

स्कूल से घर लौटते वक्त, रास्ते में उसके स्कूल बैग की चेन खराब हो गयी, तो साथ चल रही सहेलियों के साथ वह पास की बैग रिपेयरिंग दुकान पर चली गई। दुकानदार ने कहा - " चेन खराब नहीं है। " और सड़सी से दबाकर चेन ठीक कर दिया। " कितने पैसे हुए अंकल ? " चेन ठीक हो जाने के बाद उस बच्ची ने पूछा।

दुकानदार उसकी ओर देखने लगा। उसने कोई जवाब नहीं दिया। तो, बच्ची ने दुबारा पूछा - " कितने पैसे हुए अंकल ? " " कुछ नहीं बेटा। ले जाओ।" - दुकानदार ने उसकी ओर मुस्कुराकर देखते हुए कहा। वह बच्ची बैग लेकर जाने लगी, तो दुकान पर बैठे एक ग्राहक ने बच्ची से कहा - " कम-से-कम इन्हें एक थैंक यू तो बोल दो।" " थैंक यू अंकल.....।"

रुककर, मुड़कर,बड़े प्यार से, उस मासूम-सी बच्ची ने मुस्कुराते हुए कहा....तो दुकानदार के चेहरे पर आत्मसंतुष्टि का भाव....और आँखों में जो मुस्कान खिल आई थी...उसका दुनिया में कोई मोल नहीं था।